पल जो यूँ गुज़रे - 23 Lajpat Rai Garg द्वारा सामाजिक कहानियां में हिंदी पीडीएफ

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पल जो यूँ गुज़रे - 23

पल जो यूँ गुज़रे

लाजपत राय गर्ग

(23)

यूपीएससी द्वारा अखिल भारतीय प्रशासनिक सेवाओं के लिये चयनित उम्मीदवारों को पुलिस वेरीफिकेशन के पश्चात्‌ डिपार्टमेंट ऑफ पर्सनॅल एण्ड एडमिनिस्ट्रेटिव रिफॉर्मस द्वारा नियुक्ति के ऑफर लेटर जारी किये जाते हैं। तदुपरान्त मेडिकल परीक्षण की रिपोर्ट के आधार पर उन्हें प्रशासनिक अकादमी मसूरी में प्रवेष मिलता है। सर्वप्रथम निर्मल और जाह्नवी अगस्त के पहले सप्ताह ‘सैंडविच' कोर्स प्रथम फेज के लिये मसूरी गये जहाँ अन्य सभी चयनित उम्मीदवारों के साथ उन्होंने एक साथ पन्द्रह सप्ताह की टे्रनग ली। प्रथम फेज में मुख्यतः थीॲरी ही होती है, जिसमें व्यक्तित्व विकास एवं नेतृत्व—क्षमता को तराशने सम्बन्धी व्याख्यान देने के लिये प्रबुद्ध विद्वानों की ‘फैक्लटी' होती है तथा समय—समय पर बाहर से विषय—विशेषज्ञों को भी आमन्त्रित किया जाता है। प्रथम फेज की टे्रनग के दौरान ही 2 अक्तूबर, 1972 को पूर्व प्रधानमन्त्री स्व. श्री लाल बहादुर शास्त्री के जन्मदिन के अवसर पर उनकी स्मृति में अकादमी का नाम बदलकर ‘लाल बहादुर शास्त्री राष्ट्रीय प्रशासनिक अकादमी' रखा गया। निर्मल और जाह्नवीके जीवन में अकादमी में एक—साथ बिताये ये पन्द्रह सप्ताह चिरस्मरणीय बन गये, क्योंकि इस अवधि में उन्होंने न केवल अपने कॅरिअर में कामयाब रहने के मन्त्र ग्रहण किये, बल्कि वैवाहिक जीवन में आनन्दानुभूति के लिये आवश्यक परस्पर सहयोग तथा एक—दूसरे की भावनाओं का सम्मान करने जैसे गुणों को भी आत्मसात किया। यदि कहें कि ‘सैंडविच' कोर्स के इस फेज के कारण उनके जीवन का ‘हनीमून पीरियड' काठमाण्डू—भ्रमण के बाद पूरे पन्द्रह सप्ताह और चला तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी।

मसूरी में आये अभी दस दिन ही हुए थे कि निर्मल को कमला की राखी प्राप्त हुई। निर्मल ने उत्तर में अपने पत्र में लिखाः

मेरी प्यारी बहिना,

रक्षा—बंधन की बधाई!

कमला, तुम्हारे पत्र ने दो परस्पर विरोधी भावनाओं को छू लिया। जहाँ राखी पाकर मन में अत्यन्त प्रसन्नता हुई, वहीं प्रोफेसर वर्मा के निधन के समाचार ने मन उद्वेलित कर दिया। तुम्हें तो पता ही है कि प्रोफेसर वर्मा से मुझे कितनी आत्मीयता और स्नेह भरा मार्गदर्शन मिला था। मेरे शैक्षणिक कॅरिअर में उनके योगदान को मैं कभी भुला नहीं पाऊँगा। मैं आज जिस मुकाम पर पहुँचा हूँ, वहाँ तक पहुँचने में उनका बहुत बड़ा योगदान है। जब मैं रिज़ल्ट वाले दिन उन्हें मिलने अस्पताल गया था, तब भी उन्होंने अपने नाजुक स्वास्थ्य के बावजूद मुझे हार्दिक बधाई दी थी तथा मेरे उज्ज्वल भविष्य की कामना की थी। प्रभु उनकी आत्मा को शान्ति दें!

