Musafir Jayega kaha? book and story is written by Saroj Verma in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Musafir Jayega kaha? is also popular in थ्रिलर in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मुसाफ़िर जाएगा कहाँ? - उपन्यास
Saroj Verma
द्वारा
हिंदी थ्रिलर
रात का तीसरा पहर, ऊधवगढ़ का छोटा सा वीरान रेलवें स्टेशन,रेलगाड़ी रुकी और उसमें से इक्का दुक्का मुसाफ़िर उतरें,उन्हीं मुसाफिरों में से एक कृष्णराय निगम भी थे,उन्होनें अपना सामान रेलगाड़ी में से नीचें उतारा और स्टेशन पर कुली को इधरउधर देखने लगें,लेकिन नज़र दौड़ाने पर उन्हें वहाँ कोई कुली नज़र नहीं आया...
उन्हें रेलवें प्लेटफार्म पर कुछ ठंड का अनुभव हुआ तो उन्होंने कोट के ऊपर अपना ओवरकोट पहना और सिर पर अपनी हैट भी लगा ली,जब उन्हें कोई कुली ना दिखा तो वें अपना सामान स्वयं लेकर स्टेशन मास्टर के केबिन की ओर गए ,वहाँ उस केबिन में बल्ब की पीली रोशनी थी और वो बल्ब स्टेशन मास्टर साहब की टेबल के ठीक ऊपर लटक रहा था और उन्होंने दरवाजे पर खड़े होकर ये भी देखा कि वहाँ उनके टेबल पर एक नेमप्लेट रखीं थी जिस पर अवधेश कुमार त्रिपाठी लिखा था,फिर उन्होंने वहाँ की कुर्सी पर बैठे स्टेशन मास्टर की ओर नज़र दौड़ाई जो लगभग पैतालिस साल के ऊपर ही रहें होगें,कृष्णराय जी ने स्टेशन मास्टर साहब के केबिन के बाहर से ही पूछा.....
मास्टर साहब !क्या मैं अन्दर आ सकता हूँ?
रात का तीसरा पहर,ऊधवगढ़ का छोटा सा वीरान रेलवें स्टेशन,रेलगाड़ी रुकी और उसमें से इक्का दुक्का मुसाफ़िर उतरें,उन्हीं मुसाफिरों में से एक कृष्णराय निगम भी थे,उन्होनें अपना सामान रेलगाड़ी में से नीचें उतारा और स्टेशन पर कुली को इधरउधर ...और पढ़ेलगें,लेकिन नज़र दौड़ाने पर उन्हें वहाँ कोई कुली नज़र नहीं आया... उन्हें रेलवें प्लेटफार्म पर कुछ ठंड का अनुभव हुआ तो उन्होंने कोट के ऊपर अपना ओवरकोट पहना और सिर पर अपनी हैट भी लगा ली,जब उन्हें कोई कुली ना दिखा तो वें अपना सामान स्वयं लेकर स्टेशन मास्टर के केबिन की ओर गए ,वहाँ उस केबिन में बल्ब की
कुछ देर बाद आखिरी रेलगाड़ी गुजर गई और स्टेशन मास्टर साहब कृष्णराय निगम जी के साथ उनके घर की ओर चल पड़े,अँधेरी रात और सुनसान सा रास्ता लेकिन रेलवें काँलोनी स्टेशन से ज्यादा दूर नहीं थी इसलिए दोनों ही ...और पढ़ेघर पहुँच गए.... दोनों घर पहुँचे तब घड़ी में सुबह के चार बज चुके थें,स्टेशन मास्टर साहब ने घर का गेट खोला और लाँन को पार करके घर के मेन दरवाजे के पास आएं जो लकड़ी का बना हुआ था,उन्होंने वहाँ आवाज़ लगाई.... रामजानकी....ओ....रामजानकी...दरवाजा खोलो...भाग्यवान!! आती...हू्ँ....आती...हूँ,सुन लिया मैनें ,बहरी नहीं हुई हूँ और फिर इतना बड़बड़ाते हुए रामजानकी ने दरवाजा
अच्छा!तो ये बात है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें... उस रात जब किशोर आपसे मिला था तो आपकी उसके साथ क्या क्या बातें हुई थीं?कृष्णराय जी ने पूछा। उनसे जो जो बातें हुई थीं उनका जिक्र तो मैं आपसे पहले ही ...और पढ़ेचुका हूँ,स्टेशन मास्टर साहब बोले.... जी!तो क्या फिर मुझे उमरिया गाँव जाकर ही कुछ पता चलेगा?कृष्णराय जी बोलें... लेकिन इतने सालों बाद किसी को वहाँ किशोर बाबू याद होगें,स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा.... जी!कोशिश तो करनी पड़ेगी उसे ढूढ़ने की,कृष्णराय जी बोलें.... ऐसे ही कृष्णराय जी और स्टेशन मास्टर साहब के बीच वार्तालाप चलता रहा,उस रेलवें स्टेशन से दो रेलगाड़ियाँ
खलासी की बात सुनकर कृष्णराय जी बोलें... अब तो परसो तक इन्तजार करना पड़ेगा... अब इसके सिवाय कोई चारा भी तो नहीं है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें... ओह...ये तो मुसीबत हो गई,मुझे आपके यहाँ एक रात और रुकना पड़ेगा,खामख्वाह मैं ...और पढ़ेऔर भाभी जी की तकलीफ़ें बढ़ा रहा हूँ,कृष्णराय जी बोलें... इसमें तकलीफ़ की क्या बात है इन्जीनियर बाबू!हमारे यहाँ तो वैसें भी कोई भूला भटका मुसाफ़िर ही आता है,हमें आपकी मेहमाननवाजी का मौका मिला,ये तो बहुत ही अच्छी बात है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें... लेकिन फिर भी आप माने या ना माने कि आपको तकलीफ़ हो रही है,ये तो आपकी दरियादिली
कुछ समय की यात्रा के बाद कृष्णराय जी रामविलास चौरिहा जी के साथ उमरिया गाँव पहुँच भी गए,रामविलास चौरिहा साहब पहले कृष्णराय जी को अपने कमरें में ले गए और उन्हें चाय पिलाई और अपने माँ के हाथों के ...और पढ़ेनमकपारे खिलाएं,कुछ इधरउधर की बातें की और उनके दोस्त किशोर के बारें में और भी बातें जानीं,इसके बाद मुखिया जी के नौकर घीसू से बोले कि वें कृष्णराय जी को रेस्टहाउस छोड़ आइए,रामविलास के कहने पर घीसू कृष्णराय जी का सामान लेकर रेस्ट हाउस की ओर चल पड़ा.... कुछ ही देर में कृष्णराय जी रेस्ट हाउस के ऊबड़ खाबड़ रास्तों