टापुओं पर पिकनिक - 41 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 41

दोपहर में आर्यन जब आगोश की गाड़ी वापस लौटाने के लिए उसके घर गया तो वह गाड़ी से उतरा नहीं, बस बाहर से ही ज़ोर- ज़ोर से हॉर्न बजाता रहा।
कुछ देर तक तो किसी का भी ध्यान नहीं गया पर कुछ देर बाद भुनभुनाता हुआ आगोश अपने कमरे से निकल कर बाहर आया। उसे बेहद झुंझलाहट हो रही थी। उसे लगा, न जाने कौन सिरफिरा था जो बाहर से ही हॉर्न बजा कर नाक में दम किए दे रहा था।
उसने सोचा ये डैडी भी न जाने कैसे- कैसे लोगों को सिर चढ़ा लेते हैं.. आया होगा कोई अफलातून, पर ये कौन सा तरीका है किसी के घर आने का... सोचता- सोचता जैसे ही आगोश बाहर पोर्च में आया, एकदम से चौंक पड़ा।
गाड़ी तो उसी की थी। फ़िर कौन है भीतर इसमें? आर्यन कहां गया?
लेकिन जैसे ही गेट से बाहर आकर उसने गाड़ी के भीतर बैठे हुए आर्यन को देखा, उसने सिर पीट लिया।
गाड़ी के पास जाकर उसने खुली विंडो से पुचकारते हुए प्यार से पूछा- अरे रे रे... क्या हुआ बच्चे? सीट- बेल्ट नहीं खुल रही क्या ? या सीट पर फेविकोल लगा है, पैंदा चिपक गया है क्या?
लेकिन उसके इस मज़ाक पर आर्यन को बिल्कुल भी हंसी नहीं आई। वह उसी तरह गंभीर बना बैठा रहा।
आगोश मुंह बाए उसे देखता रहा।
जब आर्यन कुछ न बोला तो आगोश एकदम से चिल्ला पड़ा- क्या हुआ? कुछ बोलेगा भी।
आगोश पीछे पलट कर बंगले का गेट खोलने लगा ताकि आर्यन गाड़ी भीतर ला कर खड़ी कर सके।
पर आर्यन बोला- रुक- रुक, मैं वापस जाऊंगा। तू बस मुझे छोड़ आ, फ़िर गाड़ी वापस ले आना।
अब आगोश हत्थे से ही उखड़ गया, बोला- क्या नाटक कर रहा है? तुझे कोई इतना अर्जेंट काम था तो आया ही क्यों?
- गाड़ी देने। आर्यन बोला।
- अच्छा, गाड़ी का क्या किराया लग रहा है माद.. आगोश बोलते- बोलते रुक गया। फ़िर एकदम से कुछ शांत होकर मुस्कुराता हुआ बोला- बेटा, मैंने कहा था न, गाड़ी तेरी ही है, फ़िर तुझे इतनी जल्दी क्या पड़ी थी...
आर्यन उसकी बात पूरी होने से पहले ही झटके से गाड़ी का दरवाज़ा खोल कर बाहर निकल कर खड़ा हो गया और एकदम से सीरियस होकर बोला- समझा कर यार। मेरी तबीयत ठीक नहीं है, और शायद मुझे आज ही कहीं शहर से बाहर भी जाना पड़ जाए, गाड़ी बेकार में मेरे घर में पड़ी रहेगी, इसलिए तू मेहरबानी करके मुझे छोड़ आ और गाड़ी वापस ले आ।
अब आगोश का माथा ठनका। उसे महसूस हो गया कि ज़रूर दाल में कुछ काला है। उसने आर्यन को कंधे से पकड़ कर उसे झिंझोड़ डाला। घबरा कर बोला- सच- सच बता, बात क्या है? देख, ऐसे तो मैं न तेरे साथ चलूंगा और न तुझे अकेले ही जाने दूंगा।
आर्यन उसी तरह मुंह लटकाए वापस स्टियरिंग पर जा बैठा और आगोश से बोला- खोल!
