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नाम जप साधना - उपन्यास
Charu Mittal
द्वारा
हिंदी कुछ भी
आज के अधिकांश लोग किसी न किसी संत या धर्म संस्थाओं से जुड़े हैं। यहाँ तक कि बहुत लोगों ने संतों से दीक्षा भी ले रखी है। परंतु देखने में आया है कि भजन करनेवालों की संख्या बहुत कम है। गुरु बनाने वाले तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन नाम जप करनेवाले विरले ही मिलते हैं। नाम निष्ठा कहीं-कहीं देखने को मिलती है। नाम जप करनेवाले भी इतना जप नहीं करते जितना कर सकते हैं। लोग सत्संग प्रवचन भी खूब सुनते हैं, बड़े बड़े धार्मिक आयोजन भी करते हैं। लाखों रुपये खर्च करके संतों के प्रवचन व कथा करवाने वाले लोगों को भी देखा.. बहुत पास से देखा। अधिकांश लोग नाम जप साधना से शून्य ही मिले। कहाँ तक बतायें संतों के पास रहनेवाले भी अधिकतर साधना शून्य ही मिले। कई तो संत भेष में आकर भी नाम जप साधना में नहीं लग पाये। क्या कारण है कि इतनी सरल साधना होने पर भी क्यों इससे वंचित हैं? विशेषकर कलियुग में तो भवसागर पार जाने के लिये हरिनाम ही आधार है। ये पंक्ति किसने नहीं सुनी 'कलियुग केवल नाम आधारा'।
आज के अधिकांश लोग किसी न किसी संत या धर्म संस्थाओं से जुड़े हैं। यहाँ तक कि बहुत लोगों ने संतों से दीक्षा भी ले रखी है। परंतु देखने में आया है कि भजन करनेवालों की संख्या बहुत कम ...और पढ़ेगुरु बनाने वाले तो बहुत मिल जायेंगे लेकिन नाम जप करनेवाले विरले ही मिलते हैं। नाम निष्ठा कहीं-कहीं देखने को मिलती है। नाम जप करनेवाले भी इतना जप नहीं करते जितना कर सकते हैं। लोग सत्संग प्रवचन भी खूब सुनते हैं, बड़े बड़े धार्मिक आयोजन भी करते हैं। लाखों रुपये खर्च करके संतों के प्रवचन व कथा करवाने वाले लोगों
कलियुग में केवल नाम जप से कल्याणजीव के कल्याण के लिये शास्त्रों व संत महापुरुषों ने अनेक साधन बताये हैं। सभी साधन ठीक हैं। किसी भी साधन का आश्रय लेकर जीव कल्याण के मार्ग पर अग्रसर हो सकता है। ...और पढ़ेभी है—नरव से सिख तक रोये जेते। विधिना के मारग हैं तेते ॥ नाखून से लेकर शिखा पर्यन्त जितने मानव के शरीर में रोयें हैं, भगवान् को पाने के उतने ही मार्ग हैं। कहने का भाव यही है कि प्रभु प्राप्ति के अनेक मार्ग हैं। हर मार्ग पर चलने वाले संत भक्त हुए हैं और सभी को भगवत्प्राप्ति हुई है।
नाम जप कीर्तन से पापों का नाशगोविन्देति तथा प्रोक्तं भक्त्या वा भक्ति वर्जितैः । दहते सर्वपापानि युगान्ताग्निरिवोत्थितः।।मनुष्य भक्ति भाव से या भक्ति रहित होकर यदि गोविन्द नाम का उच्चारण कर ले तो नाम सम्पूर्ण पापों को उसी प्रकार दग्ध ...और पढ़ेदेता है। जैसे युगान्तकाल में प्रज्ज्वलित हुई प्रलय अग्नि सारे जगत् को जला डालती है। अनिच्छयापि दहित स्पृष्टो हुतवहो यथा । तथा दहति गोविन्दनाम व्याजादपरितम् ।।जैसे अनिच्छा से भी स्पर्श कर लेने पर अग्नि शरीर को जला देती है उसी प्रकार किसी बहाने से लिया गया हरि नाम पाप को जला देता है ‘वृहदपुराण' में तो यहाँ तक लिखा है
कौन सा नाम जपेंयह जीवात्मा अनादि काल से इस अनादि माया में उस अनादि परमात्मा के बिना चौरासी लाख योनियों में जन्म लेती हुई भटक रही है। इस माया में इस जीव को अनादि काल से लेकर अब तक ...और पढ़ेरूप से कोई ठिकाना नहीं मिला। आज तक इसको जो भी कुछ मिला स्थायी रूप से नहीं मिला। यह जीवात्मा स्वयं में अविनाशी तत्त्व है और इसको मिलने वाली प्रत्येक वस्तु विनाशी होती है। इसलिये इसको इस माया में कुछ भी प्राप्त हो, इसकी भटकन समाप्त नहीं होती। इस अविनाशी आत्मा को जब तक अविनाशी परमात्मा की प्राप्ति नहीं होती
हम नाम कैसे जपें ये समझने से पहले नाम और मंत्र के अन्तर को समझना जरूरी है।नाम — मंत्रराम — ॐ रां रामाय नमः कृष्ण — ॐ क्लीं कृष्णाय नमःनारायण — ॐ नमो नारायणाय शिव — ॐ नमः शिवायदुर्गा ...और पढ़ेॐ श्री दुर्गायै नमः चामुण्डा — ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डायै विच्चेराधा — ॐ ह्रीं राधिकायै नमःराधाकृष्ण — ॐ श्री राधाकृष्णाभ्यां नमःजिस प्रकार प्रभु के अनेक रूप हैं उसी प्रकार प्रभु के अनेक नाम व अनेक मंत्र हैं। प्रभु के जिन नामों के साथ ॐ क्लीं, ऐं, हीं, रां आदि बीज मंत्र, चतुर्थ विभक्ति या नमः स्वाहा आदि लग जायें