पल जो यूँ गुज़रे - 27 - लास्ट पार्ट Lajpat Rai Garg द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

पल जो यूँ गुज़रे - 27 - लास्ट पार्ट

पल जो यूँ गुज़रे

लाजपत राय गर्ग

(27)

जाह्नवी आ तो गयी रेस्ट हाउस, परन्तु रात की घटना या कहें कि दुर्घटना अभी भी उसके दिलो—दिमाग पर छाई हुई होने के कारण, उसे इस जगह अब एक—एक पल बिताना भारी लग रहा था, फिर भी नहाना—धोना तो था ही और तैयार भी होना था। यह सब कुछ करने से पहले उसने ड्राईंग—रूम में जाकर टेलिफोन चैक किया, टेलिफोन काम कर रहा था। उसने अनुराग और डायरेक्टर पुलिस अकादमी, माऊँट आबू के नाम कॉल बुक करवाये। शिमला अनुराग से दो—तीन मिनट में ही बात हो गई, किन्तु माऊँट आबू की कॉल में समय लगता देख उसने चौकीदार को वहाँ बिठाया और स्वयं रूम में आकर तैयार होने लगी।

अनुराग और श्रद्धा दोपहर के खाने से पूर्व ही डिस्टिलरी के गेस्ट हाउस पहुँच गये, क्योंकि जाह्नवी ने उन्हें फोन पर बता दिया था कि वह रेस्ट हाउस छोड़ रही है। जाह्नवी उनके पहुँचने तक काफी कुछ सम्भल चुकी थी। श्रद्धा ने उसे गलबहियाँ में लेते हुए कहा — ‘शुक्र है परमात्मा का कि तुझे कुछ नहीं हुआ। होने को कुछ भी हो सकता था। मैं तो सुनकर खुद काँप उठी थी।'

‘भाभी जी, आपने क्यों तकलीफ की? मीनू बेचारी अकेली को दिक्कत होगी।'

‘तकलीफ काहे की, तुझे देखे बिन मेरा मन कहाँ टिकता? मीनू को बहादुर और महाराज जी सम्भाल लेंगे। हमें तो तुम्हारी चता अधिक थी। अब तुम दो—चार दिन की छुट्टी लेकर हमारे साथ चलो। स्थान बदलने से मन की अवस्था भी बदल जायेगी।'

‘भाभी जी, निर्मल से बात हो गयी है। वे कल आ जायेंगे। हम इकट्ठे ही आयेंगे।'

‘निर्मल जी आ रहे हैं, यह और भी अच्छा है।'

अनुराग — ‘जाह्नवी, मैंने अपने बॉस से बात की थी। उनका कहना था कि चाहे एफआईआर नहीं लिखवाई, तो भी सी.एस. (मुख्य सचिव) तथा सी.एम. (मुख्यमन्त्री) से जरूर मिलना चाहिये।'

‘भइया, बात उनकी ठीक है। मैं भी सोचती हूँ कि सीनियर ऑफिसर्स के नोटिस में तो लाना ही चाहिये। कल निर्मल आ जायेंगे। मैं दो—चार दिन का अवकाश ले लेती हूँ। शिमला आकर आगे का प्लान बना लेंगे।'

निर्मल ने जब पाँच दिन के अवकाश के लिये प्रार्थना—पत्र दिया तो अकादमी के डायरेक्टर महोदय प्रार्थना—पत्र पढ़े बिना एक बार तो तैश में आकर बोले — ‘मि. निर्मल, यह क्या है? अभी कुछ अर्सा पहले तो तुमने छुट्टी ली थी। इस प्रकार रोज़—रोज़ छुट्टी नहीं मिल सकती।'

‘सर, प्लीज़ मेरी बात सुन लीजिये, फिर भी आप मना करेंगे तो मैं अपनी एप्लिकेशन वापस ले लूँगा,' कहकर उसने जाह्नवी के साथ घटी घटना की विस्तार से जानकारी दी। पूरी बात सुनने के बाद डायरेक्टर ने प्रार्थना—पत्र पर अपनी स्वीकृति अंकित कर दी।

