राम नाम सत् हैराम नाम सत् है, सत् बोलो गत हैये महावाक्य आप-हम कितनी बार बोल चुके हैं और सुन भी चुके हैं। क्या कभी ध्यान दिया इस महावाक्य की ओर? ये हमको क्या उपदेश दे रहा है? सुन कर भी अनसुना कर देते हैं हम इस परम सच्चाई को। जीवन एक कल्पना है लेकिन मौत सच है। जीवन का भरोसा नहीं कब मौत के कदमों में कुचल जाए। आखिर कब तक अनसुना करते रहोगे? कब तक भागते रहोगे इस सच्चाई से ? एक दिन जब सफेद चादर ओढ़ के लेटे होगे, चार व्यक्ति अपने कन्धों पर उठाकर चलेंगे और सब बोल रहे होंगे
“राम नाम सत् है। ” क्या तब भी भागोगे? और दिन आए ना आए ये दिन तो आएगा ही।
चार ड्राइवर एक सवारी। उसके पीछे दुनिया सारी।
सबकी एक दिन आए बारी। आग पीछे हो दिन चारी॥ आओ! इस महावाक्य को समझ कर हृदय में धारण करें और आज ही नहीं बल्कि अबसे तैयारी करें उस पावन दिन की। अगर तैयारी में लग गये तो ये दिन ही जीवन का सबसे महान दिन, आनन्दप्रद दिन, खुशहाल दिन होगा। इस दिन हम माया से सदा के लिए मुक्त होकर मायापति के पास, दु:खों से छूटकर आनन्द के पास, अन्धेरे को छोड़कर प्रकाश के पास, पराये को छोड़कर अपने के पास, झूठ को छोड़कर सत् के पास, काम को छोड़कर राम के पास, विनाशी को छोड़कर अविनाशी के पास पहुँच जाएँगे। तभी किसी संत ने कहा है–
जिस मरने से जग डरे, मेरे मन आनन्द।
मरने से ही पाईये, पूर्ण परमानन्द।। ओर भी कहा है–
कब मरिहों कब देखिहों प्रियतम नित्य विहार। अगर इस महावाक्य की तरफ ध्यान नहीं दिया तो ये ही दिन हमारे लिए सबसे बड़ा दुःखदाई दिन सिद्ध होगा। अभी अवसर है, हाथ से जाने मत दो, तैयारी में लग जाओ। अर्थ सीधा सा है पर है बड़ा मार्मिक, बड़ा गम्भीर (सत् बोलो गत् है)। नाम बोलने से ही सद्गति हो जाएगी। राम नाम सत् है अगर आप विवाह के अवसर पर बोलेंगे, तो लोग आप पर बिगड़ पड़ेंगे। क्यों? कोई बिगड़ने वालों से पूछे, क्यों भाई अगर राम का नाम सत् नहीं तो क्या झूठ है ? इस प्रश्न के उत्तर में कोई क्या कहेगा। पता नहीं क्यों इस सच्चाई से लोग डरते हैं ?
सबसे पहले जब बच्चा जन्म लेता है, तो उसके कान में यह महावाक्य सुनाना चाहिए। जब बच्चा विद्यालय में पढ़ने जाता है तो सबसे पहले उसे इस सच्चाई का पाठ पढ़ाना चाहिए। विद्यालय में हर प्रकार की शिक्षा दी लेकिन पढाने वाले अध्यापक ने इस सच्चाई को नहीं पढ़ाया। शिक्षा की किसी पुस्तक में 'राम नाम सत् है।' नहीं पढ़ा। इस सच्ची शिक्षा के बिना शिक्षा अधूरी है। फिर विवाह हुआ। विवाह के समय पण्डित जी ने हर प्रकार के मंत्र पढ़े, उपदेश दिये। लेकिन वर-कन्या को ये कहना तो वे भूल ही गये कि, बेटा गृहस्थी में प्रवेश करने जा रहे हो। माया में फँसना नहीं क्योंकि 'राम नाम सत् है', बाकी सब झूठ है। फिर डोली विदा हुई। उस समय भी कन्या और वर को बड़े बूढ़ों ने बहुत उपदेश दिए लेकिन किसी ने यह नहीं कहा कि 'राम नाम सत् है'। लेकिन आज जब हमारी अर्थी उठी, श्मशान के लिए चले, तो लोगों ने कहा कि 'राम नाम सत् है।' कितना बड़ा धोखा है। जब हम नाम बोल सकते थे तब नहीं बताया, आज नहीं बोल सकते तो सभी कहने लगे 'राम नाम सत् है' जब लोग भजन करते हैं तो भजन में अनेक विघ्न करते हैं। कोई कहता है “अभी उम्र ही क्या है, खेलने खाने के दिन हैं, मौज करो। अभी जल्दी क्या है, बूढ़ापे में भजन ही तो करना है।” इस प्रकार की बातों में कई लोग आ जाते हैं और कल-कल करते काल आ जाता है।
काल काल के करत ही, काल बीतता जाए।
करुणदास न भजन कर सका, काल अचानक आए।। भजन करने वाले पर ये दुनियाँ मजाक करती है और मुर्दे को कहती है कि 'राम नाम सत् है।' जीवित को भजन करने से रोकती है।इस दो मुँह की दुनियाँ की बातों में मत आओ क्योंकि ये दुनियाँ सच्चाई तुम्हारे मरने के बाद बताएगी। संत इस परम सच्चाई को तुम्हारे जीते जी बता रहे हैं। राम नाम धन ही सच्चा धन है। लूट लो, कर लो इकट्ठा, चूकना नहीं। बाकी सारा धन तो मृत्यु के समय छूट ही जाएगा। किसी ने कहा है-
इससे तो आगे भजन ही है साथी ।
हरि के भजन बिन अकेला रहेगा॥
अरे मन ये दो दिन का मेला रहेगा।
कायम ना जग का झमेला रहेगा।। सांसारिक धन-सम्पत्ति चाहे जितनी एकत्रित करो, अन्तिम परिणाम तो सब जानते हैं।
खूब कमाया जग में हमने, क्या हीरे क्या मोती ।लेकिन दुनियाँ वालों सुन लो, कफन में जेब नहीं होती।। इसका अर्थ यह नहीं कि धन न कमाओ। जीने के लिए धन भी जरूरी है। जीवन के बाद मृत्यु आयेगी, वहाँ धन काम नहीं आएगा। वहाँ तो नाम रूपी धन ही काम आएगा।
जीने के लिए जितना जरूरी भोजन है, मृत्यु के लिए उतना ही जरूरी भजन है। इसलिए धन के साथ साथ भजन भी एकत्रित करो। धन से सद्गति नहीं है, भजन से सद्गति है क्योंकि
‘राम नाम सत् है, सत् बोलो गत है।’ [ हरे कृष्ण हरे राम ] 🙏