मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(३) Saroj Verma द्वारा थ्रिलर में हिंदी पीडीएफ

Featured Books
श्रेणी
शेयर करे

मुसाफ़िर जाएगा कहाँ?--भाग(३)

अच्छा!तो ये बात है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
उस रात जब किशोर आपसे मिला था तो आपकी उसके साथ क्या क्या बातें हुई थीं?कृष्णराय जी ने पूछा।
उनसे जो जो बातें हुई थीं उनका जिक्र तो मैं आपसे पहले ही कर चुका हूँ,स्टेशन मास्टर साहब बोले....
जी!तो क्या फिर मुझे उमरिया गाँव जाकर ही कुछ पता चलेगा?कृष्णराय जी बोलें...
लेकिन इतने सालों बाद किसी को वहाँ किशोर बाबू याद होगें,स्टेशन मास्टर साहब ने पूछा....
जी!कोशिश तो करनी पड़ेगी उसे ढूढ़ने की,कृष्णराय जी बोलें....
ऐसे ही कृष्णराय जी और स्टेशन मास्टर साहब के बीच वार्तालाप चलता रहा,उस रेलवें स्टेशन से दो रेलगाड़ियाँ गुजरनी थी और वो गुजर चुकी थी,अब अगली रेलगाड़ी रात को ही गुजरने वाली थी जिससे कृष्णराय जी यहाँ आएं थे और अब दोपहर के भोजन का समय भी हो चला था,इसलिए स्टेशन मास्टर साहब बोले...
अब घर चलकर दोपहर का भोजन करते हैं फिर सोचते हैं कि आगें क्या करना है?फिर मैं आपके उमरिया गाँव जाने का भी प्रबन्ध करवा दूँगा,
जी!सुबह इतना भारी भरकम नाश्ता तो किया था,मुझे इतनी भूख नहीं लग रही है,कृष्णराय जी बोलें....
अरे!इन्जीनियर बाबू!कैसीं बातें करते हैं,मैं तो जब आपकी उम्र में था तो खाने के मामले में इतना नहीं सोचता था और फिर सर्दियों का मौसम है,मेरा तो मानना है कि दबाकर खाओ और हाजमें के बारें में मत सोचो,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
स्टेशन मास्टर साहब की बात सुनकर पहले कृष्णराय जी हँसे फिर बोलें....
आप बहुत ही दिलचस्प इन्सान मालूम होतें हैं,लेकिन मैं खाने के मामले थोड़ा सुस्त हूँ ,मेरी इस बात से मेरी पत्नी भी अक्सर परेशान रहती है,कृष्णराय जी बोलें....
लेकिन मैं आपकी पत्नी नहीं हूँ तो आप मुझे क्यों परेशान कर रहे हैं,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
स्टेशन मास्टर साहब की बात सुनकर कृष्णराय जी अपनी हँसी ना रोक सकें और ठहाका मारकर हँस पड़े और फिर बोलें....
चलिए...स्टेशन मास्टर साहब!आप जीते मैं हारा,चलिए खाना खाकर आते हैं...
और फिर दोनों घर की ओर चल पड़े,घर पहुँचे तो रामजानकी भोजन तैयार कर चुकी थी,बस रोटियाँ सेंककर अभी रसोई से उठी थी,उसने रसोईघर से ही लोहे के गेट खोलने की आवाज़ सुन ली थी उसने जान लिया था कि दोनों घर आ पहुँचें हैं इसलिए फौरन ही उसने लकड़ी का दरवाजा खोल दिया,दोनों ने बाहर ही अपने जूते उतारें और आँगन की ओर चले गए,चापाकल से बाल्टी में पानी निकालकर दोनों ने हाथ मुँह धुले फिर आरामदेह कपड़े पहनकर वो दोनों रसोईघर में खाना खाने आ पहुँचे,फिर बिछौनें पर बैठ गए,रामजानकी ने दोपहर के खाने में अरहर की दाल,आलू मैथी का साग,चावल,भरवाँ हरा मिर्च और रोटियाँ बनाईं थीं,थाली का खाना देखकर कृष्णराय जी बोलें....
भाभी जी!मेरी थाली से थोड़ा थोड़ा खाना कम कर लीजिए,जरूरत होगी तो मैं बाद में ले लूँगा....
अरे!कहाँ ज्यादा है भाईसाहब!इतना तो आप जैसी उम्र के लोंग चलते फिरते खा लेते हैं,रामजानकी बोलीं....
नहीं !भाभी जी!मैं नहीं खा पाऊँगा और फिर खाना बर्बाद हो तो मुझे अच्छा नहीं लगेगा,कृष्णराय जी बोलें...
जी!ठीक है,जैसा आपको सही लगें और फिर इतना कहकर रामजानकी ने कृष्णरायजी की थाली से खाना कम लिया...
दोनों ने खाना खतम किया और लाँन में आकर चारपाई पर बैठकर धूप सेंकने लगे तभी बातों बातों में स्टेशन मास्टर साहब ने कृष्णराय जी से कहा....
इन्जीनियर साहब! एकबात मेरे दिमाग़ में आ रही है,
वो क्या भला?कृष्णराय जी ने पूछा।।
तब स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
