मास्टर प्रभुचिन्तन को ये चिन्ता सता रही थी कि अगर उन्होंने अपनी जमीन जमींदार साहब को ना दी तो फिर जमींदार साहब ना जाने किस हद तक गुजर जाएं,उन्हें अपनी चिन्ता नहीं थी लेकिन उन्हें अपनी बेटी की बहुत चिन्ता थी और वें इसी तरह चिन्ता में डूबे बैठे तो उनकी बेटी निर्मला ने उनके पास आकर पूछा....
"क्या हुआ बाबूजी! आप इतनी चिन्ता में क्यों बैठें हैं"?
"क्या बताऊँ बेटी! मुझे मुखिया की बातों ने चिन्ता में डाल रखा है" मास्टर प्रभुचिन्तन बोले...
"बाबूजी! ये देश आजाद है और यहाँ किसी की हूकूमत नहीं चलेगी,चाहे कुछ भी हो जाए,आप उसे वो खेत नहीं देगें", निर्मला बोली...
और फिर लक्खा सिंह जमींदार वीरभद्र के पास मास्टर प्रभुचिन्तन की बात बताने रात के वक्त पहुँचा तो जमींदार वीरभद्र ने उससे पूछा...
"हाँ! तो लक्खा !क्या कहा मास्टर प्रभुचिन्तन ने"?
उनके पूछने पर लक्खा कुछ नहीं बोला तो जमींदार साहब ने उनसे फिर पूछा....
"अरे!बोलता क्यों नहीं कि क्या कहा मास्टर ने हाँ या ना"?
"सरकार!उसने कहा तो कुछ नहीं ,बस दुहाई देते हुए ये कहा कि वो मेरी पुश्तैनी जमीन है",लक्खा सिंह बोला...
"कुछ भी हो,हमें वो जमीन चाहिए,हम कुछ भी नहीं जानते",जमींदार वीरभद्र सिंह बोलें....
"सरकार! उस पर जमींदारन साहिबा की कृपा है ना! इसलिए वो झुक नहीं रहा है,थोड़ा अकड़ रहा है,वो स्कूल जमींदारन साहिबा ने खुलवाया है,ऊपर से वो पढ़ा लिखा भी है इसलिए उसे गुमान ज्यादा है और आपके लिए वो मुसीबत बन गया है",लक्खा सिंह बोला...
"उसे एक बार और राजी करके देखो,उससे कहो कि जो हमारी पहाड़ के पार वाली पाँच बीघा जमीन है तो वो उसे ले ले",जमींदार वीरभद्र बोलें...
"लेकिन! सरकार! वो जमीन तो बंजर है",लक्खा सिंह बोला...
"तो क्या हुआ? हम यहाँ के जमींदार हैं और हमारा कहा उसे मानना ही होगा"जमींदार साहब बोले...
"लेकिन फिर भी ना माने तो",लक्खा सिंह बोला...
"कुछ भी करके उसे राजी करो",जमींदार साहब बोलें....
"अगर ना माने तो मैं अपनी मनमानी कर सकता हूँ सरकार!"?लक्खा सिंह ने पूछा...
"कैसीं मनमानी"?,जमींदार वीरभद्र ने पूछा...
"उसकी एक खूबसूरत जी जवान बेटी है,मेरा दिल आ गया है उस पर,अगर आपकी आज्ञा हो तो मैं उसे उसके घर से उठवा लूँ",लक्खा सिंह बोला....
"एक बार और समझाओ उसे,अगर ना माने तो जो तुम्हारे जी में आए वो करो,लेकिन याद रखो वो जमीन हमें हर कीमत पर चाहिए",जमींदार वीरभद्र लक्खा से बोले...
और फिर लक्खा सिंह एक बार फिर से मास्टर जी के घर गया,उस समय मास्टर जी घर पर नहीं थे,केवल निर्मला ही घर पर थी और उसने लक्खा से पूछा...
"बोलो! क्या काम है"?
