टापुओं पर पिकनिक - 48 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 48

रात के तीन बजे थे।
वाशरूम जाने के लिए आगोश की मम्मी उठीं तो देखा, आगोश के कमरे की लाइट जली हुई है।
- हे भगवान! क्या करता है ये लड़का। हमारे ज़माने में तो लोग कहते थे कि जवानी नींद भर सोने के लिए होती है, इन्हें देखो, सोने की फ़िक्र ही नहीं है। क्या करते हैं ये आजकल के बच्चे! सोचती हुई वो अपने कमरे में जाती हुई एक बार फ़िर से पलट कर चोरी- चोरी उसके कमरे में झांकने चली आईं।
ओह, ये क्या?
आगोश तो टेबल के सहारे बैठा हुआ एक किताब पढ़ने में तल्लीन है। कोई परीक्षा हो जैसे। सामने लैपटॉप खुला पड़ा था।
मम्मी पर्दे के पीछे से ही मुस्कुराईं। वाह, साहबजादे इस तरह पढ़ते हुए तो कभी अपने कॉलेज के दिनों में भी नहीं दिखे। फ़िर अब क्या हुआ?
लेकिन तभी छिप कर खड़ी मम्मी को जैसे करेंट का झटका लगा। उनका ध्यान अचानक आगोश के बिस्तर पर गया।
वहां कोई सोया हुआ था। मोटी सी चादर जैसी पतली जयपुरी रजाई सिर से पैर तक ओढ़ रखी थी।
वैसे तो आगोश के पास उसका दोस्त आर्यन अक्सर सोने आ जाया करता था लेकिन अब आर्यन तो शहर से बाहर गया हुआ है। फ़िर यहां कौन है?
कोई और दोस्त आया होता तो पता तो चलता।
मम्मी को सहसा याद आया कि आज वो रात को डिनर पर अपनी कुछ फ्रेंड्स के साथ बाहर गईं थीं। जाते- जाते काम करने वाली लड़की को कह गईं थीं कि आगोश को खाना खिलाने के बाद ही घर जाए।
उसका घर पास ही था। रात को सब काम निपटा कर अपने घर जाती थी। कभी - कभी पीछे सर्वेंट क्वार्टर में भी रुक जाती थी।
हाय, ये क्या यहीं रुक गई?
अब क्या करें? क्या अभी आगोश के कमरे में जाकर बखेड़ा खड़ा करें? रात के तीन बजे।
उनकी भी मति मारी गई थी जो डिनर से लौटने के बाद यहां देखने तक न आईं। सीधी अपने कमरे में चली गईं।
अब वो पछता रही थीं कि उन्होंने लड़की से ऐसा कहा ही क्यों, कि वो आगोश को खाना खिला कर ही जाए। उन्हें पता तो है, आगोश कितने नखरे करता है खाना खाने में। लाटसाहब को कभी ये चाहिए, कभी वो चाहिए, न कोई टाइम का ख्याल, और न बेचारी उस गरीब लड़की का ख्याल! खा लेता अपने आप।
अब देखो, कैसी आफत है, कमरे में जवान नौकरानी और बिगड़ैल जवान लड़का एक साथ पड़े हैं।
शराब पी लेता है तो इसे आगा- पीछा कुछ याद नहीं रहता।
ग़लती तो इस दुष्टा की भी है, अकेले घर में कुंवारे लड़के के कमरे में ऐसे पड़ी है जैसे उसकी ब्याहता बीबी हो। लालची कहीं की। ऐसी भी क्या आग लग रही है इसे? आगोश ने सौ- दो सौ रुपए दिखाए होंगे, और बस!
