साजिद ने आज एक ड्राइवर को बुला लिया था। कम से कम आज तो वो गाड़ी में शान से बैठ कर जाना चाहता था।
बड़े से बैठक कक्ष के बाहर बैठ कर इंतजार करते हुए ड्राइवर ने पांच साल के छोटे से बच्चे को खेलते देखा तो उसे ही बुला कर उससे बात करने लगा।
बच्चे के हाथ में प्लास्टिक की एक छोटी सी छिपकली लग रही थी और वो उसी से खेल रहा था।
ड्राइवर भी अठारह- उन्नीस बरस का एक पढ़ा- लिखा सा लड़का था। बच्चे के हाथ में छिपकली देख कर डरने का नाटक करते हुए बोला- ओहो, हमको तो डर लगता है, हटाओ इस सांप को यहां से।
बच्चा बोला- डरो मत ये सांप नहीं है, छिपकली है!
- पर हमें तो छिपकली से भी डर लगता है। लड़के ने कहा।
- ओ हो, इतने बड़े होकर एक छोटी सी छिपकली से डरते हैं... ये तो झूठमूट की है। हमारे बावर्चीखाने में तो सच्ची की छिपकलियां भी रहती हैं। बच्चा बोला।
- अरे तब तो वो खाने में भी गिर सकती हैं?
- कल तो एक सालन में गिर भी गई थी।
- फ़िर तो सारा सालन फेंकना पड़ा होगा? लड़के ने पूछा।
- अरे नहीं, जिद्दी भाई ने निकाल दी। सारा क्यों फेंकते, बस छिपकली फ़ेंक दी... उसकी बात अधूरी रह गई क्योंकि तभी कमरे में साजिद चला आया था।
साजिद को देख कर ड्राइवर लड़का अदब से खड़ा हो गया।
- चल, लगा ले गाड़ी। साजिद ने कार की चाबी लड़के को देते हुए कहा।
साजिद के ठाठ आज निराले ही थे। उसके काले उड़ते हुए बाल चमकते चेहरे पर गिर रहे थे जैसे अभी- अभी पार्लर में कोई इंपोर्टेड ट्रीटमेंट लेकर आया हो। उसने हल्के बदामी रंग का एक शानदार पंजाबी सूट पहना हुआ था जिसके साथ पैरों में सुनहरी जयपुरी जूतियां बहुत जम रही थीं।
साजिद के अब्बू भी लगभग ऐसे ही पीले रंग के सूट में थे। साजिद की अम्मी का तरबूजी लाल दुपट्टा उनके रुपहले सूट के साथ मिलकर अब्बू के झिलमिल करते कपड़ों पर जैसे फूंक सी मार रहा था।
अम्मी - अब्बू के बैठते ही छोटा बच्चा भी कार के पास दौड़ा आया और जब उसने देखा कि सब तरफ़ के शीशे बंद हैं तो ड्राइवर की विंडो के पास जाकर अपना हाथ बढ़ा कर अपनी नक़ली छिपकली उसे पकड़ाते हुए बोला- ये ले जाओ, इससे जिद्दी भाई की दुलहन को डरा देना...! ड्राइवर लड़का हंसने लगा।
साजिद झेंप गया।
- तुझे कोई और नहीं मिली जो इस पंजाबन के पीछे पड़ गया? अम्मी ने कुछ प्यार से साजिद की ओर देखते हुए मज़ाक सा किया।
अब्बू बोल पड़े- बेगम, रहम करो, अब लड़की के दरवाज़े पर जा रही हो... मीन- मेख निकालने का वक्त गुज़र गया। अब तो उसे घर लाने की तैयारी करो।
- तैयारी क्या करनी है, वो तो आप ही चली आनी है, पंजाबी लड़की है...
- क्या पंजाबी- पंजाबी करे जा रही हो... पंजाब कोई इंडिया से बाहर है... तुम ख़ुद भूल गईं, तुम तो पाकिस्तान से..? अब्बू ने कुछ तल्खी से कहा।
- अब्बा प्लीज़! कोई और टॉपिक... साजिद ने आगे वाली सीट से पीछे की ओर मुंह घुमा कर कहा।
अम्मी कुछ रुक कर बोलीं- मुझे क्या करना है। वो पंजाब से आए हों कि बंगाल से, मेरी बला से। भूल गए... जब बेकरी के लिए जगह लेने को मारे- मारे फ़िर रहे थे... तुम ख़ुद ही बताते थे कि हर मकान - मालिक यही पूछता था कि पंजाबी तो नहीं हो? पंजाबी को नहीं देना।
- ओ हो तुम भी कहां पच्चीस बरस पहले की बात लेकर बैठी हो! अब्बू ने बेमन से कहा।
- तुम कितना सुधर गए पच्चीस बरस में, जो दुनिया बदल गई होगी? अम्मी ने उलाहना दिया।
साजिद ने ज़रा तेज़ वॉल्यूम से गाड़ी में म्यूज़िक ऑन कर दिया।
अम्मी ने मुंह घुमा कर बाहर की ओर कर लिया। अब्बू भी कान कुरेदने लगे।
मनप्रीत के घर के ड्राइंग रूम में बहुत अच्छी सी सजावट थी। ऐसा लगता था मानो उसके मम्मी और पापा ने बड़ी तैयारी कर रखी हो।
कुछ देर बाद मनप्रीत भी भीतर चली आई। सबको नमस्ते करके बैठी तो साजिद की अम्मी लगभग घूर कर उसकी ओर देखने लगीं। मनप्रीत कुछ असहज तो हुई पर तुरंत ही चेहरे पर मुस्कान लाती हुई ख़ुद साजिद की अम्मी से ही बोल पड़ी- आंटी कोई परेशानी तो नहीं हुई रास्ते में?
