उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-7 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-7

निजी महाविद्यालय में नौकरी :-

प्रथम निकल गया। एक घंटे में वो दुर्ग पहुँच गया। सारा सामान ऊतारा और ड्राईवर के साथ ऊपर कमरे तक लेकर गया।
नमस्ते भैया, मेरा नाम गोलू वर्मा है, लाईये मैं ले लेता हूँ इसे।
अरे नही भाई।
नहीं लगता भैया, दीजिए मुझे।
अच्छा ठीक है मैं बाकी सामान ले आता हूँ।
भैया आप कहाँ काम करते हैं ?
मैं यार वो बालोद रोड पर जो कॉलेज है ना वहाँ पढ़ाता हूँ।
अरे वहीं तो बाजू वाले भैया भी जाते हैं।
अच्छा क्या नाम है उनका ?
धीरज श्रीवास्तव।
अच्छा वो हैं क्या अभी रूम में।
नहीं, अभी शायद कॉलेज गए होंगे। शाम को आते हैं तो मिलता हूँ। शाम को आप खाने के लिए कैसे करेंगे।
देखता हूँ आस-पास कही होटल हो तो खा लूंगा। ऐसा क्यों भैया, मैं बनाता ही हूँ आपके लिए भी बना दूंगा।
कोई तकलीफ नहीं होगी भैया। चलिए आपका रूम जमाते हैं।
ठीक है प्रथम ने कहा।
अरे आपके पास पंखा नहीं है क्या ?
नहीं भाई। आस-पास कहीं मिल जाएगा क्या?
उधारी में मिल जाए तो और अच्छा।
हाँ भैया बगल में ही दुकान है वो दे देगा, उधारी में।
ठीक है मंगवा लो एक फैन तीन चार सौ वाला।
ठीक है भैया मैं लेकर आता हूँ।
हैलो सर मेरा नाम धीरज है।
अच्छा, आइये धीरज जी गोलू भाई ने बताया कि आप उसी कॉलेज में काम करते हैं।
हाँ मैं वहीं पर हूँ।
वैसे किस पोस्ट पर हैं आप वहाँ पर ?
मैं वहाँ स्टोर देखता हूँ।
ओके। मैं तो टीचर हूँ पढ़ाने के लिए ज्वाइन किया हूँ।
अच्छा! कौन से विषय में ?
जूलॉजी में। गुड। अच्छा है एक साथ ही चलेंगे मंडे को ?
नहीं मंडे मैं ज्वाईन नहीं करूंगा।
क्यों ?
मंडे को मुझे रायपुर जाना है।
कैसे ?
बस कुछ काम है उसको निपटा कर आऊँगा।
फिर मंगलवार से ज्वाइन करूँगा।
अच्छा ठीक है मैं कॉलेज में बता भी दूंगा कि आप मंगलवार से आने वाले हैं।
मुझे कुछ बर्तन और राशन भी खरीदना रहेगा सर।
यही सामने ही दुकान है मैं तो वही से राशन वगैरह ले लेता हूँ।
ठीक है सर मैं भी राशन वहीं से ले लूंगा।
उधारी में कुछ समान देता है कि नहीं ?
हाँ दे देता है पर मैं ज्यादा उधारी में कुछ लेता नहीं हूँ।
अच्छा ठीक है।
गोलू फैन लेकर वापस आ गया और तीनों मिलकर फैन टाँग दिए।
भैया मैं खाना बनाता हूँ। आप बैठिए।
ठीक है गोलू। धीरज जी आप कैसे करेंगे।
मेरा तो सुबह का बनाया रखा हुआ है आप लोग खाईये। धीरज ने कहा
ठीक है। कैसा है माहौल कॉलेज का ?
ठीक ही है, आप आएंगे तो और अच्छे से पता चलेगा।
चलो ठीक है, मंगलवार से तो आना ही है।
फिर तीनो खाना खाए। थोड़ी देर छत पर टहले फिर सो गए।
सुबह प्रथम उठा और नीचे बर्तन धोने चला गया।
बर्तन लेकर वापस आ रहा था तो गोलू मिल गया भैया आप क्यों धो दिए बर्तन। मैं तो कर लेता। आखिर बर्तन तो मेरे ही हैं ना ?
