Anjane lakshy ki yatra pe book and story is written by Mirza Hafiz Baig in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Anjane lakshy ki yatra pe is also popular in रोमांचक कहानियाँ in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
अनजाने लक्ष्य की यात्रा पे - उपन्यास
Mirza Hafiz Baig
द्वारा
हिंदी रोमांचक कहानियाँ
व्यापारी ने बूढ़े की खूब आव भगत की और कुत्ते को भी बहुत अच्छी तरह अलग कमरे मे रखा । और अपने नौकरो को उन दोनो की सेवा मे लगा दिया । आखिर वह बूढ़ा सन्तुष्ट हो गया और उसे अपना कुत्ता बेचने पर राज़ी हो गया ।
लेकिन कुत्ते की कीमत चुकाने मे उस व्यापारी को अपना सारा व्यापार और सारी सम्पत्ति बेचनी पड़ी । अब उसके पास सिर्फ़ वह पुश्तैनी मकान ही बचा रह गया । लेकिन व्यापारी के लिये यह भी कोई घाटे का सौदा नही था - - - और बहुत कुछ पढ़ें इस भाग मे ।
व्यापारी ने बूढ़े की खूब आव भगत की और कुत्ते को भी बहुत अच्छी तरह अलग कमरे मे रखा । और अपने नौकरो को उन दोनो की सेवा मे लगा दिया । आखिर वह बूढ़ा सन्तुष्ट हो गया और ...और पढ़ेअपना कुत्ता बेचने पर राज़ी हो गया । लेकिन कुत्ते की कीमत चुकाने मे उस व्यापारी को अपना सारा व्यापार और सारी सम्पत्ति बेचनी पड़ी । अब उसके पास सिर्फ़ वह पुश्तैनी मकान ही बचा रह गया । लेकिन व्यापारी के लिये यह भी कोई घाटे का सौदा नही था - - - और बहुत कुछ पढ़ें इस भाग मे ।
पहले भाग एक व्यापारी और कुत्ते वाला बूढ़ा मे आपने पढ़ा किस प्रकार वह व्यापारी लालच के वश मे अपना व्यापार छोड़ खजाना खोजने निकला और उसी डाकू के चंगुल मे जा फ़सा जिसे उस बूढ़े ने धोखा दिया ...और पढ़े। अपनी जान बचाने उसे डाकुओं की शर्त माननी पड़ी और डाकुओं के लिये खजाने की खोज करना स्वीकर करना पड़ा … आगे कौनसी घटनायें उसका इंतज़ार कर रही थी जानने के लिये पढ़िये इस द्वितीय भाग भेड़ियों का घेरा मे ।
रहस्य रोमान्च से भरी कथा । पूर्ववर्ती दोनो भाग के बाद पढ़ें…… ...और पढ़े मुझे लगा मेरी बंद आखों के ऊपर कोई प्रकाशपुन्ज धीरे-धीरे मेरे अस्तित्व को सहला रहा है । वह धीरे-धीरे मेरे शरीर को गर्म कर रहा है । यह प्रकाशपुंज निश्चय ही बड़ा दयालू है । क्या यह ईश्वर की दया का प्रकाश है क्या वह ऐसा ही दयालू है । क्या यह स्वयं ईश्वर का ही आलोक है । मै तो धन्य हो गया ।
धीरे-धीरे मेरे शरीर मे शक्ति का संचार होने लगा और इसी के साथ असंख्य सुईयों के चुभने का अहसास भी होने लगा । मेरा शरीर हिल-डुल नही पा रहा था । मेरी पलकें सूजी हुई और भारी थी । मै आखें भी नही खोल पा रहा था । मुझे लगने लगा जैसे हज़ारो कीड़े मेरे शरीर पर रेंग रहे है । क्या मै फ़िर से नर्क मे फ़ेंक दिया गया हूं ।
जो इसके पहले तीन भाग पढ़ चुके हैं, आगे पढ़ें_ _ _ लेकिन यह क्या … अचानक मेरे रोंगटे खड़े होगये । उस पहाड़ के ऊपर एक दैत्य की सी आकृति उभर आई । वह धीरे धीरे ऊपर की ...और पढ़ेबढ़ रहा था । ऊपर पहुंच कर वह रुका और निश्चल खड़ा हो गया । प्रकाश उसके पीछे होने के कारण वह सिर्फ़ एक छाया सा प्रतीत हो रहा था । उसका लम्बा कद और चौड़े कंधे और बेतरतीब बिखरे हुये बालों वाला उसका सर देखकर मै बुरी तरह घबरा गया । मुझे लगा वह मेरी ही तरफ़ देख रहा है । उसकी अदृश्य आंखे मुझे ही घूर रही हैं । मै एक चट्टान के पीछे छिप गया । वह साया धीरे-धीरे अन्धेरे मे विलीन हो गया ।
पता नही कितना समय बीता था कि एक अजीब से भय के वश मेरी नींद खुल गयी । मेरी आंखे खुली तो खुली की खुली रह गयी । मेरा भय मेरे सामने था । मेरे बिल्कुल समीप … इतना ...और पढ़ेकि उसकी सांसों को मै अपने चेहरे पर महसूस कर रहा था । उसकी सांसों की बदबू से मेरा दम घुटा जा रहा था । यह वही था । बिल्कुल वही । (इसे पढ़ने से पूर्व इसके पूर्ववर्ती चारों भाग ज़रूर पढ़ लें_ धन्यवाद)