टापुओं पर पिकनिक - 42 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 42

अब आर्यन भी आगोश से डरने लगा। न जाने क्या था कि उस प्यारे से दिलदार लड़के से एक- एक करके सब डरने लगे थे।
आगोश के डैडी इसलिए डरते थे कि कहीं उसके सामने उनका कोई राज न फाश हो जाए।
उसकी मम्मी इसलिए डरती थीं कि कभी किसी बात पर बाप- बेटे आपस में न टकरा जाएं।
उनके घर की नौकरानी इसलिए डरती थी कि वो इस दिनोंदिन उद्दंड होते जा रहे जवान लड़के के सामने घर में अकेली न पड़ जाए। ऐसे में या तो उसकी नौकरी जाए या फिर उसकी अस्मत।
उधर बेचारी मधुरिमा इसलिए डरती थी कि कहीं उसके पापा को ये न पता चल जाए कि उनके यहां कोई किरायेदार नहीं आने वाला। ये कमरा तो आगोश ने कभी- कभी खुद यहां रुकने और दोस्तों के साथ तफ़रीह करने के लिए ले लिया है।
और अब...
और अब आगोश का बचपन का जिगरी दोस्त आर्यन भी उससे डरने लगा।
..क्यों?
... क्योंकि पागलखाने के डॉक्टर अब उनकी जबरन रोगी बनाई गई पागल औरत की मदद करने के लिए उसकी ओर से पुलिस में रिपोर्ट दर्ज़ कराने की तैयारी करने लगे थे। उन्हें ये सारी जानकारी आरंभ में आर्यन के माध्यम से ही मिली थी, पर अब कमोवेश इसकी पुष्टि भी हो गई थी।
जब से आर्यन को पता चला कि ये पागल औरत वही है जिसके पीछे आगोश का ड्राइवर सुल्तान और उसका रिश्तेदार अताउल्ला पड़े हैं तो उसे ये समझते देर न लगी कि ये दोनों तो आगोश के पिता के सिर्फ़ मोहरे ही हैं, असली अपराधी के रूप में संदेह की लपटें तो आगोश के डैडी, अर्थात डॉक्टर साहब तक ही जाती हैं।
वह ये सोच कर डरता था कि अब अगर कभी ये ज्वालामुखी फटने लगा तो इसका उबलता लावा उसके प्यारे दोस्त आगोश के घर को ही घेर लेगा।
आर्यन इस मामले में स्तब्ध होकर ठहर गया था। और डरने लगा था आगोश के सामने पड़ने से।
उधर आगोश का हाल ये था कि वह जब भी आशंका या निराशा के अंधेरे में घिरता उसे केवल और केवल अपने दोस्त आर्यन का कंधा ही सिर रख कर रो पाने के लिए दिखाई देता था।
वह जानता था कि उसकी मम्मी ने तो हर भारतीय नारी की तरह अपने पति के साथ सातों वचन निभाने के लिए अग्नि के साक्ष्य में सौगंध ली हुई है।
अब आगोश या तो सब कुछ भुला कर इस कीचड़ में ही तैर कर ऐश करने का आनंद ले या फिर अपने भविष्य को अंधेरे की धुंध में कहीं ढूंढने की कोशिश अकेले ही करे।
बेचैन बैठे आगोश का दिल कर रहा था कि आज वह फ़िर ख़ूब शराब पिए। उसने आर्यन को फ़ोन किया।
उसे आर्यन से पता चला कि आर्यन कल सुबह जल्दी ही शहर से बाहर जा रहा है। वो लोग सुबह चार बजे ही निकलेंगे इसलिए आज ये संभव नहीं था कि आर्यन रात को आगोश के घर रुके।
पर आगोश न माना। वह बोला- अच्छा, चल तू रात को यहां मत रुकना। खाना खाकर देर रात वापस लौट जाना।
आर्यन हंसा, बोला- साले मुझे पता है, तू दारू पीते- पीते आधी रात कर लेगा और उल्टा हो जाएगा। फ़िर मुझे अकेले आधा- अधूरा खाना खाकर दौड़ना पड़ेगा। न नींद पूरी होगी और न तेरी ज़िद। सुबह जाना भी है।
- यार इतने क्या नखरे कर रहा है, नींद तो सुबह गाड़ी में पूरी कर लेना, उस बिल्ली की गोद में..
