टापुओं पर पिकनिक - 30 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 30

सबकी खिचड़ी अलग - अलग पक रही थी।
आगोश अपने कमरे में लेटा हुआ सोच रहा था कि अब उसे कुछ न कुछ करना चाहिए। ये फ़ैसला भी करना चाहिए कि क्या वो अपने पापा के कारनामों की जानकारी मिल जाने के बाद भी इस सारे काले कारोबार का मूक दर्शक बना रहे? क्या वह भी ग़लत धंधों से काला पैसा कमाने वाले लोगों की तरह अपने पिता की कमाई से ऐश करते हुए आराम से अपनी ज़िंदगी गुज़ार दे? या अपना कोई अलग रास्ता ढूंढे?
उधर अपने कमरे में आर्यन भी कलात्मक चादर पर तकिए को हाथों में लेकर अधलेटा सा पड़ा सोच रहा था कि वह वास्तव में स्मार्ट है, उसने अब तक ध्यान ही नहीं दिया था कि वह एक सफ़ल मॉडल या एक्टर बन सकता है। उसे इस ओर ध्यान देकर कोशिश ज़रूर करनी चाहिए। हो सकता है कि कोई बड़ी सफ़लता उसके इंतजार में हो।
इधर सिद्धांत के दिमाग़ में कुछ और ही चल रहा था। वह इस बात से चिढ़ने लगा था कि वह एक बहुत बड़ी जनसंख्या वाले देश में पैदा हुआ है। उसे लगता था कि अपना भविष्य किसी ऐसे काम में लगाए जिससे देश की जनसंख्या पर किसी भी तरह कंट्रोल होता हो। यदि लोगों को बेतहाशा पैदा होने से रोका जाए तो शायद देश और समाज का भला ही होगा। पर वो क्या रास्ता हो? क्या किया जाए? ऐसे विचार लगातार उसे मथ रहे थे। वह नर्म और गुदगुदे बिस्तर पर उल्टा लेटा हुआ था और छोटी खिड़की से दूर सामने के पहाड़ पर टिमटिमाती एक रोशनी को देख रहा था।
मनन को यहां बहुत मज़ा आ रहा था। अभी- अभी एक चटकदार कोल्डड्रिंक पीकर उसने गिलास साथ के कलात्मक स्टूल पर रखा था। अब लेट कर सोचने पर उसे लगता था कि वो जल्दी अपनी पढ़ाई पूरी करले फ़िर एक ऐसा कारोबार शुरू करे कि केवल अपने घर परिवार ही नहीं बल्कि अपने दोस्तों के कामों में भी हाथ बंटाए। उसकी होने वाली पत्नी और बच्चे भी गर्व कर सकें कि हम लोग एक सफ़ल आदमी का परिवार हैं।
साजिद वैसे जल्दी सो जाने का आदी था। लेकिन आज वह भी अब तक जाग कर यही सोच रहा था कि पैसा कमाना है। उसका अब तक का अनुभव यही कहता था कि अगर इंसान के पास पैसा हो तो कोई नहीं देखता कि वो कैसा है, क्या कर रहा है, सब उसको सहन करते हैं। उसे किसी मुसीबत में आने नहीं दिया जाता। पैसा दुनिया के हर सवाल का जवाब है, ये कमोवेश उसका विचार बन चुका था।
बहुत दिनों बाद उसे घर से निकल कर अपने दोस्तों के साथ इस शानदार भ्रमण पर आने का मौका मिला था। उसके अब्बू ने शायद यहां तफरीह के लिए आने की ये अनुमति उसे उस मेहनत के ईनाम के तौर पर दी थी जो वो बेकरी को बढ़िया बनाने के लिए रात दिन करता था।
आज ये सब एक ख़ास खूबसूरत जगह पर घूमने के लिए आए हुए थे। ये शांत और आरामदायक रिसॉर्ट शहर से लगभग सवा सौ किलोमीटर की दूरी पर मुख्य हाईवे से बारह किलोमीटर भीतर जाकर एक पहाड़ की तलहटी में बनी हुई थी। इसमें सैकड़ों कमरे और छोटे कॉटेज बने हुए थे जो बेहद कलात्मक तरीके से अलग- अलग छितराए हुए थे। ये सुंदर हरेभरे रास्तों से आपस में जुड़े थे और शानदार बगीचों की शक्ल में फूलों की घाटी से जुड़े हुए थे। यहां सभी तरह के खानपान की अच्छी व्यवस्था थी।
