उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-12 - अंतिम भाग Bhupendra Kuldeep द्वारा प्रेम कथाएँ में हिंदी पीडीएफ

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उड़ान, प्रेम संघर्ष और सफलता की कहानी - अध्याय-12 - अंतिम भाग

तैयारी:-

इस बार फिर प्रथम ने दोनो का पीएससी फार्म भरा, और तैयारी में जुट गए ।
आज स्कूल में कुछ पढ़ी कि नही ? प्रथम ने पूछा
नही आज ज्यादा टाईम नही मिला। आपने अपना हिस्सा पढ़ लिया ? अनु पूछी।
हाँ मैने तो पढ़ लिया।
तो मुझे पढ़ाओ।
क्या ?
संविधान ?
हाॅ, अनुच्छेद 70 से 80 बता दो।
अच्छा ठीक है तुम चाय बनाओ मैं बताते जाता हूँ जहां समझ ना आए पूछ लेना।
प्रथम अनु को पढ़ाने लगा।
रूको थोड़ा मै वाशरूम से आती हूँ, अनु बोली।
मैं सुनाते रहता हूँ तुम वही सुन लेना।
ठीक है जोर-जोर से पढ़ो। अनु बोली।
इस तरह प्रथम और अनु के जीवन में पीएससी के अलावा कुछ भी नही था। ना वे अब लड़ते झगड़ते थे, ना फिल्म जाते थे, ना घूमने जाते थे। सिर्फ पढ़ाई। रात को दो बजे अगर नींद खुल जाती थी तो अनु उठकर पढ़ाई करना चालू कर देती थी। प्रथम तो बहुत खुश था कि अनु फिर से उत्साह मे आ गई है संभव है इस बार वो परीक्षा निकाल ले।
कुछ दिनो बाद पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा थी दोनो की तैयारी लगभग चरम पर थी।
अनु इस बार कोई चूक नहीं करना। प्रथम बोला।
पता नहीं मुझे एक्जाम हाॅल में जाने के बाद क्या हो जाता है। मेरी मानसिक स्थिति एकदम डावाडोल हो जाती है। कुछ समझ में नही आता।
पर इस बार बहुत सोच-विचार कर पेपर बनाना। इस बार तुमसे बहुत उम्मीदें है अनु।
और पे्रशर मत डालो मेरे ऊपर। नहीं हुआ तो मै खुद ही नहीं सहन कर पाऊँगी।
अरे प्रेशर नहीं डाल रहा हूँ बस अपने मन को शांत रखो और इसी शांत मन से बनाओं।
प्रारंभिक परीक्षा हो गई ।
पेपर दोनो का अच्छा गया पर अब अनु मिलान करना नहीं चाहती थी। क्योंकि उसे पता था मिलान करने पर और दुख होता है और ये संदेह की स्थिति को और बढ़ा देता है।
दोनो सिर्फ परिणाम की प्रतीक्षा करने लगे।
और मुख्य परीक्षा के लिए किताबें भी इकट्ठा करने लग गए थे। उनको ईश्वर पर विश्वास था।
एक दिन अनु आटा गुंथ रही थी कि प्रथम आया अनु को पीछे से पकड़ा और चूम लिया।
अरे!!! ये क्या? क्या बदमाशी है आप हमेशा ऐसा ही करते हो और आपको देखकर आपका छुटकु भी ऐसा ही करता है। चुपचाप आता है और चूमकर भाग जाता है। बिलकुल आप पर गया है।
तो अच्छी बात है ना प्रिये मुझ पर नही जाएगा तो किस पर जाएगा ? सोचो जरा, कितनी किस्मत वाली हो तुम, दो पुरूषों का प्यार एक साथ मिल रहा है तुमको।
अच्छा पुरूष ? अनु बोली
तो क्या ? तम्हारा बेटा पुरूष नहीं है क्या। हो कि नहीं नसीब वाली तुम, बताओ। प्रथम बोला।
नसीब की तो बात ही मत करो आप। नसीब बुलंद होता मेरा तो सलेक्शन नहीं हो जाता।
अरे वही तो बताने आया हूँ। तुम्हारा सेलेक्शन हो गया है और मेरा भी। इधर देखो तुम्हारा रोल नं.। प्री का रिजल्ट आ गया है हम दोनों का निकल गया है।
ओ गॉड ! सही बोल रहे हो आप ? अनु बोली।
हाँ भाई, बिलकुल सही बोल रहा हूँ। तुमने प्री निकाल लिया है अब मुख्य परीक्षा की तैयारी करो।
अनु बेहद खुश थी कि उसका प्री निकल गया। वो मुख्य परीक्षा की तैयारी में जुट गई। इधर प्रथम के कॉलेज मे चर्चा का विषय था कि प्रथम ने पीएससी की प्रारंभिक परीक्षा निकाल ली। दोनों के लिए ये अद्भुत पल था और मुख्य परीक्षा एकदम नया अनुभव।
दोनो ने बड़े उत्साह के साथ मुख्य परीक्षा दिलाना आरंभ किया। दोनो के रोल नं. आगे पीछे ही मिले थे। एक साथ एक कमरे में आगे पीछे बैठने का मौका मिला।
गणित वाले प्रश्न पत्र के दिन आखिरी 15 मिनट जब रह गये तब प्रथम ने धीरे से अनु को पलट कर पूछा।
बन गया तुुम्हारा ?