आगोश कुछ समझा नहीं। वह उसके बदलते तेवर देखता रहा।
- गेट खोल, अंदर आता हूं मैं! आर्यन लगभग चिल्लाया।
गाड़ी भीतर खड़ी करके दोनों अन्दर आगोश के कमरे में चले गए।
कमरे के भीतर पहुंचते ही आर्यन फूट- फूट कर रो पड़ा।
आगोश ने हड़बड़ा कर कमरा भीतर से बंद किया और किसी बच्चे की तरह आर्यन को अपने से चिपटाए हुए बैठ गया।
कुछ देर की चुप्पी रही। आर्यन को दिलासा देता रहा आगोश। न कुछ बोला, न ही उससे कुछ पूछा।
जब आर्यन थोड़ा संयत हुआ तो आगोश भीतर जाकर फ्रिज से पानी की बोतल उठा कर वापस आया।
वह गिलास में पानी डाल कर आर्यन को पकड़ा ही रहा था कि आर्यन बोल पड़ा- तुझे आंटी की कसम है, मुझसे कुछ पूछना मत।
आगोश हैरानी से उसकी ओर देखने लगा।
आर्यन आंखें बंद करके आगोश के बिस्तर पर लेट गया। उसकी आंखों के कोर अभी भी भीगे हुए थे।
उसे देखता हुआ आगोश कुछ देर तो चुप रहा, फ़िर बेहद गंभीर आवाज़ में किसी बुजुर्ग की तरह धीरे- धीरे बोला- ये घर, घर नहीं, दलदल पर कोहरे से बनी कोई हवेली है, ये बहुत ख़तरनाक जगह है.. यहां कोई किसी की कसम से न मरता है और न जीता है... अगर तू मेरा दोस्त है तो सच- सच बता, क्या हुआ है?
आर्यन भीगी लाल आंखों से उसे देखता रह गया।
और कोई समय होता तो आर्यन और उसके दोस्त ताली बजा कर आगोश के डायलॉग का इस्तकबाल करते, उसे दाद देते, मगर इस समय आर्यन टूटा हुआ दिल और खोया हुआ हौसला लिए हुए आगोश के सामने पड़ा हुआ था। कुछ न बोला।
आगोश को मन ही मन जो शंका थी, वो बलवती होती जा रही थी।
उसे सुबह फ़ोन से ही आर्यन ने इतना तो बता दिया था कि रात को फ़ोन करके आर्यन को उसकी सीरियल डायरेक्टर ने नहीं, बल्कि पागलखाने वाले डॉक्टर ने बुलाया था। आगोश को पागल नर्स के उसके वहां इलाज के लिए भर्ती होने की बात भी मालूम थी। अब वह कयास लगाने लगा कि ज़रूर आर्यन को ऐसा कुछ मालूम हुआ है जिसका संबंध आगोश के घर से है, इसीलिए आर्यन कुछ कह पाने में झिझक रहा है।
आगोश कुछ विचलित तो हुआ पर धैर्य से बैठा रहा।
आर्यन को शायद थोड़ी ही देर में गहरी नींद आ गई। वह पिछली सारी रात का जागा हुआ था, अपने घर लौटने के बाद से न तो किसी से कुछ कह सका, और न ही एक क्षण के लिए भी सो सका था। उसे नींद ही नहीं आई।
कुछ देर बाद आगोश भी सो गया।
पिछली रात उसे भी तो मुश्किल से दो - तीन घंटे ही सोने को मिल पाया था।
रात को आर्यन के चले जाने के बाद तीनों दोस्त कुछ निराश से हो गए थे। काफ़ी देर तक तो तरह- तरह की शंकाएं प्रकट करते हुए वो तीनों आपस में बातें ही करते रहे थे, बाद में जब भी फ़िल्म देखने की शुरुआत करने की सोचते तो ये लगता था कि शायद आर्यन वापस आ ही जाए।
पर आर्यन नहीं लौटा।
सुबह भी वहां देर तक सोया नहीं जा सकता था क्योंकि सिद्धांत और मनन के जल्दी चले जाने के बाद आगोश वहां अकेला ही रह गया था।
आगोश टैक्सी से वापस आया।
ये जवानी की उम्र ही ऐसी होती है कि तरह- तरह के उल्टे - सीधे कार्यक्रम बनाने का दिल भी करता है और फिर इन्हीं की बदौलत सब कुछ अस्तव्यस्त सा भी हो जाता है।
शाम गहराने लगी थी। आगोश के घर की नौकरानी कई बार कमरे में झांक कर देख गई थी कि दोनों दोस्त जागें तो वो उनके लिए खाने- पीने को कुछ लाए।
आगोश की मम्मी कुछ देर पहले कार लेकर बाज़ार की ओर निकल गई थीं, और जाते- जाते उसे कह गई थीं कि उठने पर उन्हें चाय पिला दे।