टापुओं पर पिकनिक - 9 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 9

ये खेल बहुत लंबा चला।
इस खेल में आवाज़ नहीं थी। चुपचाप खेलना था। आधी रात को ऐसे खेल खेलना निरापद रहता है जिनमें शोर- शराबा न हो। इसलिए सबका मन खेल में रमा।
सवा चार बजने को आए। अब सबका विचार बना कि थोड़ी देर सो भी लिया जाए।
एसी चल रहा था। कमरा ठंडा था। जगह कम नहीं पड़ी। आगोश दूसरे कमरे से एक गद्दा उठा कर नीचे बिछाने लगा तो साजिद ने टोक दिया, क्या ज़रूरत है इसकी।
लेकिन जब बिछ ही गया तो आर्यन और साजिद एक साथ बेड से नीचे उतर कर उस पर आ लेटे।
सिद्धांत बिस्तर से कूद कर बाथरूम में हाथ धोने गया तो वहां साबुन नहीं था।
पूछने पर आगोश बोला- तू नीचे वाले टॉयलेट में चला जा, वहां रखा है।
आगोश दूसरे कमरों से उठा- उठा कर सबको पिलो दे ही रहा था कि दौड़ते हुए आए सिद्धांत से टकराता - टकराता बचा।
सिद्धांत ने ज़ोर से पागलों की तरह चिल्लाते हुए कहा- भागो... भागो..!
सब हड़बड़ा कर उसकी ओर देखने लगे। उसके माथे पर पसीना छलक रहा था। आगोश ने उसका कंधा पकड़ कर झिंझोड़ डाला, चिल्ला कर बोला- क्या हुआ?
- खून...
जो जिस हालत में था वैसे ही उठ कर खड़ा हो गया। सब सवालिया निगाहों से सिद्धांत को देखने लगे।
- प्लीज़.. प्लीज़.. क्या हुआ, घबरा मत यार। कहां है.. किसका खून हुआ?
अब तक सिद्धांत थोड़ा संभल चुका था। बोला- नीचे वाले बाथरूम में खून ही खून फ़ैला पड़ा है।
- नहीं! ज़ोर से चिल्लाया आगोश। आगोश तेज़ी से नीचे जाने लगा। उसके पीछे - पीछे एक- एक करके सब दौड़े चले आए।
सचमुच नीचे वाला बाथरूम बुरी तरह खून से भरा हुआ था। आगोश चौंक कर इधर- उधर देखता हुआ भीतर की ओर जाने लगा। उसे लगा कि उसे कुछ ऐसा दिखे जिससे कुछ समझ में आए।
सब डरे हुए तो थे, लेकिन पांचों के एक साथ होने से हौसला भी था। नीचे सब तरफ़ देखते हुए सब बच्चे किसी जासूस की सी मुद्रा में आ गए।
ख़ून केवल बाथरूम में ही था, और वहां और कोई चिन्ह या बिखराव भी नहीं दिखाई दे रहा था। ऐसा लगता था जैसे किसी ने किसी मग या बाल्टी में कहीं से लाकर खून वहां उंडेल दिया हो।
न तो कहीं और पैरों के निशान थे और न ही आसपास कोई ऐसी चीज़ ही दिख रही थी जिससे कुछ अनुमान लगाया जा सके।
सिद्धांत जब इस बाथरूम में घुस कर लाइट जला रहा था तब तक उसके पैर ही यहां पड़ चुके थे और केवल वही तीन चार निशान सीढ़ियों की ओर जाते दिख रहे थे।
गैलरी का वो दरवाज़ा जिससे आगोश के घर का यह रहने वाला हिस्सा दूसरी तरफ बने क्लीनिक से जुड़ता था वो बंद था और उस पर हमेशा की तरह लगा रहने वाला मोटा सा ताला लटका हुआ था।
एक बार नीचे की सभी बत्तियां जला कर पांचों ने मुआयना सा किया, फ़िर कहीं कुछ संदिग्ध न पा कर फ़िर से सीढ़ियों से ऊपर आने लगे।
अजीब सा वातावरण था। आर्यन मन ही मन बुझ सा चुका था कि एक के बाद एक ये क्या हो रहा है।
मनन की नींद अब उससे कोसों दूर थी।
सब फ़िर से मुस्तैद हो गए। बातें चल पड़ीं।
आगोश भी मन ही मन इस उलझन में था कि आज ही ये सब होना था जब मम्मी पापा भी घर में नहीं हैं।
अब अगर सोने के लिए लाइट ऑफ़ भी की जाती तो किसी को नींद आने वाली नहीं थी?
आर्यन ने कहा- आगोश, एक बार अपने पापा को फ़ोन करके उन्हें सब बता तो दे... मगर वह बोलते - बोलते रुक गया क्योंकि उसके कहने से पहले ही आगोश मम्मी को फ़ोन लगा चुका था। पर फ़ोन उठ नहीं रहा था। वह बार- बार रिंग दे रहा था पर ख़ाली जाती थी।
- या तो मम्मी सो रही होंगी या फ़िर फ़ोन पर्स में पड़ा होगा।
यही संभावना लग रही थी कि फ़ोन कहीं दूर ऐसी जगह रखा हो जहां आवाज़ न जाए, क्योंकि शादी के घर में मम्मी का इतनी गहरी नींद सोना तो मुश्किल ही है। आगोश के ऐसा कहने पर आर्यन ने सुझाव दिया- पापा को फ़ोन कर।
- नहीं यार! पापा रात में नॉर्मल नहीं होते।
आगोश कह तो गया पर फ़िर खुद ही ये सोच कर झेंप गया कि उसने फ्रेंड्स के सामने पापा के रात को हैवी ड्रिंक्स लेने की बात खोल दी।
सब एक दूसरे की ओर देखने लगे।
सिद्धांत ने मनन के साथ लेटते हुए कहा- तो चल, लाइट ऑफ़ कर दे, अब सो जाते हैं।
साजिद भी पैर फ़ैला कर नीचे बिछे गद्दे पर लेट गया।
कमरा काफ़ी ठंडा हो चुका था। सबको अब सोने के मूड में आते देख आगोश ने उठ कर बत्ती बुझा दी और वह स्वयं भी डबलबेड पर एक ओर ख़ाली पड़ी जगह पर आ लेटा।
आगोश का मन कह रहा था कि अभी थोड़ी ही देर में मम्मी का फ़ोन आयेगा ज़रूर, जब वो मिस्ड कॉल देखेंगी। वह करवटें बदलता रहा।