हाँ आखिरी प्रश्न कर रही हूँ।
कौन सा ? वो 40 नं. वाला।
हाँ वहीं।
उसमें तो अथवा है कौन सा कर रही हो ?
मैं तो थ्योरी वाला कर रहीं हूँ। आप भी उसी को कर लो आराम से 20-25 नंम्बर मिल जाएगा।
नहीं यार मैं तो सांख्यिकी वाला करूँगा। वो मुझे आता है अगर सही बना तो पूरे 40 नम्बर मिलेंगे।
अरे मेरी बात मानो। अगर एक भी स्टेप गलत हो गया तो पूरे नं. चले जाऐगें। अनु बोली।
चलो मैं देखता हूँ डिसाईड नहीं कर पा रहा हूँ। तुम जो भी हो बना लो।
ठीक है आप भी देखकर बनाना। अनु बोली
प्रथम ने सांख्यिकी वाला प्रश्न अटेम्ट किया उसको मालूम नहीं था कि ये उसकी बहुत बड़ी गलती बनने वाली है।
मुख्य परीक्षाएं खत्म हो गयीं। इसी बीच व्यवसायिक परीक्षा मंडल द्वारा कुछ-कुछ पदो के लिए विज्ञापन आने चालू हो गए।
प्रथम दोनो के लिए सभी फार्म भरने लगा।
अब दोनो की आर्थिक स्थिति भी संभल गई थी ।
दोनो मिलकर 20-25 हजार आराम से वेतन हासिल कर लेते थे इसलिए वह सभी फार्म भरने में सक्षम था। परन्तु परीक्षाएं दोनो एक भी नहीं निकाल पा रहे थे।
फिर एक दिन मुख्य परीक्षा का परिणाम आया और दोनो का चयन हो गया
दोनो खुशी से पागल हो गये।
उन्हें अपने सपनो की मंजिल दिखाई देने लगी।
तुमको मालूम है अनु साक्षात्कार में क्या होता है ?
नहीं! मेरे ख्याल से हमें जितेन्द्र भैया से या पार्थ आई ए एस अकाडेमी वाले भैया से बात कर लेनी चाहिए।
ठीक है मैं फोन लगाता हूँ।
प्रथम ने पार्थ आई ए एस अकादमी के संचालक को फोन लगाया।
हेलो हामिद।
हाॅ भैया प्रणाम।
बहुत बधाई हो आप दोनो को
बताइये।
बस यार मुझे साक्षात्कार के बारे में जानना था। प्रथम बोला
हाँ भैया। इन्टरव्यू बोर्ड मे पाँच लोग मैक्जिमम रहेंगे। जिसमें एक्सपर्ट के अलावा एक मनोविश्लेषक भी हो सकता है।
अच्छा।
आपके बायोडाटा की पाँच प्रति उन सभी के पास होती है।
तो सबसे पहले जो सवाल उनकी ओर से आयेंगे वो आपके बायोडाटा के ऊपर रहेंगे। आपका नाम, उसका अर्थ, आपका निवास स्थान उसका इतिहास महत्व, आपकी अभिरूचि, आपका एजुकेशन इन सबसे संबधित सवाल बहुत कॉमन हैं।
और क्या पूछ सकते है ? प्रथम पूछा।
और समसामयिक घटनायें, उस दिन का महत्व इतिहास विश्व परिदृश्य, शासन से संबधित सवाल ये सब की तैयारी आप लोग अच्छे से कर लिजिए।
और क्या ख्याल रखना है। प्रथम ने पूछा।
