टापुओं पर पिकनिक - 81 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 81

आर्यन जब वापस लौट कर मुंबई गया तब तक भी उसका चित्त स्थिर नहीं था। आगोश की दुर्घटना और मौत की खबर सुन कर वो जिस तरह ताबड़तोड़ यहां से सब काम छोड़ कर निकल गया था उससे भी यूनिट के लोग कुछ अनमने से थे और उससे काफ़ी ठंडे तौर- तरीके से पेश आ रहे थे।
जिस फिल्मी दुनिया में आर्यन रहता था वहां पैसे का नुकसान और मुनाफा बहुत बड़ी बात समझी जाती थी और सब कुछ इसी के इर्द - गिर्द घूमता था। वहां रिश्तों के ऐसे निभाव को कोई तरजीह नहीं देता था, जहां भावना के वशीभूत होकर लाखों रुपए का नुकसान हो जाए।
आर्यन को बेमन से ही सही, पर रात- दिन ज़्यादा समय देकर अपना अधूरा पड़ा काम निपटाना पड़ा।
लेकिन आज जब वो डिनर के बाद गेस्टहाउस के अपने कमरे में बैठा आराम कर रहा था तब उसके पास अचानक एक मैसेज आया।
मैसेज उसी कोरियन से दिखने वाले आदमी ने भेजा था जो कुछ दिन पहले एक रात बिना समय लिए आर्यन से मिलने चला आया था और आर्यन से लंबी गरमा- गरम बहस के बाद गुस्से से उसे गाली देते हुए आर्यन पर हाथ तक उठाने के लिए खड़ा हो गया था।
उस दिन आर्यन ने उसकी ज़बरदस्त पिटाई की थी और उसे लातों से मारते हुए सिक्योरिटी गार्ड के हवाले कर दिया था। गार्ड ने उस पर तरस खाते हुए उसे पुलिस को न सौंप कर सिर्फ़ धमकी देकर भगा दिया था।
आज वही आदमी बार- बार आर्यन से माफ़ी मांग कर गिड़गिड़ा रहा था... बार- बार उससे कह रहा था कि आर्यन उसे माफ़ करदे और एक बार उसे बुला कर उसकी बात सुन ले।
आख़िर आर्यन का दिल पसीज गया। उसने उस गंजे कोरियन से आदमी को मिलने के लिए चले आने की स्वीकृति दे दी।
लगभग आधे घंटे में ही वो विचित्र व्यक्ति हाज़िर हो गया। रिसेप्शन से सूचना मिलने पर आर्यन सतर्क हो कर कमरे में बैठ गया और उसे भेजने के लिए कहा।
उसने आर्यन के कमरे में आते ही आर्यन के पैर छूकर माफ़ी मांगी और बार- बार अपने उस दिन के बर्ताव के लिए शर्मिंदा होने लगा।
आर्यन ने धैर्य से उसकी पूरी बात सुनी।
आर्यन को ये सुन कर मन ही मन बहुत अच्छा लगा कि वो आदमी आर्यन का बहुत बड़ा प्रशंसक है, और उस दिन वह आर्यन से बदतमीजी केवल इस लिए कर बैठा था क्योंकि उसने सोचा- इतने बड़े स्टार से उलझ कर झगड़ा कर लेने से उसे मीडिया की खबरों में तरजीह मिल जाएगी, उसका नाम अखबारों में आ जाएगा और इससे उसका प्रयोजन सिद्ध हो सकेगा।
उसका प्रयोजन था क्या? यह पूछने पर उसने बताया कि वह फ़िल्म जगत से पिछले कुछ समय से जुड़ा हुआ है और वह आर्यन जैसे सितारे के लिए उसके पीआर के रूप में काम करना चाहता है।
दरअसल उसका संपर्क कभी आगोश से भी हुआ था और आगोश ने उसे बताया था कि फ़िल्मस्टार आर्यन उसका दोस्त है।
आगोश के जिक्र से आर्यन का अंतर भीग गया। उसे ये भी याद आ गया कि जब ये शख़्स उसके पास पहले आया था तो बार- बार यही कह रहा था कि मेरी आगोश से बात करा दो।
और जानबूझ कर आर्यन को क्रोध दिलाने की कोशिश में इसने उस वक्त आर्यन से ये कह दिया कि आप झूठ बोल रहे हैं। जबकि इसे तो ये चैक करना था कि कहीं आगोश तो झूठ नहीं बोल रहा था, वो वास्तव में आर्यन का दोस्त है या नहीं।
बस, इसके किए नाटक से आर्यन को तैश आ गया और बात बढ़ गई।
आर्यन उस आदमी की सरल निर्दोष समझ पर मुस्कुरा कर रह गया।
उसने एकाएक नज़दीक आकर फ़िर से आर्यन के पैर पकड़ लिए।
- क्या तुम जानते हो कि आगोश अब इस दुनिया में नहीं रहा? आर्यन ने उसके सामने किसी रहस्य को उजागर करने की तरह कहा।
- मैं जानता हूं सर! वह बोला। कुछ रुक कर वह फ़िर से कहने लगा- मैं तो ये भी जानता हूं कि आगोश ने लोखंडवाला के पास जो फ्लैट और ऑफिस ख़रीदा था वो आपके नाम से खरीदा था।
