टापुओं पर पिकनिक - 15 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 15

आर्यन परेशान हो गया। उसने सोचा क्या था और क्या हो गया।
साजिद कई दिन से स्कूल भी नहीं आ रहा था। उस दिन साजिद के अब्बू ने साजिद की जो पिटाई की थी उसे याद करके आर्यन और आगोश की ये हिम्मत भी नहीं हो रही थी कि वो साजिद के घर जाएं और उसके अब्बू को समझाने की कोई पहल करें।
लेकिन उन्हें रह- रह कर अपने प्यारे दोस्त साजिद का ख्याल आ रहा था जो बिना बात मुसीबत में फंस गया था। न जाने उस बेचारे पर क्या बीत रही होगी। कितने ही दिन से उसकी पढ़ाई भी बर्बाद हो रही थी।
- उसके अब्बू खब्ती दिमाग़ के हैं, क्या पता अब उसका पढ़ना ही छुड़ा दें। वैसे भी बिज़नस करने वाले खानदान पढ़ाई का मोल यही समझते हैं कि लड़के को पढ़- लिख कर हमारा धंधा ही संभालना है। डिग्रियां तो इसलिए दिलवाते हैं ताकि शादी अच्छी लड़की से हो जाए। आर्यन ने कहा।
आगोश ने अपनी कल्पना से और भी आगे की बात जोड़ी, बोला- और अच्छी लड़की भी उन्हें केवल इसलिए चाहिए कि जब लड़का चौबीस घंटे कमाने में लगा रहे तब लड़की घर व बच्चे संभाल ले। उन्हें लड़की की पढ़ाई- लिखाई, उसकी इच्छा, उसके अपने सपनों की कोई परवाह थोड़े ही होती है।
ऐसा लगता था मानो मुसीबत ने इन किशोर लड़कों को समय से पहले ही जवान और समझदार बना दिया था।
उन्हें अताउल्ला पर भी ज़बरदस्त गुस्सा आ रहा था। अगर वो उन्हें कहीं मिल जाता तो वो उसे मार - मार कर उसकी हालत खराब कर देते। जम कर पिटाई करते उसकी।
कुछ दिन सोचने- समझने में लगे।
पर कुछ ही दिन बाद आगोश पर भी गाज़ गिरी।
एक दिन उसकी मम्मी ने अचानक उसे बताया कि उसके पापा उसे अगले सैशन से किसी बोर्डिंग स्कूल में भेजने की तैयारी कर रहे हैं।
आगोश चौंक गया। उसने तो कभी सोचा भी नहीं था कि वो घरवालों से दूर रह कर किसी हॉस्टल में रहने जाएगा। वह तो यहां पढ़ ही रहा था। यहां भी तो एक से एक अच्छे स्कूल और कॉलेज थे ही। फ़िर पापा ने उसे अपने से दूर भेजने का प्लान क्यों बनाया? वो भी उससे बिना पूछे। आगोश अपने मम्मी - पापा का इकलौता बेटा था, वो कभी मम्मी- पापा से दूर रहा भी नहीं, फ़िर पापा ने आखिर ऐसा क्यों सोचा?
वह जब अपने दोस्त आर्यन से मिला तो बुरी तरह उखड़ा हुआ था। उसने आर्यन को पूरी बात बताई।
वह इतना परेशान था कि आर्यन से अपने पापा तक की शिकायत कर बैठा। बोला- यार, तू उस दिन साजिद के पापा को बुरा- भला कह रहा था पर मुझे तो लगता है कि सब पापा ऐसे ही होते हैं। देख, अब मेरे पापा के सिर पर क्या फितूर सवार हुआ है। कहते हैं मुझे देहरादून के बोर्डिंग स्कूल में भेजेंगे।
- पर देहरादून का बोर्डिंग स्कूल तो बहुत प्रेस्टीजियस है, उसका तो बहुत नाम है। वहां हर कोई नहीं पढ़ सकता। बहुत महंगा भी है। आर्यन ने कहा।
आगोश गुस्से से उबलने लगा, बोला- व्हाट डू यू मीन? प्रेस्टीजियस तो लंदन का स्कूल भी है, तो क्या वो मुझे वहां भेज देंगे? आफ्टरऑल आई एम द ओनली सन इन द फैमिली, क्या वो मुझे अपने साथ नहीं रख सकते? मम्मी छोड़ पाएंगी मुझे इतनी दूर? मैं घर में अकेला बच्चा हूं।
- रिलैक्स! आर्यन ने उसे समझाया। बोला- मुझे लगता है कि तू पहले ये जानने की कोशिश तो कर कि पापा ऐसा क्यों चाहते हैं? क्या पता वो तेरा कुछ भला ही चाहते हों? कुछ अच्छा सोच रहे हों तेरे करियर के बारे में। पैरेंट्स बच्चों का फ्यूचर तो बेहतर बनाना ही चाहते हैं। अपने पापा को साजिद के अब्बू से कंपेयर मत कर। सब एक से नहीं होते। आर्यन ने किसी बड़े- बूढ़े समझदार व्यक्ति की तरह कहा।
आगोश उसकी बात सुनकर चुप रह गया।
आर्यन मन ही मन इस बात पर खीजता था कि आगोश बार- बार हर बात में अपने इकलौता बेटा होने का ज़िक्र करता था। वो भी तो इकलौता बेटा ही था। उसकी एक बहन और थी तो क्या हुआ।
इस बात पर दोनों दोस्तों में कभी कभी जिरह भी छिड़ जाती थी। आर्यन उसे चिढ़ाने के लिए कहता... तू तो बेचारा अकेला है, मम्मी पापा के बाद ऐसा कोई है भी नहीं जो तेरा अच्छा- बुरा सोच कर तुझे सलाह दे। मैं और दीदी तो कितनी ही बातों और फ़ैसलों में आपस में सलाह कर लेते हैं।
आगोश इस बात पर चिढ़ जाता था। फ़ौरन कहता- बेटा, अभी तो अच्छा लगता है दीदी से राखी बंधवाना, पर बाद में जब प्रॉपर्टी में बंटवारा करवाने आयेगी न, तब समझ में आयेगा तुझे।
आर्यन हंसता। आगोश को चिढ़ाने में उसे बड़ा मज़ा आता।
टेबल पर रखे लैपटॉप पर एक मच्छर को मंडराते देख कर एकाएक आर्यन बोला- तू मच्छर भगाने वाला स्प्रे क्यों नहीं डालता?
आगोश भी इतने तनाव के बाद मज़ाक के मूड में आ गया, बोला- ये मेरा ब्लड - रिलेटिव है, अकेले मेरे ही खून पर रहता है, बेचारे को और किसी का सपोर्ट भी तो नहीं है।
- ओह हां, मैं तो भूल गया, तू इकलौता बेटा है न! कहता हुआ आर्यन जाने के लिए उठा। हल्के- फुल्के हंसी- मज़ाक से दोनों दोस्तों का मूड अच्छा हो गया।
स्कूटी स्टार्ट करते- करते आर्यन ने आगोश को फ़िर छेड़ा, बोला- देहरादून जाए तो बाय करके जाना... वह तेज़ी से चला गया और आगोश खिसिया कर दांत पीसता रह गया।