और आप क्या पहन कर जाते है। किस कलर की ड्रेस पहनते है आपका अपीयरेंस, आत्मविश्वास, बैठने का तरीका, सकारात्मकता ये सब भी बहुत महत्व रखता है देखिए भैया पी.एस.सी. ने पहले ही आपके ज्ञान की परीक्षा ले ली है। अभी तो सिर्फ आपके व्यक्तित्व परीक्षण के लिए बुलाया जाता है। कई लोगों का तो सिर्फ नाम पता पूछकर ही चयन हो जाता है और कई लोग देर तक इंटरव्यू देकर आते हैं फिर भी सलेक्शन नहीं होता है। इसलिए आप सिर्फ अपनी तैयारी कीजिए, बाकी जिसको मानते हैं उस पर छोड़ दीजिए।
धन्यवाद भाई तुमने काॅफी चीजें क्लीयर कर दीं, मैं और अनु इसी अनुसार तैयारी करेंगे।
दोनो ने उसी अनुसार तैयारी की और साक्षात्कार दिलाया।
रिजल्ट आ गया अनु। प्रथम ने कहा।
अरे वाह देखो तो क्या हुआ।
अभी तो मेरिट सूची जारी हुई है। चयन सूची थोड़े दिनों में आएगा।
तो आपका कौन सा रैंक है।
614। प्रथम ने कहा।
और मेरा 902 रैंक।
ओ। तो मुझे शायद चयन सूची में कोई पद नहीं मिल पायेगा। आपको शायद मिल सकता है। मेरी तो पूरे एक साल की मेहनत बेकार हो गई।
देखो अनु सफलता-असफलता तो लगा रहता है। हम फिर तैयारी करेंगे।
अनु एकदम निराश हो गई थी कि इतनी मेहनत करने के बाद भी उसे सफलता नहीं मिली।
दो दिन बाद पद आबंटन की सूची आ गई। प्रथम को आयकर निरीक्षक की प्रतीक्षा सूची में स्थान मिला था।
क्या हूआ प्रथम जी आपका। अनु पूछी।
कुछ नहीं यार आयकर निरीक्षक की प्रतीक्षा सूची में पहले नम्बर पर नाम है। कोई एक पद छोड़ देगा तो मिल जाएगा।
चलो ठीक है मतलब उम्मीद है। अनु ने कहा।
हाँ देखते हैं। पर कुछ तो कमी रह गई हमारे तैयारी में अनु। लगता है थोड़ा और मेहनत करना पड़ेगा।
मैं तो अब तैयारी नहीं करूँगी।
क्यों ? ऐसा तो चलता रहेगा। मुझे मालूम है एक साल इतनी मेहनत करके अगर कुछ हासिंल ना हो तो कितनी निराशा होती है, पर तुम्हारे पास खोने के लिए कुछ नहीं है सिवाए अवसर के और अवसर तो अभी बाकी है।
आप ही पढ़ों। जब अगला विज्ञापन निकलेगा, तब सोचूंगी।
पर अनु मेरे मन में ये बात आ गई है कि हम क्या इतने कमजोर हैं कि 300 में से एक पद भी हासिंल ना कर सकें। ये तो शर्म की बात है। अब मेरे लिए तो चैलेंज बन गया है कि एक ना एक एक्जाम तो निकालूँ।
ठीक है आप पढ़ों मैं साथ दूँगी परन्तु आपको परीक्षा निकालने पर ज्यादा फोकस करना है।
ये क्या बात हुई। पढ़ाई तुमने चालू किया था अनु। मैं तो सिर्फ तुम्हारा सपोर्ट कर रहा था। अब सब उल्टा हो गया है, मैं पढ़ाई करूँगा और तुम सपोर्ट करोगी। ये तो गलत है।
क्या गलत है इसमें ? आप सलेक्ट हो जाएँ या मैं सलेक्ट हो जा ऊँ, मतलब तो इस घर की सफलता से है ना ?
