उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - आधाय-5 Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - आधाय-5

शाम के 5 बजने में 2 मिनट शेष रह गये थे, वह चैक गया और एसटीडी से फोन लगाया। उसे मालूम था कि अनु फोन के पास खड़ी होगी।
हैलो, हाँ अनु तुम ठीक हो।
हाँ आप कैसे हो।
मैं भी ठीक हूँ अनु, आज स्कूल नहीं जाना था क्या? 5 बजे का टाइम दिया था तुमने ?
नहीं स्कूल तो गई थी बस तुमसे बात करनी थी करके जल्दी आ गई।
तो मुझे बताना था मैं वहीं आ जाता।
रोज-रोज देर से आउंगी ना तो घर वाले नाराज होंगे। मेरे भाई को तो थोड़ा शक भी हो गया है।
कुछ बोल रहा था कया तुमको ?
हाँ, पूछ रहा था कि किसके साथ घूम रही है आजकल। ये ठीक बात नहीं है ऐसा वैसा।
तुमने क्या बोला ?
मैं बोली, मुझे मालूम है क्या सही है और क्या गलत है।
फिर।
कुछ नहीं ऐसे ही धमकी दे रहा था।
सॉरी अनु मेरी वजह से तुम्हें तकलीफ हो रही है।
वो तो होनी ही है महोदय, आप भी तैयार रहो।
हाँ तैयार ही हूँ। अच्छा सुनों मैंने अपने पिताजी से बात की उनकी भी यही राय है कि मुझे काम्पीटिटिव एक्जाम की तैयारी करनी चाहिए और उसके लिए रायपुर जाना चाहिए। हो सकता है दो-चार दिन में रायपुर चला जाऊँ। उससे पहले क्या तुमसे मिल सकता हूँ एक बार।
भीख मांगो फिर सोचती हूँ।
ठीक है कल शाम को महामाया मंदिर में उसी सीढ़ी पर कल शाम को 5 बजे बैठी मिलूंगी।
ठीक है फिर कल मिलता हूँ।
प्रथम ने फोन रख दिया। आज उसे लग रहा था कि उसके जीवन में संघर्ष का प्रारंभ होने वाला है और यह कितना कठिन और कितना लंबा होने वाला है, इसका अंदाज भी नहीं था।
उसने अंजाने में या जान-बूझकर जैसा भी एक ऐसे राह में बढ़ने का फैसला कर लिया था जिसका भविष्य अनिश्चित था। जीवन के ऐसे मोड़ पर उसे खुद पर भी यकीन नहीं हो रहा था उसे लग रहा था कि परिस्थितियाँ शायद मेरे नियंत्रण में नहीं आ पायेंगी।
वह फोन बूथ से बाहर निकला तो उसकी नजर ग्रिटिंग कार्ड की दुकान पर पड़ी। उसने सोचा जाने से पहले अनु को याद करने के लिए कुछ स्मृति चिन्ह तो देकर जाऊँ।
वह दुकान के अंदर गया और एक अच्छी से ग्रिटिंग खरीदकर घर आ गया।