अरे कोई बात नहीं गोलू।
इतने में धीरज वहाँ पर आ गया।
चलो पोहा जलेबी खाकर आते हैं यही बस स्टैंड में बजरंग होटल है। वहाँ की आप चाय पियोगे तो मजा आ जायेगा।
अच्छा चलिए।
तीनो फिर पोहा जलेबी खाने होटल चले गए।
प्रथम अब धीरे-धीरे शहर को जान रहा था। बजरंग होटल के पास ही उसने तिवारी होटल देखा जहाँ 12 रूपये प्लेट में दाल-चाॅवल और सब्जी उपलब्ध थी।
अभी तो वो तत्काल सभी पैंसे खर्च भी नहीं कर सकता था, उसके पास 3300 रूपए बचे थे और अभी भी महीना खत्म होने में 10 दिन बचे थे और नए कॉलेज में भी सिर्फ 10 दिन की ही तनख्वाह मिलनी थी। बड़ी मुश्किलों में तो वो पैसे बचा पाया था।
दोपहर और शाम को वो तिवारी होटल में ही खाना खा लिया।
भैया आप खाना कहाँ खा लिये। गोलू ने पूछा।
तिवारी होटल में भाई। कब तक तेरे साथ खाऊँगा।
क्या हुआ भैया, जब तक आप राशन और बर्तन नहीं ले लेते, तब तक खा लो।
नहीं भाई मैं एक दो दिन में ले लूंगा बर्तन।
राशन भर सामने से दिलवा देना। एक सिलेण्डर भी लेना पड़ेगा।
हाँ जहाँ से मैं लेता हूँ वहाँ से दिलवा दूंगा सिलेण्डर। सिंगल सिलेण्डर तो आराम से मिल जाएगा।
ओ के भाई।
दूसरे दिन सोमवार को प्रथम रायपुर के लिए निकल गया। वह सुबह दस बजे शास्त्री चैक रायपुर मंे पहुँच गया था। 10:30 को बस पहुँची और अनु ऊतरी।
अनु। प्रथम जोर से चिल्लाया मैं यहाँ पर हूँ।
हाँ आती हूँ। अनु ने कहा।
ठीक है।
अनु पास आई।
तुम कैसी हो ?
ठीक हूँ। आप कैसे हो ?
हाँ अच्छा हूँ। तुम्हारी तबियत कैसी है।
ठीक है दवाईयाँ चल रही हैं। लगता है आपको चिंता हो रही है कि मैं बच्चा दे पाऊँगी या नहीं ?
बच्चा प्रियारिटी नहीं है मेरे लिए अनु, तुम हो।
तुम स्वस्थ्य रहोगी तो मैं खुश रहूंगा।
अच्छा इतना चाहते हो मुझे।
तुमको क्या लगता है।
लगता तो है कि जीवन भर साथ दोगे।
चलो धन्यवाद विश्वास करने के लिए। कुछ खायी हो सुबह से।
नहीं ?
मुझे मालूम ही था। तुम अपना ही ख्याल नहीं रखोगी, तो मेरा ख्याल क्या खाक रखोगी।
नाराज हो रहे हो ?
नहीं, खुश हो रहा हूँ। चलो आलू पराठा खिलाता हूँ, सामने चिदंबरा होटल में।
चलिए।
दोनो होटल पहुँच गए।
घर मिल गया तमको ? अनु ने पूछा।
हाँ, घर नहीं बस एक रूम है किराया 300/- रूपए है बगल में 2 रूम और हैं, एक में एक कॉलेज का कर्मचारी धीरज रहता है और एक में एक कॉलेज का लड़का गोलू वर्मा। बहुत अच्छा लड़का है गोलू। बिल्कुल बड़े भाई जैसा सम्मान देता है।
वहाँ लेकिन पारिवारिक माहौल नहीं है। बैचलर के रहने भर के लिए ठीक है
कॉलेज कैसा है ?
अब कल जाऊँगा, तो पता चलेगा।
और खाने के लिए क्या करते हो ?
