जब साहूकार रामस्वरूप अग्रवाल जी ने कृष्णराय जी को कुछ नहीं बताया तो वें कुछ मायूस से हो गए तब साहूकार रामस्वरूप जी कृष्णराय जी से बोलें....
"माँफ कीजिएगा,कृष्णराय बाबू! मैं अभी दुकान पर जाता हूँ,कुछ अँधेरा होने पर दुकान बंद कर दूँगा,फिर आपके साथ बैठकर बातें करूँगा,तब तक आप इसी बेंच पर आराम कर लीजिए"
और ऐसा कहकर साहूकार रामस्वरूप जी अपनी दुकान पर चले गए,कृष्णराय जी सफर में साइकिल चलाते चलाते बहुत थक गए थे इसलिए आराम करने के उद्देश्य से बेंच पर लेट गए और वहीं पर लेटे लेटे उन्हें नींद आ गई,अब सूरज पूरी तरह से डूब चुका था और अँधेरा काफी गहरा चुका था,तब रामस्वरूप जी अपनी दुकान बंद करके कृष्णराय जी के पास आकर बोलें.....
"कृष्णराय बाबू....कृष्णराय बाबू!...जागिए...देखिए तो रात हो चली है,कब तक सोऐगें,चलिए उठिए रात के खाने का वक्त हो गया है",
रामस्वरूप जी की आवाज़ से कृष्णराय जी जागे और बोलें...
"बहुत थक गया था,जरा आँख लग गई था....अरे! लगता है बहुत रात हो चुकी है", कृष्णराय जी बोले...
तब रामस्वरूप जी बोले...
"हाँ!आप साइकिल चलाकर आएं थे इसलिए थक गए होगें,धानी आई थी ये देखने कि कहीं आप चले तो नहीं गए और जब उसे पता चला कि आप नहीं गए हैं तो पगली बहुत खुश हुई और कहकर गई है कि दादा तुम खाना मत बनाना,मैं शहरी बाबू के लिए खाना बनाकर लाऊँगी,अभी आती ही होगी पगली"
"आप सबको मैं बहुत तकलीफ़ दे रहा हूँ है ना!",कृष्णराय जी बोलें...
"अरे! नहीं! मेहमान तो भगवान का रूप होता है तकलीफ़ किस बात की",रामस्वरूप जी बोलें....
"मुझसे पहले भी तो आपके यहाँ कोई मेहमान आया था और शायद आपके यहाँ रूका भी था",कृष्णराय जी बोले...
"कृष्णराय बाबू! आप यहाँ किसको ढूढ़ने आए हैं ये मुझसे छुपा नहीं है,आपकी लाचारी भी मैं समझ रहा हूँ,लेकिन मुझे माँफ करें,इस मामले में मैं आपकी जरा सी भी मदद नहीं कर पाऊँगा,बात ये है कृष्णराय बाबू कि मैं पूरी बात पूरी तरह से नहीं जानता और जो जानता हूँ वो मैं आपको बता नहीं सकता क्योंकि मैं ने किसी को वचन दिया है ना बताने का,रामस्वरूप अग्रवाल बोले...
"किसे वचन दिया है आपने",कृष्णराय जी ने पूछा...
और कृष्णराय जी के इस सवाल पर जब रामस्वरूप जी कुछ नहीं बोले तो कृष्णराय जी बोलें...
"देखिए अग्रवाल जी! मेरा एक दोस्त आपके इस इलाके में आकर खो गया है,वो कुछ दिन आपके घर में भी मेहमान बनकर रहा,क्या उसके बारें में मुझे कुछ भी जानने का अधिकार नहीं है",कृष्णराय जी बोले...
"वो मेरे घर पर तो मेहमान बनकर रहा था,लेकिन इसके अलावा मैं आपको और कुछ नहीं बता सकता", रामस्वरूप अग्रवाल जी बोले...
"ठीक है तो मुझे ये बता दीजिए कि वो आपके यहाँ कितने दिन रहा",कृष्णराय जी बोले...
"करीब एक हफ्ता",रामस्वरूप जी बोलें...
