टापुओं पर पिकनिक - 99 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 99

इतिहास कभी न कभी अपने आप को दोहराता है।
भारत का तमाम फ़िल्म मीडिया आज इसी गुदगुदाने वाली दिलचस्प खबर से भरा पड़ा था।
केवल फ़िल्म मीडिया ही क्यों, सभी महत्वपूर्ण खबरिया चैनलों पर इस घटना को जगह मिली थी।
वर्षों पहले एक फ़िल्म की शूटिंग के दौरान आग लगने पर सुनील दत्त ने फ़िल्म में उसकी मां की भूमिका निभा रही अभिनेत्री नर्गिस को बचाया था और देखते- देखते उन दोनों का विवाह ही हो गया। वो पति- पत्नी बन गए।
ठीक वैसा ही वाकया अब कई दशक के बाद एक बार फ़िर पेश आया जब एक सर्बियाई अभिनेत्री पर्सी ने फ़िल्म में अपने पिता का रोल कर रहे अभिनेता आर्यन को डूबने से बचाया और दोनों के बीच प्रेम- अंकुर फूट पड़ा।
घटना जापान के एक द्वीप की थी जहां अभिनेता आर्यन अपनी फ़िल्म में दोहरी भूमिका कर रहा था।
एक आदिवासी पशु ट्रेनर, जो अपनी बेटी से उसके बालपन में अलग हो गया था, शूटिंग के दौरान दुर्घटनावश सचमुच नाव टूटने से पानी में गिर कर गोते खाने लगा। आर्यन को गहरे पानी में गोते खाते देख पर्सी नामक इस सर्बियाई अभिनेत्री ने, जो फ़िल्म में उसकी बेटी बनी थी, अपनी लाइफ बोट के जरिए जान पर खेलकर उसे बचाया।
फ़िल्म में आर्यन की दोहरी भूमिका थी और दूसरी भूमिका में वो एक युवा समुद्रीडाकू बना हुआ था।
ये शूटिंग दक्षिणी जापान के एक टापू पर चल रही थी।
इस फ़िल्म के क्लाइमैक्स दृश्य में एक विचित्र टापू के पास से गुजरते हुए एक यात्री जहाज को समुद्री डाकुओं द्वारा लूटा जाना फिल्माया जा रहा था।
पर्सी एक डॉक्टर की भूमिका में थी और इस यात्री जहाज में सवार थी।
संयोग से इस जहाज में भ्रमण के लिए आए डॉक्टरों का एक पूरा दल ही सवार था।
इसी जहाज पर विशेष अनुमति के तहत कुछ दृश्य फिल्माए जा रहे थे।
अचानक जहाज पर एक ज़ोरदार धमाका हुआ और सहसा दुर्घटना-वश जहाज डूबने लगा।
जबकि वास्तव में ये धमाका समुद्री डाकुओं के जहाज पर होना था और परिणाम स्वरूप इस जहाज को डूब जाना था। इसके लिए जहाज का साधारण लकड़ी का एक ढांचा विशेष रूप से बनवा कर सेट पर मंगवाया गया था।
लेकिन न जाने कैसे विस्फोटक उसी जहाज पर फट गया जिस पर पर्यटक यात्री सवार थे।
हड़कंप मच गया।
पहले तो किसी को ये समझ में ही नहीं आया कि ये क्या हुआ, पर लोगों के चीखने- चिल्लाने से स्थिति स्पष्ट होते ही सब सकते में आ गए। बचाव की कोशिश शुरू हो गई।
फ़ौरन स्थानीय पुलिस की मदद से हेलीकॉप्टर द्वारा एयरलिफ्ट से उस छोटी नाव को मुश्किल से बचाया जा सका जिस पर नायिका पर्सी सवार थी। लेकिन पानी में बहते आर्यन के नज़दीक से गुजरते समय पर्सी ने फुर्ती से नाव से लटक कर आर्यन को सहारा दिया और किसी तरह उसे बचा लिया।
शेष सभी सवार इस हादसे में मारे गए।
लगभग सत्रह- अठारह पर्यटक इस सागर- समाधि में लीन होकर हमेशा के लिए उसमें समा गए। उन्हें अकारण अपने प्राणों से हाथ धोना पड़ा। शायद उनकी मौत ही उन्हें वहां खींच ले गई।
शूटिंग रोक दी गई।
सब तितर- बितर हो गए।
दहशत में डूबे आर्यन ने तत्काल टोक्यो आकर भारत का रुख किया और वो इस हादसे के बाद मुंबई न जाकर सीधे अपने घर जयपुर चला आया।
पर्सी भी तत्काल उजास बर्मन के साथ मुंबई के लिए निकल गई।
प्रोड्यूसर महोदय गिरफ़्तारी के भय से अंडर ग्राउंड हो गए। उनकी कोई खोज- खबर नहीं मिली।
तेन को भारी नुकसान भी सहना पड़ा और गहरी निराशा भी हाथ लगी।
पर्यटक के रूप में आए दल के लोगों के शव तक न मिल सके। समुद्र के गहरे पानी की खौफ़नाक मछलियां शायद उन्हें अपना आहार बना कर लोप हो गईं।
गनीमत रही कि टापू के खूंखार जानवर धमाके के बाद पानी के भय से घने जंगलों की ओर भाग गए और उन्होंने यूनिट के लोगों को जान का नुक़सान नहीं पहुंचाया।
