टापुओं पर पिकनिक - 8 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 8

सबका मूड बदल गया। कहां तो सब ये सोच कर आए थे कि एक रात मम्मी- पापा के संरक्षण और नियंत्रण से दूर दोस्तों के साथ फुल मस्ती करेंगे। टीन एज में अपनी एंट्री को एन्जॉय करेंगे लेकिन यहां तो सब उल्टा- पुल्टा ही हो गया।
मनन तो अभी तक रह- रह कर रट लगाता था कि- यार घर चलें। नींद भी आ रही थी उसे।
साजिद उस लम्हे को सोच कर अब भी सिहर जाता था जब अनजान लड़की अंधेरे में उसके सामने बैठी थी और वो कपड़े उतारने जा रहा था। पल भर की देर में न जाने क्या का क्या बतंगड़ बन जाता। ज़िन्दगी ही उलट जाती। किस- किस को क्या- क्या समझाता घूमता।
आगोश को मम्मी - पापा बेसाख्ता याद आ रहे थे। ऐसा तो पहले कभी हुआ नहीं। दरवाज़ा खुला कैसे रह गया? कौन लड़की थी जो इस तरह आ बैठी? क्या उसे कोई लाया यहां? ये क्या चक्कर था। पागल थी तो रो क्यों रही थी? पागल थी तो हम सब को देख कर एकाएक चली क्यों गई? क्या कोई और मसला तो नहीं था? उसका दिल कह रहा था कि कल पापा, मम्मी और ड्राइवर अंकल आएं तो गुत्थी सुलझे।
सिद्धांत मनन को चुपचाप अपने से चिपकाए बैठा हुआ था और उसकी पीठ पर हाथ फेरता हुआ डर में उसे सांत्वना दे रहा था।
आर्यन भी स्तब्ध था, कुछ बेचैन भी।
आख़िर आर्यन ने ही पहल की। उसने माहौल को बदलने और सबका मूड चेंज करने के इरादे से कहा- चलो, जो हुआ सो हुआ। लड़की जहां से भी आई थी अब गई न, डरो मत। चलो हम कुछ गेम खेलते हैं।
अनमने से होकर सब बिस्तर पर नज़दीक खिसक आए।
- क्या खेलेंगे इतनी रात को? सिद्धांत ने कहा।
आगोश के कमरे में ढेर सारे गेम्स रखे हुए थे पर एकाएक किसी की समझ में नहीं आया कि इस माहौल में कौन सा गेम उठा कर लाया जाए।
आर्यन को याद आया कि बहुत छोटेपन में अपने चचेरे ममेरे और मौसेरे भाई - बहनों के साथ सब बच्चे एक खेल खेलते थे जिसमें कमरे की लाइट ऑफ़ कर दी जाती थी और सब अपनी -अपनी समझ से इधर- उधर छिप जाते थे। फ़िर चोर बना बच्चा अंधेरे में ही टटोल कर सबको ढूंढता था। और जिसे सबसे पहले छूकर आउट कर देता, वही फ़िर अगला चोर बनता।
सभी अब इस तरह के खेल की उम्र पार कर चुके थे फ़िर भी अपने पुराने बीते दिनों को टटोल कर ढूंढने की ख्वाहिश अपने अवचेतन में लिये यही खेल खेला जाने लगा।
पहला चोर ख़ुद आर्यन ही बना।
इस बार चोर आगोश बना था। न जाने कैसे अंधेरे में उसकी शर्ट अलमारी के हैंडल में उलझ कर फट गई। कपड़ा चिरने की आवाज़ आई तो उसने एकाएक लाइट जला दी।
साजिद पलंग के नीचे घुसा हुआ था। आर्यन अलमारी की दूसरी ओर छिपा हुआ था। मनन और सिद्धांत दोनों एक साथ कमरे के कौने में खड़े थे और सिद्धांत ने उसके चेहरे को अपने हाथ में पकड़ रखा था।
लाइट जलते ही सब कूद कर वापस बिस्तर पर आ बैठे और हंसी- मज़ाक शुरू हो गया।
आगोश अपनी शर्ट के फटे हुए हिस्से को देखने लगा। सब उसकी मज़ाक उड़ाने लगे।
- ओये, कैसे फटी? साजिद बोला।
- इस हैंडल में अटक गई यार। आगोश ने मायूसी से कहा।
खेल रुक गया। आगोश अपने कमरे में जाकर अपनी वार्डरॉब से कोई दूसरी टीशर्ट निकाल कर लाया और फटी शर्ट को उतार कर दूसरी बदल कर पहनने लगा।
अब माहौल बदल जाने से सबका मूड ठीक हो गया था। सब मित्र अपने पहले वाले रंग में आ गए थे।
देर रात हो जाने पर भी नींद तो सबकी आंखों से उड़ ही चुकी थी पर सबको थोड़ी- थोड़ी भूख लग आई थी।
- चलो कुछ खाते हैं। कहते हुए आगोश और आर्यन उठ कर एक बार फ़िर डाइनिंग टेबल के गिर्द चले गए।
थोड़ी ही देर में बिस्तर पर बीचों - बीच बचे हुए पिज़्ज़ा के टुकड़ों की प्लेट रखी थी और सबके हाथ में जूस का गिलास था।
सबका मूड एक बार फ़िर से फ्रेश हो गया।
बर्तन हटते ही आर्यन ने बात छेड़ी, बोला- किस- किस को अनुराधा मिस की क्लास याद है?
सब चौंक कर उसकी तरफ़ देखने लगे।
ये कई साल पहले की बात थी। तब ये सभी बहुत छोटे छोटे थे। अनुराधा मैडम उन बच्चों को एक्स्ट्रा पीरियड में "जनरल लाइफ टिप्स" पढ़ाया करती थीं। सबको याद थी उनकी क्लास।
मैडम उन्हें "टच" के बारे में बताती थीं कि लोगों के कौन से स्पर्श या टच अच्छे होते हैं और कौन से बुरे। उन्हें सिखाया जाता था कि बुरे टच ग़लत हैं, और यदि कोई उन्हें इस तरह छूता है तो उन्हें अपनी टीचर या मम्मी को बताना चाहिए।
इतनी पुरानी बात पर भी सबके चेहरे पर लाली छा गई।
आर्यन बोला- चलो, लाइट ऑफ़ करो। और सबको बारी- बारी से बताना है कि कौन सा गुड टच है और कौन सा बैड!