खलासी की बात सुनकर कृष्णराय जी बोलें...
अब तो परसो तक इन्तजार करना पड़ेगा...
अब इसके सिवाय कोई चारा भी तो नहीं है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
ओह...ये तो मुसीबत हो गई,मुझे आपके यहाँ एक रात और रुकना पड़ेगा,खामख्वाह मैं आपकी और भाभी जी की तकलीफ़ें बढ़ा रहा हूँ,कृष्णराय जी बोलें...
इसमें तकलीफ़ की क्या बात है इन्जीनियर बाबू!हमारे यहाँ तो वैसें भी कोई भूला भटका मुसाफ़िर ही आता है,हमें आपकी मेहमाननवाजी का मौका मिला,ये तो बहुत ही अच्छी बात है,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
लेकिन फिर भी आप माने या ना माने कि आपको तकलीफ़ हो रही है,ये तो आपकी दरियादिली है,लेकिन मुझे अच्छा नहीं लग रहा आपको बेवजह तकलीफ़ देने में,कृष्णराय जी बोलें...
इन्जीनियर साहब!अब आप मुझे शर्मिन्दा कर रहे हैं,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
मेरा ये इरादा बिल्कुल भी नहीं था,कृष्णराय जी बोलें...
तो फिर सारी चिन्ताएं छोड़िए और अब घर चलकर गरमागरम चाय पीते हैं,फिर कुछ देर बातें करने के बाद रात का खाना खाकर वापस आ जाऐगें,क्योंकि फिर रात को ट्रेन है उसके लिए मुझसे फिर से स्टेशन आना पड़ेगा,स्टेशन मास्टर साहब बोलें...
जी!अब तो आपके घर ही जाना होगा और भाभी जी बेचारी को फिर एक अनचाहे मेहमान की खातिरदारी करनी पड़ेगी,कृष्णराय जी बोलें...
ऐसा आप सोच रहे हैं,वो तो बेचारी वैसें भी अकेली रह रहकर परेशान हो जाती है,आस पास पड़ोस भी कम है,दो चार खलासियों के घर हैं जो हमारे घर से थोड़ी दूरी पर हैं और स्टेशन के बाहर बहुत दूरी पर और भी लोगों के घर हैं,इसलिए उसे बोलने बतियाने को भी कम लोंग ही मिलते हैं, स्टेशन मास्टर साहब बोलें..
सच!कहा आपने,एक औरत के लिए मौन रहना बड़ा ही मुश्किल होता है,ये मैं अच्छी तरह से समझ सकता हूँ,कृष्णराय जी बोलें...
कृष्णराय जी की बात सुनकर स्टेशन मास्टर साहब हँस पड़े और बोलें....
जी!वहीं तो,औरते खाए बिना तो रह सकतीं हैं लेकिन बोले बिना नहीं रह सकतीं....
और फिर दोनों के बीच ऐसे ही बातें जारी रहीं फिर दोनों घर पहुँचे....दोनों ने हाथ मुँह धुले और कुछ बातें की तब तक रामजानकी दोनों के लिए चाय और मूँगदाल के गरमागरम पकौड़े,टमाटर हरे धनिए की चटनी के साथ ले आई,पकौड़े देखकर कृष्णराय जी बोलें....
भाभीजी!कृपा करके पकौड़े रहने दीजिए,मैं केवल चाय ही पिऊँगा और अगर मैनें पकौड़े खा लिए तो फिर मैं रात का भोजन नहीं खा पाऊँगा....
तब रामजानकी बोलीं...
भाईसाहब!आप पकौड़े खा लीजिए,गरमागरम है,मैं फिर आपसे रात के खाने की जिद बिल्कुल नहीं करूँगी,क्योकिं अब मैं रात का खाना पकाने वाली नहीं हूँ,क्योंकि आज खलासी मोतीलाल हैं ना तो उनके बेटे की आज सालगिरह है तो उसने हमें अपने घर खाने पर बुलाया है,अगर आपका मन ना हुआ वहाँ जाने का तो आप मत जाइएगा....
तब तो बिल्कुल ठीक है,मैं ये पकौड़े खा सकता हूँ,कृष्णराय जी बोलें...
