Pal jo yoon gujre book and story is written by Lajpat Rai Garg in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Pal jo yoon gujre is also popular in सामाजिक कहानियां in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
पल जो यूँ गुज़रे - उपन्यास
Lajpat Rai Garg
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
अपना आखिरी पीरियड लगाने के बाद जैसे ही निर्मल ने डिपार्टमेंट से बाहर कदम बढ़ाये कि उसका सामना बेमौसम की बारिश की हल्की—हल्की बूँदों से हुआ। इसकी परवाह किये बिना कि हॉस्टल तक पहुँचते—पहुँचते भीग जायेगा, वह वहाँ से चल पड़ा। हॉस्टल तक चाहे रास्ता अधिक न था, किन्तु बूँदाबाँदी एकाएक तेज़ बौछारों में बदल गयी। रास्ते में रुक तो सकता था, किन्तु सर्दी की बरसात कितनी देर तक चले, कुछ कहा नहीं जा सकता, यही सोचकर निर्मल बिना रुके चलता रहा और इस प्रकार हॉस्टल के पोर्च तक पहुँचते—पहुँचते वह पूरी तरह भीग गया। फरवरी के अन्तिम दिनों में सामान्यतः मौसम इतना ठंडा नहीं रहता, किन्तु बरसात की वजह से ठंडक बढ़ गयी थी।
अपना आखिरी पीरियड लगाने के बाद जैसे ही निर्मल ने डिपार्टमेंट से बाहर कदम बढ़ाये कि उसका सामना बेमौसम की बारिश की हल्की—हल्की बूँदों से हुआ। इसकी परवाह किये बिना कि हॉस्टल तक पहुँचते—पहुँचते भीग जायेगा, वह वहाँ से ...और पढ़ेपड़ा। हॉस्टल तक चाहे रास्ता अधिक न था, किन्तु बूँदाबाँदी एकाएक तेज़ बौछारों में बदल गयी। रास्ते में रुक तो सकता था, किन्तु सर्दी की बरसात कितनी देर तक चले, कुछ कहा नहीं जा सकता, यही सोचकर निर्मल बिना रुके चलता रहा और इस प्रकार हॉस्टल के पोर्च तक पहुँचते—पहुँचते वह पूरी तरह भीग गया। फरवरी के अन्तिम दिनों में सामान्यतः मौसम इतना ठंडा नहीं रहता, किन्तु बरसात की वजह से ठंडक बढ़ गयी थी।
चार दिन के अवकाश के पश्चात् निर्मल ने कोचग क्लास लगाई थी। जब क्लास समाप्त हुई और निर्मल अपने निवास—स्थान की ओर मुड़ने लगा तो जाह्नवी ने उसे रोकते हुए उलाहने के स्वर में पूछा — ‘निर्मल, बिना बताये ...और पढ़ेगायब हो गये थे इतने दिन?'
रविवार
आम दिनों जैसा दिन। खुला आसमान, सुबह से ही चमकती ध्ूप। फर्क सिर्फ इतना कि आज कोचग क्लास में जाने का कोई झंझट नहीं था, फिर भी जल्दी तैयार होना था। प्रिय साथी के साथ सारा दिन बिताने का ...और पढ़ेस्वप्निल अवसर। अपने प्रतिदिन के रूटीन के अनुसार निर्मल उठा और स्नानादि से निवृत होकर तैयार हो ही रहा था कि उसके बरसाती वाले कमरे के दरवाज़े पर दस्तक हुई।
इकतीस जुलाई को निर्मल ने कोचग कोर्स बीच में ही छोड़कर वापस चण्डीगढ़ जाना था, बल्कि यह कहना अध्कि उपयुक्त होगा कि निर्मल ने कोर्स के लिये इकतीस जुलाई तक के लिये ही फीस दी हुई थी, क्योंकि इसके ...और पढ़ेएल.एल.बी. तृतीय वर्ष की कक्षाएँ आरम्भ होनी थी। जाह्नवी ने पूरा कोर्स समाप्त होने तक यानी सितम्बर अन्त तक दिल्ली रहना था, क्योंकि वह एम.ए. फाइनल की परीक्षा देकर आई थी।
जिस दिन निर्मल घर वापस आया, दोपहर में सोने के बाद माँ को कहकर जितेन्द्र से मिलने के लिये जाने लगा तो सावित्री ने उसे बताया — ‘मैं बन्टु के साथ जाकर जितेन्द्र की बहू को मुँह दिखाई का ...और पढ़ेदे आई थी। अब तो तूने कल चण्डीगढ़ जाना है, जब अगली बार आयेगा तो उनको खाने पर बुला लेंगे। और हाँ, जल्दी वापस आ जाना, क्योंकि तेरे पापा दुकान से आने के बाद तेरे साथ कुछ सलाह—मशविरा करना चाहते हैं।'