जब कृष्णराय जी दयाराम के पास पहुँचे तो दयाराम ने कृष्णराय जी से पूछा...
"कोई बात बनी हुजूर!",
"हाँ! रुकमनी बहनजी ने तो थोड़ी उम्मीद जगाई है,लेकिन कुछ समझ में नहीं आता कि क्या तरकीब निकालूँ साध्वी जी से मिलने की",कृष्णराय जी बोलें.....
"हूजूर! आपके सभी काम सफल हो जाऐगें यदि आपने चन्द्रिका माई के दर्शन कर लिए तो",दयाराम बोला...
"दयाराम! मैनें कहा ना मुझे इन सब पर भरोसा नहीं है",कृष्णराय जी बोले...
"लेकिन मुझे उन पर पूरा भरोसा है ,वहाँ के दर्शन करने के बाद आपके सारे काम सफल हो जाऐगें,ये मेरा भरोसा कहता है,कम से कम मेरे भरोसे पर तो भरोसा कर लीजिए",दयाराम बोला...
दयाराम की इस बात पर कृष्णराय जी हँस पड़े तो दयाराम बोला...
"हुजूर! हँसने की बात नहीं है,मैं बिल्कुल सही कह रहा हूँ,आपको वहाँ जरूर जाना चाहिए,कल तो हम दोनों वहाँ से बिना दर्शन किए ही वापस आ गए,क्या पता इस बार उनके दर्शनों से आपका बिगड़ा काम बन जाएं",दयाराम बोला...
"ठीक है तो फिर कल ही चलते हैं वहाँ,लेकिन अभी तो रेस्ट हाउस चलें,देखो तो कितनी रात हो गई है",कृष्णराय जी बोलें...
"हाँ! हुजूर चलिए और सुबह नाश्ता करके चन्द्रिका माई के दर्शनों के लिए चलते हैं",दयाराम बोला...
"हाँ! भाई! अब तुम कह रहे हो तो वहाँ चलना ही पड़ेगा,क्या पता मेरा रूका हुआ काम पूरा हो जाए", कृष्णराय जी बोले...
और फिर दोनों सुबह सुबह नाश्ता करके चन्द्रिका माई के दर्शनों के लिए चल पड़े,मंदिर काफी ऊँचे पहाड़ पर था और रास्ते में झाड़ियाँ,पेड़ और पत्थर थे,जिनके ऊपर वें दोनों चढ़कर जा रहे थे,वें अभी ऊपर तक पहुँचे ही नहीं थे कि अचानक कृष्णराय जी का पैर फिसला और वें गिर पड़े,गिरने के कारण उनके घुटनें में बहुत जोर की चोट लग गई,वें खुद से खड़े नहीं हो पा रहे थे,उन्हें दयाराम ने सहारा देने की कोशिश की लेकिन वें कोशिश करने के बावजूद भी खड़े नहीं हो पाए,शायद उनके घुटने पर बहुत जोर की चोट लगी थी,अब दयाराम खुद को कोसने लगा कि मैं क्यों आपको यहाँ लाया और इस वीरान जंगल में मैं आपको कैसें नीचें तक ले चलूँ,कृष्णराय जी दर्द के मारे कराह रहे थें और दयाराम वहीं टीले पर उनके साथ बैठा था और तभी दयाराम को नींचे कच्ची सड़क पर एक बैलगाड़ी आती हुई दिखाई दी और वो उस ओर भागा फिर उसने उस बैलगाड़ी वाले से चिल्लाकर कहा...
"रुको....भाई...जरा रुको,मुझे तुम्हारी मदद की जरूरत है,हमारे साहब को चोट लग गई है",
और फिर दयाराम के चिल्लाने पर उस बैलगाड़ी वाले ने अपनी बैलगाड़ी वहीं रोकी और दयाराम के साथ वो ऊपर टीले पर पहुँचा और फिर दोनों कृष्णराय जी को उस टीले से सहारा देकर नीचे लाएं और फिर कृष्णराय जी को बैलगाड़ी में बिठाकर वो बैलगाड़ी वाला रेस्ट हाउस तक छोड़ने आया,कृष्णराय जी ने उस बैलगाड़ी वाले को धन्यवाद कहा ,तब दयाराम ने बैलगाड़ी वाले से पूछा.....