अब एक दिन तो गोलू ही बना दिया था बाकि कल एक होटल में खाया।
बनाते क्यों नहीं हो घर पर ?
हाँ अभी सिलेण्डर और बर्तन नहीं खरीदा हूँ।
धीरे से खरीद लूंगा और बनाऊँगा।
खाना बनाना आता भी है आपको ?
हाँ खाने लायक तो बना ही लेता हूँ। पाँच साल कॉलेज में बना कर ही खाया हूँ।
अच्छा अब ये बताओ मुझसे शादी कब करोगे ?
फिर तुम्हारी सुई शादी में अटक गई।
मुझे हर सप्ताह लड़के वाले देखने आ रहे हैं बता नहीं सकती कब निकल जाऊँगी।
होगा, धैर्य रखो, मैं चाहता हूँ कि सब माता-पिता की सहमति से हो।
आपको लगता है हमारे पैरेन्ट्स मानेंगे ?
बता नहीं सकता। मैंने तो अपने पापा से बात की थी आने से पहले ।
तो वो क्यो बोले।
विरोध तो नहीं किये पर समाज की दुहाई दे रहे थे। कि समाज वाले क्या बोलेंगे।
तुमने अपने पापा से बात की ?
नहीं मैं क्यों बात करूंगी आप आओ और बात करो।
अरे मैं कैंसे बात करूंगा।
क्यों मेरा हाथ माँगने नहीं आओगे?
देखते हैं क्या सिचुएशन बनता है ?
क्यों हिम्मत नहीं है ?
हिम्मत की बात मत करो। हिम्मत बहुत है मैं जानता हूँ कि तम भड़का-भड़का के अपना काम मुझसे करवा लेती हो। मेरे साथ राजनीति खेलती हो तुम।
अच्छा तो यही समझ लो। मुझे अभी मंगलसूत्र चाहिए।
मैं नहीं जानती। चलो अभी खरीदो।
अभी।
हाँ अभी, आपने वादा किया था ना ?
हाँ किया था लेकिन आज ?
हाँ आज ही चाहिए मुझे।
चलो ठीक है पर ज्यादा पैसे नहीं है मेरे पास।
चिंता मत करो ज्यादा पैसे खर्च नहीं कराऊँगी।
अच्छा चलो।
वो दोनो मालवीय रोड पर एक सोने की दुकान पर पहुँच गए।
भैया मंगलसूत्र दिखाईये। कम रेट का चाहिए।
अच्छा ये देखिए ये 1200 का है। दुकानदार बोला।
हाँ ये ठीक है क्यों ? प्रथम की ओर देखते हुए अनु बोली।
थोड़ा कम वाला दिखाईये ? प्रथम बोला।
अच्छा ये वाला 900 रूपये का है।
हाँ ये ठीक है क्यों अनु। प्रथम बोला।
भगो कंजूस मुझे जो पसंद आ रहा है वो लो ना?
ठीक है वहीं ले लो माता। पर कंजूस मत बोलो।
अभी माँ-बाप के घर पर हो ना इसलिए पैसे का मोल पता नहीं। एक बार मेरे पास आ जाओ फिर समझ में आएगा। मुझे एक सिंदूर डिब्बा भी चाहिए। वो भी चाँदी का।
तो फिर वो 900 वाला ही रख लो। भैया एक सिंदूर डिब्बा भी दिखा दीजिए।
ये देखिये सर ये 450 का है। दुकानदार बोला।
अरे वाह ये तो बहुत सुंदर है। अनु बोली।
ये दोनो ले लो ना प्लीज।
कितना हुआ दोनो का भैया। प्रथम बोला।
1350 रूपये हुए सर।
ठीक है चलिए दे दीजिए। वो थोड़ा पैसे को लेकर चिंतित था, पर अनु की खुशी के लिए मान गया। उसने अनु के चेहरे की तरफ देखा वो बहुत खुश नजर आ रही थी।
लीजिए 1350/- रूपये और बिल अनुप्रिया के नाम पर बना दीजिए।
अब खुश मैडम ? प्रथम ने पूछा।
हाँ बहुत खुश, पहन लूं अभी ?