कमला, राखी बड़ी प्यारी भेजी है। रक्षा—बंधन वाले दिन मैं इसे बड़े प्यार से अपनी कलाई पर बाँधूँगा। यह मेरे जीवन में पहली बार होगा कि रक्षा—बंधन पर हम भाई—बहिन एक—दूसरे से दूर होंगे, किन्तु यह स्थान की दूरी दिलों को और नज़दीक ले आई है। अब हर समय तुम लोगों की याद आती रहती है।

तुमने पूछा है कि अकादमी कैसी है, और कैसी है यहाँ की लाइफ? अकादमी माल रोड से लगभग पाँच—छः किलोमीटर दूर है। अकादमी का कैम्पस सुरम्य, रमणीक, हरियाली से आच्छादित पर्वतीय वादियों में बना हुआ है। सघन पाईन वृक्षों के झुरमुटों से झरती यहाँ की आबो—हवा सेहत के लिहाज़ से बहुत ही अच्छी है। यह कैम्पस वर्ष 1959 में स्थापित किया गया था। समय—समय पर इसमें नई इमारतों का निर्माण हुआ है। यहाँ की लाइब्रेरी में एक लाख के करीब विभि विषयों की पुस्तकें हैं तथा सैंकड़ों पत्र—पत्रिकाएँ आती हैं। भारत के विभि भू—भागों के निवासी तथा यूपीएससी द्वारा चुने गये युवा महिला व पुरुष अधिकारियों को अकादमी में एक—साथ देखने पर भारत की ‘विविधता में एकता' संस्कृति की झलक प्रत्यक्ष उजागर हो उठती है। अभी कुछेक साथियों से ही व्यक्तिगत परिचय हुआ है। यहाँ रहते हुए अलग—अलग राज्यों / प्रदेशों के लोगों के रहन—सहन, खान—पान, रीति—रिवाजों के सम्बन्ध में पुख्ता जानकारी सहज में ही मिले जायेगी। इतनी जानकारी पुस्तकों के अध्ययन से भी सम्भव नहीं।

हमारा यहाँ का प्रतिदिन का शड्‌यूल बहुत ही टाईट है। यह प्रातः छः बजे आरम्भ हो जाता है। सबसे पहले हमें एक घंटे की फिजीकल ट्रेनग करनी पड़ती है। फिर दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर तथा ब्रेकफास्ट आदि करके नौ बजे क्लासरूम में पहुँचना होता है। पैंतालीस—पैंतालीस मिनटों के पाँच—छः पीरियड अटैंड करने होते हैं। सायंकालीन सत्र 5 से 7 बजे तक स्पोर्टस तथा राइडग आदि के लिये होता है। यह सभी के लिये अनिवार्य है। इसमें कोई बहाना नहीं चलता। सुबह से शाम तक चलने वाली इन गतिविधियों का मुख्य उद्देश्य शारीरिक व मानसिक चुस्ती बनाये रखना है। बचपन में मुझे स्पोर्टस के लिये टाइम नहीं मिला था, अब वह कमी पूरी हो जायेगी। आठ बजे रात्रिभोज आरम्भ होता है। यदि कोई सांस्कृतिक कार्यक्रम होना होता है तो रात्रिभोज से पहले होता है। रात्रिभोज के बाद का समय अन्य प्रशिक्षार्थियों से व्यक्तिगत परिचय आदान—प्रदान एवं संवाद के लिये रहता है। वीकेन्ड में ट्रैकग, पैराग्लाईडग, रीवर—राफटग जैसी गतिविधियों में भाग लेना होता है। कैम्पस में हॉबीज़, फिल्मों आदि के कार्यक्रम भी आयोजित होते रहते हैं। इस तरह व्यस्तता बहुत रहती है।

तेरी भाभी लाइब्रेरी गयी हुई है, आने वाली ही होगी, क्योंकि पाँच बजने वाले हैं। तेरा टीचग का कोई विशेष अनुभव हो तो लिखना।

