Karm se Tapovan tak book and story is written by Santosh Srivastav in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Karm se Tapovan tak is also popular in फिक्शन कहानी in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
कर्म से तपोवन तक - उपन्यास
Santosh Srivastav
द्वारा
हिंदी फिक्शन कहानी
सघन वन में संध्या दोपहर ढलते ही प्रतीत होने लगती है । माधवी ने अपने आश्रम के भीतरी प्रकोष्ठ से गगरी उठाई और वृक्षों की हरीतिमा में छुपी ऊंची नीची ढलानों पर बहती नदी की ओर चल दी । नदी का बहाव हमेशा तेज़ ही रहता है। किंतु निर्मल जलधारा मनमोह लेने में सिद्धहस्त है । खिंची चली आती है माधवी और फिर थोड़ा समय नदी के किनारे बैठने को वह विवश हो जाती है। आज भी गगरी जलधारा की ओर लगाई ही थी कि लगा गालव खड़ा है उसके पीछे। जिसका प्रतिबिंब वह नदी के जल पर स्पष्ट देख रही है। देख रही है कि किस तरह उसने गालव और उसके मित्र गरुड़ के साथ इसी प्रयाग वन में प्रथम रात्रि गुजारी थी। प्रथम रात्रि ......उसके जीवन के कठोर कंटकाकीर्ण पथ की साक्षी जिसकी ओर उसके कदम बढ़ चुके थे ।
कथा माधवी गालव की संतोष श्रीवास्तव माधवी को लिखना मेरे लिए चुनौती था **************** माधवी के बारे में लिखते हुए मैं स्त्री को जी रही थी। स्त्री के अनदेखे पहलुओं को जी रही थी। उसके दुर्भाग्य को जी ...और पढ़ेथी । हां, मैं इन स्थितियों को नकार सकती थी किंतु नकारने की कोशिश में मेरी कलम ने उठने से इनकार कर दिया था। तो क्या धरती, आकाश, पाताल संपूर्ण ब्रह्मांड यह चाहता था कि मैं माधवी को लिखूँ जबकि माधवी पर विपुल साहित्य लिखा गया। उपन्यास, नाटक, खंडकाव्य कोई भी विधा नहीं छूटी माधवी वृत्तान्त से । उन्हीं प्रसंगों
अध्याय 2 अयोध्या में राजा हर्यश्व का राज महल देखते ही गालव की आँखें चौंधिया गईं। क्षण भर को वह भूल गया कि उसके साथ माधवी भी है। चकित हो वह अयोध्या के हरे भरे खूबसूरत रास्तों, बाग बगीचों, ...और पढ़ेको देखता ही रह गया । राज महल की भव्यता देख उसे संदेह हुआ कहीं वह स्वर्ग में राजा इंद्र के महल में तो नहीं! " कहाँ खो गए मुनिवर ? यह सांसारिक चकाचौंध है । आप तो तपस्वी हैं। इतने वर्षों तप करके संसार का सार समझ गए हैं। लेकिन गुरु दक्षिणा देकर अपने तप और साधना को संपूर्ण
अध्याय 3 वह गालव के पीछे-पीछे ऐसे चल रही थी जैसे उसका अपने ऊपर वश ही न रहा हो । अयोध्या नगरी पार होते ही गालव ने माधवी का हाथ पकड़ लिया- "शोक न करो माधवी। तुम्हें तो वरदान ...और पढ़ेहै । तुमने अपना कौमार्य पुनः पा लिया है । तुम्हारे बदन पर माँ बनने के चिन्ह विलुप्त हो जाएंगे। कुंवारी कन्या सी तुम काशी नरेश दिवोदास के राज महल में प्रवेश करोगी एक वर्ष के लिए। " गालव के कथनों से माधवी की पीड़ा और बढ़ गई । यह कैसी सोच है गालव की जिसमें मेरे पुत्र के हमेशा
अध्याय 4 काशी नरेश दिवोदास का महल राजा के रसिक स्वभाव, रंगरेलियों के लिए प्रसिद्ध था । दिवोदास सदा स्त्रियों से घिरा रहता और नित्य नई स्त्री का साहचर्य पाता। उसके रनिवास में 35 रानियां थी किंतु किसी के ...और पढ़ेपुत्र उत्पन्न नहीं हुआ था । दिवोदास के हृदय में शूल की तरह यह बात चुभी हुई थी । वह पुत्र विहीन अपने भाग्य को ज्योतिषियों से बार-बार पढ़वाता रहता था । यह सुनकर कि उसके भाग्य में पुत्र है पर न जाने किन ग्रह नक्षत्रों की रुकावट है जो अब तक वह इस सुख से वंचित है। वह बौखला
अध्याय 5 गालव के साथ उदास खिन्न सी माधवी चली जा रही थी। राजमहल पार करते ही दोनों गंगा तट पर आये और गंगा के जल में पैर डुबोकर बैठे रहे। गंगा की लहरों के स्पर्श ने जैसे माधवी ...और पढ़ेसंताप हर लिया। गंगा भी तो आठ पुत्रों को जन्म देकर मातृत्व सुख से वंचित रही। अंतर केवल इतना है कि गंगा ने स्वेच्छा से शांतनु का वरण कर उनसे उत्पन्न पुत्रों का त्याग किया । जबकि माधवी को परिस्थिति वश ऐसा करना पड़ रहा है । "क्या सोच रही हो माधवी । चलो चलते हैं। मार्ग लंबा है और