टापुओं पर पिकनिक - 56 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 56

- "ये सब इतनी जल्दी कैसे होगा?" मधुरिमा की मम्मी के तो मानो हाथ- पैर ही फूल गए।
- चिंता मत करो, जब बेटी ने तुम्हें बिना बताए इतना कुछ कर लिया तो आगे भी सब हो ही जाएगा। मधुरिमा के पापा ने उन्हें सांत्वना दी।
घर में ख़ुशी का माहौल था। ये तो किसी ने भी कभी सोचा ही नहीं था कि मधुरिमा इतनी होनहार निकलेगी।
उसके पापा के पांव तो ज़मीन पर पड़ते ही नहीं थे, वो फ़ोन पर या मिलने पर अपने सभी पड़ोसियों और रिश्तेदारों को बताते थकते नहीं थे कि उनकी बेटी को विदेश के एक नामी- गिरामी कॉलेज से बुलावा आया है। वो वहां दो साल तक ऊंची पढ़ाई करेगी।
मधुरिमा तो छुपी रुस्तम निकली। देखो तो, कितनी सीधी- सादी दिखती है पर चुपचाप इतनी बड़ी कामयाबी हासिल कर ली। पास - पड़ोस में सभी को हैरानी होती।
जब मधुरिमा की मम्मी उन्हें ये बतातीं कि अपना तो कुछ भी खर्च नहीं होगा, उसे वहीं से स्कॉलरशिप मिली है, सारा खर्चा वो कॉलेज ही करेगा तो जो भी सुनता, दांतों तले अंगुली दबा लेता।
जापान के इतने नामी कॉलेज से इसे बुलावा आयेगा ये तो सचमुच सबके लिए सपना सा लगता है... रिश्तेदार कहते।
- कब जाना है मधुरिमा को? पड़ोस की एक महिला ने कहा। फ़िर कुछ रुक कर बोली- बहन जी, ब्याह करके भेजो, परदेस का कोई भरोसा नहीं होता, क्या पता लड़की वहीं से दूल्हा लेकर लौटी तो? कोई- कोई तो गोद में बच्चा तक लेकर वापस लौटती हैं, विदेशी दूल्हे बड़े उतावले होते हैं... उस महिला ने किसी समझदार शुभचिंतक की तरह कहा।
- क्या बात करती हो बहन जी, अभी लड़की की उम्र ही क्या है? अभी तो घूमने- फिरने के दिन हैं, इतनी ऊंची पढ़ाई कर लेगी तो कुछ बन ही जाएगी। शादी- ब्याह का क्या है, वो तो फ़िर होता रहेगा। मधुरिमा की मम्मी ने कहा।
- ये ठीक बात है जी, अभी आप शादी के झमेले में बांध दोगी, फ़िर कल कोई बड़ी अफ़सर बन कर वहीं रह गई और दूल्हे को यहीं छोड़ गई तो क्या होगा? एक अन्य महिला ने कहा।
जितने मुंह उतनी बातें।
मधुरिमा के पापा को तो ये चिंता थी कि अब समय ही कितना रह गया है, अभी वीसा- पासपोर्ट और दूसरी सब तैयारियां भी करनी थीं। ये बात बहुत अच्छी थी कि कॉलेज ने बहुत सारी रकम एडवांस ही भेज दी थी तो कहीं कोई बाधा नहीं थी, सब काम फटाफट होते जाते थे।
मधुरिमा के हाथ तो जैसे कहीं से कारूं का ख़ज़ाना ही लग गया था। पापा चालीस हजार मांगते तो वो पचास हज़ार देती। ऊपर से ये और कहती- पापा, आप मुझे छोड़ने एयरपोर्ट चलोगे न, तो नया सूट सिलवालो!
पापा आश्चर्य से उसका मुंह देखते रह जाते। कहते- अरे, कमाल करती है बेटी, विदेश तू जाएगी या मैं, नए कपड़े तू बनवा। जब कॉलेज तुझे इतना पैसा दे रहा है तो शान से जाना।
उस दिन मधुरिमा मनप्रीत को लेकर बाज़ार गई तो मम्मी के लिए हीरों का एक हार ही ख़रीद लाई।
मम्मी तो दिनभर जैसे हवा में उड़ती फिरीं।
मनप्रीत को सब मालूम था फ़िर भी चुप थी। और खामोशी से मधुरिमा को ये सब भाग दौड़ करते देख रही थी।
आगोश ने मनप्रीत को भी सब बता दिया था क्योंकि वो जानता था कि मनप्रीत और मधुरिमा एक दूसरी की बेस्ट- फ्रेंड्स हैं, उनके बीच आपस में कोई दुराव- छिपाव नहीं है। आगोश और तेन ने मिल कर ये सारा चक्कर चलाया था। असली बात क्या है, ये केवल इन्हीं लोगों की मित्र- मंडली जानती थी।
मधुरिमा ने तो राहत की सांस ली थी वरना आर्यन की निशानी को पेट में लेकर न जाने उसका ऊंट किस करवट बैठता। वो कैसे अपने पापा मम्मी को बताती कि वो क्या कर बैठी है।
भगवान ने जैसे उसकी सुन ली थी।
आर्यन बहुत समय से शहर से बाहर होने के कारण ये सब कुछ नहीं जानता था पर बाक़ी सब दोस्तों को पता था कि मधुरिमा को जापान के कौन से कॉलेज ने, और क्यों बुलाया है!
