टापुओं पर पिकनिक - 63 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 63

आर्यन अगले दिन वापस लौट गया। महीनों बाद तो घर और दोस्तों के बीच आया था लेकिन इस बार सब कुछ उल्टा- पुल्टा हो गया। अथाह बेचैनी के बीच वह वापस लौटा।
रात को आगोश ने उसे सब कुछ बता दिया था। बिल्कुल एक- एक बात सिलसिलेवार ढंग से जान कर कहीं न कहीं आर्यन ख़ुद अपने को भी दोषी पा रहा था।
उसे लगता था कि उसे दोस्ती, लड़की, सेक्स, गर्भ और बच्चे जैसे संवेदनशील मामले को इतने हल्के में नहीं लेना चाहिए था। आधुनिकता परम्पराओं को रौंद कर फ़ेंक देने का नाम नहीं है।
उसने अगर मधुरिमा को दोस्त बनाया था तो उसकी भावनाओं, परिस्थितियों, उमंगों और नियति पर उसका सहयोगी बन कर उसका दायित्व भी उसे ही लेना चाहिए था। अपना मानस उसे खोल कर दिखाना था, उसका मन पढ़ना था। फ़िर बातों को करीने से अंजाम देना था।
किसी की अस्मत का नाश्ता करके चल देना तो एक पाशविक पतित ज़िन्दगी ही देता है... वो किस बिना पर शहर भर के बीच सम्मान पाने पहुंच गया???
और भी न जाने क्या- क्या सोचता रहा! यही सब बातें आर्यन को फ्लाइट के दौरान घेरे रहीं।
लेकिन मधुरिमा उसका अपराध और अपनी ख़ुद की भूल किस सलीके से अपने आंचल में छुपा कर उससे बहुत दूर चली गई, ये भी वो भूल नहीं पाता था।
आज प्लेन में पहली बार वो इतनी शराब पीता रहा।
उसका दिल कहता था कि अब वो कभी लौट कर यहां न आए।
उस दिन आगोश के घर से लौटने के बाद साजिद भी दिन भर अनमना सा रहा। उसने मनप्रीत को भी फ़ोन पर सब बता दिया।
कुछ दिन पहले तक साजिद और मनप्रीत उन साठ लाख रूपयों को लेकर बेहद उत्साहित थे जो अमानत के तौर पर संभाल कर रखने के लिए मधुरिमा उन्हें दे गई थी, लेकिन अब उनका उत्साह भी जाता रहा। जिस पैसे ने आगोश के दिल में अपराध - बोध ला दिया, आर्यन का सरेआम अपमान करवा दिया, वो भला उन्हें भी किस तरह रास आयेगा, यही सब सोचती रही मनप्रीत।
क्या करे? क्या वो सब कुछ मधुरिमा के मम्मी- पापा को साफ - साफ बता कर सारा पैसा उन्हें सौंप दे? या फिर मधुरिमा के पास ही इसे भेज दे?
उसे कुछ समझ में नहीं आ रहा था।
आगोश ने तो जैसे दोस्तों के फ़ोन तक उठाना बंद कर दिया था।
साजिद भी उसे इस बारे में कोई स्पष्ट जवाब नहीं देता था।
सबसे बड़ी उलझन तो सभी को आर्यन के समारोह के अगले दिन शहर के तमाम अखबारों को देख कर हुई। अकेली मनप्रीत ही क्यों, आगोश, सिद्धांत, साजिद, मनन और आर्यन के घर वालों का भी यही हाल था। न जाने क्या- क्या ऊटपटांग छपा था आर्यन के बारे में। सब डर गए थे कि कहीं ये मामला तूल पकड़ कर पुलिस तहकीकात में न बदल जाए। विदेश में बच्चा भेज देने की सुगबुगाहट को तिल का ताड़ बना दिया गया था। एक छात्र के हवाले से ही आर्यन को बदनाम करने की कोशिश की गई थी। आर्यन का फोटो भी तमाम अखबारों ने छापा था।
न जाने कैसे, किसकी लापरवाही से ये बात फैली, कोई नहीं जानता था।
तीन फ़ोन तो सिद्धांत के पास उन पंडितजी के ही आए जो ये जानने के बाद काफ़ी व्यथित थे कि उन्होंने गुपचुप तरीके से एक गर्भवती दुल्हन की शादी कराई।
कुछ दिन बाद एक दिन साजिद ने मनप्रीत को बताया कि आज अचानक उसे पासपोर्ट ऑफिस में आगोश मिला था। वह जापान जाने की तैयारी कर रहा है।
मनप्रीत को ये जानकर अच्छा लगा।
साजिद ने कुछ ज़ोर देकर उससे पूछा- बोलो, अब भी कुछ नहीं बिगड़ा है, तुम कहो तो मधुरिमा के पैसे आगोश के साथ उसी के पास भिजवा दें?