और फिर सब चाय और गरमागरम पकौड़ों का आनन्द उठाने लगें,साथ साथ यहाँ वहाँ की बातें भी होतीं रहीं,कुछ ही देर में स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
तो फिर हम दोनों मोतीलाल के यहाँ होकर आते हैं,आप तब तक आराम कर लीजिए,क्योंकि मुझे तो फिर रात की ड्यूटी पर भी जाना होगा,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
ठीक है तो !और अगर आप लोंग मुझे इस घर में अकेले छोड़कर जा रहे हैं तो अपने और कमरों में ताला डालकर जाइएगा,कृष्णराय जी बोलें...
कैसीं बातें कर रहे हैं आप?स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
सही तो कह रहा हूँ किसी अन्जान पर यूँ भरोसा करना बिल्कुल ठीक नहीं है,कृष्णराय जी बोलें....
ना...भाईसाहब!हमें आप पर पूरा भरोसा है,रामजानकी बोली....
आजकल के जमाने में इतना भरोसा गैर पर करना अच्छा नहीं भाभीजी!कृष्णराय जी बोलें....
बस...बहुत हो चुका मज़ाक,अब आप आराम कीजिए,रामजानकी बोली....
तो ठीक है आप लोंग बाहर से ताला लगाकर चले जाइएगा,नहीं तो आप लोंग बाद में वापस आऐगें और मेरी नींद में खलल पड़ेगा,इतना तो कर सकते हैं ना आपलोंग! कृष्णराय जी बोलें....
ठीक है तो ,आप चिन्ता मत कीजिए, इतना तो हम कर देगें,स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
ठीक है जी!तो आप यहीं रूकें,मैं साड़ी बदलकर आती हूँ,रामजानकी इतना कहकर अपने कमरें में साड़ी बदलने चली गई और जब वो बाहर आई तो सीधे पल्लू में उसने एक सूती कत्थई रंग की धोती पहनी थी,सफेद बालों में माँगभर कर सिन्दूर और माथे पर गोल सी कुमकुम की बिन्दी,गले में मोतियों की माला और कान में बड़े बड़े बूँदें,जो वो हमेशा पहने रहती है,आज उसने आँखों में थोड़ा सा काजल भी लगा लिया था,एक अच्छा से कश्मीरी शाँल ओढ़कर जब वो कमरें से बाहर आई तो स्टेशन मास्टर साहब उसे देखकर बोलें....
अरी!भाग्यवान!इस उमर में भी तुम्हारा जलवा अभी कम नहीं हुआ है,एक दो को तो तुम अब भी नजरों के तीर से घायल कर सकती हो....
तब रामजानकी शरमाते हुए बोली....
ए ..जी...!कुछ तो लिहाज करो,जिसके सामने चाहे जो बोल देते हो....
अरे....इन्जीनियर बाबू ही तो हैं,ऐसा समझ लो कि तुम्हारा देवर बैठा है....स्टेशन मास्टर साहब बोलें....
तब कृष्णराय जी बोलें....
शरमाइए नहीं भाभी जी! देखिए ना स्टेशन मास्टर साहब अब भी आपको कितना चाहते हैं....
तभी तो हरदम लड़ते रहते हैं,रामजानकी बोली....
पगली!वो तो लड़ाई नहीं हमारे बीच का प्यार है,स्टेशन मास्टर साहब बोले....
ठीक है....ठीक है....अब बहुत हो चुका....चलिए भी ,देर हो रही है,रामजानकी शरमाते हुए बोली.....
ठीक है तो फिर आप आराम कीजिए,हम दोनों होकर आते हैं,स्टेशन मास्टर साहब ने कृष्णराय जी से कहा....
तभी रामजानकी बोली....
आप कहें तो ,मैं वहाँ से आपके लिए भी खाना ले आऊँगी....
ना....ना....भाभी जी!उसकी कोई जरूरत नहीं है,मेरा पेट भरा हुआ है,कृष्णराय जी बोलें....
और फिर स्टेशन मास्टर अवधेश और उनकी पत्नी रामजानकी ने घर का बाहर से ताला लगाया और सालगिरह में शामिल होने चले गए,उनके जाते ही कृष्णराय जी ने रजाई तानी और सो गए....