अच्छा फिर तुम्हारे घर वाले मेरी आरती ऊतारेंगे।
मजाक कर रही थी। आप पहनाओंगे तभी पहनुंगी, चिंता मत करो डरपोेक।
फिर डरपोक बोली, ये बताओं तुमसे प्यार करना ही हिम्मत का काम है कि नहीं ?
हाँ ये तो आप सच बोल रहे हो। मेरे से तो ऐसे ही लोग बात करने की हिम्मत नहीं करते।
हाँ तो सोचो ऐसी खतरनाक सुंदरी से प्यार करने के लिए हिम्मत चाहिए कि नहीं।
ठीक है ठीक है बताओं यहाँ से कहाँ चले। मयंक के पास मुझे नहीं जाना है।
यहीं पास में ही मोतीबाग है वही चलकर बैठते हैं फिर तुम्हें बस स्टैण्ड छोड़ दूंगा।
ओके चलो।
मोती बाग पहुँचकर दोनो एक पेड़ की छाया में बैठ गए। मुझे हर तीसरे चैथे दिन कोई न कोई देखने आ रहे हैं। आप जल्दी कुछ करो।
हाँ अनु थोड़े दिन में ठीक ठाक स्थिति हो जायेगी। तो देखते हैं।
हमारे घर में तो रायपुर शिफ्ट करने की तैयारी चल रही है। मेरे ख्याल से अगले सप्ताह हो ही जाएंगे। अब सरकारी नौकरी छुट गई है तो सरकारी क्वार्टर भी छोड़ना पड़ेगा ना।
हाँ सही है। चलो रायपुर आ जाओगे तो कोई कोचिंग वगैरह ज्वाइन कर लेना जैसे पाथ आई.ए.एस. या और कोई।
हाँ करूंगी पर तुम्हारी नौकरी ज्यादा जरूरी है। तुम पी.एस.सी. की तैयारी करो और जल्दी सलेक्ट हो जाओ।
अभी तो इस स्थिति में नहीं हूँ अनु। पर दो-चार महीनों में स्थिति संभलेगी तो उसी पर फोकस करूंगा। परिस्थितियों से अब थोड़ी थकान होने लगी है अनु।
बस इतनी जल्दी हार गए। ये तो बस शुरूआत है महोदय।
तुम्हारा साथ हो न अनु तो मैं सारी परिस्थितियों से लड़ लूंगा।
क्यों भरोसा नहीं है मुझ पर ?
अपने से ज्यादा है अनु, शायद मैं तो हारने भी लगूं पर यकीन है कि तुम मुझे हारने नहीं दोगी। अच्छा एक इच्छा है पूरा करोगी।
बताओ ?
तुम्हारी गोदी मे लेट जाऊँ थोड़ी देर मेरी सारी थकान उतर जायेगी।
देखो ज्यादा लालच अच्छा नहीं है वैसे भी ये सार्वजनिक जगह है।
यहाँ फर्क नहीं पड़ता अनु बस 5 मिनट प्लीज ?
ठीक है लेट जाओ।
प्रथम अनु की गोद में लेट गया। उसने बेहद शांति का अनुभव किया। अनु उसके सिर पर अपना हांथ रखी थी।
प्रथम जिसे इतने दिनों से नींद नहीं आ रही थी, अनु की गोद में लेटते ही सो गया। अद्भुत शांति थी उसके मन में।
प्रथम, प्रथम ?
हाँ।
सो गए क्या ?
हाँ सो गया था शायद, एकदम गहरी नींद में।
अब उठ जाओ हम दोनो को ही वापस लौटना है।
प्रथम उठ गया और बोला थैंक्यू।
थैंक्यू किसलिए ?
तुम मेरे अधिकार में बढ़ोत्तरी की है ना इसलिए।
कैसे ?
क्यों ? मैं तुम्हारे हांथ से गोद तक पहुँच गया कि नहीं ?
अच्छा वैसे आपका तो मुझ पर पूरा अधिकार है, इसमें क्या बढ़ोत्तरी ?