वे सब यहां शाम को आगोश की कार से पहुंचे थे और उसी ने इस जगह को पहले से बुक करा कर सबका एक रात का ख़र्च उठाया था।
उन्होंने रिसॉर्ट के एक शांत से हिस्से में छह कॉटेज बुक कराए थे और वो सभी इस समय अलग- अलग अपने अपने कॉटेज में लेटे हुए थे।
मनप्रीत और मधुरिमा दोनों एक साथ एक ही कॉटेज में थीं। इसलिए उनके बीच बाक़ी दोस्तों की तरह एकांत चिंतन जैसा कुछ न होकर आपस में ही बातों का दौर चला था। उनके लिए भी ये मौक़ा अकस्मात ही इसलिए मिल गया था क्योंकि मनप्रीत के पापा कुछ समय के लिए कारोबार के सिलसिले में बाहर गए हुए थे और उसकी मम्मी को फ़ैसला लेने का अधिकार मिल गया था। पर उन्होंने अनुमति इसी शर्त पर दी थी कि उसके साथ में मधुरिमा भी जाएगी। मनप्रीत ने मधुरिमा को यहां आने की परमीशन दिलवाने के लिए एड़ी - चोटी का ज़ोर लगा दिया था। और अब इस खुशनुमा माहौल में दोनों एक साथ थीं।
ये एक विचित्र उन्मादी रात थी। इस विचार को क्रियान्वयन आगोश और आर्यन ने मिल कर दिया था।
ये गर्मियों की रात थी। आसमान तेज़ चमकते सितारों से भरा था।
शाम को यहां पहुंचते ही सब अपने - अपने कक्षों में चले गए थे और आराम कर रहे थे।
तय हुआ था कि वो लोग रात को लगभग बारह बजे पास के एक छोटे बाग़ में इकट्ठे होंगे और तभी साथ में खाना भी खाएंगे। पूरे चौबीस घंटे फंक्शनल रहने वाले इस रिसॉर्ट में वहां खाना परोस देने की उम्दा व्यवस्था थी।
इस एकांत बाग़ में एक प्यारा सा स्विमिंग पूल भी बना हुआ था जिसके पानी और नज़दीक बने छोटे रंगीन फव्वारे के कारण वहां वातावरण में नमी और ठंडक बरस रही थी।
मनप्रीत और मधुरिमा लेटी हुई आपस में बातें कर ही रही थीं कि दरवाज़े पर हल्की दस्तक देकर आगोश भीतर आया।
दोनों उठ कर बैठ गईं। उनके चेहरे से लग रहा था कि दोनों बेहद प्रसन्न थीं और इतनी सुन्दर जगह पहली बार दिखाने के लिए मन ही मन आगोश का शुक्रिया अदा कर रही थीं।
आगोश इस समय बहुत शांत और हंसमुख से मूड में था। पिछले दिनों उन सब मित्रों ने उसे कई बार तरह- तरह के तनावों से घिरा ही देखा था। पर इस समय एक छोटी सी प्रिंटेड बनियान और निक्कर में वो बच्चा सा ही लग रहा था।
एकाएक आगोश थोड़ा सा गंभीर हुआ और फ़िर रहस्यात्मक तरीके से बोला- यार एक बात बताओ, तुम सब लोग यहां आराम से बैठे बातें कर रहे हो, पर एक बार भी क्या तुम्हारे मन में ये सवाल नहीं आया कि...
... कि.. दोनों उत्सुकता से आगोश की ओर देखने लगीं।
आगोश ने बोलना जारी रखा। वह बोला- तुम लोग ये नहीं सोच रहे कि हम सब यहां पर आकर अलग - अलग कमरों में क्यों ठहर गए? क्या हम इसी तरह रहेंगे?
मधुरिमा और मनप्रीत कुछ मुस्कुराते हुए एक दूसरे की ओर ताकने लगीं।