टापुओं पर पिकनिक - 11 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 11

सुबह लगभग दस बजे तक जाकर बच्चे उठे। आगोश की नींद तो अब तक नहीं खुली थी क्योंकि वो सबसे बाद में काफ़ी देर से सोया था।
नौ बजे के आसपास जब मनन के घर से फ़ोन आया तब तो आगोश की मम्मी ख़ुद अपने बेडरूम में कमर सीधी करने के लिए लेटी हुई थीं। उनकी भी नींद कहां पूरी हुई थी। मनन के सिरहाने रखा फ़ोन देर तक बजने पर उन्होंने ही आकर उठाया।
पर उन्होंने मनन की मम्मी से कह दिया कि वो चिंता न करें, बच्चे अभी सोए हुए हैं। थोड़ी देर में ड्राइवर भी आयेगा तब बच्चों के उठने के बाद वो उन्हें छोड़ आयेगा।
मनन के घर से आए फ़ोन की आवाज़ से ही बच्चों के उठने का सिलसिला शुरू हुआ। सबसे पहले साजिद उठा। उसी ने आर्यन को जगाया।
लेकिन आगोश की मम्मी की चिंता ये थी कि अब तक ड्राइवर का फ़ोन भी स्विच ऑफ आए जा रहा था और आगोश के पापा भी फ़ोन नहीं उठा रहे थे।
बच्चे जब नाश्ता कर चुके तो उन्हें अपने घर की सुधि आई। ड्राइवर आया न देख कर आर्यन बोला- हम लोग कैब मंगवा कर उससे चलते हैं पर आगोश की मम्मी ने उन्हें कुछ रुकने का इशारा किया। वो बच्चों को इस तरह टैक्सी से नहीं भेजना चाहती थीं। उन्हें मालूम पड़ चुका था कि बच्चे पहले ही रात में काफ़ी परेशान हो चुके हैं। उन्होंने कपड़े बदल कर गैरेज से अपनी गाड़ी निकाली।
फ़िर ख़ुद उन्हें ही अपनी गाड़ी से बच्चों को उनके घर छोड़ कर आना पड़ा।
सुबह नाश्ता भी बच्चों ने जल्दी- जल्दी में ही किया।
इस बात का जवाब किसी के पास भी नहीं था कि प्रोग्राम कैसा रहा।
बच्चे भी उखड़े- उखड़े से ही रहे। आगोश की मम्मी कहीं भी रुकीं नहीं, बस एक के बाद एक सबको उनके घर पर उतार कर चली आईं। हां, अंत में आर्यन के यहां उसकी मम्मी के बहुत ज़ोर देने पर एक कप कॉफी पीने ज़रूर ठहरीं।
आर्यन और आगोश उनके साथ ज़रूर थे लेकिन उन बच्चों में भी ऐसा उत्साह नहीं दिख रहा था जैसा अमूमन घूमने- फिरने के बाद होता है।
आर्यन के घर से लौटते समय गाड़ी भी आगोश ने ही चलाई।
आगोश के पापा आम तौर पर आगोश को अभी अकेले गाड़ी चलाने नहीं देते थे, पर आज न तो ड्राइवर फ़ोन ही उठा रहा था और न पापा से बात हो पा रही थी। मम्मी भी रात को शादी में व्यस्त रह कर लौटी थीं और काफ़ी देर गाड़ी चला चुकी थीं।
कहते हैं मजबूरी सब सिखा देती है। आज आगोश को एक ही रात ने अपनी उम्र से बड़ा कर दिया था।
घर पर पहुंच कर भी आगोश और मम्मी की चिंता कम नहीं हुई क्योंकि अब तक दोनों ही जगह फ़ोन उठाए नहीं जा रहे थे।
अब आगोश की मम्मी को दाल में कुछ काला नज़र आने लगा।
एक बात ज़रूर थी जो उन्हें भीतर ही भीतर डरा रही थी। पिछले कुछ दिनों से उन्हें कभी- कभी ऐसा लगता था कि आगोश के पापा के क्लीनिक में कोई न कोई ग़लत काम हो रहा है।
ये क्या गोरखधंधा है, वो इतना तो नहीं जानती थीं मगर उन्हें कुछ दिन से ऐसा लगता था कि वहां कुछ गड़बड़ ज़रूर है।
आगोश के पापा उन्हें कुछ बताते भी तो नहीं थे। उन्होंने कई बार पूछने की कोशिश भी की। पर वो हर बार मज़ाक में ही बात को टाल जाते थे।
वैसे उन्होंने अपनी छवि ऐसी बना रखी थी कि जैसे आगोश की मम्मी से बिना पूछे वो कोई काम करते ही न हों पर अंदर ही अंदर वो उनसे छिपा कर कोई न कोई गुल खिला रहे थे।
आज के अनुभव से तो उनका शक और भी पक्का हो गया था। अब तो मन ही मन उन्हें ये संदेह भी होने लगा था कि हो न हो, उन्होंने अपने ड्राइवर सुल्तान को भी अपने साथ मिला रखा है। वो ज़रूर जानता है कि वहां क्या चल रहा है। इतना ही नहीं बल्कि वो डॉक्टर साहब के कारनामों में उनका खुल कर साथ भी दे रहा है।
लेकिन मुसीबत ये थी कि जब तक उन्हें कोई पुख्ता सबूत न मिले वो डॉक्टर साहब से खुल कर कुछ पूछ भी तो नहीं सकती थीं।
फ़िलहाल अभी तो उनकी सबसे बड़ी चिंता यही थी कि आगोश के पापा फ़ोन पर बात करें और ड्राइवर लौट कर आ जाए।
ड्राइवर डॉक्टर साहब के साथ नहीं गया था। शाम को डॉक्टर साहब के जाने के कई घंटे बाद तो वो बच्चों को उनके घरों से लेकर आया था।
आगोश को याद आया कि उसने ही ड्राइवर अंकल को चले जाने के लिए कहा था, इसलिए शक- संदेह वाली कोई बात ही नहीं थी।
पर अब उनका फ़ोन जल्दी सुबह से ही स्विच ऑफ या आउट ऑफ़ रीच आ रहा था।
आगोश ने कुछ देर बाद जब आर्यन को फ़ोन किया तो आर्यन ने उसे कहा- डन! हम पहले यही पता लगाएंगे कि रात को घर में मिलने वाली वो लड़की कौन है और कहां से, तथा क्यों आई थी।
टीनएज में अभी- अभी कदम रखने वाले इन निर्दोष किशोरों को किस्मत ने अनजाने ही एक कठिन चुनौती दे डाली!