मंदिर में मुलाकात:-

अरे आइये बैठिये।
कैसे आए आप ?
बस अपनी सुपर डुपर वाहन से।
आज तुम बहुत अच्छी दिख रही हो। प्रथम ने कहा।
अच्छा पहले नहीं दिखती थी?
दिखती थी पर इस पिंक साड़ी में और भी सुंदर लग रही हो।
अच्छा।
हाँ, पिंक कलर जंचता है तुम पर।
ये क्या है आपके हांथ में ? अनु ने पूंछा।
अच्छा ये, ये मैं तुम्हारे लिये लाया हूँ।
दिखाओ! अरे वाह ये तो ग्रिटिंग कार्ड है।
कैसी वाली ग्रिटिंग लाये हो देखू तो क्योंकि अभी तो कोई अवसर भी नहीं है।
अच्छा आई लव यू ग्रिटिंग। बोलने की हिम्मत तो है नहीं। ग्रिटिंग कार्ड देने की बड़ी हिम्मत दिखा रहे हो।
क्यों! बोला तो था।
तुम कहाँ बोले वो तो मुझे ही जोर जबरदस्ती से प्रयास करके बोलवाना पड़ा था। अन्यथा तुम तो हिम्मत ही नहीं करते।
अच्छा बताओं क्या मैं तुमको छू सकता हूँ?
बिल्कुल नहीं। अनु ने उत्तर दिया।
प्लीज।
बिल्कुल नहीं, अनु ने फिर से कहा और प्रथम का हांथ पकड़ी और चूम ली।
प्रथम खुश हो गया बोला - अरे वाह आज तो गजब हो गया, बिन मांगे मोती मिले, मांगे मिले ना भीख।
बस आज के लिए इतना ही महोदय।
अरे, इतने के सहारे तो मैं पूरी जिंदगी काट दूंगा।
क्यों मैं नहीं चाहिए हूँ। अनु ने पूंछा ?
चाहिए हो ना, बिल्कुल चाहिए हो।
तो फिर जल्दी से नौकरी ढूँढो और मुझे ले जाओ।
वही बताने तो आया था तुमको। मैं सोमवार को रायपुर चला जाऊँगा।
समान तैयार कर लिये ?
नहीं बस कपड़े लेकर जाऊँगा। वहीं जाकर 200-300 रूपये में एक गद्दा खरीद लूंगा और जमीन पर सोऊँगा। मयंक बता रहा था कि पास में एक टिफिन सेंटर है जो 600 रूपये में दोनो टाइम टिफिन देता है उसी को बंधवा लूंगा।
पैसे हैं आपके पास? अनु ने पंूछा।
हाँ इस महीने की तनख्वाह है अभी मेरे पास। कल ही मिले है 1800 सौ रूपए। एक महीने के लिए काफी है। अब पैरेन्ट्स से तो माँग भी नहीं सकता।
और आने-जाने के लिए कैसे करोगे ?
कहाँ आने-जाने के लिए।
कोचिंग जाना हुआ या जॉब के लिए जाना हुआ तो ?
सोच रहा हूँ एक साइकिल खरीद लूंगा।
आप साइकिल चलाओगे। अनु ने पूंछा।
हाँ क्यों ? पूरी पढ़ाई करते तक तो साइकिल से ही कॉलेज कॉलेज गया हूँ।
तब की बात अलग थी, अब उस बात को बीते जमाना हो गया। अब आप सालों से स्कूटर और कार चला रहे हो। कैसे करोगे मैनेज, मुझे तो अभी से चिंता हो रही है।
चिंता क्यों कर रही हो फिर से आदत बन जाएगी और वैसे भी अंतर सामाजिक शादी करंेगे तो कोई तुम्हारी आसानी से मदद नहीं करने वाला। इसलिए अब अपने से करना सीखो और मुझे भी सिखाओ।
अनु की आँख में आंसू आ गये।
ये सब मेरी वजह से ना ?
अरे नहीं, बाबा मुझे भी तो अपना जीवन बनाना है।
मुझे माॅफ कर दो। अनु बोली।
किस बात के लिए?
बस ऐसे ही।
अगली बार जब मिलेंगे तब सोचूंगा। ये लैंडलाईन नम्बर है मकान मालिक का, मयंक ने दिया था इसे रख लो। बहुत मन करे मुझसे बात करने का तो फोन कर लेना।
ठीक है। अनु ने कहा।
चलो तुमको छोड़ देता हूँ घर तक, कैसे आई हो ?
रिक्शे से।
अच्छा फिर चलो।
आपको छू सकती हूँ। अनु ने पूंछा।
तुम मुझसे पंूछ रही हो।
हाँ, दिखाओं हांथ, उसकी आँखे गीली थी। उसने प्रथम के हाथ को चूमा और उससे अपनी आखें मूंद ली।
प्रथम का हांथ उसके आँसूओं से गीला हो गया।
तुम क्यों रो रही हो तुम तो मेरी शेरनी हो। तुम सिर्फ आर्डर दिया करो तभी मुझे अच्छा लगता है।
मुझे एक मंगल सूत्र खरीद दोगे ?
अभी से।
हाँ मन कर रहा है। अनु ने कहा।
अच्छा ठीक है तुम जब कभी रायपुर आओगी तो पक्का खरीद दूंगा। तब तक थोड़े पैसे भी इकठ्ठा कर लूंगा।
ठीक है चलो।
चलो मैं तुमको घर छोड़ देता हूँ ।
प्रथम अपने स्कूटर से अनु को उसके घर छोड़ आया। रास्ते में ही उसके छोटे भाई ने उन दोनों को साथ जाते देख लिया था। प्रथम अनु को छोड़कर अपने घर पहुँचता उससे पहले ही अनु का भाई उनके घर पहुँच गया। और उनके पिताजी को बोला -
देखिए अंकल जी आपका बेटा मेरी बहन को बहला फुसला रहा है। उससे कहिए कि अपना देखे नहीं तो मैं छोड़ूँगा नहीं उसको।
और वो वहाँ से वापस आ गया।
प्रथम जब पहुँचा तो उसके पिता सामने ही बैठे थे।
आओ बैठो पिताजी बोले।
जी पिताजी।
देखो बेटा अभी तुम्हारी उम्र ऐसी है कि मन इधर-उधर भागता रहता है ऐसे में किसी के चक्कर मे फसने के बजाए अपना जीवन बनाने पर केन्द्रित करो।
वैसे भी हम अलग समाज के हैं और वो लोग अलग समाज के। आसानी से सब चीजें सही नहीं हो सकती। कोशिश करो कि पहले अपना जीवन बनाओं फिर इन सब के विषय में सोचना। तुम रायपुर जाकर तैयारी करना चाहते थे ना ? तो जाओ कोचिंग करो, एक्जाम दिलाओं, नौकरी ढंूढो और पहले सेटल हो जाओ।
प्रथम सिर झुकाकर बैठा था।
जी पिजाजी, वह बोला।
तो फिर अपना सामान वगैरह पैक कर लो और कुछ पैसे चाहिए तो बताओ।
नहीं पिताजी, अभी तो पैसे हैं मेरे पास।
ठीक है जाओ। पिताजी ने कहा।