हाँ वो तो ठीक है पर तुमको भी सफलता के लिए उतनी ही कोशिश करनी है तभी मैं पढ़ूँगा।
चलो ठीक है। अनु ने उत्तर दिया।
इस घटना ने प्रथम को कमजोर करने के बजाए और मजबूत किया वो दिन रात मेहनत करने लगा। स्थिति इस कदर हो गई थी कि प्रथम ने तो इसे चैलेंज के रूप में ले लिया था।
आगे व्यावसायिक परीक्षा मंडल छत्तीसगढ़ द्वारा छात्रावास अधीक्षक की परीक्षा हुई। दोनों ने इस परीक्षा को दिलाया। इसमें प्रथम को 146 रैंक था और अनु का 913। पद ज्यादा होने की वजह से प्रथम को अवसर मिला गया। परंतु पोस्टिंग बहुत बाहरी इलाके में होने की वजह से और वेतन भी कम होने की वजह से उसने इसे ज्वाइन नहीं किया।
कुछ दिनों बाद सहायक पशु चिकित्सा क्षेत्र अधिकारी का एक्जाम हुआ, जिसमें प्रथम को 27वां रैंक मिला। यह उसे अपने परिवार से अलग कर रहा था और वेतन भी कम था इसलिए इसे भी ज्वाइन नहीं किया। प्रथम की इच्छा कुछ बड़ा हासिंल करने की थी और अपने परिवार के साथ रहने की थी। इसलिए वह इन अवसरों से समझौता कर रहा था। उसका आत्मविश्वास तीन साल की मेहनत से काॅफी प्रबल हो गया था। अब उसे विश्वास हो गया था कि इंसान जितनी मेहनत करता है भाग्य उसके उतने ही नजदीक आता है। वो और भी अधिक योजनाबद्ध तरीके से मेहनत करने लगा।
प्रथम और अनु ने पी.एस.सी. की परीक्षा फिर से दी। अनु प्रारंभिक नहीं निकाल पाई परन्तु प्रथम ने निकाल लिया। प्रथम ने मुख्य परीक्षा तथा साक्षात्कार दोनो दिलाया। उसका रैंक सुधरा किंतु पद कम होने की वजह से उसका चयन फिर नहीं हुआ। उसका मनोबल टूटा नहीं उसने फिर खाद्य सुरक्षा अधिकारी का एक्जाम दिलाया और इस बार तीसरा रैंक हासिंल किया। ये उसके लिए बड़ी उपलब्धि थी। परंतु नियति को कुछ और ही मंजूर था। काॅउसिंलिंग में बताया गया कि उसने जिस विषय से स्नातकोत्तर किया उसका स्नातक स्तर पर भी होना अनवार्य है। हाॅलांकि ये बात विज्ञापन में कहीं लिखा नहीं था जिस पद पर ज्वाॅइन करने के लिए सोचा उससे उसे चयनित होने के बावजूद वंचित किया गया। उसने तय किया कि वह इसके खिलाफ हाईकोर्ट में अपील करेगा। वह दो साल तक इसके लिए लड़ता रहा। अंततः उसे जीत हांसिल हुई। कोर्ट ने उसके पक्ष में फैसला सुनाया। परंतु इस बीच में पी.एस.सी. द्वारा वैज्ञानिक अधिकारी गृह विभाग और एक प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी की परीक्षा के लिए विज्ञापन निकाला गया। प्रथम ने दोनो आवेदन किया था। उसने संघ लोक सेवा आयोग द्वारा आयोजित सहायक आयुक्त भविष्य निधि का लिखित परीक्षा भी निकाल लिया था। बीच में वैज्ञानिक अधिकारी का भी परिणाम पी.एस.सी. ने लिखित और साक्षात्कार के बाद जारी किया जिसने प्रथम को आठवाँ स्थान मिला।
ये सब परीक्षाएँ उसे इतना आकर्षित नहीं कर रहे थे। जितना प्रथम श्रेणी अधिकारी की परीक्षा उसे आकर्षित कर रही थी। उसे बड़ी तन्मयता और लगन से ये परीक्षा दिलाई थी। उसकी इच्छाशक्ति इतनी प्रबल थी कि उसे विश्वास था कि हजारों लोगों के मध्य उसका चयन शायद हो जाएगा। जब साक्षात्कार के लिए मेरिट सूची जारी हुई तो उसका नाम था। अब उसको यकीन हो गया था कि पद तो कम है पर शायद उसका चयन हो जाए। परंतु तभी किसी ने उस परीक्षा के खिलाफ हाईकोर्ट में स्टे लगा दिया। प्रथम को फिर निराशा ने घेर लिया।