क्या सोचा गया था और क्या हो गया।
तेन की सारी व्यवस्था उलझ गई। वह हारे हुए जुआरी की तरह अपने कुछ लोगों को लेकर भागते भूत की लंगोटी पकड़ने की मुहिम में जुटा रहा।
दक्षिण जापान का वह शांत इलाका कुछ दिन के लिए दुनिया के नक्शे पर सुर्खियां बन कर छा गया।
मुंबई के मीडिया में खबर उड़ी कि नई अभिनेत्री पर्सी अपनी पहली ही फिल्म के नायक आर्यन के प्रेम में पड़ गईं और जल्दी ही दोनों विवाह करने वाले हैं।
अख़बार उन नयनाभिराम तस्वीरों से भर गए जो जापान के पास शूटिंग के दौरान आर्यन और पर्सी ने साथ - साथ वक्त बिताते हुए खिंचवाई।
एक अखबार ने तो एक्सक्लूसिव इंटरव्यू के थ्रू ये भी बताया था कि दोनों की शादी एक भव्य डेस्टिनेशन वेडिंग की तरह कुछ समय बाद जयपुर में संपन्न होगी।
पर्सी सारे हादसे से घबरा कर सर्बिया वापस चली गई थी। उसका फ़ोन स्विचऑफ था।
उधर आर्यन भी जो कुछ हुआ, उससे हतप्रभ था। वह भी जयपुर में अपने घर जाने के बाद से मीडिया के फ़ोन तक नहीं उठा रहा था।
आर्यन इतना घबराया हुआ था कि मुंबई में सारे मामले पर नज़र रखने के लिए बंटी को फ़ोन पर फ़ोन मिला रहा था मगर उससे बात ही नहीं हो पा रही थी।
उसे अपने इस सहायक पर खीज भी हो रही थी कि हनुमान की तरह उसके सब कष्टों को हरने वाला इस मुसीबत में कहां लोप हो गया था।
उधर जयपुर में अलग मातम पसरा हुआ था। आर्यन ये सुन कर विक्षिप्त सा होकर अपने घर में पड़ा था कि मनन, मान्या और आंटी के जापान से लौट कर आने के बाद उस विशाल हॉस्पिटल में आग लगने से सब भस्म हो गया जहां आगोश की मूर्ति लगाई जाने वाली थीं।
पूरा अस्पताल परिसर आग के ढेर में तब्दील हो गया।
आंटी ज़बरदस्त सदमे में थीं।
जापान से कोरियर कंपनी के माध्यम से आई आगोश की मूर्ति पैकिंग खोले बिना ही उपेक्षित सी एक ओर पड़ी थी।
जहां उसे शान से खड़ा होना था वो परिसर ही राख का मैदान बना पुलिस के सख़्त पहरे की निगरानी में कसमसा रहा था।
प्रॉपर्टी डीलर सिद्धांत अलग दुखी था क्योंकि कुछ दिन पहले ही आंटी ने उससे जयपुर के अपने बंगले और क्लीनिक को बिकवाने की पेशकश की थी। वह सब नापजोख करवा कर कई पार्टियों से बात भी कर चुका था।
लेकिन आंटी ने उसे जो प्लान बताया था वह अब तहस- नहस ही हो गया था।
जयपुर का अपना बंगला और क्लीनिक बेच कर डॉक्टर साहब अब स्थाई रूप से दिल्ली में ही शिफ्ट होने की तैयारी में थे।
लेकिन ऐसे मुश्किल वक्त में भी डॉक्टर साहब आंटी के फ़ोन नहीं उठा रहे थे।
ये भी पता नहीं चल पाया था कि डॉक्टर साहब इस समय हैं कहां। हॉस्पिटल में भीषण अग्निकांड के बाद से ही उनका कुछ पता नहीं चल पाया था।
कमाल है, पुलिस से छिपें तो छिपें, पर कम से कम पत्नी का फ़ोन तो उठाएं।
नहीं, उनसे कोई संपर्क नहीं हो पा रहा था। कभी स्विच ऑफ, तो कभी रूट बिज़ी। कभी कवरेज़ क्षेत्र से बाहर तो कभी कोई जवाब नहीं!
हे भगवान, इसी दिन के लिए लिए थे अग्नि को साक्षी मानकर सात फेरे???
आंटी उन पर बहुत गुस्सा थीं।
दिमाग़ इतना खराब हो रहा था कि यूं लगता था, पागल ही हो जाएंगी।
मनन सुबह -शाम बार -बार फ़ोन करता- "मौसी, कुछ पता चला मौसा जी का?"
बेचारा समय मिलते ही घर का चक्कर भी काट जाता। मान्या उसे बार- बार दौड़ाती।
पर आंटी का वही जवाब- क्या पता, आसमान खा गया या ज़मीन निगल गई? बेटा, तू तो मुझे कहीं से थोड़ा सा जहर ही लाकर देदे। मैं इस झंझट से मुक्ति पाऊं।
आंटी गुस्से और हताशा में ये भी भूल जाती थीं कि अब दामाद बन जाने के बाद से वो मनन को "आप" और मनन जी बोलने लगी हैं। जहर लाने की दरियाफ़्त करते समय तो वो उसे बेटा बना कर "तू" ही कह बैठतीं।
सच है, ये औपचारिक दिखावे तो सब अच्छे समय के लिए हैं।
यहां तो ज़िन्दगी ही दांव पर लगी पड़ी है, रिश्तों की कौन कहे।
( इस रोचक उपन्यास का 100 वां अंतिम अंश कल अवश्य पढ़ें )