सुबह हो चुकी थी और सूरज का हल्का हल्का प्रकाश खिड़की से बाहर आ रहा था,चिड़ियों के चहचहाने से कृष्णराय जी की नींद खुली और उन्होंने ने रजाई के बाहर अपना सिर निकाला,लेकिन अभी भी उन्हें आलस था इसलिए वें यूँ ही बिस्तर पर पड़े रहें,उन्होंने सोचा सुबह हो गई और मुझे पता ही नहीं चला,ये भी पता नहीं चला कि स्टेशन मास्टर साहब और भाभीजी जी सालगिरह से कब लौटें और फिर उन्होंने सोचा कि पराया घर है और करें भी क्या बाहर जाकर,स्टेशन मास्टर साहब जब खुद जगाने आऐगें तो बाहर चला जाऊँगा....
और फिर कृष्णराय जी यूँ ही कुछ देर तक अपने बिस्तर पर लेटे रहे,जब स्टेशन मास्टर साहब आए तब वें अपने बिस्तर से उठे...और फिर उनकी पहले दिन जैसी दिनचर्या शुरू हुई और ऐसी दोपहर हो गई और दोपहर से शाम और शाम से रात हो गई,पूरा दिन यूँ ही निकल गया,सुबह हुई तो आज कृष्णराय जी पहले से ही अपने बिस्तर से उठकर बाहर आ गए क्योंकि आज रामविलास चौरिहा ऊधवगढ़ स्टेशन पर अपना सामान लेने आने वाले थे और शायद उनके पास से उनके दोस्त किशोर की कोई ख़बर मिल जाएं,इसलिए वें आज नाश्ता पानी करके झट से तैयार होकर स्टेशन मास्टर के साथ स्टेशन की ओर चल पड़े....
करीब एकाध घण्टे बाद उनका इन्तज़ार खतम हुआ और रामविलास चौरिहा उनके सामने थे,स्टेशन मास्टर साहब ने आपस में दोनों की जान पहचान करवाई और ये भी बताया कि कृष्णराय जी वहाँ किसलिए आएं हैं तब कृष्णराय जी ने चौरिहा जी से किशोर के बारें में पूछा तो वें बोलें...
इन्जीनियर बाबू!मैं तो ऐसे किसी भी शख्स के बारें में नहीं जानता,
तो अब मैं क्या करूँ?कृष्णराय जी बोलें..
आप परेशान ना हों,आप मेरे साथ उमरिया गाँव चलिए,वहाँ बहुत से बुजुर्ग हैं जो आपकी इस काम में मदद कर सकते हैं,शायद उन सब से पूछताछ के बाद आपको अपने दोस्त का कुछ पता ठिकाना मिल जाए...
लेकिन वहाँ रहने की क्या सुविधा है?मैं रहूँगा कहाँ?कृष्णराय जी ने पूछा।।
जी!वहाँ वनविभाग का पुराना सा सरकारी रेस्ट हाउस है,जो मेरे रहने के लिए मुझे दिया गया था,लेकिन मुझे वहाँ रहना अच्छा नहीं लगा,इसलिए मैं मुखिया जी के मकान में जो कि खाली पड़ा था वहाँ रहने लगा,मुखिया जी अपने मकान में रहते हैं और मैं उनके दूसरे खाली मकान में रहता हूँ,रामविलास चौरिहा बोलें....
ठीक है तो मैं भी आपके साथ चलूँगा,कृष्णराय जी बोलें....
हाँ!क्यों नहीं!मैं सरकारी जीप लेकर आया हूँ,आप अपने सामान के साथ आराम से उसमें बैठकर मेरे साथ चल सकते हैं,क्योंकि यहाँ की बसों का कोई ठिकाना नहीं,रामविलास चौरिहा जी बोलें....
और फिर कृष्णराय जी फौरन स्टेशन मास्टर के घर पहुंँचे,रामजानकी से जाने की इजाजत ली और उनका खातिरदारी के लिए शुक्रिया अदा किया और वहाँ से अपना सामान उठाया फिर स्टेशन मास्टर साहब को अलविदा कहकर वें चौरिहा जी के साथ उमरिया गाँव की ओर चल पड़े.....
क्रमशः.....
सरोज वर्मा.....