"तो क्या आप उसे पहले से पहचानते थे"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"हाँ!पहचानता था",रामस्वरूप जी बोले...
"वो जिन्दा है भी या नहीं,बताइए अग्रवाल जी इस बात के बता देने से आपका वचन तो नहीं टूटेगा ना!,",कृष्णराय जी ने पूछा....
"मैं आपका दुख समझ रहा हूँ कृष्णराय बाबू! लेकिन मुझे नहीं मालूम कि वो जिन्दा है भी या नहीं,कुछ लोंग कहते हैं कि वो जिन्दा है और कुछ लोंग कहते हैं कि वो जिन्दा नहीं है,मैं हाथ जोड़कर आपसे विनती करता हूँ कृष्णराय बाबू! अब मुझसे कुछ और मत पूछिए,मुझे नहीं मालूम उनके बारें में कुछ भी,बस केवल इतना बता सकता हूँ आपको कि जब वो मेरे यहाँ थे तो जमींदार साहब उन्हें खोजते हुए यहाँ आए थे", रामस्वरूप जी बोले...
और तभी वहाँ कृष्णराय जी के लिए धानी खाना लेकर आ पहुँची और रामस्वरूप जी से पूछा...
"दादा! शहरी बाबू! इतने परेशान क्यों हैं? आपने उनसे कुछ कहा है क्या?
"परेशान नहीं होगें,इतने देर से भूखे बैठे हैं और तू अब खाना लेकर आ रही है",रामस्वरूप जी बोले...
"अब इतना खाना बनाने में वक्त तो लगता है ना! इसलिए तो देर हो गई",धानी बोली...
"क्या क्या लाई है बाबू जी के लिए बता तो जरा"? रामस्वरूप जी बोले...
"मैथी-आलू का साग,बैंगन का भरता,अमरूद की चटनी और करारी गरमागरम देशी घी में चुपड़ी रोटियाँ,तुम भी खाओ और अपने मेहमान को भी खिलाओ",धानी बोली...
"क्यों तू नहीं परोसेगी क्या हम लोगों के लिए खाना"? रामस्वरूप जी ने पूछा...
"नहीं! दादा! बाबा घर पर थे,मैं तो पीछे के दरवाजे से खाना देने चली आई थी,कहीं उन्हें पता चल गया कि मैं यहाँ आई हूँ तो मेरे साथ साथ तुम्हारी आफत भी कर देगें",धानी बोली...
"मेरे यहांँ खाना देने आने में तू इतना डरती है और उधर रमेश से मिलने उमरिया गाँव जाने में डर नहीं लगता तुझे",रामस्वरूप जी ने पूछा...
"तुम्हें किसने बताया कि मैं रमेश से मिलने उमरिया गाँव गई थी"? ,धानी ने पूछा...
"मुझे छोड़ ,पूरे गाँव को ये बात पता है",रामस्वरूप जी बोलें....
"शहरी बाबू ने बताया होगा",धानी बोली...
"नहीं! धानी! अपनी कसम ,मैने इनसे कुछ नहीं कहा",कृष्णराय जी बोलें...
"नहीं! पगली! उन्होंने नहीं बताया,रमेश ने बताया था उस रात ,जिस रात वो तुझे छोड़ने यहाँ आया था,वो उस रात मेरे यहाँ ही छुपा रहा था,सुबह होते ही उमरिया गाँव चला गया था",रामस्वरूप जी बोलें...
"अच्छा! तो ये बात है",धानी बोली...
और तभी वहाँ गाँव का सरपंच और धानी का पिता लक्खा सिंह आ पहुँचा और रामस्वरूप जी के दरवाजे पर खड़े होकर बोला...
"ऐ....रामस्वरूप! मैनें तुझसे कहा था ना कि मेरी बेटी को अपने घर घुसने मत दिया कर,लेकिन तू मानता ही नहीं है",
तब रामस्वरूप जी बाहर आकर बोलें...