आर्यन गहरी नज़र से उसे देखने लगा। मानो ये ऐतबार करना चाहता हो कि ये व्यक्ति आगोश के कितना करीब था। क्योंकि ये बात आर्यन को पता चल चुकी थी। आज ही दोपहर में उससे मिलकर एक वकील ने आर्यन को उस प्रॉपर्टी के काग़ज़ सौंपे थे।
आगोश के डेथ सर्टिफिकेट की कॉपी भी उसी वकील सरदारजी ने आर्यन को दी थी।
अगर ये व्यक्ति इतना सब कुछ जानता है तो आर्यन अब ये तौलने की कोशिश कर रहा था कि ये किस हैसियत से ये सब बातें जानता है।
बहरहाल, बातचीत के बाद आर्यन को उस पर पूरा भरोसा हो गया और इस तरह उस शख़्स को आर्यन के निजी सहायक के काम पर रख लिया गया।
रात को पौने दो बजे उस अजनबी ने कॉफी का प्याला टेबल पर रख कर एक बार आर्यन के पैर छुए और ख़ुशी से अभिवादन करके विदा ली।
आर्यन ने इस बाबत अपने प्रोड्यूसर से भी फ़ोन पर थोड़ा मशविरा किया और वहां से ग्रीन सिग्नल मिलने के बाद उसे पूरा इत्मीनान हो गया।
गेस्टहाउस के प्रबंधक को भी बता दिया गया कि आर्यन दो दिन बाद यहां से लोखंडवाला में शिफ्ट करने वाला है।
अगले दिन आर्यन के निजी सहायक मिस्टर बंटिम तेहरानवाला को ड्यूटी ज्वॉइन करने के लिए कह दिया गया।
बंटिम, जिसे आर्यन बंटी कहता था, उसने दो दिन की भागदौड़ में ही आर्यन के फ्लैट और दफ्तर को वेलफर्निश्ड करके सजा डाला।
ऑफिस में दीवार पर आगोश की एक आदमकद फ़ोटो भी लगाई गई।
फ़ोटो के सामने आर्यन की बड़ी सी रिवॉल्विंग कुर्सी थी और उसके सामने काली टीकवुड की एक बेहद कलात्मक मेज।
आर्यन का बेडरूम खासा आरामदायक सजा दिया गया।
आर्यन को ये भी पता चला कि बंटी कभी सुपरस्टार दिव्यमन के लिए भी काम कर चुका है। बंटी ने पूरी ईमानदारी से आर्यन को ये भी बता दिया कि वहां एक लड़की द्वारा उस पर कास्टिंग काउच होने का इल्ज़ाम लगाए जाने पर उसे हटा दिया गया था।
आर्यन हंसा। फ़िर बंटी से बोला- क्या तुमने लड़की को रोल दिलवाने के नाम पर सचमुच फंसाया था?
- नहीं सर। नॉट एट ऑल, पूरा मामला झूठा था। लड़की ख़ुद मेरे आगे- पीछे घूमती थी, क्योंकि मैं इतने बड़े स्टार का काम देखता था न, बाद में मैंने उसे एक ग्रुपफाइट सीन में रखवा भी दिया था। मगर वो लड़की स्टंट डायरेक्टर साहब की पहचान वाली निकली। तो मेरे को कमीशन देना पड़ेगा बोलके मेरा झूठा नाम लगा दिया। मुझे कास्टिंग काउच बोला... आप ही बताओ, क्या मैं आपको ऐसा आदमी लगता हूं कि रोल दिलाने के नाम पर किसी की इज़्ज़त मांगूंगा?
आर्यन खामोश हो गया।
बंटी को लगा कि शायद आर्यन साब उसके ऊपर शक कर रहे हैं तो वो बेचैन हो गया और बिना कुछ कहे ही अपनी सफाई में लगातार बोलता चला गया- सर, आपको सच बोलूं क्या, इधर ये ख़ाली- फोकट झूठा बात उड़ाया है कि लड़का लोग ये एक्स्ट्रा आर्टिस्ट लड़कियों को एक्सप्लॉइट करता, उल्टे ये लड़की लोग उन लोग को उल्लू बनाता। साब सारा दिन नाच- नाच के, फाइट का प्रैक्टिस करके किसमें इतना ज़ोर बचता है कि ये सब करेगा? ये लोग तो हंस- हंस के नौकर के माफिक उन लोग से ख़ुद सब कराता...
आर्यन ने बोर होकर कहा- तुमने जो कुक रखा है वो कहां रहता है?
- वो तो बाजू वाला झोपड़पट्टी में ही है साब, बुलाऊं क्या? बंटी ने कहा।
- और कौन है उसके साथ, उसका परिवार है क्या? आर्यन ने पूछा।
- नहीं साहब, वो तो अकेला ही रहता है। क्यों?
- तो उसको बोलो, इधर ही रहे फुलटाइम। उसे नीचे वाला छोटा रूम दे दो, ऑफिस के बाथरूम के पास।
- ओके... बंटी की आंखों में चमक आ गई। शायद उसे भी एक फुलटाइम मातहत मिल गया रोब जमाने को।
दो- तीन दिन बाद जब गैरेज में आर्यन की अपनी चमचमाती हुई कार भी आकर खड़ी हुई तो आगोश को याद करके आर्यन उदास हो गया।
ड्राइवर नई गाड़ी की पूजा सिद्धि विनायक मंदिर से करवा कर वहां से पेड़े लेता हुआ ही आया था।