Mukambal Mohabat - 3 books and stories free download online pdf in Hindi

मुक्म्मल मोहब्बत - 3


मुझे हिल स्टेशन पर किसी भी होटल में रूकना कभी नहीं भाया. ऐसा नहीं कि मुझे वहां की सुविधाएं पंसद नहीं. दरअसल, पहाड़ों पर मुझे एकदम एंकात, शान्त, पेडों के झुरमुटों के बीच का आवास ही भाता है. दूसरे होटल में अधिकांश नये जोड़े ही आते हैं. जिन्हें देखकर मेरा जी जलता है. ऐनी मेरा साथ नहीं देती और ऐनी के बिना होटल मुझे संकू नहीं देता.
जब किसी हिल स्टेशन पर कहीं अपनी पंसद की किराए की जगह ढूंढी या किसी दोस्त के घर रूका.लेकिन, दोस्त के घर लम्बे समय तक नहीं रूका जा सकता. ऐसे में कहीं किराए की जगह बेहतर लगती. नैनीताल में मेरी इस समस्या को ,जूली कोट में रहने वाले मेरे दोस्त अवनव ने लगभग दो बर्ष पूर्व दूर कर दिया था. तब से जब नैनीताल आया, जोशी आंंटी का पेईंग गेस्ट बना. जोशी आंटी से मिलना भी अचानक ही हुआ था. अवनव जोशी आंटी का दूर का रिश्तेदार था.लेकिन, आंटी का विश्वासी था.कोई काम होता तो उसे बुलाती थीं. उस दिन भी अवनव को बुलाया था .उस दिन में अवनव के घर ही था और मैं मालरोड पर कैंडल लेने आ रहा था. अवनव ने मुझसे जोशी आंटी के घर छोड़ने को कहा तो मैं उसे अपने साथ ले आया. मालरोड से कुछ ऊपर जोशी आंटी का काटेज था.

मैं और अवनव जोशी आंटी के काटेज पहुंचे तो खूबसूरत काटेज देखकर मन खुश हो गया. बड़े से बगीचे के बीचोबीच काटेज था.बगीचे में जायदातर पेड़ सेव के थे कुछ अखरोट और चिनार के पेड़ थे.काटेज का गोल गेट था.जिसके दोनों ओर बुरांस के पेड़ लगे थे.

अवनव ने काल वेल बजायी तो पचास-पचपन बर्ष की गठे हुए बदन की खूबसूरत महिला सामने थी.पीले रंग की साड़ी ने उनके गोरे रंग को और खूबसूरत कर दिया था.

आगे बढ़कर अवनव ने उनके पैर छुएं.

"आओ, अवनव,मैं तुम्हारा ही इंतजार कर रही थी."कहते हुए महिला दांयी ओर बने हालनुमा कमरे की ओर बढ़ गई.

"आंटी,यह मेरा दोस्त नील है.बॉम्बे से इधर घूमने आया है."

अवनव ने मेरा परिचय करवाया तो मैंने आगे बढ़कर उनके पैर छू लिए. वैसे भी बुजुर्गों के पैर छूकर आशीर्वाद लेना मेरी पुरानी आदत है. लेकिन, आंटी सकुचा गई-"अरे...अरे..."

"आंटी,अवनव मेरा भाई जैसा है. आपको सम्मान देना बनता है."मैंने उनके साथ चलते हुए कहा.

"अब,यह संस्कार कहां?"आंटी ने गहरी सांस ली.

"अंकल,कहां हैं?"अवनव ने उस हालनुमा कमरे में प्रवेश करते हुए पूँछा.

"वह अपनी बहन के घर गये हैं. तुम लोग बैठो. मैं काफी बनाकर लाती हूँ."कहती हुई आंटी वापस चली गईं.

मैं कमरे का निरीक्षण करने लगा.कमरा क्या था -अपने आप में एक छोट़ा सा काटेज. अटैच बाशरूम,कमरे में सोफे के अलावा दो सिंगल बेड. बड़ी सी खिड़की के पास एक बड़ी सी टेवल .जिस पर एक खूबसूरत टेबल लेम्प रखा था.दीवार पर पहाड़ से उतरते झरने वाली खूबसूरत पेंटिंग. दीवारें हल्की नीली.पर्दे गहरे नीले. मेज के पास ही दो कुर्सी रखी थीं. शायद यहां रहने वाले को रात में लिखने पढ़ने की आदत होगी. कमरे का एक दरवाजा बाहर छोटे से गार्डन में खुल रहा था. दूसरा अंदर की ओर ,जिससे हम लोग आये थे.कमरे को बड़े ही सुरूचिपूर्ण ढंग से व्यवस्थित किया गया था. यह जगह मेरे मन में उतरने लगी.मैंने अवनव से पूँछा-"यहां कौन रहता है?"