- परेशानी क्या होती, हम कौन से लद्दाख से आ रहे थे बेटी! जवाब साजिद के अब्बू ने दिया। उनकी बात पर सब हंस पड़े।
फ़िर अब्बू ने साजिद की अम्मी से कहा- लो भई, अपनी बहू से पूछ लो तुम्हें क्या पूछना है, बैठी है सामने।
- मैं क्या पूछूंगी, न मैं इसके जितनी पढ़ी - लिखी और न मैं इसके जितनी समझदार! अम्मी बोलीं।
मनप्रीत की मम्मी जैसे इस बात पर मन ही मन गदगद हो गईं।
- तू वो तेरा स्वेटर दिखा अम्मी जी को, जो तूने ख़ुद बनाया है... मम्मी के ऐसा कहते ही मनप्रीत को थोड़ा अजीब सा लगा पर बेमन से उठने लगी।
तभी साजिद की अम्मी बोल पड़ीं- रहने दीजिए, क्या देखना है, अमृतसर की होज़री तो दुनिया भर में मशहूर होती है, वहां के होते हुए भी आपने स्वेटर खुद बनाया है तो बेहतरीन ही बनाया होगा।
मनप्रीत धीरे से बोल पड़ी- आंटी अमृतसर की नहीं, लुधियाना की होज़री फेमस होती है।
मनप्रीत की मम्मी बोलीं- हम लोग अब तो बीस साल से यहीं हैं, पर वैसे हम अमृतसर के नहीं, पठानकोट के हैं।
साजिद की अम्मी कुछ विचलित सी हुईं फ़िर बात बदलने की गरज से बोल पड़ीं- मुझे तो आपकी चूड़ियां बहुत पसंद आईं, मुरादाबाद की होंगी ख़ास।
मनप्रीत बोल पड़ी- आंटी, चूड़ियां तो फिरोजाबाद की मशहूर होती हैं।
- हां, वही। अम्मी ने कहा।
मनप्रीत की मम्मी ने भांप लिया कि दो- तीन बार ग़लत जानकारी पर घेर लिए जाने पर शायद साजिद की अम्मी कुछ खिन्न सी हो गई हैं तो उन्होंने उनका मनोबल फ़िर से लौटा लाने के ख़्याल से कहा- जी, बाज़- बाज़ चीज़ कहीं - कहीं की ही फेमस हो जाती है, जैसे आपके अलीगढ़ के ताले तो दुनिया भर में खूब सराहे जाते हैं।
अब्बू और अम्मी ने कुछ हैरानी से एक दूसरे की ओर देखा फिर अब्बू कुछ बुझे से स्वर में बोले- अब तो मुद्दत हो गई अलीगढ़ छोड़े।
- तो शादी कब रखना चाहेंगे? बातचीत में मनप्रीत के पापा की पहली एंट्री हुई।
साजिद भी कुछ ख़ुश सा दिखाई दिया।
बातचीत का रुख इस ओर होते ही मनप्रीत और उसकी मम्मी उठ कर खाने- पीने की चीज़ें लाने, रखने और उनकी व्यवस्था में व्यस्त हो गईं। ढेर सारी चीज़ें परोसी जा रही थीं।
साजिद की अम्मी ने कनखियों से आती हुई प्लेटों की ओर देखते हुए कुछ तसल्ली से साजिद की ओर देखा।
- चलिए ये तो बहुत अच्छा रहा कि बेटे ने अब बेकरी की ज़िम्मेदारी पूरी तरह संभाल कर आपको कुछ आराम दिया। मनप्रीत के पापा बोले।
- हां जी, अब तो ये जाने इसका काम जाने... अब तो अपने छोटे भाई - बहनों को पढ़ा- लिखा कर लायक बनाने की ज़िम्मेदारी यही संभाले। साजिद के अब्बू की इस बात पर मनप्रीत की मम्मी कुछ सतर्क सी होकर अब्बू की प्लेट में दूसरा रसगुल्ला रखते- रखते रुक गईं। दूसरे रसगुल्ले की जगह उन्होंने एक चम्मच रख कर प्लेट अब्बू की तरफ़ बढ़ा दी।
खाने - खिलाने का दौर चल पड़ा।
अगले दिन साजिद मनप्रीत से ख़ूब लड़ा। उसे जब मनप्रीत की चालाकी समझ में आई तो बहुत देर हो चुकी थी, अब कुछ नहीं हो सकता था।
असल में मनप्रीत ने पहले दिन ही साजिद से फ़ोन करके कह दिया था कि यहां आते समय वो गाड़ी ख़ुद न चलाए। मनप्रीत ने कहा कि यहां घर में पापा के पास एक ड्राइवर आया हुआ है, मैं उसी को भेज दूंगी। बस, ये ड्राइवर लड़का बाइक लेकर वहां पहुंच गया।
और अब शरारती मनप्रीत ने साजिद को बताया कि वो ड्राइवर नहीं, मनप्रीत के भाई का दोस्त था जिसे रास्ते में अम्मी - अब्बू की बातें सुनने के लिए ही भेजा गया था।
साजिद ने मनप्रीत की नाक पकड़ी और ज़ोर से मसल दी!