"मास्टर कहाँ है?,वैसे तो मैं उसे अपने लठैत भेजकर बुलवा सकता था,लेकिन फिर सोचा इतनी सख्ती बरतना ठीक नहीं,जा उसे भीतर से बुला दे ,उससे कह कि लक्खा मिलने आया है", लक्खा ने पूछा...
"बाबूजी! घर पर नहीं है,बाहर गए हैं",निर्मला बोली...
"वो बाहर गया है तो आ जाएगा,तब तक तू ही मुझसे ही बतिया ले",लक्खा बोला....
"मैं अन्जानों से बातें नहीं किया करती",निर्मला बोली...
"तो भीतर आने को भी नहीं कहेगी",लक्खा बोला...
"जब बाबूजी आ जाएं तब आना"निर्मला बोली...
और तभी मास्टर प्रभुचिन्तन घर आ पहुँचे और दरवाजे पर लक्खा को खड़ा देखकर बोलें....
"लक्खा तुम! कब आएं",?
"अरे! मास्टर! आ गए तुम,तुम्हारे तो भाग्य खुल गए",लक्खा बोला...
"तो क्या जमींदार साहब मान गए कि अब वें मेरी जमीन नहीं लेगे",मास्टर प्रभुचिन्तन बोलें...
"अरे! नहीं! मास्टर! लेकिन दो के बदले वो अब तुझे पाँच बीघा जमीन देने को तैयार हैं,उन्होंने खुद कहा कि मास्टर से कहो कि हमारी पहाड़ के पार वाली पाँच बीघा जमीन ले ले,तुम्हारी तो चाँदी हो गई मास्टर!",लक्खा सिंह बोला....
"लेकिन वो जमीन तो बंजर है,मैं अपनी जमीन उस बंजर जमीन के बदले नहीं दूँगा",मास्टर प्रभुचिन्तन बोले....
तब लक्खा सिह बोला....
"ऐ...मास्टर! तूने जो बात कही है ना! तो ये बात केवल मेरे कानों तक ही रहें,अगर ये बात जमींदार साहब के पास पहुँच गई ना तो प्रलय आ जाऐगा,सारा दिन बच्चों को ज्ञान बाँटते रहते हो,इतनी अकल नहीं है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं किया करते,तेरी फसल खड़ी है खेत पर,फसल जल्दी कटवाकर जमीन जमींदार साहब के हवाले कर दो वरना तेरी खैर नहीं",
"देखो जबरदस्ती करोगे तो मैं भी न्याय का दरवाजा भी खटखटा सकता हूँ",मास्टर प्रभुचिन्तन बोलें...
तब लक्खा बोला...
"ऐ...मास्टर! न्याय का दरवाजा कोई तुम्हारे घर के बाहर नहीं है जो चार कदम चलकर पहुँच गए,उस काम के लिए तुम्हें इस इलाके की सीमा लाँघनी होगी,जरा कुछ तो सोचो कि तुम वहाँ गए और घर में जवान बेटी है ,तुम्हारे जाते ही उसके साथ कुछ उल्टा सीधा हो गया तो,घर की आबरू भी कोई चीज है या पुश्तैनी जमीन ही सबकुछ हो गई तुम्हारे लिए,मेरी बात पर जरा गौर करना",
और ऐसा कहकर लक्खा वहाँ से चला गया और इधर मास्टर प्रभुचिन्तन को अपनी बेटी निर्मला की चिन्ता सताने लगी,निर्मला ने भी सब सुना तो वो भी बहुत गुस्सा हुई और फिर मास्टर प्रभुचिन्तन निर्मला से बोलें...
"मैं फूलपुर वाले रामस्वरूप जी के यहाँ जा रहा हूँ,वें जमींदारन साहिबा से कहकर इस बात का निपटारा करवा सकते हैं",
और फिर मास्टर जी निर्मला से ऐसा कहकर चले गए और ये बात जब रामस्वरूप जी ने जमींदारन साहिबा कौशकी के पास पहुँचाई तो जमींदारन कौशकी जी ने रामस्वरूप जी से पूछा....