"लक्खा! तूने पी रखी है,अभी होश में नहीं है तू,अपने घर जा "
"नहीं!पहले तू धानी को बाहर भेज,मुझे मालूम है कि वो यहाँ उस हरामखोर रमेश से मिलने आई होगी", लक्खा सिंह बोला...
"नहीं! लक्खा! वो तो मुझे खाना देने आई थी",रामस्वरूप जी बोले...
"मुझे मालूम है कि तेरे यहाँ कोई बाबू रूका है वो भी उमरिया गाँव से आया है,उस हरामखोर रमेश और उसके बाप ने उसे यहाँ भेजा होगा",लक्खा सिंह बोला...
"नहीं! लक्खा !वो तो किसी जरूरी काम से यहाँ आए हैं",रामस्वरूप जी बोलें...
"हाँ! मैं सब जानता हूँ,तुम पहले धानी को बाहर भेजो",लक्खा सिंह बोला...
"हाँ...हाँ...अभी धानी तुम्हारे संग चली जाती है,बस उसे मारना पीटना नहीं,",रामस्वरूप जी बोले...
और फिर रामस्वरूप जी ने धानी को लक्खा के संग भेज दिया और धानी के जाने के बाद रामस्वरूप जी और कृष्णराय जी ने साथ मिलकर खाना खाया और फिर दोनों अपने अपने बिस्तर पर सो गए...
सुबह हुई कृष्णराय जी भोर होने से पहले ही जाग उठे क्योंकि उन्हें किशोर की चिन्ता में रातभर नींद नहीं आई थी,तब तक रामस्वरूप जी भी जाग उठे थे और कृष्णराय जी के चेहरे को देखकर बोलें....
"कृष्णराय बाबू! लगता है आप रात भर ठीक से सो नहीं सके",
तब कृष्णरायजी बोलें....
"ऐसे में ठीक से नींद कैसें आ सकती है भला? रामस्वरूप जी! जिसकी खोज में मैं यहाँ आया था,उसका कोई भी ओर-छोर नहीं मिल रहा है,मुझे ये तो पता चल गया है कि किशोर आपके यहाँ हफ्ते भर रूका था और ये भी मुझे पता चला गया है कि जमींदार साहब आपके यहांँ उसे खोजने आएं थे,लेकिन ये नहीं समझ में आ रहा कि वो उसे क्यों खोजने आएं थे,आखिर कौन सी दुश्मनी थी उनकी किशोर के साथ,ये आप मुझे बताऐगें नहीं,तो रात भर यही सोचता रहा कि मैं ऐसे किस इन्सान को खोजूँ जिसने आपकी तरह किसी को कोई वचन ना दिया हो,ठीक है ! रामस्वरूप जी ! किशोर के बारें में ना सही लेकिन जमींदार साहब के बारें में तो बता सकते हैं ना आप मुझे",
"जमींदार साहब के बारें में क्या जानना चाहते हैं आप"?,रामस्वरूप जी ने पूछा...
"उनके बारें में,उनके परिवार के बारें और क्या,यही सब कुछ",कृष्णराय जी बोले..
"जमींदार साहब के बारें में जानना चाहते हैं आप तो सुनिए",रामस्वरूप जी बोलें....
और फिर रामस्वरूप जी ने जमींदार साहब की कहानी सुनानी शुरू की....
जमींदार साहब की दो बेटियांँ थी,ओजस्वी और तेजस्वी,जब वें छोटी थीं तो मैं उनके यहाँ मुनीमगीरी किया करता था,यहाँ से बहुत दूर लक्ष्मीनारायण मंदिर है,उस मंदिर के पास एक बहुत बड़ी हवेली है,उस हवेली के जमींदार का एक जमाने में राज चलता था,उस जमाने में लोंग डर के मारे उनके सामने सिर नहीं उठाते थे,जमींदार साहब का पूरे इलाके में बहुत खौफ था,वें अगर किसी से किसी बात पर बिगड़ जाते थे तो फिर उसकी जान लेकर ही मानते थे,जमींदार साहब का नाम ठाकुर वीरभद्र सिंह था और जमींदारन का नाम कौशकी सिंह था,
क्रमशः....
सरोज वर्मा....