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तानाबाना - उपन्यास
Sneh Goswami
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
आज किसी ने पांच छह लाईन मेंं परिचय माँगा, बड़ी दुविधा में जान आ गई।भला आधी सदी की बात कुल जमा चालीस शब्दों या चार सतरों में कोई कैसे लिख सकता है । जिन्दगी भी ऐसी वैसी नहीं, एकदम ऊबड़ खाबड़।एक पल हँसी तो दो दिन की सिसकियों वाला रोना।हर पल मैलोड्रामा।ऐसी जिंदगी कि कम से कम दस फिल्में बनाने का मसाला समेटे हुए है।तो भई हमने भी तय कर लिया है, लिखेंंगे तो दो सौ पन्ने लिख डालेंगे।अब यह मत कहना कि बोर हो गए।पहली बात तो रब झूठ न बुलाए, बोर हो नहीं सकते और अगर कहीं होने
आज किसी ने पांच छह लाईन मेंं परिचय माँगा, तो बड़ी दुविधा में जान आ गई।भला आधी सदी की बात कुल जमा चालीस शब्दों या चार सतरों में कोई कैसे लिख सकता है ? जिन्दगी भी कोई ऐसी वैसी ...और पढ़ेएकदम ऊबड़ खाबड़।एक पल हँसी तो दो दिन की सिसकियों वाला रोना।हर पल मैलोड्रामा।ऐसी जिंदगी कि कम से कम दस फिल्में बनाने का मसाला समेटे हुए है।तो भई हमने भी तय कर लिया है, लिखेंंगे तो दो सौ पन्ने लिख डालेंगे।अब यह मत कहना कि बोर हो गए।पहली बात तो रब झूठ न बुलाए, बोर हो नहीं सकते और अगर कहीं होने की ....
तानाबाना – 2 झीनी बीनी चदरिया के ताने की पहले दो तारों की बात मैंने शुरु की ही थी कि एक तार खट से टूट गया । दूसरा तार उलझ कर स्वयं से ही लिपट गया । ...और पढ़ेयह साल था उन्नीस सौ चालीस का साल जब भारत जो तब हिन्दोस्तान के नाम से जाना जाता था ,में राजनीतिक और सामाजिक उथलपुथल का वर्ष था । एक तरफ आजादी का संघर्ष चरम पर था तो दूसरी ओर मिशनरी तथा ब्रह्मसमाज जैसी संस्थाओंके प्रयासों से भारत में आधुनिक शिक्षा का प्रचार प्रसार हो रहा था । युवक थोङा बहुत पढकर
तानाबाना 3 यह वह समय था जब एक ओर लक्ष्मीबाई , अहिल्याबाई , देवीचेनम्मा , महारानी पद्मावती की वीरता की कहानियाँ घर घर कही सुनी जाती थी पर घर की औरतों को दबा कर रखा जाता । ...और पढ़ेससुराल कहीं उनकी कोई सुनवाई नहीं थी । इसी कुल की एक महिला की कहानी सुनिए , खुदबखुद उस समय की औरतों की हालत का अंदाज हो जाएगा । इसी परिवार के एक लङके की शादी हुई । वधु सामान्य कदकाठी की साँवली सी लङकी थी । नैन नक्श भी बिल्कुल साधारण । तब दूल्हा दुल्हन को देखने दिखाने का
तानाबाना 4 उस लङकी के इस तरह लापता हो जाने पर चार दिन तो उसकी चर्चा रही फिर उसे सपने की तरह भुला दिया गया । इस घटना को घटे महीने से एक दो दिन ज्यादा ...और पढ़ेहोंगे कि एक दिन पङोस की ताई चूल्हे की आग लेने चौके में आई । आज की पीढी को हो सकता है , बात हजम न हो । लाईटर से या आटोमैटिक गैस चूल्हे जलते देखने वाली पीढी की जानकारी के लिए बता दूँ । इसी इंडिया में माचिस से दिया या चूल्हा जलाना अपशगुण माना जाता था । रसोई का
तानाबाना 5 पास पङोस की हैरानी , चिंता , ईर्ष्या , निंदा चुगली चलती रही । इन सब से बेपरवाह दुरगी पहले की तरह घर के काम काज में जुटी रहती । दोपहर में थोङा फुरसत होती ...और पढ़ेचरखा लेकर बैठ जाती । ये स्वदेशी अपनाओ के दिन थे । जगह जगह विदेशी कपङों की होली जलाई जा रही थी । घर घर चरखे घूम रहे थे । क्या औरतें क्या मरद सब दिन में एक दो घंटे चरखा जरुर कातते । हथकरघे चलने शुरु हो रहे थे । औरतें घर में दरियाँ ,खेस , दोहर बुनती । अपनी