टापुओं पर पिकनिक - 54 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 54

रविवार को दोपहर में आगोश ने एक विशेष कार्यक्रम घर पर ही आयोजित किया।
आर्यन के उन दिनों टीवी पर आ रहे सीरियल के कुछ अंश आगोश के जापानी मित्र को दिखाने के लिए सभी लोग आगोश के बंगले के ड्राइंगरूम में इकट्ठे हुए।
तेन के लिए ये अनुभव किसी चमत्कार से कम नहीं था कि जिस एक्टर को वो स्क्रीन पर देख रहा था वो रेशमी पठान सूट पहने उसकी बगल में ही बैठा हुआ था।
केवल आर्यन ही नहीं, बल्कि साजिद, मनन, सिद्धांत भी मौजूद थे।
मनप्रीत और मधुरिमा ने कहा था कि वो दोनों शो में उपस्थित नहीं रह सकेंगी लेकिन उसके बाद शाम के डिनर में ज़रूर शामिल होंगी।
आगोश ने ये ख़ास भोज उसी रूफ़टॉप रेस्त्रां में रखा था जहां पहली बार अकस्मात एक संयोग के बाद आर्यन को ये काम मिला था।
तेन इस बात पर चकित था कि आर्यन जैसे चॉकलेटी ब्वॉय ने एक्टिंग के मैदान में कैसी जबरदस्त अभिनय रेंज प्रस्तुत की थी।
जब भी सीरियल का कोई संवेदनशील एक्टिंग पीस पर्दे पर आता, तेन आर्यन की पीठ पर अपनी हथेली मसलता हुआ उसे अपने से सटा लेता।
आर्यन के एक बिलख कर रोने के दृश्य के बाद तो तेन ने आर्यन के बालों में हाथ फेरते हुए उसे गले से ही लगा लिया था।
सिद्धांत ने इन सब ख़ास क्षणों को कैमरे में क़ैद किया था।
- तुमने क्यों किया?
तेन के इस सवाल पर आर्यन चौंक कर तेन की ओर देखने लगा। शायद उसे ये सवाल ही समझ में नहीं आया कि तेन क्या पूछना चाहता है।
वह आगोश की ओर जिज्ञासा से देखने लगा।
आगोश ने तेन के सवाल को ठीक करके आर्यन को समझाया। मतलब, तेन ये जानना चाहता था कि आर्यन एक्टिंग के क्षेत्र में क्यों गया?
सवाल आर्यन से पूछा गया था लेकिन इसका जवाब मनन ने दिया- भारत में जॉब्स और जॉब - सीकर्स के बीच में बड़ा अंतर है, मतलब यहां काम चुनने की स्वतंत्रता सभी काम करने वालों को नहीं है। संयोग इसमें एक बड़ा रोल प्ले करता है।
- नहीं, डोंट एग्री। मैं सहमत नहीं, जिस तरह से ये लड़का पर्दे पर बिखरा हुआ है, मेरा मतलब छाया हुआ है, ये संयोग नहीं हो सकता। ऐसा लगता है जैसे इसका जन्म यही करने के लिए हुआ है।
सभी ने ताली बजाकर खुशी जाहिर की।
रात को डिनर के बाद तेन ने आगोश के सभी मित्रों को यादगार के तौर पर तोहफ़े भी दिए। आगोश को तेन का ये रूप बेहद प्यारा लगा।
- ओह, तोहफ़े तुम हमें दोगे? ये तो हमें देने चाहिए तुम्हें। आगोश ने तेन से कहा।
- नहीं दोस्तो, मैं जिस जगह से आता हूं वहां यही रिवाज़ है... मेहमान मेज़बानों के लिए उपहार छोड़ता है।
- क्या मतलब? तुम... मेरा मतलब है आप.. कहां से आए हैं? क्या जापान से नहीं? पर जापान में तो ऐसा रिवाज़ नहीं है। मधुरिमा ने कहा।
- ग्रेट! देखा मेरी सहेली कितनी इंटेलीजेंट है? इसने फ़ौरन पकड़ लिया। मनप्रीत बोली।
तेन जैसे कुछ सोच कर बोला- मैं जापान के किसी बड़े शहर में नहीं रहता। मेरा घर एक छोटे से द्वीप में है... जिसे आप के देश में कबीला कहते हैं, वैसा कुछ परिवारों का ही गांव है मेरा। एक वैसे ही ट्राइबल कम्युनिटी से मैं हूं! तेन ने समझाया।
अगले दिन आगोश और तेन सुबह - सुबह वापस चले गए। आर्यन को भी दो- तीन दिन में वापस चले जाना था। उसे अपने काम के सिलसिले में ही महाबलेश्वर पहुंचना था।
आगोश और तेन के चले जाने के बाद अगले दिन एक ज़बरदस्त तूफ़ान आ गया।
ये तूफ़ान कोई हवा- पानी या भूकंप का बवंडर नहीं था बल्कि इन सब दोस्तों के जीवन और रिश्तों के बीच अचानक आ गया एक जलजला था।
हुआ ये कि अगली सुबह सभी ने तेन के दिए हुए तोहफ़े देखे। सबने एक दूसरे को फ़ोन करके इनकी जानकारी दी। एक दूसरे को बताया कि किसे क्या मिला। और बस, तूफ़ान आ गया।
भला ऐसा भी कहीं होता है।
आगोश के पास भी खबर पहुंची।
आगोश की समझ में कुछ नहीं आया। किसी की समझ में कुछ नहीं आया।
सबके सब एक अजीब सी उलझन में पड़ गए। तेन ने ऐसा क्यों किया?