वो जो उमरिया के आस पास के जंगलों के फोरेस्ट आँफिसर हैं रामविलास चौरिहा,वें यहाँ आते जाते रहते हैं क्योकिं कभी कभी रेलवें डाँक से उनके घर से कुछ ना कुछ सामान आता रहता है,तो वें उसे लेने यहाँ आते हैं,वें फोरेस्ट आँफिसर हैं और उसी जगह पर हैं जहाँ पर किशोर बाबू गए थे तो शायद वें उनके बारें में कुछ बता सकें,
अरे ये तो आपने बड़े पते की बात बताईं,तो अब वें कब यहाँ आऐगें?कृष्णराय जी ने पूछा।।
उनका अभी कोई सामान तो नहीं आया,नहीं तो मैं यहाँ के किसी खलासी के द्वारा उन तक खबर पहुँचा देता हूँ ,खलासी अपनी साइकिल से जाकर मेरा संदेशा उन तक पहुँचा आता है और वें दूसरे दिन यहाँ आकर अपना सामान ले जाते हैं,स्टेशन मास्टर साहब बोले....
ओह...तो ये आशा भी खतम हो गई तब तो,कृष्णराय जी बोलें....
इतने निराश ना हो इन्जीनियर साहब ,उनका सामान एकाध हफ्ते में आ ही जाता है,उनकी अभी शादी नहीं हुई हैं,सबसे छोटे हैं अपने भाई बहनों में,इसलिए अपनी माँ के लाड़ले हैं तो उनकी माँ कहीं उन्हें घर का घी भेज देतीं हैं तो कहीं अपने हाथों का बना अचार तो कहीं लड्डू,हाँ...पिछले रविवार को आया था उनका कोई सामान घर से तो मैनें खबर भिजवा दी थी तो वें सोमवार को आकर ले गए थे और कल रविवार है शायद उनका कोई सामान आएं,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
ये तो आपने बड़ी अच्छी बात बताई,काश ऐसा हो जाएं,कृष्णराय जी बोलें....
इसके लिए तो आपको आज रात के गुजरने का इन्तज़ार करना पड़ेगा,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
जी! इतना इन्तजार तो मैं कर ही लूँगा,कृष्णराय जी बोलें....
तो फिर चलिए मैं आपको देवीमाता के दर्शन करवाकर लाता हूँ,यहाँ से कोई एकाध कोस दूर माता का मंदिर है,कहते हैं वहाँ से कोई निराश नहीं लौटता,क्या पता आपकी मुराद भी पूरी हो जाए,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
जी!मैं मंदिर जरूर चलूँगा,चलिए मैं अभी कपड़े बदलकर आता हूँ और इतना कहकर कृष्णराय जी कपड़े बदलने भीतर चले गए....
कुछ ही देर में दोनों माता के दर्शन करने चल पड़े और माता के दर्शन करके वें शाम तक लौटें,इसके बाद शाम की चाय पीने के बाद वें कुछ देर तक बातचीत करते रहे फिर रात्रि का भोजन करके दोनों फिर से स्टेशन आ पहुँचें,रात्रि की आखिरी ट्रेन के बाद दोनों घर पहुँचे और सो गए,जब सुबह नाश्ते के बाद वें दोनों स्टेशन पहुँचें और पहली रेलगाड़ी के आने के बाद पता चला कि फोरेस्ट आँफिसर रामविलास चौरिहा का कोई सामान है,शायद कृष्णराय जी की विनती मातारानी ने सुन ली थी....
अब स्टेशन मास्टर साहब ने देर ना करते हुए फौरन ही एक खलासी को बुलाया और उससे कहा कि फौरन ही उमरिया गाँव जाओ और फोरेस्ट आँफिसर रामविलास चौरिहा तक ये खबर पहुँचा आओ कि उनका कुछ सामान आया है,वें फौरन ही अपना सामान लेने ऊधवगढ़ स्टेशन पर आ जाएं....
खलासी स्टेशन मास्टर साहब का संदेशा लेकर अपनी साइकिल से उमरिया गाँव चला गया,जब खलासी शाम तक संदेशा लेकर लौटा तो दोनों जन उसी की राह देख रहे थे,खासकर कृष्णराय जी को बहुत जल्दी थी ये जानने की फारेस्ट आँफिसर कब ऊधवगढ़ आऐगें...
खलासी अपनी साइकिल से उतरा और बोला....
उन्होंने कहा है कि परसों तक ही आ पाऐगें क्योकिं जंगल में किसी ने दो हाथियों को मारकर उनके दाँत चुरा लिए हैं,इसकी खोजबीन के लिए पुलिस की जीप भी वहाँ खड़ी थी,कोई जंगल में हाथी दाँत की तस्करी कर रहा है,उन्होंने कहा है कि वें कल व्यस्त रहेगें,परसों ही उनका यहाँ आना सम्भव हो पाएगा...
चलो कोई बात नहीं,अब तुम घर जाकर आराम करो,बहुत थक गए होगे,स्टेशन मास्टर साहब ने खलासी से कहा और फिर खलासी अपनी साइकिल पर सवार होकर अपने घर की ओर चला गया....

क्रमशः....
सरोज वर्मा....