टापुओं पर पिकनिक - 50 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 50

दोनों का ही हाल एक सा हो गया था। आर्यन और आगोश दोनों अब परदेसी हो गए थे।
लेकिन दोस्ती की महक अभी सूखी नहीं थी। जब भी यहां आते, सब दोस्तों का जमावड़ा ज़रूर होता।
अब तो उन्हें मेहमान जान कर मधुरिमा और मनप्रीत भी मिलने का समय ज़रूर निकालतीं। जब और जहां, जैसा भी प्रोग्राम बनता वो दोनों भी पूरी कोशिश करतीं थीं उसमें शरीक होने की।
एक बात ज़रूर थी। आर्यन और मधुरिमा के निकट आने की बात कभी आर्यन की ओर से ही शुरू हुई थी। आर्यन ने ही उसकी तरफ़ कदम बढ़ाए थे। पर अब मामला उल्टा था। ऐसा लगता था कि अब आर्यन के मन में उसके लिए आकर्षण जैसा कुछ नहीं रह गया था और इसके विपरीत मधुरिमा का पागलपन आर्यन के लिए बहुत बढ़ गया था।
मधुरिमा मन ही मन उसे बेइंतहा चाहने लगी थी। यद्यपि वो ये भी जानती थी कि अब एक्टिंग में सफ़ल हो जाने के बाद आर्यन काफ़ी व्यस्त हो गया था और रात दिन ग्लैमर की दुनिया में विचरने से उसके मन की भावनाएं बदल गई होंगी लेकिन उस रात को वो कभी भूल नहीं पाती थी जब उसे आर्यन के साथ अकेले समय बिताने का अवसर मिला था। सब हदें पार कर गए थे दोनों।
मज़े की बात ये थी कि इस रात एक ही कमरे में आगोश भी उनके साथ ही रहा था।
क्या रात थी वो।
किसी संन्यासी की तरह दुनिया की ओर पीठ किए आगोश कमरे के एक कौने में बैठा शराब पीता रहा था और वह आर्यन के साथ बाहों में बाहें डाले बातों में मशगूल रही थी।
आर्यन और आगोश की दोस्ती थी ही ऐसी कि उसमें किसी से कुछ भी छिपा हुआ नहीं था।
सच पूछा जाए तो आर्यन ने कभी इस तरह सोचा ही नहीं था कि वह अपने जीवन, परिवार, घर आदि में साथ देने के लिए मधुरिमा को पसंद कर रहा है। उसे तो अपने कैरियर की खोज और कोशिशों में एक ख़ूबसूरत लड़की का साथ चाहिए था, पार्टनर की तरह।
कुछ भी हो, आर्यन का सीरियल टीवी पर शुरू होने के बाद अच्छा क्लिक कर गया था। उसके चर्चे होने लगे थे। उसे आगे से आगे और काम मिलने लगा था और उसके पास सचमुच इन बातों के लिए न समय बचा था और न मन।
कुछ ही दिन की मोहलत उसे मिली थी, फ़िर एक लंबे समय के लिए उसे चले जाना था। शहर के मीडिया में भी उसका दखल हो चुका था। लोग उसे बुलाते थे। कभी बच्चों के बीच, तो कभी किसी शोरूम के उदघाटन या प्रॉडक्ट लॉन्चिंग के लिए।
ख़ुद उनके स्कूल प्रशासन ने भी एक बार आर्यन को इनवाइट करने की पहल की थी.. जिसे आर्यन ने अगले विजिट पर और भी बड़े स्तर पर संपन्न करने के इरादे से फ़िलहाल स्थगित करवा दिया था।
आर्यन ने रात को सब दोस्तों के बीच डिनर के दौरान बताया था कि जल्दी ही उसे एक फ़िल्म में काम मिलने की बात भी चल रही है।
जल्दी ही इस बारे में सब कुछ सामने आने वाला था।
आर्यन ये भी बता रहा था कि अभी जिस सीरियल में वो काम कर रहा है वह भी एक दिलचस्प कड़ियों वाला कथानक है।
इसमें एक विख्यात संन्यास आश्रम की कहानी है जिसमें अलग - अलग भागों में ये बताया जा रहा है कि वहां रहने वाले साधुओं ने किस कारण से संन्यास लिया है।
