मुक्म्मल मोहब्बत - 4 Abha Yadav द्वारा फिक्शन कहानी में हिंदी पीडीएफ

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मुक्म्मल मोहब्बत - 4


मैंने कार काटेज के पीछे पार्क की और कार में से बैग निकाल कर कंधे पर डाला. सीधे काटेज के गेट पर पहुंच कर कालवेल बजा दी.कालवेल बजाकर मैं आसपास के पेड़ों पर निगाहें दौड़ने लगा.तभी गेट के दायीं ओर लगे सेब के पेड़ पर लटक रहे गुलाबी सेब को देखकर में मुस्कुरा दिया. यह लाल-गुलाबी सेब मुझे किसी कमसिन बाला के गालों जैसे लगते हैं. मैं सेब खाता कम देखता जायदा हूँ.


"अंदर,आओ,नील."जोशी आंटी की आवाज सुनकर मैंने पलटकर उनकी तरफ देखा.

आंटी धीरे से मुस्कुराई.मैंने झुककर उनके पाँव छूएं. उनका दांया हाथ मेरे सिर पर आशीर्वाद के लिए प्रस्तुत था.

"इस काफी समय बाद आना हुआ.?"जोशी आंटी भीतर की तरफ जाते हुए बोलीं.

"हां,आंटी,पिछला टूर अंड़मान का रहा.जनजाति पर कार्य कर रहा था."मैंने उनके पीछे चलते हुए जबाव दिया.
ड्राइंग रूम में पहुंच कर मैंने अपना बैग सोफे के पास ही रख दिया. फिर आराम से सोफे पर बैठ गया.

"तुम फ्रेश हो जाओ. तुम्हारे लिए लंच तैयार करती हूं."आंटी ने औपचारिकता दिखाई. वैसे मैंने उन्हें फोन पर बता दिया था कि मैं लंच करके आऊंगा.

"आपने लंच कर लिया?"मैंने पूँछा.

"हां,तुम्हारे लिए तैयार..."

"मैंने आपको बताया था कि मैं लंच करके आऊंगा. हां,मुँह धोकर आपके साथ एक कप काफी ले लूंगा."मैं उनकी बात काटकर बीच में बोला.

"हां,मैं काफी लाती हूँ. तब तक तुम मुँह धो लो."कहकर आंटी किचेन की ओर चली गईं.

मैंने बैग से टावल निकाला और बाशरूम में मुँह धोने चला गया. वापस आया तो काफी के दो मग टेवल पर रखे थे.आंटी सोफे पर बैठीं मेरा इंतजार कर रही थीं.

काफी पीकर मैंने अपना बैग उठाया और गेस्ट रूम की ओर जाने लगा.

"उधर नहीं, इधर."पीछे से आंटी की आवाज सुनकर में रूक गया.

"क्या गेस्ट रूम साफ नहीं हुआ है."मैंने पूँछा.

"इसबार तुम्हारा कमरा मेरे बैडरूम के पास वाला है."वह अपने बेडरूम की तरफ बढ़ते हुए बोलीं.

मैं कोई और सवाल करता उससे पहले ही उन्होंने कमरे का दरवाजा खोल दिया. मैंने कमरे में सरसरी सी निगाह डाली.गेस्ट रूम के सिंगल बेड,टेवल,टेवल लेम्प, सोफा, दीवार की पेंटिंग, पर्दे सब गेस्ट रूम की तरह ही व्यवस्थित किया गया था.


मैं अभी उलझन में ही था कि आंटी बोलीं-"इस कमरे के सामने वाला बाशरूम यूज कर लेना."

हांलाकि इस कमरे में भी गेस्ट रूम जैसी सुविधा थी.लेकिन, वैसा एंकात नहीं. मैं गेस्ट रूम में बिंदास होकर रहने का आदि हो गया था. मुझे उसकी आदत हो गई थी. जहां की आदत हो जाये वह आसानी से छूटता नहीं. मैं इस कमरे से संतुष्ट नहीं था.साथ ही यह भी सही था.मैं यहां रहने पर ही उन्हें पे करता था.उनकी जगह है, वह कुछ भी कर सकती हैं. दो साल से नहीं आया तो उन्होंने किसी और को रहने को दे दिया होगा. यह सवाल दिमाग में आते ही मैंने आंटी से पूँछ ही लिया-"गेस्ट रूम में कोई और रह रहा है?"


"नहीं, तीन महीने पहले मैंने गेस्ट रूम बेच दिया."

"क्या... क्यों..."मेरा मुँह आश्चर्य से खुला रह गया.

"तुम्हारे अंकल की किडनी खराब हो गई थी. इलाज के लिए पैसों की आवश्यकता थी, इसलिए बेच दिया."कहते हुए आंटी के चेहरे पर उदासी की लकीरें खिंच आयीं थीं.

"अरे,आंटी,बेचने से पहले मुझे बताया तो होता."मेरा स्वर कुछ तीव्र था.

"जल्दी में हम यही फैसला कर सके.वैसे भी तुम्हारा कभी कभार का आना होता है. घर के बेटे हो अंदर ही रह लोगे. यहां भी तुम्हें कोई डिस्टर्ब नहीं करेगा."

"जी...जी.."मैं आवाक सा रह गया. समझ नहीं आ रहा था कि गेस्ट रूम हाथ से निकल जाने का मातम मनाऊं या अंकल की बीमारी की संवेदनाएं पृकट करुँ.

मैंने अपने आप को संयत करते हुए पूँछा-"अब,कैसे हैं, अंकल."

"पहले से बेहतर हैं. परहेज और दवा चल रही है. इस समय मूंग की दाल रोटी खाकर सो गए हैं."आंटी का स्वर भीगा-भीगा सा था.

"ओह!"मैंने एक गहरी सांस ली. फिर रूककर बोला-"आंटी, आप मुझे फोन करतीं. मैं सब संभाल लेता.


मुझे गेस्ट रूम बिकने का अफसोस था.

"बेबजह किसी को परेशान करना ठीक नहीं समझा. तुम्हारे अंकल की भी यही राय थी."कहकर आंटी चुप हो गईं.

एक बार के लिए मुझे अपनी खुदगर्जी पर शर्मिदंगी महसूस हुई. फिर मैंने उनके आत्मसम्मान को मन ही मन सलाम किया.

"किसी चीज की आवश्यकता हो तो बताना."आंटी ने पुनः कहा.

"नहीं, सफर की थकान है.बस,आराम करुंगा."

आंटी कमरे से बाहर निकलीं तो मैं बिना जूते खोले ही बेड पर पसर गया. इस नई परिस्थिति को मैं पचा नहीं पा रहा था.


क्रमशः