टापुओं पर पिकनिक - 31 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 31

खाने में आनंद आ गया।
बहुत सादा और स्वादिष्ट खाना था।
भोजन के बाद भी आपस में बातें करते- करते वो सभी दोस्त लगभग एक घंटा और वहीं बैठे रहे।
इस समय सभी हल्के - फुल्के लिबास में अनौपचारिक हो कर आए थे।
अब आगोश ने एक बार फ़िर वही बात छेड़ी जो वो मनप्रीत और मधुरिमा के कमरे में पहले ही उन लोगों को बता चुका था। लेकिन किसी ने भी उसकी बात का कोई उत्तर नहीं दिया था। सब उससे ही जानना चाहते थे कि आख़िर उसने क्या सोचा है? क्या है उसका प्लान?
सभी उत्सुकता से आगोश की ओर देखने लगे।
ऐसा लग रहा था जैसे कि आगोश यहां उनका फ्रेंड- फिलॉसफर- गाइड है और एक टीचर की भांति जो कुछ वो कहेगा सब आज्ञाकारी बच्चे की तरह उसकी बात मानेंगे।
आगोश बोला- फ्रेंड्स, हम यहां ख़ुशी ढूंढने आए हैं। वी ऑल आर इन सर्च ऑफ़ हैप्पीनेस!
रात को ठीक दो बजे से लेकर चार बजे तक के दो घंटे हम सब अपने - अपने मिशन पर रहेंगे।
कोई संकोच नहीं, कोई रुकावट नहीं, कोई भय नहीं।
फ़िर चार बजे से हम सब वापस ख़ुद अपने- अपने में लौट जाएंगे।
सबको ये बात किसी रहस्य की तरह लग रही थी, पर मज़ा आ रहा था। ये जो भी है, कुछ मज़ेदार ही होने वाला है, नया, अद्भुत!
आगोश ने कहना जारी रखा- दो बजते ही हम में से कोई भी, कभी भी, कहीं भी जा सकता है। यदि आधी रात के इस अजनबी सन्नाटे में हम कहीं बाहर जाने का जोखिम नहीं उठाना चाहते तो हम आपस में ही किसी के भी पास जा सकते हैं, किसी भी कमरे में! कोई किसी से ये नहीं पूछेगा कि वो यहां या कहीं भी, क्यों है! हम दो घंटे के इस समय में हम में से किसी के भी साथ, या अकेले हो सकते हैं। हम कोई बात कर सकते हैं, कोई बात सुन सकते हैं।
सब मंद- मंद मुस्कुराते रहे।
मनन बोला- ये रात फ़िर न आएगी।
सब हंस पड़े।
नींद किसी की भी आंखों में नहीं थी क्योंकि सबने यहां रिसॉर्ट में आने के बाद तीन - चार घंटे अपने- अपने कमरे में आराम कर लिया था। लेकिन दो बजने में अभी लगभग आधा घंटा बाक़ी था तो सब टहलते हुए अपने - अपने कमरे में चले गए!