जब निर्मल सोलन पहुँचा तो शाम ढलने वाली थी, सूर्य अस्ताचलगामी हो चुका था, डूबती रश्मियों की झलक नभ में कहीं—कहीं छितराये बादलों के बदलते रंगों में देखी जा सकती थी। जाह्नवी की भावनाओं का सायास रोका हुआ बाँध फूट पड़ा। जो मन के भाव उसने अपने भाई और भाभी के सामने भी प्रकट नहीं होने दिये थे, अब स्वतः मुखरित हो उठे।

‘निर्मल, क्या फायदा ऐसी नौकरी का कि मुझे अकेली पाकर कोई भी ऐरा—गेरा मेरी इज्ज़त से खेलने के लिये कमर कस ले? यदि तुम मेरे साथ होते तो मज़ाल थी कि वह ऐसी हिम्मत कर पाता। हमारी व्यवस्था—प्रणाली ऐसी है कि इतना कुछ होने के बावजूद उस कमीने का कुछ बिगड़ने वाला नहीं है। ऊपर से मुझे ही चुप रहने की नसीहत दी जा रही है। मैं इस तरह के आघात सहने की आदी नहीं हूँ। इस एक घटना ने मुझे अन्दर तक जख्मी कर दिया है। मैं बाज़ आई ऐसी नौकरी से। मैं तुम्हारी ही राह देख रही थी, मैं कल ही रेज़िग्नेशन दे दूँगी।'

निर्मल अपनी छाती से लगी जाह्नवी की पीठ थपथपाता, सहलाता रहा। कुछ देर तक उसे भी नहीं सूझा कि उसकी बातों का क्या जवाब दे। अन्ततः उसने कहा — ‘जाह्नवी, भावनाओं में बहने का समय नहीं है, हमें धीरज से काम लेना होगा। धैर्य खोने से कुछ सँवरता नहीं, सिवाय चताओं के कुछ हासिल होता नहीं। कहावत भी है — चता चिता समान। तुम इतनी समझदार, इतनी होशियार लड़की हो, मैं सोच भी नहीं सकता था कि इतनी जल्दी हिम्मत हार बैठोगी। कहाँ तो तुम मुझे हौसला रखने की बातें किया करती थी और कहाँ अब पहली चुनौती के आते ही हार मानने को तैयार हो गयी हो। जीवन में न जाने कितनी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। सोना भट्ठी में तपकर ही कुंदन बनता है। हर विपत्ति कुछ—न—कुछ सीख देकर जाती है। इसलिये उनसे मुख फेरने की बजाय उनका स्वागत करना सीखना होगा, डटकर उनका सामना करने की हिम्मत जुटानी होगी। जीवन में केवल हँसी—खुशी के पल ही नहीं होते, दुःख—दर्द का भी सामना करना पड़ता है। यह दुनिया तो ऐसी है कि आदमी के लिबास में गिद्ध जगह—जगह मँडराते फिर रहे हैं, उनसे स्वयं को कैसे बचाना है, यह निर्भर करता है हमारी सूझबूझ पर। कवि की ये पंक्तियाँ हमारी मार्ग—दर्शक होनी चाहिएँः

समय की विपरीत आँधियों की राह में

चट्टान—सा तनकर खड़े हो जाना

दुष्कर ही सही — पर कितना सुखकर होता है

चीर कर तुफान की छाती

गन्तव्य को पाना।

‘जहाँ तक तुम्हारे अकेले रहने या मेरा तुम्हारे साथ न होने का सवाल है, तो जब हम दोनों सर्विस में हैं, ऐसी परिस्थितियों से समझौता तो करना ही पड़ेगा। और फिर स्थानों की दूरी कोई मायने नहीं रखती। अपने अन्दर झाँक कर देखो, मैं तुमसे दूर कहाँ हूँ?......अब यह बताओ कि शिमला अभी चलना है या कल सुबह?'