आर्यन ने उसकी बात बीच में ही काट कर सख्ती से कहा- मैडम नहीं जा रही हैं हमारे साथ। वो बाद में आएंगी। अभी हम सिर्फ दो लोग जा रहे हैं, हमें लोकेशन देखनी भी है और बुक भी करनी है।
आगोश बोला- फ़िर यहां आजा, सुबह मैं तुझे ले चलूंगा वहां।
- बाबू, समझा कर! मैं यहां कोई यूनिट का मालिक नहीं हूं जो सब पर अपना हुकुम चला दूं, मुझे जैसे इंस्ट्रक्शंस मिलते हैं, वो करना पड़ता है। आर्यन बेबसी से बोला।
- यानी तू नहीं आयेगा?
- नहीं!
आगोश ने पैंतरा बदला, बोला- तो फ़िर सुन, ध्यान से सुन, मैं अकेले ही बैठ कर दारू पियूंगा और आज रात को रोक कर उस काम करने वाली लड़की को अपने कमरे में डाल लूंगा।
- क्या बकवास कर रहा है साले, ये भी अच्छी ज़िद है कि तेरी बात नहीं मानी तो तू घर की नौकरानी का ही रेप कर देगा। होश में है या नहीं? मम्मी कहां हैं? तू उन्हें फ़ोन दे। मैं अभी तेरी परेड करवाता हूं। आर्यन ने गुस्से से कहा।
तभी फ़ोन कट गया।
आर्यन घबरा कर बार- बार "हैलो- हैलो" करता रहा पर उधर से फ़ोन के घरघराने के साथ ऐसी आवाजें आने लगीं मानो किसी ने फ़ोन को उठा कर फेंक दिया हो।
वह बौखला कर बार - बार फ़ोन मिलाता रहा।
इधर अजीब ही सीन हुआ।
आगोश का ध्यान अब तक इस बात पर गया ही नहीं था कि मम्मी न जाने कब से उसके कमरे के दरवाज़े पर खड़ी - खड़ी उसके और आर्यन के बीच हो रही बातें सुन रही हैं।
मम्मी एकाएक कमरे के भीतर आईं।
उन्होंने आव देखा न ताव, और ज़ोर से खींच कर एक थप्पड़ आगोश के गाल पर जड़ दिया।
आगोश एकदम से बिलबिला उठा। वह इसके लिए बिल्कुल तैयार नहीं था। मम्मी के हाथ की दो कांच की चूड़ियां खनखना कर आगोश के गाल पर ही टूटीं।
उसने तमतमा कर गुस्से से मम्मी की ओर देखा और फिर बिना कुछ बोले तकिए में मुंह छिपा कर बिस्तर पर गिर गया।
टूटी चूड़ी के एक टुकड़े से उसके गाल पर एक हल्की सी खरोंच भी आई थी जिसका पता मम्मी को तब लगा जब उल्टे गिरे पड़े आगोश के तकिए पर उन्होंने ख़ून की एक पतली सी लकीर भी देखी।
उनका गुस्सा कम नहीं हुआ।
पलट कर जाते - जाते वो बुदबुदा रही थीं- कमबख्त, शर्म नहीं आती तुझे, वो चार टके कमाने के लिए दोनों टाइम गर्मरोटी थोप के खिलाती है तुझे, और तू उसे दारू पी कर अपने कमरे में डाल लेगा??? ये नीचता तो कभी तेरे बाप को भी नहीं करने दी मैंने...!
वह बौखलाई हुई कमरे से बाहर निकल आईं।
आगोश देर तक उसी तरह पड़ा रहा।
सारे में सन्नाटा सा छा गया। घर में काम कर रही लड़की को भी पता नहीं चला कि आखिर हुआ क्या?
उसने जब मम्मी को तमक कर अपने कमरे में पड़ी कुर्सी पर धम से पड़ते देखा तो सहम गई। धीरे से उसने पूछा- चाय बनाऊं?
मम्मी ने कोई जवाब नहीं दिया।
वह धीरे से वहां से निकल कर आगोश के कमरे में जाकर झांकने लगी। सन्नाटे से उसे लगा था कि शायद आगोश कहीं चला गया। पर उसने आगोश को वहीं पड़े देखा तो झटके से बाहर निकल आई।
तभी ज़ोर से दरवाज़े की घंटी बजी।
वह दरवाज़ा खोलने दौड़ी!