अब चार सालों तक परीक्षाओं से संघर्ष करने के बाद उसकी हिम्मत भी थोड़ी कमजोर पड़ गई थी। उसने सोचा छोटे पद तो मिल ही रहे हैं तो कोर्ट जाने से क्या फायदा। परंतु अनु के समझाने पर प्रथम ने फिर वकील करके सभी अभ्यिर्थियों के साथ एक पिटिशन दाखिल किया। ताकि स्टे खुले और साक्षात्कार का आयोजन हो।
स्टे खुलने के लिए लगभग डेढ़ वर्ष लगा।
और पी.एस.सी ने तत्काल साक्षात्कार का आयोजन किया।
जब वह साक्षात्कार से वापस लौट रहा था। बीच रास्ते में ही उसके एक अभ्यर्थी मित्र ने फोन किया कि परीक्षा परीणाम घोषित कर दिया गया है और उसने मतलब प्रथम ने पूरे राज्य में प्रथम स्थान प्राप्त किया है।
ये शब्द प्रथम के लिए अतुलनीय थे, अद्भुत थे।
आज बरबस ही उसे सारे संघर्ष, सारी घटनाएँ एक-एक करके याद आ गई। कितनी कठिन दिनों को उसने देखा था। उसकी आँखे गीली थी। उसने अनु को चूमा और कहा थैंक्स अनु।
किसलिए ? अनु ने पूछा।
इसलिए कि तुमने मेरा सुख में, दुख में, हार में, जीत में, भरपूर साथ दिया। ये सफलता तुम्हारे बगैर अधूरी है। इस सफलता का आधा श्रेय तुम्हारा है। प्रथम ने रूँधे गले से कहा। इसमें कोई नई बात नहीं है प्रथम जी। मैं आपकी पत्नि हूँ सुख में हो चाहे दुख में हो, हमेशा आपका साथ देना मेरा धर्म है। आपने मेहनत की और जोरदार मेहनत की इसलिए आपको बड़ी सफलता मिली है। एक-एक सीढ़ी चढ़कर आपने प्रथम स्थान हासिंल किया है, मुझे आप पर गर्व है।
एक महीने के बाद उसे ज्वाइनिंग मिल गई। उसने संघर्ष करके वो सब हासिंल कर लिया जिसका उन दोनो ने सपना देखा था। बड़ी सरकारी नौकरी, बड़ी गाड़ी, सरकारी बंगला, नौकर चाकर, सेक्युरिटी गार्ड सब कुछ जो उसने सोचा था। फिर उस पर माननीय मुख्यमंत्री के हाथों से सफलता हेतु सम्मानित होना उसके लिए और गर्व का विषय था। एक दिन उसके पुराने कॉलेज के चेयरमैन ऑफिस आए। प्रथम ने खड़े होकर उसका स्वागत किया।
प्रथम सर हमें और हमारे महाविद्यालय को आप पर गर्व है। हमारे यहाँ आखिरी हफ्ते में प्रतिभा सम्मान समारोह है। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि के लिए आपसे बेहतर मुझे और कोई नहीं लगा। क्या आप मुख्य अतिथि बनने के लिए अपनी स्वीकृति देंगे।
बिल्कुल सर। आपके महाविद्यालय ने मेरे जीवन के बदलाव में बड़ी भूमिका निभाई है आपके बुलावे पर आना तो मेरा कर्तव्य है। प्रथम ने कहा।
सिर्फ इतना कहूँगा सर कि ऐसे ही विनम्र रहिए ऐसे ही अपने पाँव जमीन पर रखिए, देखिए कि आप आसमान की बुलंदियों तक जाएंगे। त्रिपाठी जी ने कहा और चले गए।
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भूपेन्द्र कुलदीप, राज्य विश्वविद्यालयीन सेवा के प्रथम श्रेणी राजपत्रित अधिकारी हैं। वे उच्च शिक्षा विभाग, छत्तीसगढ़ शासन के अंतर्गत उपकुलसचिव के पद पर वर्तमान में हेमचंद यादव विश्वविद्यालय दुर्ग में पदस्थ हैं। यह उनकी पहली कृति है जो बोलचाल की भाषा में लिखी गई है। अतः आप अपना मूल्यवान सुझाव व समीक्षा उन्हें bhupendrakuldeep76@gmail.com पर प्रेषित कर सकते हैं। जिससे अगली कृति को बेहतर ढंग से लिखने में सहयोग मिले।