टापुओं पर पिकनिक - 23 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 23

मनप्रीत भी अब आर्यन और उसके दोस्तों की मित्र मंडली में शामिल हो गई थी।
कभी - कभी शाम को भी उनके साथ आ जाती।
उस दिन शाम को एक रेस्त्रां में बैठे- बैठे सिद्धांत ने ज़रा ज़ोर देकर कहा- जूस फॉर एम्स एंड बीयर फॉर अदर्स।
सब कौतुक से उसकी ओर देखने लगे।
पर मनप्रीत मुस्कराते हुए बोली- मैं समझ गई इसकी बात।
- क्या? आर्यन ने कहा।
- ये कह रहा है कि "एम" वालों, माने मनप्रीत और मनन के लिए जूस मंगाओ और बाक़ी सबके लिए बीयर। यही न? कह कर मनप्रीत ने गर्व से सिद्धांत की ओर देखा।
- करेक्ट! सिद्धांत ने कहा।
मनन बोला- तू कितना भी डायलॉग मार ले, मैं शराब नहीं पीने वाला।
- बच्चे, बीयर शराब नहीं होती। सिद्धांत ने कहा।
- तो ये होटल वाले बीयर पीने के लिए एज सर्टिफिकेट क्यों मांगते हैं। इन्हें परमीशन क्यों चाहिए? मनन ने अपनी शंका रखी।
- कमाल है, ऐसे तो राशन देने वाला भी राशनकार्ड मांगता है। आगोश ने कहा।
तभी अचानक मनप्रीत चहक कर सिद्धांत से बोली- अच्छा, तू बीयर पीने से ही अपने को बड़ा तीसमारखां समझता है तो चल मंगा हमारे लिए भी। आज हम भी बीयर ही पीते हैं। ओके मनन?
मनन कुछ न बोला। लेकिन वह मन ही मन डरने लगा कि कहीं ये मनप्रीत जोश - जोश में ही पी गई तो उसे भी पीनी पड़ेगी।
सिद्धांत बोला- आज पीने के बाद हम सब आर्यन के घर जाने वाले हैं, वहां भी चलना पड़ेगा।
- वहां क्या करोगे? मनप्रीत बोली।
- गुड- टच- बैड- टच खेलेंगे। आगोश बोला।
मनप्रीत कुछ सहम कर चुप हो गई। फ़िर बोली- ये क्या होता है?
- हमारे साथ चल, सिखा देंगे। सिद्धांत बोला।
बात अधूरी रह गई। क्योंकि तभी वेटर ने लाकर उनका ऑर्डर मेज पर रखना शुरू किया। सब खाने - पीने में तल्लीन हो गए।
आज की ये पार्टी सिद्धांत दे रहा था। उसके बड़े भाई की शादी हुई थी। पर क्योंकि शादी उन लोगों ने शहर से बाहर जाकर लड़की वालों के यहां ही की थी इसलिए वो अपने दोस्तों को शादी में बुला नहीं सका था।
आज उसने अलग से सबको यहां बुलाया था।
मनप्रीत जब रात को घर लौटी तो उसे साजिद का ख्याल आया। साजिद ने भी कह दिया था कि वह आयेगा, पर वो आया नहीं।
सच पूछो, तो मनप्रीत ने तो केवल साजिद से मिलने के लिए ही यहां आने का प्लान बना लिया वरना वो तो सिद्धांत को मना ही करने वाली थी।
पर साजिद आया क्यों नहीं? मनप्रीत को एक अजीब सा खालीपन घेरे हुए था।
लेकिन घर पहुंचते ही मनप्रीत का चेहरा खिल उठा जब उसने देखा कि उसकी सहेली मधुरिमा उसके यहां आई हुई थी।
अब ऐसा अक्सर होने लगा था कि वो मधुरिमा के यहां या मधुरिमा उसके यहां आ जाती। कभी- कभी तो रात को सोने के लिए भी दोनों साथ ही एक ही जगह रुक जाती थीं।
शायद आज भी मधुरिमा इसी मूड से आई हुई थी।
जब मनप्रीत की मम्मी ने उसे बताया कि वो तो कहीं पार्टी में गई हुई है तो वो इंतजार में वहीं ठहर गई।
मधुरिमा घर से खाना खाकर ही आई थी पर मनप्रीत की मम्मी ने उसे फ़िर से अपने साथ ही खाने के लिए बैठा लिया।
वो भी तो आज डायनिंग टेबल पर अकेली ही थीं। मनप्रीत के पापा तो अक्सर काम से बाहर जाते ही रहते थे।
दोनों रात को देर तक बातें करती रहीं।
मनप्रीत ने उसे साजिद के बारे में भी बता दिया था कि वो उसे पसंद करने लगा है और मिलने का कोई न कोई बहाना ढूंढता रहता है।
लेकिन आज तो मिलने का मौका होते हुए भी पार्टी में आया नहीं था। मनप्रीत को ये बात जैसे ही याद आई वो थोड़ी मायूस सी हो गई।
- यार, एक बात बता?
मधुरिमा ने जब अपनी ही धुन में रहस्यभरा सा ये सवाल पूछा तो मनप्रीत समझ गई कि आज उसका ध्यान कहीं और है। वो साजिद या उसकी बात में कोई रुचि नहीं ले रही। वरना अक्सर तो एक - एक बात बहुत रस ले लेकर पूछती थी।
- कैसा है? हाइट से कुछ कनेक्शन होता है क्या? साजिद तो बहुत लंबा है न!
मनप्रीत उसकी इस जिज्ञासा पर हंस कर रह गई थी।
- लड़कियां कहती हैं कि पता चल जाता है, आदी है या नहीं... ये सच है क्या? कैसे चलता है? यार, ये "टाइमिंग" क्या बला है? साजिद की टाइमिंग...
- चुप!
मधुरिमा के ऐसे सवाल मनप्रीत को गुदगुदाते थे। पर वो साथ में बनावटी गुस्से से लाल भी हो जाती थी। फ़िर उसे डांटने भी लग जाती- ये नौबत कुल दो बार आई है अभी तक... तू तो ऐसे पूछ रही है जैसे मैं बरसों की अनुभवी हूं।
नीचे से मम्मी की आवाज़ आती- अरे लड़कियो, रतजगा करोगी क्या आज! अब सो जाओ। सुबह आंख नहीं खुलेगी।
पिछले कुछ समय से सभी दोस्त महसूस कर रहे थे कि आगोश का स्वभाव काफ़ी तेज़ी से बदलता जा रहा है। वह अब अपने आप में खोया हुआ सा रहने लगा है। वह अपनी तरफ से किसी से कुछ न पूछता, कुछ न बोलता, बस जो पूछो उसका जवाब भर देता। वो भी बेमन से।
उसका जुड़ाव उन सब दोस्तों से आर्यन के कारण ही रह गया था। ऐसा लगता था मानो आर्यन न हो तो वो उनकी मित्र मंडली से निकल ही जाए।
वो बोलने में भी काफ़ी रैश और रफ़ सा हो गया था।
अपने माता - पिता की बात भी घोर निरादर से इस तरह करता जैसे किसी अजनबी की बात कर रहा हो।
उस दिन सिद्धांत ने पूछा- तेरे डैड टाउन में ही हैं न?
आगोश ने जवाब दिया- ये तो आधी रात को ही पता चलेगा कि डॉन अपने अड्डे पर ...!