निर्मल की बातों से जाह्नवी के मन में चल रही खलबली काफी हद तक शान्त हुई। उसने कहा — ‘तुम देख लो? लम्बे सफर से आये हो, थकावट हो गयी होगी, रात को यहीं आराम कर लो, सुबह चले चलेंगे। भइया को मैं फोन कर देती हूँ।'

दूसरे दिन जाह्नवी और निर्मल मिलने का समय सुनिश्चित करके मुख्य सचिव और मुख्यमन्त्री से मिले। मुख्य सचिव ने सारा वृतान्त धैर्य से सुना और एफ.आई.आर. न लिखवाने के लिये जाह्नवी की प्रशंसा की, आगे से सचेत रहने की राय दी। मुख्यमन्त्री ने घटना की पूरी जानकारी लेने के बाद एक कुशल राजनैतिक नेता व सफल प्रशासक का परिचय देते हुए कहा — ‘मैं तुम्हें ब्लेम नहीं कर रहा बेटी, लेकिन डी.सी. को इतने लम्बे समय के लिये तुम्हें रेस्ट हाउस में रहने के लिये अलॉऊ ही नहीं करना चाहिये था। रेस्ट हाउस में महिला अधिकारी का एक—आध दिन के लिये रुकना तो ठीक है, स्थाई तौर पर नहीं।.....जहाँ तक आरोपी के विरुद्ध कार्यवाही की या मन्त्री महोदय से शिकायत की बात है तो पहले तो तुम खुद ही मान रही हो कि न तुमने उसे देखा है, न उसके विरुद्ध कोई सबूत है। ऐसे हालात में कैसे कोई कार्रवाई हो सकती है, तुम्हीं बताओ। जहाँ तक मन्त्री महोदय से शिकायत की बात है तो मैं स्पष्ट बता दूँ कि मैं सी.एम. होते हुए भी ऐसा नहीं कर सकता। उसकी लॉबी बहुत स्ट्रांग है, जिस तरह के राजनैतिक हालात हैं, उनके चलते मैं कोई रिस्क नहीं ले सकता।......हाँ, यदि तुम चाहो तो प्रोबेशन के दौरान तुम्हारी पोस्टग, शिमला तुम्हारा होमटाउन होने के बावजूद, यहाँ कर सकता हूँ।'

इतनी स्पष्ट बातों के बाद कहने—सुनने को क्या रह गया था। निर्मल और जाह्नवी मुख्यमन्त्री महोदय का धन्यवाद कर तथा नमस्ते करके वापस लौट आये।

रास्ते में निर्मल ने जाह्नवी को प्रोत्साहित करते हुए कहा — ‘तुम्हारी काबिलियत और प्रभु कृपा से जो यह पद हासिल हुआ है, उसे सहेज कर रखना हमारा उत्तरदायित्व है। जीवन में विविध प्रकार के रस हैं, कुछ मीठे, कुछ कड़वे। कड़वी घूँट पीने को जो तैयार है, वही मीठे रस का वास्तविक मूल्य जान पाता है। जीवन सुख—दुःख की भूलभुलैया है। दुःखों, कष्टों से गुज़रकर ही जीवन के सुखों के सही आनन्द का पता चलता है। जो व्यक्ति सुख—दुःख को आत्मसात करने की कला सीख जाता है, उसका जीवन कंचन बन जाता है। चुनौतियों का सामना करना है, उनसे मुँह नहीं मोड़ना। किसी महात्मा की कही हुई बात याद आ रही है — ल्वन ंतम दमअमत कममिंजमक इल सपमिष्े बतनमस बपतबनउेजंदबमे नदजपस लवन ंइंदकवद ीवचम — हपअम नच लवनत बवदपिकमदबमण् (जीवन की क्रूर परिस्थितियाँ तुम्हें कभी पराजित नहीं कर सकतीं जब तक कि तुम उम्मीद नहीं छोड़ देते और अपना आत्मविश्वास नहीं खो बैठते।) और याद रखना कि विजेता को बहुत—सी कठिन परीक्षाओं में से गुज़रना पड़ता है, जैसे गंगा अपने रास्ते की अनेकानेक बाधाओं को पार करती हुई भी राह नहीं भटकती और अन्ततः अपनी मंजिल पा लेती है। तुम्हें भी अपना नाम चरितार्थ करना है।'

समाप्त