- ये सब क्या है यार? साजिद ने सिद्धांत ने कहा।
मनप्रीत का मुंह खुला का खुला रह गया।
अच्छा हुआ कि मधुरिमा ने अपनी मम्मी के सामने वो प्यारा सा छोटा लिफ़ाफ़ा नहीं खोला। नहीं तो न जाने क्या हो जाता।
आर्यन गंभीर हो गया। उसे लगा कि ज़रूर कोई न कोई गड़बड़ हुई है। तेन से कोई भूल हुई होगी। एक तरफ़ तो तेन कह रहा था कि वो किसी कबीले का रहने वाला है, एक द्वीप पर बसे छोटे से गांव का रहवासी है और दूसरी तरफ ऐसा? यदि ये भूल से भी हुआ तो ऐसी भयानक भूल? आर्यन अब पछता रहा था कि उन सब लोगों ने तेन के सामने ही उसके दिए तोहफ़े खोलकर क्यों नहीं देख लिए।
मनन को तो ये गोरख- धंधा बिल्कुल ही समझ में नहीं आया। ये सब क्या है।
सुबह से सब बेचैन थे। कम से कम पांच - सात बार आगोश के पास भी फ़ोन गया था लेकिन आगोश को आज सुबह से ही तेन मिला नहीं था। शायद किसी काम से इधर- उधर कहीं गया हो। तेन मिले तो वो उससे पूछे। और पूछे तो सबको बताए। उसे क्या मालूम कि तेन ने ऐसा क्यों किया?
पागल है क्या तेन? अरे नहीं- नहीं, इतने दिनों से आगोश के साथ है वो, कभी उसने ऐसा कोई काम नहीं किया कि उसे पागल समझा जाए।
इसमें ज़रूर कोई रहस्य है, साजिद को लगा।
शाम को सब इकट्ठे हो गए। आर्यन ने कई बार आगोश को फ़ोन किया था दिल्ली में, मगर हर बार वही जवाब... तेन मिला ही नहीं है, न जाने कहां चला गया है, आयेगा तो पूछूंगा।
असल में हुआ ऐसा कि तेन ने आगोश के सभी दोस्तों को उपहार में पैसे दिए थे।
यदि वह अपने देश या किसी अन्य देश की मुद्रा या सिक्के स्मृति चिन्ह के रूप में भेंट करता तब भी ठीक था किंतु उसने तो सभी को भारतीय रुपए दिए थे।
और मज़ेदार बात ये थी कि सबको पैसे भी बराबर नहीं दिए थे बल्कि सब मित्रों को दी गई राशि में भारी अंतर था।
किसी खेल की तरह किया था तेन ने। मानो कहीं से नकली नोट ले आया हो और आंख बंद करके सबको बांट रहा हो।
ये सब करते हुए वह बिल्कुल कोई मज़ाक कर रहा हो, ऐसा भी नहीं था। वह पर्याप्त संजीदा लग रहा था और झिझकते हुए, अपनेपन के साथ सब मित्रों को तोहफ़े के रूप में ये सुंदर लिफ़ाफे बांट रहा था।
वह पूरे होश हवास में जिम्मेदारी से ये काम करता दिखाई दे रहा था पर उसका ये काम घोर गैर जिम्मेदाराना था।
कोई भी इसे खेल ही समझेगा, पर ऐसा कहीं होता है भला? खेल- खेल में भी भला कोई ऐसा करता है?
अब आप ही देखिए।
उसने मनप्रीत को सात रुपए दिए थे। मनन के लिफ़ाफे में एक सौ बाईस रुपए थे। सिद्धांत को चौहत्तर रुपए और एक छोटा सा की रिंग, यानी चाबी का गुच्छा मिला था। आर्यन को दिए गए लिफ़ाफे में एक क्रॉस के साथ पतले काग़ज़ में लिपटे हुए चार चांदी के सिक्के थे ...लेकिन मधुरिमा के लिफ़ाफे के साथ एक डिब्बा भी था जिसमें पूरे एक करोड़ सत्ताइस रुपए थे... उसने आगोश के नाम का भी एक लिफ़ाफ़ा बनाया था पर उसे आगोश को न देकर उसकी मम्मी को दे गया था। आगोश ने तो इसे नहीं देखा था पर मम्मी ने इसे देख कर रख दिया था। इसमें सोलह रुपए थे।