ठीक है बाबा चलो चलते हैं। मैं तुमको बस स्टैण्ड तक छोड़ देता हूँ उसके बाद दुर्ग चला जाऊँगा।
अच्छा ये बताओ मैं संपर्क कैसे करूंगी।
आफिस का नम्बर दे देता हूँ। फोन करके विभाग से बुलवा लेना। अब तो मोबाईल भी आ गया है डिपार्टमेंट में किसी के पास होगा तो उसे दे दूंगा।
ठीक है। चलो चलें।
प्रथम अनु को बस स्टैण्ड में बिठाकर दुर्ग के लिए निकल गया। आज वो अनु के चेहरे पर खुशी देखकर बेहद खुश हुआ। शांति का अनुभव कर रहा था परन्तु इन सबके बाद अपने फाईनिंशियल मैनेजमेंट के बारे में भी सोच रहा था।
दूसरे दिन वो कॉलेज गया और ज्वाईन कर लिया। प्राचार्य महोदय बहुत ही अच्छे और सपोर्टिव लगे। उसने काऊँटर पर जाकर बता भी दिया कि मेरे नाम से यदि फोन आए तो बुलवा भेजें।
काऊँटर पर बैठे राजेश जी से धीरज ने परिचय करा दिया था। कोई तकलीफ नहीं थी वह बुलाने के लिए तैयार था। किसी भी वक्त।
कॉलेज का माहौल ठीक था। प्रथम को कोई परेशानी नहीं थी सिर्फ अपने फाईनेंशियल जरूरतों की चिंता थी। इसलिए घर आकर वह एक दो कोचिंग इस्टीट्यूटस में अपना बायोडाटा देकर आ गया। 2-3 दिनों के अंदर ही उसे विकास कोचिंग से फोन आया।
हैलो आप प्रथम जी है ना।
जी सर।
आप इसी महाविद्यालय में पढ़ाते हैं क्या ?
जी सर।
आपकी बायोडाटा देखी मैंने काॅफी अच्छी है। आपने लिखा है कि आपने पी.एम.टी. कोचिंग भी पढ़ाया है।
जी सर।
तो समय हो तो आज 5:30 बजे कोचिंग आ जाइए।
ठीक है सर मैं आता हूँ।
प्रथम ने राजेश का धन्यवाद किया क्योंकि वो कम से कम विभाग से उसे बुलवा तो देता था। शाम को प्रथम कोचिंग पहुँच गया।
आईये प्रथम जी बैठिए।
कहाँ पर रहते हैं आप ?
जी बस स्टैण्ड के पास ही।
रोज वहाँ से कैसे आएंगे आप ?
सर साइकिल से या पैदल आ जाऊँगा।
पर यहाँ से तो आपका घर करीब डेढ़ किलोमीटर है।
कोई दिक्कत नहीं है सर।
आप जूलॉजी वाले हैं तो पूरा बायोलॉजी पढ़ा लेंगे क्या।
हाँ बिल्कुल सर। मुझे बस किताबे दिलवा दीजिए।
अभी कोई टॉपिक पढ़ा कर दिखाईये।
जी बिल्कुल सर। चलिए।
प्रथम ने जब क्लास में पढ़ाया तो विकास सर प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके।
आप तो काॅफी अच्छा पढ़ाते हैं। विकास ने कहा।
थैंक्यू सर।
सर पेमेंट कैसे करते हैं ? प्रथम ने पूछा।
हाँ अच्छा, याद दिलाया आपने। मेरे यहाँ एक नियम है, आपके विषय के लिए जितनी भी फीस बच्चों से ली जाएगी। उसका 75 प्रतिशत आपका और 25 प्रतिशत संस्था का।
अरे वाह! ये तो बहुत अच्छा है सर।
हाँ मतलब आप जितनी अधिक संस्था अपने स्टूडेंट की संख्या बढ़ा पायेंगे उतनी अधिक आपका फायदा।
अच्छा है सर। बस एक रिकवेस्ट है इस महीने सात दिन बचे है इसका मुझे जितना भी बनता है प्लीज दे देंगे क्योंकि महाविद्यालय से भी मुझे कम ही सैलेरी मिलेगी।
ठीक है आप आज से ही क्लास ले सकते हैं। विकास ने कहा।
