टापुओं पर पिकनिक - 10 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 10

मम्मी का फ़ोन नहीं आया। पर आगोश की आंखों में नींद नहीं थी। वह करवटें बदल रहा था। उसके सब दोस्त गहरी नींद में सो चुके थे।
हल्के अंधेरे में भी उसे दिखाई दे रहा था कि नीचे बिछे गद्दे पर सोए हुए साजिद और आर्यन भी ठंड के कारण एक दूसरे से लिपटे पड़े थे।
उधर सिद्धांत और मनन का भी यही हाल था।
आगोश अपना आलस्य छोड़ कर उठा और उसने पहले तो एसी को कुछ कम किया, फ़िर अलमारी से दो चादरें लेकर चारों को ढका।
तीसरी चादर हाथ में लेकर वह ख़ुद ओढ़ने जा ही रहा था कि ज़ोर से घंटी बजने की आवाज़ आई।
वह चौंक गया। ये आवाज़ फ़ोन की घंटी बजने की नहीं थी। नीचे के मुख्य दरवाज़े पर लगी घंटी बजी थी।
इस समय कौन आया? ये सोचता हुआ आगोश दीवार पर लगी घड़ी में समय देखता हुआ कमरे से निकलने को ही हुआ कि फ़ोन की घंटी भी बजी।
- खोल! खोल बेटा... मम्मी का ही फ़ोन था।
लो, मम्मी तो ख़ुद ही चली आईं। आगोश को भारी तसल्ली हुई और वो बिजली की सी चपलता से दरवाज़ा खोलने नीचे उतरा।
मम्मी को देख कर उसकी जान में जान आई।
मम्मी ने अपने हाथ का बैग झट से सोफे पर फेंका और बाथरूम की ओर बढ़ीं।
आगोश एकदम से उनसे लिपट गया। बोला... उधर.. उधर दूसरे वाले वाशरूम में जाओ।
मम्मी को हैरानी हुई। फ़िर भी जल्दी से दूसरे बाथरूम में घुस गईं।
जब बाहर निकलीं तो आश्चर्य से आगोश की ओर देखती हुई बोलीं- इधर क्या किया है? क्या हुआ। बाक़ी सब दोस्त कहां हैं? मम्मी ने झड़ी ही लगा दी सवालों की।
आगोश मम्मी से लिपट कर रो पड़ा। मम्मी परेशान हो गईं। जल्दी से बोलीं- अरे, क्या हुआ? सब चले गए क्या? तुझे अकेला छोड़ गए क्या बेटा? सुल्तान कहां है?
सुल्तान ड्राइवर अंकल का नाम था।
आगोश ने मम्मी का हाथ पकड़ कर उन्हें लगभग घसीटते हुए ले जाकर उन्हें वो बाथरूम दिखाया जो खून से लाल हुआ पड़ा था। अब तक खून कुछ सूख चुका था।
आगोश ने जल्दी- जल्दी उन्हें सारी बात बताई। मम्मी को पहले तो ये जान कर तसल्ली हुई कि आगोश घर में अकेला नहीं है, उसके सारे दोस्त ऊपर ही सो रहे हैं। लेकिन फ़िर वो ये बात जानकर परेशान हो गईं कि रात को घर में कोई पागल औरत घुस आई।
ड्राइवर भी रात को यहां नहीं था और बच्चों ने ये खून से लथपथ बाथरूम देख कर उन्हें फ़ोन किया था। उन्होंने झट से आगोश के पापा को फ़ोन मिलाया। लेकिन फ़ोन उठा नहीं।
उन्होंने ड्राइवर से भी बात करने की कोशिश की मगर उसका फ़ोन स्विच ऑफ आ रहा था। कई बार की कोशिशों के बाद वो झुंझला गईं और आगोश के साथ ऊपर आईं। उन्होंने एक बार उड़ती सी नज़र से उस कमरे का मुआयना किया जिसमें बच्चे सोए हुए थे फ़िर दूसरे बेडरूम में कपड़े बदलने के लिए घुस गईं।
आगोश की आंखों में नींद तो अब तक नहीं थी पर अब मम्मी के आ जाने से वो कुछ निश्चिंत सा लग रहा था। बेचारे की सारी रात इसी ऊहापोह में निकल गई।
मम्मी ने आते ही उससे कहा- तू भी सोजा बेटा, देख आंखें कैसी लाल हो रही हैं तेरी। मैं अभी पापा से बात करती हूं।
आगोश जल्दी से चादर उठा कर वापस अपने बिस्तर पर आ लेटा। उसे सचमुच बहुत ज़ोर से नींद आ रही थी।
मम्मी हर दो चार मिनट बाद फ़ोन मिलाने की कोशिश करती हुईं किचन में आ गईं। उन्हें चाय की तलब भी लग रही थी।
बाथरूम में फैले ख़ून ने तो मम्मी को ज़्यादा विचलित नहीं किया था क्योंकि पहले भी एक दो बार ऐसा हो चुका था कि क्लीनिक की कोई नर्स या नौकरानी वहां के कोई उपकरण साफ़ करती हुई अंदर के वाश बेसिन पर चली आती थीं। भीतर की टंकी का पानी ख़त्म हो जाने पर यहां आकर सफ़ाई करते हुए उन्हें मम्मी ने देखा था। हो सकता है कोई तसला या मग ख़ाली करके पानी डालना भूल गई हो। सबको ये पता ही था कि डॉक्टर साहब आज शहर से बाहर जाने वाले हैं।
पर मम्मी को भारी बेचैनी ये सोच कर हुई कि ये पागल औरत का क्या चक्कर है। ऐसा तो कभी कुछ हुआ नहीं। कैसे दरवाज़ा खुला रह गया और कैसे वो भीतर आ बैठी।
फ़िर से ड्राइवर को फ़ोन लगाया उन्होंने पर वही, स्विच ऑफ! उससे बात हो तो कुछ पता चले।
मम्मी चाय का कप लेकर डायनिंग टेबल पर आ बैठीं।