टापुओं पर पिकनिक - 13 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 13

साजिद की समझ में कुछ नहीं आया। आर्यन ने उसे फ़िर से पूरी बात अच्छी तरह समझाई तब जाकर वो इसके लिए तैयार हुआ। फ़िर भी एक बार दोबारा बोला- यार, कोई ख़तरा तो नहीं है न इसमें? वो बेचारा सीधा- सादा है। ज़्यादा पढ़ा - लिखा भी नहीं है। किसी लफड़े में फंस तो नहीं जाएगा न वो?
- अरे नहीं, उसका काम तो बस इतना सा है। फ़िर तो आगे हम सब संभाल लेंगे। सबसे ज़रूरी चीज़ यही है कि आदमी एकदम भरोसे का होना चाहिए। किसी को भी कुछ न बताए।
- इसकी चिंता मत करो। भरोसे का तो सौ परसेंट है। जिस बात के लिए हम उसे मना कर देंगे वो तो किसी को नहीं बताएगा, चाहे उसकी जान ही क्यों न चली जाए। साजिद ने कहा।
आगोश और आर्यन की आंखों में चमक आ गई। उन्हें ऐसा ही आदमी चाहिए था। वो तो ख़ुद साजिद को ही भेज देते। मगर साजिद को तो ड्राइवर अंकल पहचानते थे न। उस दिन तो उसे घर से लाकर आगोश के यहां उन्होंने ही छोड़ा था। उन्हें ये भी मालूम था कि साजिद आगोश और आर्यन का दोस्त है। उसका घर भी ड्राइवर सुल्तान को मालूम पड़ चुका था।
ये लड़का अताउल्ला बिल्कुल अनजाना था। ये उम्र में उन सब दोस्तों से तीन- चार साल बड़ा भी था और शक्ल से सीधा - सादा और अनपढ़ ही लगता था। ये साजिद के पिताजी की बेकरी में ही काम करता था और अपने किसी रिश्तेदार के साथ उसके घर पर रहता था।
रात को बेकरी बंद होने के बाद साजिद उसे अपने साथ ही ले आया। वो चारों नज़दीक के एक पार्क में आ बैठे। पार्क में भीड़भाड़ भी थी। कौने की एक बैंच पर चारों बैठ गए।
अताउल्ला इस तरह उन सभी लड़कों के साथ बैठने में थोड़ा झिझक महसूस कर रहा था। वो सब बड़े घरों के लड़के थे और साजिद के दोस्त थे, जो साजिद ख़ुद उसके मालिक का बेटा था।
फ़िर बाक़ी सब जहां खूबसूरत जींस और टीशर्ट पहने हुए थे वहां अताउल्ला ने थोड़ी मैली सी कमीज़ और पायजामा पहना हुआ था। वह दिनभर बेकरी में काम करने के बाद साजिद के कहने पर उसके साथ ऐसे ही चला आया था।
वो तीनों बीच - बीच में इंग्लिश में बात करते थे इससे भी अताउल्ला का संकोच बढ़ जाता था।
उसे साजिद ने केवल इतना बताया था कि उसे जो काम बताएं वो करना है और किसी को कुछ भी बताना नहीं है।
दरअसल आगोश को शक था कि उसके पिता के क्लीनिक में कोई गैर कानूनी काम हो रहा है। उसके डॉक्टर पिता का ड्राइवर सुल्तान भी इस कारोबार में लिप्त है, ऐसी शंका थी।
बिना किसी सबूत के सीधे - सीधे तो ड्राइवर से कुछ भी पूछा नहीं जा सकता था और वो इस तरह तो कोई भनक भी किसी को लगने नहीं देता, तो आगोश इस युवक अताउल्ला को एक ग्राहक के रूप में ही सुल्तान के पास भेजना चाहता था।
सुल्तान को ये गढ़ी हुई कहानी जाकर क्लीनिक के ड्राइवर सुल्तान को बतानी थी कि उससे ग़लती से एक लड़की गर्भवती हो गई है जिसे अनचाहे गर्भ से छुटकारा दिलाना है।
इस तरह एक बार ड्राइवर को कॉन्फिडेंस में लेना था ताकि अगर कोई गोरखधंधा वहां चल रहा हो तो उसका कुछ सुराग पाया जा सके।
अताउल्ला ये सब सुनकर सकपका गया। वो तो बेहद गरीब घर का कुंवारा लड़का था जिसकी शादी होने की दूर - दूर तक अभी कोई संभावना नहीं थी। न ही उसने अब तक किसी लड़की से ऐसा कोई रिश्ता बनाने की बात ही कभी सोची थी। वो तो इन सब बातों को बड़े लोगों के शगल समझता था। उसे तो ये जान कर ही गहरा आश्चर्य हो रहा था कि साजिद, उसके मालिक का बेटा, जिसे वो सब वर्कर लोग टाई लगा कर स्कूल जाने वाला छोटा बालक समझते हैं वो ये सब किन बातों में पड़ा हुआ है? उसे साजिद की ओर देखने में भी शर्म आई। क्या साजिद ये सब बातें समझता है?
उसने जैसे रहस्यमय ढंग से साजिद की ओर देखा उससे खुद साजिद भी एक बार तो झेंप गया।
साजिद अताउल्ला को सीधा - सादा देहाती लड़का समझता था। उसे लगता था कि इस अताउल्ला को जो कहानी सिखाई जाएगी वो चुपचाप जाकर सुना देगा। उसे कहां मालूम था कि गरीबी और मजबूरी चेहरों पर निर्दोष मायूसी चिपकाए रखती है, भीतर से तो इतनी दुनियादारी इस उम्र के सब जवान लड़के समझते हैं। अठारह साल का होने जा रहा अताउल्ला साजिद से तो बड़ा ही था।
उसके दिमाग़ में ये बात आ गई कि कहीं सचमुच ही साजिद से कोई ग़लती तो नहीं हो गई?
क्या आजकल शहरों के ये चौदह- पंद्रह साल के बच्चे भी इन बातों के लपेटे में आने लगे।
अताउल्ला की आंखों की चमक से साजिद भी सहम गया।
लेकिन अताउल्ला ने किसी बात से इंकार नहीं किया।
जब सब लोग पार्क से निकले तो उलझन में साजिद भी था, अताउल्ला तो था ही!