"इस गेस्टरूम में?"अवनव ने पूँछा.

"हां."

यह आंटी ने अपने भाई के लिए बनवाया था. आंटी के मां-बाप नहीं थे.बस एक भाई-बहन थे.आंटी की शादी करके आंटी के भाई अमेरिका में बस गये जब भी वह इंडिया आते यहां ठहरते थे.पिछले बर्ष वह गुजर गये तब से यह बंद रहता है. मैं आता हूँ तभी खुलता है."अवनव ने बताया.


"क्या, आंटी ,मुझे यहां पेईंग गेस्ट बनाकर रख सकती हैं?"मैं बिना सोचे समझे कह गया.

"पागल है, यार.मेरा घर कम पड़ता है, रुकने को."अवनव मुझे आँखें फाड़े देख रहा था.

"सच,मुझे यहां की लोकेशन भा गई है. यार,मैं आंटी को बिल्कुल तंग नहीं करुंगा."

"किसको तंग करने की बात चल रही है. क्या मां से झगड़ा करके आये ह़ो.?"जोशी आंटी अंदर प्रवेश करते हुए बोली.उनके हाथ में पकडी ट्रे में काफी के तीन मग और एक प्लेट में तले हुए काजू रखें थे.साथ ही हाथ में खाकी कलर का लिफाफा पकड़े थीं.

"आंटी,मां से झगड़ा करके नहीं आया है. लेकिन, नियत का ठीक नहीं है. कोई भी सुदंर चीज मन को भा जाये तो पाने की चाह करता है."अवनव आंटी के हाथ से ट्रे लेते हुए बोला.

"कोई लड़की पंसद आ गई है?"कहकर आंटी मुस्कुरा दीं.

"नहीं, आंटी,मुझे आपका गेस्ट रुम भा गया है. मैं यहां आपका पेईंग गेस्ट बनकर रहना चाहता हूं. यदि आपको एतराज न हो."मैं जल्दी से कह गया. मुझे डर था ,अवनव संकोचवश आंटी को यह बता नहीं पायेगा.

"अरे,एतराज कैसा?अवनव के दोस्त हो.बच्चे जैसे हो .घर में रहोगे तो रोनक रहेंगी."फिर रूककर उन्होंने गहरी सांस ली-"वैसे भी भाई के गुजर जाने के बाद यह खाली पड़ा है."

मैंने खुशी से आंटी के हाथ चूम लिये. फिर खुद ही शर्मिंदा हो गया. क्या करूं. पुरानी आदत है खुशी का इजहार करने की.

मुझे झेपता देखकर आंटी मुस्कुरा दी-"काफी लो."

"यही लिफाफा वकील साहब को देना है."लिफाफा देखकर अवनव ने पूँछा.

"हां,जरूरी कागजात है.ध्यान से ले जाना."आंटी ने लिफाफा अवनव को दे दिया.

अवनव लिफाफा लेकर चलने को उठा तो मैंने रूककर जोशी आंटी से पूँछ ही लिया-"आंटी,मैं मनडे से रहने आ रहा हूँ."

"हां,आ जाना."आंटी ने सहमति में सिर हिला दिया.

"क्या, पे करना होगा?"मैंने झिझकते हुए पूँछा.

"ऐसे ही रह लो.दोस्त हो अवनव के."

"नहीं, आंटी,बेटे बुजुर्गों पर बोझ नहीं बनते."कहकर मैंने जेब से चार हजार रूपये निकाल कर उन्हें जबरदस्ती दे दिएथे.

मैं खुश था.रहने के लिए पृकृति की गोद में खूबसूरत सी जगह मिल गई थी.

ओफ! ख्यालात भी क्या चीज हैं. उनमें खो जाओ तो न समय का पता लगता है और न रास्ते का.एहसास ही न हुआ कब जोशी आंटी का काटेज आ गया.

क्रमशः

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