टापुओं पर पिकनिक - 29 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 29

क्या यही प्यार है?
ये प्यार होता क्या है?
क्या कोई हवा, जो किसी को लग जाती है!
क्या कोई बेचैनी जो अच्छे- भले मन को कसमसाना सिखा देती है!
क्या कोई संगीत जो किसी दूसरे को देख कर बदन पर बजने लगता है?
इसे पहचाना कैसे जाए?
आर्यन किससे पूछे। उस जैसा सुलझा हुआ समझदार युवक भी अगर प्यार के नाम पर यूं गच्चा खा जाए तो फ़िर आम युवाओं का क्या होगा?
आर्यन पिछले कुछ दिनों से मधुरिमा से आकर्षित था।
अब आगोश से ज़्यादा जल्दी आर्यन को रहती थी कि चलें, एक बार कमरे को किसी नौकर से साफ तो करवा लें। चलें, एक बार मधुरिमा के पापा से बात तो पक्की कर आएं, वो कमरा किसी और को न दे दें। चलें, एक बार मनप्रीत और मधुरिमा से मिल तो आएं ताकि उन्हें भरोसा हो जाए कि हम सचमुच यहां आने वाले हैं।
आगोश को हैरत होती। कहता- तुझे क्या इतनी जल्दी हो रही है? वो लोग अपनी फ्रेंड्स हैं, एक बार कह दिया तो अब अपने से पूछे बिना किसी दूसरे को थोड़े ही दे देंगी।
आर्यन के इस उतावलेपन का एक कारण और था।
आर्यन ने कुछ दिन पहले एक मशहूर विज्ञापन कंपनी के टैलेंट हंट के लिए अपना पंजीकरण कराया था। ये कंपनी अपने एंडोर्स किए जाने वाले प्रोडक्ट्स की मार्केटिंग के लिए कुछ ख़ूबसूरत मॉडल्स को चुन कर अपना पैनल बनाने वाली थी।
कंपनी का ध्येय ये था कि वो जमे - जमाए मशहूर चेहरों की जगह बिल्कुल नए, फ्रेश चेहरे चुने और फिर उनकी ग्रूमिंग के बाद उन्हें लॉन्च करे ताकि उनके प्रेजेंटेशन में मौलिकता के साथ - साथ ताज़गी भी रहे।
सादगी से रहने वाला आर्यन अपने चेहरे- मोहरे में बेहद संजीदा और आकर्षक था। उसकी समझदारी उसके व्यक्तित्व में और भी इज़ाफ़ा करती थी।
उस दिन आगोश ने आर्यन को फ़ोन किया तो वो जिम में था। तय हुआ कि आर्यन आधे घंटे बाद फ्री होगा तब आगोश उसे वहीं मिल जाएगा और वो लोग वहीं से मधुरिमा के यहां जाएंगे।
खुले हुए, हवा में लहराते व्हाइट शूलेस, पसीने से भीगी स्लीवलैस शर्ट और टाइट शॉर्ट्स के साथ अपने बिखरे, भीगे से बालों को झटकता आर्यन जब जिम से बाहर निकला तो सामने आगोश को देख कर चौंक गया। आगोश के साथ बाइक पर पीछे मधुरिमा बैठी थी।
- बैठ! जैसे ही आगोश ने ऐसा कह कर बाइक मोड़ते हुए आर्यन के पास लाकर उससे लगभग सटा ही दी, आर्यन का सूखता पसीना एक बार फ़िर तरल हो गया। हड़बड़ा कर वो ये भी नहीं पूछ सका कि तीनों एक साथ कैसे चलेंगे?