दोनों ने सोचा होगा कि मैं तो अब सुबह ही आऊंगी... आ भी गई तो कौन सा कमरे में झांकने आऊंगी।
कितनी देर तक मम्मी न जाने क्या- क्या ऊटपटांग सोचती हुई वहीं खड़ी रहीं। पर्दे के पीछे।
चलो, आधी रात को क्या तमाशा करना।
सुबह देखती हूं। इसे हटा ही दूंगी काम से।
मम्मी अपने कमरे में वापस लौट गईं। कुछ देर करवटें बदलती रहीं, फ़िर सो गईं।
सुबह मम्मी नींद से जगीं तो रात की बात दिमाग़ में कौंधी।
उठ कर गलियारा पार करके आगोश के कमरे की ओर आईं तो कमरा बाहर से बंद था।
आगोश ड्राइंगरूम में एक सोफे पर सोया पड़ा था। मम्मी आश्चर्य से आगोश की ओर देखती हुई उसके कमरे को खोल कर भीतर घुसीं।
आगोश के बैड पर रजाई ठीक उसी तरह पड़ी थी, जैसे उन्होंने रात को देखी थी। उन्होंने खींच कर रजाई हटाई तो देखा, दो- तीन पिलो बिखरे पड़े थे, सभी पर कुछ बिखर जाने के निशान थे, जैसे दूध का गिलास गिर कर पूरे बिस्तर पर दूध फ़ैल गया हो। रजाई भी दूध से खराब हुई ही पड़ी थी।
दूध अभी तक भी पूरी तरह सूखा नहीं था, कहीं- कहीं उसकी नमी बाक़ी थी।
मम्मी आगोश को एक चादर ओढ़ाती हुई रसोई की ओर चली गईं।
आज जब आगोश और उसकी मम्मी नाश्ते की मेज़ पर थे तो आगोश बहुत खुश था। वो मम्मी को बता रहा था कि उसने एक सर्विस के लिए कल रात को आवेदन भेजा है।
मम्मी उसे ताकती रह गईं।
- क्या नौकरी है? मम्मी ने लापरवाही से कहा।
- दिल्ली में रहना होगा मॉम। मज़ा आ जाएगा।
- मैं भी चलूंगी तेरे साथ। मम्मी बोलीं।
आगोश ज़ोर से हंसा। फ़िर बोला- तुम कैसे चल सकोगी? अभी तो ट्रेनिंग है, मुझे ट्रेनिंग में इधर - उधर ख़ूब घूमना पड़ेगा। विदेशों तक में।
- अच्छा। तब तो जा। कब जाना है?
- अरे, अभी तो रजिस्टर कराया है, कॉल आयेगी तो इंटरव्यू होगा। फ़िर जाकर एडमीशन होगा। आगोश ने कहा।
नाश्ता करके आगोश अपने कमरे में आया तो मम्मी वहीं थीं। वह आगोश के डबलबैड पर से पूरा बिस्तर हटा कर नौकरानी को पकड़ा रही थीं कि उसे लॉन्ड्री के लिए भेजे जाने वाले कपड़ों में रख दे।
रजाई को वाश करके धूप में रखने के लिए उन्होंने पहले ही पकड़ा दिया था।
मम्मी चुप थीं। नौकरानी भी टुकुर- टुकुर देखे जा रही थी कि रात को दूध गर्म करके जो गिलास वो आगोश के बैड के किनारे तिपाई पर रख गई थी उसका क्या हश्र हुआ।
पूरा बैड बदल जाने के बाद आगोश कूद कर उस पर चढ़ गया था और अब अपने किसी दोस्त को फ़ोन करने में व्यस्त था।
आगोश फ़ोन पर सिद्धांत को बता रहा था कि ये कोई ऐसा - वैसा कोर्स नहीं है, इंटरनेशनल टूर ऑपरेटर की पूरी ट्रेनिंग है।
- यार, मेरा इंटरेस्ट नहीं है। काम तो गाइड का ही है न? सिद्धांत ने उपेक्षा से कहा।
- गाइड का काम नहीं करना, आप दस गाइड रखोगे ख़ुद। इंटरनेशनल टूर प्लान करके आपको उसकी पूरी व्यवस्था का नेटवर्क तैयार करना है। हाई - प्रोफाइल स्टेटस है। बड़ा इन्वेस्टमेंट भी है। कम से कम पंद्रह- बीस फुलटाइम जॉब आपको क्रिएट करने हैं अपने अंडर। एरिया सेलेक्ट करना है, थीम सेलेक्ट करना है, वीसा - पासपोर्ट से लेकर एक्सचेंज के झमेले सेट करने हैं। मज़ा भी है, और चैलेंज भी। घूमना - फिरना अलग से।
- महंगा होगा।
- जो भी हो, सलेक्शन हो जाए तो करना ही है।
- चल तू आगे बढ़, तेरा एक्सपीरियंस देख कर आगे हम लोग भी सोचेंगे। सिद्धांत बोला।
आगोश को ख़ुशी से किलकारी भरते हुए जान कर
सिद्धांत ने कहा- चल, कम से कम थोड़ा बिज़ी हो जाएगा तो तेरी दारू तो छूट जाएगी। तू वैसे भी आर्यन के जाने के बाद से अकेला छटपटाता है, हम लोग को तो तू कुछ गिनता ही नहीं। उसे ही मिस करता है न?
- साले, नाक तोड़ दूंगा तेरी। इतना भावुक मत हो। आज मनन नहीं मिला क्या? आगोश गर्म हो गया।
- वो तो मेरे पास ही बैठा है। सिद्धांत ने कहा।
- तो आ जाओ न, क्या कर रहे हो? चलो, कहीं ड्राइव पर चलते हैं।
- ओके बॉस! सिद्धांत ने फ़ोन काट दिया।