हम दोनों की ओर से माँ और पापा को प्रणाम,

प्यार सहित,

तुम्हारा भइया,

निर्मल

जब जाह्नवी लाइब्रेरी से आई तो निर्मल पत्र बन्द कर रहा था, उसके चेहरे पर उदासी छाई हुई थी। जाह्नवी ने उसकी उदासी का कारण पूछा तो निर्मल ने बताया कि कमला के पत्र से पता चला है कि उसके मोस्ट फेवरिट प्रोफेसर वर्मा, जिन्होंने कॉलेज—टाइम में उसके जीवन में बड़ा अहम रोल अदा किया था, का निधन हो गया है। उसने जाह्नवी को बताया कि कॉलेज में चार वर्षों की अवधि में प्रोफेसर वर्मा से मुझे सबसे अधिक स्नेह तथा मार्गदर्शन मिला था। जब मैंने सैकड ईयर में अंग्रेजी में ऑनर्स ली थी तो प्रोफेसर वर्मा ने मुझे अपने घर पर बिना फीस लिये ऑनर्स की तैयारी करवाई थी, क्योंकि वे ट्‌यूशन के सख्त खिलाफ थे। उनका पढ़ाने का ढंग दूसरे प्रोफेसरों से एकदम अलग था। वे विद्यार्थियों को नोट्‌स नहीं लिखवाते थे और न ही गाईडों की सहायता लेने के लिये कहते थे, बल्कि वे तो गाईडों के विरुद्ध थे। वे विद्यार्थियों को मौलिक रचना पढ़ने तथा अपनी शैली में लिखने के लिये प्रेरित तथा प्रोत्साहित किया करते थे। वे दिल्ली के रहने वाले थे। वार्षिक परीक्षाओं के पश्चात्‌ जब वे दिल्ली जाते थे तो प्रत्येक क्लास के अपने एक—दो प्रिय विद्यार्थिओं को सप्ताह में एक पत्र लिखने के लिये कहते थे, जिसमें उनसे उम्मीद की जाती थी कि वे जो उन्होंने नया पढ़ा होगा अथवा किसी विशेष समाचार या लेख पर टिप्पणी अवश्य लिखेंगे। प्रोफेसर साहब प्रत्येक पत्र का उत्तर देते थे। फाइनल ईयर में दिसम्बर की छुट्टियों के बाद जब वे दिल्ली से वापस आये, तब एक दिन वे मुझे अपनी फाईल दिखाने लगे जिसमें उन्होंने पिछले तीन वर्षों में मेरे तथा अन्य विद्यार्थियों द्वारा लिखे हुए पत्रों को सहेज कर रखा हुआ था।.....जब तक निर्मल प्रोफेसर वर्मा के बारे में बातें करता रहा, जाह्नवी उसके बालों में अँगुलियाँ फिराते हुए उसे सान्त्वना देने की कोशिश करती रही। तत्पश्चात्‌ जाह्नवी ने कहा — ‘निर्मल, आज जब पैसा ही प्रधान हो गया है और पढ़ाई का भी व्यवसायीकरण होता जा रहा है, कॉलेजों के प्रोफेसर विशेषकर अंगेजी के, बीस—बीस, तीस—तीस विद्यार्थियों के ग्रुपों में ट्‌यूशन पढ़ाते हैं, ऐसे में प्रोफेसर वर्मा, जैसा तुमने उनके बारे में बताया है, उसके आधार पर मेरा मानना है कि वास्तव में वे एक आदर्श अध्यापक थे। ऐसे अध्यापक ही सही अर्थों में गुरु कहलाने के अधिकारी होते हैं।'

‘हाँ, आजकल ऐसे कर्त्तव्य—परायण व समर्पित व्यक्तियों की प्रजाति लुप्तप्रायः है। इसीलिये उनके निधन से मुझे गहरा आघात लगा है। तुम्हारी सांत्वना से मन अवश्य कुछ हल्का हुआ है, किन्तु इस सदमे से उबरने में मुझे अभी और समय लगेगा।'

उस दिन रात्रि—भोज के तुरन्त बाद निर्मल कमरे की ओर बढ़ने लगा तो जाह्नवी भी उसके साथ ही आ गयी। लाईट बन्द कर जब वे लेट गये तो जाह्नवी ने निर्मल को उदासी से उबारने के लिये इधर—उधर की बातें करने की सोची। उसने कहा — ‘निर्मल, तुम्हें नहीं लगता कि काठमाण्डु में जो चार दिन हमने किराये की साइकिलों पर लगभग सौ—डेढ़ सौ किलोमीटर घुमाई की थी और उससे जो हमारे स्टेमिना में बढ़ोतरी हुई थी, वह अकादमी के एक्सर्साइज, ड्रिल आदि के सख्त शड्‌यूल को सहने की रिहर्सल बन गयी। फिर भी अकादमी का सुबह से शाम बल्कि रात तक का रूटीन हमारी सारी एनॅर्जी कन्जयूम कर लेता है। सारा—सारा दिन केवल पढ़ना—लिखना, एक्सर्साइज, ड्रिल। प्यार—मोहब्बत की दो बातें करने की भी फुरसत नहीं मिलती। आओ, आज मुझमें समा जाओ,' कहने के साथ ही जाह्नवी ने निर्मल को बाँहों के घेरे में ले लिया।

***