लेकिन शायद मधुरिमा आर्यन का संकोच भांप गई। वो जल्दी से बाइक से उतर गई। फ़िर धीरे से बोली- तुम लोग चलो, मैं आती हूं।
- कैसे? आगोश ने कहा।
- मेरी फ्रेंड आ रही है अभी, उसके साथ आ जाऊंगी।
- अरे नहीं- नहीं, कोई प्रॉब्लम नहीं, हम तीनों चलेंगे न, आर्यन तू आगे बैठ, मधु तेरे पीछे बैठ जाएगी।
आर्यन उछल कर दोनों ओर पैर करके बाइक पर सवार हो गया। उसके पीछे कुछ झिझकती सी मधुरिमा भी बैठ गई।
लेकिन मधुरिमा के बैठते- बैठते ही आगोश ने बाइक आगे बढ़ा दी तो मधुरिमा को हड़बड़ा कर आर्यन का कंधा पकड़ना ही पड़ा। पसीने में भीगा, अभी- अभी वर्कआउट करके निकला पुष्ट कंधा।
आर्यन को पसीने से भीगी नंगी बांह पर पतली अंगुलियां फिसलती सी लगीं, कहीं स्लिप न हो जाएं, उसने दूसरे हाथ से मधुरिमा के घुटने को सहारा दिया।
पलक झपकते ही बाइक ट्रैफिक में आ गई।
आर्यन की खुली शूलेस मधुरिमा के पैर की अंगुलियों पर थपकी सी दे रही थी।
मधुरिमा के घर पर आज उसके पापा भी मिले। आगोश ने कुछ झिझकते हुए कहा- अंकल, आप बताइए रेंट क्या देना है, मधुरिमा ने कुछ बताया ही नहीं। मैं आपको छः महीने का तो एडवांस भी दे दूंगा।
मधुरिमा के पापा कुछ हंसे, बोले- अरे बेटा, चिंता मत करो, तुम लोग मेरे बच्चे जैसे ही तो हो, किराए की क्या बात करूं? जो इच्छा हो दे जाना।
कुछ रुक कर उन्होंने फ़िर पूछा- वैसे, यहां रहेगा कौन बेटा?
- जी, जी.. वो हमारे कोई रिलेटिव हैं, वो आने वाले हैं अंकल। आगोश ने कुछ सकपकाते हुए कहा।
मधुरिमा के पिता के चेहरे पर आया सवालिया भाव पूरी तरह मिटा नहीं, क्योंकि उन्हें आगोश की बात से ये स्पष्ट रूप से पता नहीं चला था कि यहां कोई पुरुष रहेगा, महिला या फ़िर कोई परिवार। या इन बच्चों की उम्र का कोई युवा दोस्त।
उनकी जिज्ञासा बनी हुई देख कर आगोश ने कुछ सोच कर कहा- अंकल, वैसे तो एक ही मेंबर रहेंगे क्योंकि उनका यहां जॉब लगा है पर कभी- कभी उनके साथ उनके घर से कोई गेस्ट आ कर रह सकता है क्योंकि...
आर्यन और मधुरिमा भी अपने हाथ में पकड़ा कॉफी का कप थामे आगोश की बात ध्यान से सुनने लगे क्योंकि मधुरिमा के पापा आगोश का वाक्य पूरा होने की प्रतीक्षा व्यग्रता से कर रहे थे। उनका कप मेज़ पर ही रखा था।
आज के आधुनिक समय में भी जिस घर में कोई युवा लड़की रहती हो वहां आने- जाने वालों की स्क्रीनिंग से कोई छूट हमारी आधुनिकता ने हमें दी नहीं है, इस बात को आज के ये युवा भी आसानी से देख पा रहे थे।
आगोश ने सहज होकर कहा- ...क्योंकि उनकी अभी शादी नहीं हुई है। वो अकेले ही हैं।
कह कर आगोश कॉफी पीने लगा।
मधुरिमा के पापा ने बहुत कॉम्प्रोमाइजिंग सा "ओके" कहा। किंतु इतना ही उन लोगों के उत्साह में बढ़ोतरी करने के लिए काफ़ी था।
मधुरिमा के पापा ने भी कॉफी का अपना कप उठा लिया।
मधुरिमा प्लेट आगे बढ़ा कर आगोश और आर्यन को बिस्किट्स दे रही थी। उसकी मम्मी कभी उन लोगों के साथ वहां आकर बैठती थीं और कभी उठ कर भीतर चली जाती थीं।
ऐसा लगता था कि मानो वो किसी घरेलू काम में बहुत व्यस्त हैं मगर एक जवान लड़की की मां होने का ये तकाज़ा भी है कि वो उन सब लोगों पर नज़र भी रखें जिनके साथ उनकी बेटी मिलती- जुलती है।
एक बात और भी तो थी। उनके घर में पहले रहने वाली किरायेदार कुछ वैसी शालीनता से उन्हें विदा देकर भी नहीं गई थी जिससे वे किरायेदारों के प्रति बिल्कुल आश्वस्त रह सकें।
- खाना खाकर जाना। उन्होंने दोनों लड़कों से कहा तो दोनों ने मुस्कुरा कर आत्मीयता से हाथ जोड़ दिए और बाहर निकल गए।
उन्हें बाहर तक छोड़ने मधुरिमा के पापा साथ आए।