आखिर वो कौन से दुःख, पश्चाताप या परिस्थितियां हैं जो जीते जी एक इंसान की ज़िन्दगी बुझा देती हैं। क्यों प्रेम, वात्सल्य या वांछना के सहारे दुनिया में आया हुआ आदमी किसी बात पर दुनिया से ही मुंह छिपा कर घूमता है। अब वो समय नहीं है कि कोई गौतम- नानक की तरह दूसरों को ज्ञान देने के लिए साधु बनेगा। आज ज्ञान का भंडार पूरी दुनिया के लिए उपलब्ध है। हर कोई, हर किसी से कुछ भी जान सकता है।
आज की दुनिया में लोगों की सेवा या त्याग करने के लिए ही कोई कंदराओं में नहीं जाता, ये सब तो लोगों के बीच रह कर भी किया जा सकता है। आज तो ज़िन्दगी से पलायन करने और अपनी ज़िम्मेदारियों से मुंह मोड़ कर अपने निजी तरीकों से वासनाओं के सहारे जीने के लिए भी बहुत से लोग इस राह पर चले आते हैं। फ़िर संन्यास के नाम पर भी पांच सितारा सुविधाओं में जीते हैं। अगर अपने शरीर को कष्ट देना ही भगवान या समाज की सेवा है तो मजदूर, किसान सब कर ही रहे हैं। साधु- संत बनके जंगल में जा बसना कहीं हमारी कोई कुंठा या ग्रंथि तो नहीं।
आर्यन से ये सब सुनना बड़ा दिलचस्प था।
- बताओ, बेहद ख़ूबसूरत मॉडल जैसा छोरा अपनी पहली ही पारी में क्या से क्या बन गया! आगोश ने कहा
- यार, ये सब तो तू बुढ़ापे में भी कर लेगा कम से कम अभी तो कुछ चॉकलेटी रोल कर कर। सिद्धांत ने कहा।
- बेटा कहानी कैसी भी हो, लौंडा न्यूड सीन तो दे ही रहा है.. साजिद बोला तो सब हंस पड़े।
मनप्रीत ने साजिद की ओर बनावटी गुस्से से देखा।
मधुरिमा का चेहरा भी लाल हो गया।
अगली सुबह आगोश को भी दिल्ली के लिए जल्दी ही निकलना था फ़िर भी उन लोगों ने बातों - बातों में रात का डेढ़ बजा लिया।
रेस्त्रां से बाहर आते ही घड़ी देखते हुए मनन, मधुरिमा और मनप्रीत कुछ चिंतित से हो गए।
लेकिन अब सबका एक साथ मिलना तो न जाने कब संभव हो पाए, यही सोच सबको एक साथ रखे हुए थी।
आर्यन बोला- दोस्तो, सच में अब हम न जाने कब मिल सकेंगे, मेरा मन ही नहीं हो रहा तुम्हें छोड़ने का...
- साजिद और मनप्रीत की शादी में तो आयेगा न? मनन ने कहा।
सब एक साथ चौंक पड़े। आर्यन ने कहा- हो रही है क्या?
- होगी ही, कब तक बागों में मिलते रहेंगे बेचारे? सिद्धांत ने कहा।
मनप्रीत हंस कर एकदम से बोली- शादी तो उसकी होती है जो अपने अब्बू - अम्मी से बात करने की हिम्मत रखे।
साजिद मनप्रीत के इस कटाक्ष से झेंप गया। फ़िर भी बोला- अच्छा, बात तो ऐसे कर रही है जैसे तू अपने पापा- मम्मी को पटा कर ही बैठी है।
आगोश ने मनप्रीत से कहा- मैडम, हमारे लौंडे को दोष मत दो, वो तो बेचारा जवानी चढ़ने से पहले ही गर्लफ्रेंड को गर्भवती बनाने के लिए अपने अब्बू से पिट चुका है।
सब हंस पड़े।
आर्यन ने कुछ संजीदगी से कहा- नहीं, मैं कहीं भी रहूं, साजिद और मनप्रीत की शादी में तो आना ही चाहूंगा।
सिद्धांत बोला- और मेरी शादी में?
आगोश अब गाड़ी के पास खड़ा - खड़ा उकता गया था, बोला- तेरी शादी में भी सब आयेंगे, बस ये ध्यान रखना, कहीं मनन से मत कर लेना।
मनन उसका चेहरा ताकता रह गया।
- क्यों? सिद्धांत ने कहा।
- यार शादी में दूल्हा- दुल्हन तो होने ही चाहिए... कहते हुए आगोश स्टियरिंग की ओर बढ़ा। उसने सबको उस रात अपनी गाड़ी से ही उनके घर छोड़ा।
आर्यन की आंखों में अपने घर पर उतरते समय आंसू थे।