- अरे नहीं, बात पैसे भेजने की नहीं है, बेचारी मधुरिमा ने तो सबसे बात को छिपाने के लिए पैसे अपनी सहेली के पास रखवाए हैं। अभी किसी को कुछ भी पता नहीं है। कल यदि मधुरिमा के पिता को ये सब पता चला कि मधुरिमा को किसी कॉलेज से कोई बुलावा नहीं मिला है बल्कि कुंवारे जिस्म के टुकड़े का मोल मिला है तो वो न जाने क्या कर बैठें। उन्हें तो ये भी नहीं पता कि उनकी लाड़ली बेटी दुल्हन बन कर हमेशा के लिए परदेस चली गई है। अपनी सहेली का राज़ केवल हम जानते हैं, हमें ही छिपाना है। मनप्रीत की इस बात ने साजिद को निरुत्तर कर दिया।
जापान जाने का प्लान बन जाने के बाद आगोश एक बार फ़िर से अपने पुराने रंग में लौट आया। उसने शाम को सबको इनवाइट किया। छोटी सी पार्टी रखी।
मनप्रीत से नहीं रहा गया। वह दोपहर को ही मधुरिमा की मम्मी के पास पहुंच गई।
- आंटी, मधु को कुछ भेजना तो नहीं है? आगोश जापान जा रहा है! मनप्रीत ने कहा।
- क्या वो मधुरिमा से मिलेगा? वो तो बेचारा अपने काम से जा रहा होगा। अभी मैं मधु से पूछ लूंगी, अगर उसे यहां से कुछ मंगाना होगा तो बता दूंगी। मम्मी ने हुलसते हुए कहा। कुछ ठहर कर फ़िर खुद ही बोलीं- अरे बेटी, उसे पढ़ाई- लिखाई के बीच टाइम ही कहां मिल पाता है, चार बार फ़ोन करो तब तो मुश्किल से उठा पाती है। बहुत बिज़ी रहती है। अभी पिछले सप्ताह तो बीमार भी पड़ गई थी। किसी हॉस्पिटल में भर्ती कराया था उसे।
मम्मी ने बताया।
- अच्छा? मनप्रीत ने इस तरह आश्चर्य से कहा मानो उसे मधुरिमा के समाचार उसकी मम्मी से ही मिले हों।
शाम को सब बहुत ख़ुश थे। आगोश ने सबको ये खबर एक साथ दी कि आगोश ने पिछले दिनों अपनी जो एक कंपनी बनाई थी उसका पहला विदेशी कार्यालय खोलने ही वो जापान जा रहा था।
गिलास टकरा कर बधाइयां दी गईं उसे।
वहां सब व्यवस्था हो चुकी थी। तेन वहां था ही, जो आगोश का पार्टनर बनने के साथ- साथ अब आगोश की कंपनी का एमडी भी था।
रात देर से जब खाना खाकर लौटे तो सब बुरी तरह धुत्त थे। साजिद ने अपनी कार से ही मनन और सिद्धांत को भी छोड़ा।
मनन और सिद्धांत एक साथ सिद्धांत की कार से आए थे पर अब सिद्धांत इस हालत में नहीं था कि गाड़ी चला सके। उसने गाड़ी को रूफटॉप की पार्किंग में खड़ा किया और मनन को साथ लेकर साजिद की गाड़ी में सवार हो गया।
गाड़ी मनप्रीत चला रही थी।
- बेचारा तेन... च च च... साजिद बोला।
- क्या हुआ तेन को? मनन ने कहा।
- अरे हुआ क्या.. मैं .. मैं तो कह रहा हूं कि उस बेचारे पर तरस आता है... कैसे टाइम काटता होगा... यहां से लोडेड - गन ले गया... हा हा हा. शादी भी हुई तो क्या!
- अबे, वो जापानी है, उसके पास है क्या, काम के अलावा?
- क्यों? जापानी लोगों के पास कुछ नहीं होता क्या?
- कैसे नहीं होता बे.. साले छोटी सी रिवॉल्वर से ही वो निशाना दाग देते हैं वो, जो तुम्हारी बड़ी से बड़ी गन नहीं कर पाती।
- तूने कब देखा?
- अबे.. गन का दम क्या हाथ में पकड़ कर ही दिखता है?
- और कैसे दिखता है...!
- साले जापानी इसीलिए तो सक्सेसफुल हैं, वो अपने फार्महाउस में गुड़ाई - बुवाई में टाइम नहीं बिगाड़ते सीधे फ़सल लेते हैं... प्रॉफिट! साजिद ने लड़खड़ाते हुए कहा।
- और हम?.. जुताई- बुवाई में पिले रहते हैं... फ़सल का प्रॉफिट कोई और ले जाता है।
- चुप! मनप्रीत चीखी।
तीनों सहम गए।
- क्या हुआ? सिद्धांत ने पूछा।
- अबे वो गाड़ी चला रही है, तुम बकवास कर के डिस्टर्ब कर रहे हो? मनन ने मनप्रीत का सपोर्ट किया।
- हम क्या कर रहे हैं, जो करना था वो तो आर्यन कर गया...
बात अधूरी रह गई क्योंकि सिद्धांत का घर आ गया था। मनप्रीत ने उसके उतरते ही झटके से गाड़ी मनन के घर की ओर मोड़ दी।