"आपको ये बात किसने बताई कि लक्खा मास्टर जी को ऐसी धमकी देकर गया है कि जमीन ना दी तो उनकी जवान बेटी भी है घर में ना रह पाएगी",
"जी!खुद मास्टर जी ने,अब आप ही जमींदार साहब को रोक सकतीं हैं",रामस्वरूप जी बोले...
"कई बार तो रोक चुकी हूँ,जब वें नहीं माने तब तो मैं यहाँ अकेली आकर शान्तिनिकेतन में रहने लगी",कौशकी जी बोली...
"ऐसा ना कहिए जमींदारन साहिबा! उस परिवार में,धर्म ,कर्म और सिद्धान्त के नाम पर आपके सिवा और कुछ नहीं रहा",रामस्वरूप अग्रवाल जी बोले...
"अच्छा! ठीक है! मैं उनसे बात करके देखती हूँ लेकिन ये बताइए कि मेरी बेटियाँ ओजस्वी और तेजस्वी कैसीं हैं,जमींदार साहब उनका ख्याल तो रखते हैं ना!"?,जमींदारन साहिबा कौशकी ने पूछा....
"दोनों ही अच्छी हैं,ओजस्वी के सिद्धान्त तो बिल्कुल आप जैसे हैं,वो तो आपकी ही छाया है,लेकिन तेजस्वी उसके विपरीत अपने पिता की तरह उदण्ड और निर्दयी है,वो राजा साहब की लाड़ली है ना!",रामस्वरूप जी बोले...
और फिर रामस्वरूप जी अपनी बात कौशकी जी के पास पहुँचाकर वापस आ गए,तब जमींदारन कौशकी जमींदार साहब से मिलने पहुँची और उनसे बोलीं....
"जो सुनने में आ रहा है क्या वो सच है"?
"मुझे क्या पता कि तुमने क्या सुना"?,जमींदार साहब बोलें...
"मास्टर साहब की बेटी के बारें में पूछ रही हूँ आपसे"कौशकी जी बोलीं...
"तुम जमीन जायदाद के मामलों से दूर ही रहो तो ही अच्छा है,तुम शान्तिनिकेतन जाकर अपनी साधना में लीन रहो ,वही अच्छा है तुम्हारे लिए",जमींदार साहब बोलें...
"मेरी साधना किस काम की जब आपके हाथ पाप में डूबे हुए हैं",कौशकी जी बोलीं....
"ये तुम्हारे सोचने का ढंग है,नारी हरण तो सदियों से चला आ रहा है,तुमने सीता हरण के बारें में भी सुना होगा",जमींदार साहब बोले....
"ना आप रावण हैं और ना ये वो युग,ये हैवानियत छोड़ दीजिए",कौशकी जी बोलीं...
"खैर ये सब छोड़ोऔर ये बताओ कि हमारी शिकायत की किसने",जमींदार साहब ने पूछा
"किसी ने भी शिकायत की हो,लेकिन अगर ये सच है तो मैं आपको सावधान करने आई हूँ",कौशकी जी बोलीं...
"तुमने हमें सावधान करके बहुत बड़ी गलती कर दी,अगर तुम हमसे विनती करती तो शायद हम मान भी जाते,लेकिन अब उसकी बेटी जरुर उठाई जाऐगी,जमींदार साहब बोले...
"भगवान के लिए ऐसा अनर्थ मत कीजिए,आपकी भी दो बेटियाँ हैं", कौशकी जी बोलीं....
"अब ये दुहाई देने का कोई फायदा नहीं,तुम अभी इसी वक्त शान्तिनिकेतन लौट जाओ,कहीं ऐसा ना हो कि हम कुछ ऐसा कर दें ,जो ना वो तुम्हारे लिए अच्छा हो और ना हमारे लिए"
और फिर कौशकी जी निराश होकर हवेली से वापस शान्तिनिकेतन लौट आईं....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....