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उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - उपन्यास
Bhupendra Kuldeep
द्वारा
हिंदी प्रेम कथाएँ
उड़ान(प्रेम, संघर्ष और सफलता की कहानी)पहली मुलाकात:-अरे आप, आप तो राजिम से हैं ना, मेरे ख्याल से आप पी.एस.सी. कोचिंग के लिए लक्ष्य अकादमी में आती थी, मेरा नाम प्रथम है।हाँ, मैं लक्ष्य अकादमी जाती थी, मेरा नाम अनु है अनुप्रिया।आप मुझे कैसे जानते हैं ?एक्चुअली, मैं भी वहाँ जाता था।पढ़ने के लिए। अनु ने पूछा।हाँ, दोनों पढ़ने और पढ़ाने के लिए, चलो अच्छा है हम दोनो को पी.एस.सी. के लिए एक ही सेंटर मिला, हिन्दू हाई स्कूल।आप अकेले आई हैं परीक्षा दिलाने ?हाँ बस से आ गई, शाम को बस से लौट जाऊँगी।टिफिन लाई है क्या ?नहीं।मैं भी नहीं
उड़ान(प्रेम, संघर्ष और सफलता की कहानी)पहली मुलाकात:-अरे आप, आप तो राजिम से हैं ना, मेरे ख्याल से आप पी.एस.सी. कोचिंग के लिए लक्ष्य अकादमी में आती थी, मेरा नाम प्रथम है।हाँ, मैं लक्ष्य अकादमी जाती थी, मेरा नाम अनु ...और पढ़ेअनुप्रिया।आप मुझे कैसे जानते हैं ?एक्चुअली, मैं भी वहाँ जाता था।पढ़ने के लिए। अनु ने पूछा।हाँ, दोनों पढ़ने और पढ़ाने के लिए, चलो अच्छा है हम दोनो को पी.एस.सी. के लिए एक ही सेंटर मिला, हिन्दू हाई स्कूल।आप अकेले आई हैं परीक्षा दिलाने ?हाँ बस से आ गई, शाम को बस से लौट जाऊँगी।टिफिन लाई है क्या ?नहीं।मैं भी नहीं
खाने पर चर्चा:- अरे आईये प्रथम जी। ये मेरे पापा है। नमस्ते अंकल। और ये मेरी मम्मी है। नमस्ते आंटी। बस खाना तैयार ही है आप अंदर आ जाइये और हाँथ धोकर डाइनिंग टेबल पर बैठ जाइये। ठीक है ...और पढ़ेकिधर धोऊँ। बस यहीं किचन से होकर आइये ना पीछे के आगंन में। बेसिन उधर है हाथ धो लिजिए। ये तो सरकारी क्वार्टर, है ना ? प्रथम ने पूछा।हाँ हम लोग तो जीवन भर ऐसे ही सरकारी क्वार्टर मे रहते आए हैं। सब एक ही जैसा होता है।प्रथम हाथ धोते-धोते अनु की ओर तिरछी नजर से बार-बार देख रहा था।अनुप्रिया असल में लंबी कद काठी की, गेहूआ रंग लिए,
प्रणय निवेदन :-दूसरे दिन प्रथम ठीक 11 बजे मंदिर पहुँच गया। पूजा शुरू हो चुकी थी । आइये बैठिए प्रथम जी। अनु ने कहा । लिजिए थोड़ा चावल और फूल हाथ में ले लिजिए। अच्छा दीजिए, यहीं बैठ जाऊँ।हाँ ...और पढ़ेजाइए। प्रथम बैठ गया और चावल और फूल हाथ में ले लिया। पूजा चल रही थी और बीच-बीच में हवा से अनु की साड़ी का आँचल उड़ उड़कर प्रथम के चेहरे से टकरा रहा था और प्रथम के शरीर में रह रहकर सिहरन पैदा हो रहा था । पूजा खत्म हुई तो अनु ने प्रथम से कहा आईए उधर सीढ़ियों पर बैठते हैं । हाँ चलिए। कैसे आए
शाम के 5 बजे ठीक स्कूल के सामने गाड़ी खड़ी नजर आई। प्रथम सिर झुका के गाड़ी के ड्राईवर सीट पर बैठा था। उसकी आँखे लाल थी। वह सारी रात सो नहीं सका था उसे लग रहा था कि ...और पढ़ेइतनी बड़ी भूल हो गई है जो क्षम्य नहीं है। पता नही अनु जी कैसे रियेक्ट करेंगी। अचानक गेट खुला प्रथम चैक गया। अनु आकर पीछे सीट पर बैठ गई।प्रथम ने शीशे में चुपके से देखा अनु का चेहरा कठोर दिखाई दे रहा था। चलिए कहाँ चलना है? अनु ने कहा। आप जहाँ कहें अनु जी। मैं क्यों बताऊंगी, आप का जहाँ मन करे
शाम के 5 बजने में 2 मिनट शेष रह गये थे, वह चैक गया और एसटीडी से फोन लगाया। उसे मालूम था कि अनु फोन के पास खड़ी होगी।हैलो, हाँ अनु तुम ठीक हो।हाँ आप कैसे हो।मैं भी ठीक ...और पढ़ेअनु, आज स्कूल नहीं जाना था क्या? 5 बजे का टाइम दिया था तुमने ?नहीं स्कूल तो गई थी बस तुमसे बात करनी थी करके जल्दी आ गई।तो मुझे बताना था मैं वहीं आ जाता।रोज-रोज देर से आउंगी ना तो घर वाले नाराज होंगे। मेरे भाई को तो थोड़ा शक भी हो गया है।कुछ बोल रहा था कया तुमको ?हाँ,