मधुरिमा ने जाते - जाते कहा- दोस्तो, ये तो बता दो कि कौन - कौन किस कमरे में है? हमें तो ये भी पता नहीं।
- हां, ये बेचारी जाए किसी के पास, और वहां मिल जाए कोई और? फ़िर, क्या करेगी। मनप्रीत ने मधुरिमा का मज़ाक उड़ाते हुए कहा।
सब हंसने लगे।
आगोश बोला- टेन।
मनन ने कहा- सेवन।
साजिद- सिक्स।
आर्यन - टू।
सिद्धांत- थ्री।
मनप्रीत- वन... और मधुरिमा मेरे साथ ही है।
- ओके, रूम नंबर फोर, फाइव, एट और नाइन हमारे नहीं हैं, उनमें जो भी घुसे वो अपने रिस्क पर ही घुसना। साजिद ने कहा।
- डन ! आर्यन बोला और सब अपने- अपने कमरों की ओर बढ़ गए।
जाते- जाते आगोश ने थोड़ा ज़ोर से कहा- फ्रेंड्स, ठीक चार बजे हम सब लोग फ़िर इसी जगह कॉफी पीने के लिए इकट्ठे होंगे, याद रखना।
चौबीस घंटे आबाद रहने वाली इस शानदार जगह में सन्नाटों को डर कर रहना पड़ता था। यहां कोलाहल का साम्राज्य था। भीतर की सजावट और रंगीनियां स्वचालित रूप से थोड़ी- थोड़ी देर में बदलती थीं। एकांत भी थे, महफिलें भी।
चार बजे सबसे पहले साजिद ही वहां आकर बैठा। उसके पीछे- पीछे सिद्धांत और मनन बातें करते हुए आए।
मधुरिमा अकेली आई।
कुछ पलों में आर्यन और मनप्रीत भी चले आए।
दस मिनट से ज्यादा हो गए इंतजार करते हुए लेकिन आगोश अब तक नहीं आया।
- कहां रह गए आगोश सर? सिद्धांत ने कहा।
आर्यन ने कहा- आता होगा, अभी तो साथ ही था, बोल रहा था कि वाशरूम जाकर आता हूं।
- सवेरा होने को है, वो लंबे वाले वाशरूम में चला गया होगा। सिद्धांत ने जिस तरह "लंबे वाले" कहा, सब हंस पड़े।
लेकिन काफ़ी देर हो गई। आगोश अभी तक नहीं लौटा।
मज़ाक छोड़ कर अब सब गंभीर हुए। आर्यन बोला- जस्ट वेट, मैं देख कर आता हूं।
उसके पीछे- पीछे सिद्धांत भी उठा।
बाकी सबकी बातें भी जैसे ठहर सी गईं। सब चुप हो गए।
मनन ने कहा- कहीं आगोश को नींद तो नहीं आ गई। वो था कहां? किसके कमरे में बैठा था? या बाहर कहीं और तो नहीं चला गया था! सब एक दूसरे की शक्ल देखने लगे।
- सुना नहीं, अभी आर्यन कह तो रहा था कि उसके साथ ही था। साजिद ने बताया।
- उसके साथ क्या कर रहा था? मनन के ऐसा बोलते ही सब हंसने लगे पर वह एकाएक बोल पड़ा- मेरा मतलब है कि अगर दोनों साथ ही थे तो फ़िर दोनों साथ ही यहां भी क्यों नहीं आए? आर्यन उसे वहां अकेला क्यों छोड़ कर आ गया?
- अबे, तो वो कोई बच्चा है क्या! सुना नहीं, आर्यन कह तो रहा था कि आगोश वाशरूम जाने के लिए रुक गया था। साजिद ने फिर से मनन को जैसे सफाई दी।
- पर वाशरूम में इतनी देर थोड़े ही लगती है। अब तो पौने पांच बजने को आए। मनन ने तर्क का सिरा पकड़ा।
- वो आर्यन देखने गया था, वो भी वहां जाकर बैठ गया? और पीछे- पीछे सिद्धांत भी तो गया था। यार, मुझे तो लग रहा है कोई गड़बड़ हो गई। कहीं उसकी तबीयत तो खराब नहीं हो गई? मधुरिमा ने कहा।
- ड्रिंक कर ली होगी। मनन ने फिर थोड़ी लापरवाही से कहा।
- नहीं यार, ड्रिंक करता तो हमें यहां कॉफी पीने के लिए क्यों बुलाता? मनप्रीत ने कहा।
- चलो, सब वहीं चलते हैं, देखें तो सही, यहां बैठे- बैठे अटकलें लगाने से क्या फ़ायदा। साजिद बोला।
लेकिन जो लोग वहां आ चुके थे उन सब की कॉफी वेटर ने लाकर रख दी थी। कॉफी ठंडी हो रही थी।
चलें या यहीं रुकें, इस असमंजस में सब उसी तरह बैठे हुए थे।
साजिद ने गैलरी से गुज़र रहे एक वेटर लड़के को इशारे से बुलाया और उसे कॉफी के कप वापस उठा ले जाने के लिए कहा। लड़के ने कुछ संकोच से देखा, फ़िर बेमन से कप उठाकर ट्रे में रखने लगा।
फ़िर वो चारों भी उठ खड़े हुए।
गलियारा पार करके जैसे ही उन्हें दूर से कमरा नंबर दस का दरवाज़ा दिखा वो सब बेचैन हो गए- उस कक्ष के बाहर एक एम्बुलेंस खड़ी थी।