Mukambal Mohabat book and story is written by Abha Yadav in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Mukambal Mohabat is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मुक्म्मल मोहब्बत - उपन्यास
Abha Yadav
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
कहीं संवेदनाएं जुड़ी. कुछ महसूस हुआ. अंदर जजबातों का धुआं घुमड़ने लगा.फिर जजबात इस कदर मचले कि एक गुबार सा फूटा.जजबात छिटके,बिखरे ,फिर जुड़ते चले गए. बनने लगी कोई दांस्ता और खुद व खुद अल्फाजों की लयबद्ध पंक्तियां कागज पर उतरती चली गईं. जब रूकीं तो एक मुक्म्मल दांस्ता सामने. यही है ,बस मेरे लिखने का मर्म. लेकिन, जब कोई किसी निश्चित पर कुछ अद्भुत सा लिखने को बोले, तब कितनी मशक्कत होती है.मशीन की तरह काम करना. जबरदस्ती की परिस्थितियां क्रियेट करो.फिर उससे जुड़ने की कोशिश करो. शब्दों को पंक्तियों में पिरोओ.फिर कागज रंगने बैठो.कितना अननेचुरल
कहीं संवेदनाएं जुड़ी. कुछ महसूस हुआ. अंदर जजबातों का धुआं घुमड़ने लगा.फिर जजबात इस कदर मचले कि एक गुबार सा फूटा.जजबात छिटके,बिखरे ,फिर जुड़ते चले गए. बनने लगी कोई दांस्ता और खुद व खुद अल्फाजों की ...और पढ़ेपंक्तियां कागज पर उतरती चली गईं. जब रूकीं तो एक मुक्म्मल दांस्ता सामने. यही है ,बस मेरे लिखने का मर्म. लेकिन, जब कोई किसी निश्चित पर कुछ अद्भुत सा लिखने को बोले, तब कितनी मशक्कत होती है.मशीन की तरह काम करना. जबरदस्ती की परिस्थितियां क्रियेट करो.फिर उससे जुड़ने की कोशिश करो. शब्दों को पंक्तियों में पिरोओ.फिर कागज रंगने बैठो.कितना अननेचुरल
कितनी अजीब बात है. इंसान तंन्हाईयों में भी तंहा नहीं रहता. किसी की यादें, किसी के साथ गुजरेलम्हें, कुछ ख्यालात, कुछ सवालात, कुछ उलझनें... दिमाग में आडियो-वीडियो चलते रहते हैं. स्वीच ऑफ ही नहीं होता दिमाग का. ...और पढ़ेतक सांसें हैं, दिल की धड़कनें हैं-दिमाग का स्वीच ऑफ कहां होगा. जहां सांसें रूकी सब बंद.दिमाग का थियेटर भी बंद. मैंने एक गहरी सांस ली और कार की स्पीड़ बढ़ा दी.सडक़ खाली थी.कम स्पीड़ पर चलने का कोई औचित्य नहीं था.ड्राइविंग करते हुए मेरी नजरें सड़क किनारे लगे पाकड़ के पेड़ों के बीच खड़े अमलतास के पेड़ों पर उलझ जातीं. फूलों
मुझे हिल स्टेशन पर किसी भी होटल में रूकना कभी नहीं भाया. ऐसा नहीं कि मुझे वहां की सुविधाएं पंसद नहीं. दरअसल, पहाड़ों पर मुझे एकदम एंकात, शान्त, पेडों के झुरमुटों के बीच का आवास ही भाता है. दूसरे ...और पढ़ेमें अधिकांश नये जोड़े ही आते हैं. जिन्हें देखकर मेरा जी जलता है. ऐनी मेरा साथ नहीं देती और ऐनी के बिना होटल मुझे संकू नहीं देता. जब किसी हिल स्टेशन पर कहीं अपनी पंसद की किराए की जगह ढूंढी या किसी दोस्त के घर रूका.लेकिन, दोस्त के घर लम्बे समय तक नहीं रूका जा सकता. ऐसे में
मैंने कार काटेज के पीछे पार्क की और कार में से बैग निकाल कर कंधे पर डाला. सीधे काटेज के गेट पर पहुंच कर कालवेल बजा दी.कालवेल बजाकर मैं आसपास के पेड़ों पर निगाहें दौड़ने लगा.तभी गेट के दायीं ...और पढ़ेलगे सेब के पेड़ पर लटक रहे गुलाबी सेब को देखकर में मुस्कुरा दिया. यह लाल-गुलाबी सेब मुझे किसी कमसिन बाला के गालों जैसे लगते हैं. मैं सेब खाता कम देखता जायदा हूँ."अंदर,आओ,नील."जोशी आंटी की आवाज सुनकर मैंने पलटकर उनकी तरफ देखा. आंटी धीरे से मुस्कुराई.मैंने झुककर उनके पाँव छूएं. उनका दांया हाथ मेरे सिर पर आशीर्वाद के
माथे पर हाथ के स्पर्श का एहसास हुआ तो पलकें खुद-व-खुद खुल गईं.जोशी आंटी माथे पर हाथ रखे पूँछ रही थीं-"नील,बेटा, तबीयत तो ठीक है?" मैंने आँखें खोलीं तो अपनी स्थिति का भान कर झेंप गया. कपड़ें चेंज करना ...और पढ़ेदूर की बात जूते तक नहीं खोले थे."सफर की थकान थी.लेटा तो आँख लग गई. मैं ठीक हूँ."मैंने उठते हुए कहा."अच्छा, तुम नहा लो.तरोताजा हो जाओगे. मैं तुम्हारे लिए चाय के साथ प्यार की पकौड़े तलती हूँ."वह आश्वत् होकर बोलीं."अरे,आंटी, क्या करेगीं पकौड़े बनाकर. अंकल खायेंगे नहीं. मैं चाय के साथ नमकीन और बिस्किट ले लूंगा."अंकल की बीमारी सुनकर