ठीक है सर मुझे किताब दे दीजिए मैं क्लास लेकर आता हूँ।
प्रथम क्लास लेने चला गया। उसको कॉफी प्रसन्नता हो रही थी कि यहाँ टिक गया तो उसकी आर्थिक स्थिति थोड़ी संभल जाएगी। बस उधर अनु थोड़ा धैर्य रख ले।
अनु भी परेशान थी। उनका परिवार रायपुर शिफ्ट हो गया था और उसको देखने के लिए लगातार लड़के आ रहे थे, हांलाकि बात अभी किसी के साथ नहीं बनी थी, परन्तु उसकी बैचेनी चरम पर थी। उसका मानसिक संतुलन भी थोड़ा चरमरा गया था। वह भाग जाना चाहती थी। परंतु प्रथम एक सिद्धांतवादी व्यक्ति था और अनु उसके सिद्धांतों से बंधी थी। पिता को बिना कहे तो जा ही नहीं सकती थी और प्रथम ने कहा था कि मैं तुम्हें मांगने आऊँगा। तो अनु को इंतजार तो करना ही था।
एक दिन कॉलेज में अनु का फोन आया।
हैलो।
हाँ, अनु बोल रही हूँ।
तुम रो रही हो क्या ?
हाँ मेरे नसीब में ही रोना लिखा है तो मैं क्या करूं।
इतनी निराश क्यूँ हो ?
कल एक लड़का देखने आया था मुझे और बात लगभग तय हो गई है मैं कुछ नहीं जानती आओ और पापा से बात करो।
अरे यार मुझे धर्मसंकट में क्यों डाल रही हो, मेरी स्थितियाँ अभी सही नहीं है दो चार महीनों में शायद ठीक हो जाए, तब तक तो टालो।
मैं कुछ नहीं जानती, स्थिति-परिस्थिति आप जानो। मैं और रूक नहीं सकती। आप आओ और पापा से बात करो और नहीं आ सकते तो भी बता दो।
ऐसी बात नहीं है अनु बस कुछ दिन तुमसे और माँग रहा हूँ, प्रथम ने कहा।
मेरे पास टाईम नहीं है अगर आप नहीं आए कल तो परसों मेरी मौत की खबर सुनना आप।
ये क्या बोल रही हो। ऐसा क्यों सोचती हो।
मैं कुछ नहीं जानती, आपको कल आना ही है कल 12 बजे तक अगर आप नहीं आये तो अपने ऊपर मिट्टी तेल डाल लूंगी, मैं बता रही हूँ।
पागलों की तरह हरकत मत करो तुम। मैं जितना समझाने की कोशिश करता हूँ तुम उतना ही दबाव बनाती हो।
वो सब मैं नहीं जानती। आखिरी बार बताओ मुझे आप आओगे कि नहीं ?
ठीक है मैं आता हूँ, और अगर नहीं आ पाया तो मेरी कसम है तुमको कोई गलत हरकत नहीं करना।
मैं करूंगी और मैं मजाक नहीं कर रही हूँ, ध्यान रखना।
ठीक है मैं कोशिश करता हूँ।
कोशिश नही, आपको आना ही है अगर मुझे जिंदा देखना है तो।
खटाक। अनु ने जोर से फोन पटक दी और चली गई।
प्रथम चिंतित हो गया। पहले से ही संघर्ष क्या कम थे कि ईश्वर ने उपहार में और दे दिया। वह मन ही मन सोच रहा था। वह रात भर जागता रहा। रात भर उलट-पलट कर सोचता रहा कि जाकर कहेगा क्या ? कैसे कहेगा? अगर उसके पैरेन्ट्स ज्यादा नाराज हो गये तो ? उसके भाइयों ने हाथापाई की तो मुझे बचायेगा कौन ? इस तरह के सैंकड़ों सवाल उसके मन में चल रहे थे, जिनका उत्तर शून्य था।
इसी बैचेनी में उसकी रात कट गई। पता ही नहीं चला कि सुबह हो गया। उसके पास विकल्प ही नहीं था। उसे तो जाना ही था।