वो सब तेन और आगोश के प्लान पर दंग थे। कहां तो तेन को ऐसा बेवकूफ़- पागल समझ रहे थे जो यहां आकर सबको बेसिरपैर के तोहफ़े बांट गया और कहां अब उसकी प्लानिंग को मुंह बाए देख रहे थे।
मधुरिमा की किस्मत ने भी खूब गुल खिलाए।
बाज़ार में मनप्रीत ने मधुरिमा से कहा- अब तेरे साथ मिलना, घूमना फिरना और खाना न जाने कब होगा, चल, आज ग्रीन - गार्डन में चल कर चटपटी चाट खाएंगे।
मधुरिमा का हाल तो इन दिनों ऐसा हो रहा था कि किसी को किसी भी बात के लिए मना करने का सवाल ही नहीं था। चाट खाने की तो बात ही क्या, इस समय तो मनप्रीत कहती कि चल ग्रीन- गार्डन खरीदते हैं, तो भी शायद वो तैयार हो जाती। उसके पास तेन के तोहफ़े के रूप में अकूत खजाना आ गया था।
और ये ख़ज़ाना न तो कोई ऋण था और न ही कोई संदिग्ध काली कमाई। ये तो तेन अपनी खुशी से दे गया था। और मधुरिमा जानती थी कि तेन ने कोई अहसान नहीं किया था, वो भी तो इस सौगात के बदले में अपना कलेजा निकाल कर उसे सौंपने वाली थी।
बाज़ार में घंटों घूमने के बाद दोनों ग्रीन गार्डन में चली आई थीं।
- धीरे- धीरे.. अरे बस कर! मनप्रीत ने मधुरिमा को टोका, जो दही बड़े की तीसरी प्लेट चट करने की तैयारी में थी। चटनी थी भी तो मज़ेदार।
- मैडम, घर जाकर कहीं मम्मी - पापा के सामने उल्टियां मत करने लग जाना... कहीं उन्हें पता न चल जाए कि तुमने कौन सी पढ़ाई की है, जिसकी डिग्री लेने जापान जा रही हो!
मधुरिमा इस मज़ाक पर तिलमिला गई, उसने पलट कर मनप्रीत की पीठ पर ज़ोर से एक धौल मारा।
- छी छी छी... नेपकिन ले ले न, दही के गंदे हाथ मेरी शर्ट से पौंछ दिए! मनप्रीत बोली।
- यार, आज पिट ले मेरे हाथ से... फ़िर न जाने कब ऐसा मौक़ा मिलेगा तुझे... मधुरिमा एकाएक भावुक हो उठी। पर तुरंत ही अपने को संभाल कर बोल पड़ी- वैसे तुझे साजिद से मार खाने की आदत तो होगी ही? तेरी पीठ पर चपत तो लगाता होगा वो!
मनप्रीत ने उसके गाल पर ज़ोर से नौंच लिया।
पेमेंट के लिए जेब से कार्ड निकालते हुए मधुरिमा दर्द से बिलबिला उठी।
चारों तरफ़ सबको इतना ख़ुश देख कर मधुरिमा सचमुच ये भूल ही गई थी कि कुछ दिन पहले तक वो कितने तनाव में थी। वो भी अब यही समझने लगी थी कि सचमुच उसका प्रवेश किसी कॉलेज में पढ़ाई करने के लिए ही हो गया है।
आर्यन के उसे सब कुछ साफ़- साफ़ कह देने के बावजूद उसके दिल में आर्यन के लिए शिकायत जैसा कुछ नहीं था। न कोई नाराजगी, न प्रतिशोध जैसी कोई बात।
आर्यन था ही इतना प्यारा। उससे कोई भी, किसी भी बात पर गुस्सा हो ही नहीं सकता था।
ख़ुद मधुरिमा को भी ये ही अहसास था कि आर्यन के साथ संबंध बन जाने में कहीं किसी का कोई अपराध नहीं था। वो तो एक सपना सा था,जो परवान चढ़ गया। मधुरिमा को अपार सुख मिला और आर्यन भी कुछ वक्त उसके साथ ऐसे बिता गया मानो कोई राजकुमार किसी स्वप्न महल में फ़िल्म शूटिंग करने ही आया हो और कुछ अंतरंग रातें बिता कर लौट गया।
अब कुदरत मधुरिमा के साथ थी। वह भविष्य से भी पूरी तरह बेखबर थी कि उसका आने वाला कल कैसा है? अपने आज में पूरी तरह डूबी हुई।