टापुओं पर पिकनिक - 20 Prabodh Kumar Govil द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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टापुओं पर पिकनिक - 20

आर्यन और आगोश कुछ देर इसी तरह घबराए हुए और ख़ामोश खड़े रहे। उन्हें ये आभास हो गया था कि ये सब पुलिस वाले किसी बात में उलझे हुए हैं, इस समय इनसे बातचीत करने का कोई फ़ायदा नहीं होगा, उल्टे कुपित होकर कुछ उल्टा- सीधा और कह देंगे। और फिर किसी बात पर अड़ गए तो कर के छोड़ेंगे।
लेकिन उन्हें आश्चर्य हुआ कि एक पुलिस वाले ने उनकी बाइक धकेल कर सड़क के बीचों - बीच खड़ी कर दी। फ़िर आगोश का मोबाइल और बाइक की चाबी लौटाता हुआ बोला- जाओ रे छोरो तुम..
आर्यन ने फुर्ती से चाबी पकड़ी।
लेकिन बाइक सड़क पर बीच में खड़ी होने से वहां से वन वे में जाने वाला ट्रैफिक रुक गया। लोग ज़ोर- ज़ोर से लगातार हॉर्न बजाने लगे।
आर्यन हड़बड़ाया और बाइक की ओर दौड़ा। इससे पहले ही साइड में जगह बना कर कुछ गाड़ियां एक- एक कर निकलने लगीं।
अभी दो- तीन गाड़ियां ही निकली होंगी कि आगोश को एक गाड़ी की ड्राइविंग सीट पर सुल्तान बैठा दिखा। वो चौंक कर उसे आवाज़ लगाने लगा।
उसने इशारे से आर्यन को भी दिखाया। आर्यन ने बाइक दौड़ा दी और आगोश के उछल कर बैठते ही उस कार का पीछा करने लगा जो सुल्तान चला रहा था।
आर्यन ने फुर्ती से स्पीड बढ़ाई। वो एक पल के लिए ये भी भूल गया कि वो दोनों अभी पुलिस के चंगुल से छूट कर ही सड़क पर आए हैं। वो आगा- पीछा देखे बिना उस नीली कार के पीछे लग गया।
दो - तीन बार बिल्कुल नज़दीक पहुंच कर उसने सुल्तान को आवाज़ भी लगाई।
पर ट्रैफिक में सुल्तान ने शायद उसकी आवाज़ पर ध्यान नहीं दिया।
कुछ दूर ऐसे ही चूहा दौड़ चली।
बेतहाशा तेज़ी से बाइक दौड़ाते हुए जैसे ही वो दोनों कार के दूसरी ओर से कुछ नज़दीक आए, झटके से आर्यन ने बाइक की स्पीड कम की। आगोश ने भी देखा कि आगे ड्राइवर सीट के बराबर वाली सीट पर अताउल्ला बैठा है।
लेकिन उनके आश्चर्य का पारावार न रहा जब उन्होंने देखा कि उसी गाड़ी की पिछली सीट पर आराम से डॉक्टर साहब, अर्थात आगोश के पापा बैठे हैं।
दोनों को जैसे कोई करेंट का झटका लगा।
अच्छा हुआ कि उन तीनों में से किसी का भी ध्यान आर्यन और आगोश पर नहीं गया।
आगोश के पापा तो हाथ में कोई काग़ज़ लिए हुए उसे तल्लीन होकर देखने में व्यस्त थे। इसलिए इधर - उधर देख ही नहीं रहे थे।
अब मामला उलट गया।
कहां तो आर्यन और आगोश गाड़ी के भीतर सुल्तान को देख कर उस कार का पीछा कर रहे थे पर अब अपना मुंह छिपा कर देखे जाने से बचने की कोशिश करने लगे।
आर्यन ने भी बाइक की रफ़्तार बेहद धीमी कर ली और वो पीछे मुंह घुमा कर आगोश को देखने लगा, मानो पूछ रहा हो- अब?
आगोश ने भी उपेक्षा से मुंह बनाया, मानो कह रहा हो- मरने दे सालों को!
वे दोनों वापस साजिद के घर की ओर जाने वाली सड़क पर वहीं जाने के लिए आ गए जहां सिद्धांत काफ़ी देर से खड़ा उनका इंतजार कर रहा था। मनन भी साथ ही था।
आगोश बेहद मायूस लग रहा था। आर्यन भी उदास सा था।
उन्हें देखते ही सिद्धांत बोला- पुलिस वालों ने कैसे ले ली तुम्हारी?
बाइक खड़ी करते - करते भी आर्यन चौंक पड़ा, बोला- तुझे कैसे पता चला बे, पीछे था क्या?
आगोश को भी अचंभा हुआ कि इन दोनों को यहां खड़े खड़े कैसे पता चला कि पुलिस ने हमें रोका?
तब जाकर बात का खुलासा हुआ। असल में हुआ ये कि जब आर्यन और आगोश को पुलिस ने रोक रखा था तब उनसे बाइक की चाबी और आर्यन का मोबाइल भी ले लिया था। उसी समय मोबाइल पर सिद्धांत का फ़ोन आया और पुलिस वाले ने लड़कों की तहकीकात करने की गरज से सिद्धांत का फ़ोन रिसीव करके उसे पूरी बात बता भी दी, और उनके बारे में सब पूछ भी लिया।
ओह! तो यही कारण था कि पुलिस वाले उनसे कुछ नहीं पूछ रहे थे। बाद में चेन खींचने वाले लड़कों का सुराग मिल जाने पर उन्होंने इन दोनों को जाने दिया।
आगोश बहुतही उखड़ा हुआ था। वो एक तरह के अवसाद में आ गया था।
आर्यन उसके डिप्रेशन का कारण भी समझ रहा था। उन चारों ने आज साजिद के पास जाने का इरादा छोड़ दिया और सिद्धांत मनन को भी वापस भेज दिया।
- अब क्या करेगा? आर्यन बोला।
- दारू पियूंगा! आगोश की बात सुन कर आर्यन गंभीर हो गया। बोला- आज मेरे साथ मेरे घर चल। वहीं रुक जाना रात को।
आज पहली बार आगोश ने दारू पीने की बात की थी। इससे पहले जब भी चारों दोस्त मज़ाक में ही पीने पिलाने की बात करते थे, वो हमेशा बीयर पिएंगे, ऐसा बोलता था।
शब्द भी कैसे किसी चीज़ का आवरण बदल देते हैं। पल भर में एक ही वस्तु का मिज़ाज बदल देते हैं। बीयर कहने में जहां इन लड़कों को आनंद की अनुभूति होती थी वहीं दारू पीने में बर्बादी का अहसास छिपा था।
आगोश उस रात अपने घर नहीं गया।
आगोश तो अपने घर पर कोई सूचना भी नहीं देना चाहता था किन्तु उससे छिपा कर आर्यन ने आगोश की मम्मी को बता दिया कि वो चिंता न करें, आगोश उसके साथ है और वो दोनों आर्यन के घर पर हैं।