"भाई!कहाँ तक जा रहे हो",
तब वो बैलगाड़ी वाला बोला...
"हम तो शान्तिनिकेतन तक जा रहे थे,वहाँ के अस्पताल में हमारी मेहरारू भरती थी,अब वो ठीक हो गई है तो उसे आज अस्पताल से छुट्टी मिलने वाली है उसे आज घर लिवा जाना है,इसलिए तो हम उसे लिवा जाने के लिए बैलगाड़ी लाए थे",
"तो मेरा एक काम कर दोगे भाई!",दयाराम बोला...
"हाँ! भाई बताओ",बैलगाड़ी बोला....
तब दयाराम बैलगाड़ी वाले से बोला....
"तुम शान्तिनिकेतन के अस्पताल तक ये खबर पहुँचवा दोगें कि यहाँ रेस्ट हाउस में जो कृष्णराय बाबू ठहरें हैं ,उनके पैर में चोट आई है,फौरन डाक्टर साहब को यहाँ भेज दें,देखो तो साहब कैसे दर्द से तड़प रहे हैं,मैं तो चला जाता शान्तिनिकेतन डाक्टर साहब को लिवाने लेकिन यहाँ साहब बिलकुल अकेले हो जाऐगें,यहाँ उनका ख्याल कौन रखेगा"?
"तो बैलगाड़ी में इन्हें मेरे साथ भेज दीजिए,मैं इन्हें अस्पताल तक पहुँचवा दूँगा",बैलगाड़ी वाला बोला...
"वही तो दिक्कत है भाई! ना जाने क्यों इन साहब को देखकर साध्वी जी नाराज हो जातीं हैं,क्या पता ये वहाँ गए तो इन्हें वहाँ से भगा दें,तो ये वहाँ से कैसें आऐगे? पाँव में चोट जो लगी है", दयाराम बोला....
"हाँ! तब हम ही ये खबर शान्तिनिकेतन के अस्पताल तक पहुँचा देगें,रुकमनी बहनजी को बता देगें तो वें साध्वी जी को भी ये खबर पहुँचवा देगीं,उनके कहने पर डाक्टर साहब यहाँ जल्दी पहुँच जाऐगें",बैलगाड़ी वाला बोला...
"बहुत बहुत मेहरबानी भाई! ,तुमने मेरी मुश्किल आसान कर दी",दयाराम बोला...
"तो फिर हम जाते हैं",बैलगाड़ी वाला बोला...
"हाँ! भाई! अब तुम जाओ और जितना जल्दी हो सकें डाक्टर साहब को यहाँ भेज देना",दयाराम बोला...
"हाँ! फिकर ना करो भाई!,हम बस वहाँ पहुँचते ही डाक्टर साहब को यहाँ भेजते हैं"
और ऐसा कहकर वो बैलगाड़ी वाला वहाँ से चला गया और कुछ देर में उसने अस्पताल पहुँचकर ये खबर रुकमनी बहनजी को दे दी और रुकमनी बहनजी ने साध्वी जी को ये बात बता दी और फिर कुछ ही देर में साध्वी जी डाक्टर साहब के साथ ताँगें में बैठकर रेस्ट हाउस पहुँचीं,फिर डाक्टर साहब ने कृष्णराय जी के पैर का चेकअप किया तो बोलें....
"कोई घबराने वाली बात नहीं है,हड्डी नहीं टूटी लेकिन फिर भी आपको एक्सरे तो करवाना ही पड़ेगा,अभी मैं आपको कुछ दवाईयाँ दिए देता हूँ जिससे आपको दर्द में आराम मिलेगा",
और डाक्टर साहब ने कृष्णराय जी को कुछ दवाइयांँ दी और चोट पर लगाने वाली एक दवा भी दी,फिर कृष्णराय जी ने डाक्टर साहब से पूछा.....
"कितनी फीस हुई आपकी"?
"जी! शान्तिनिकेतन के डाक्टर जनता की सेवा की फीस नहीं लिया करते,हमें हर महीने हमारी फीस साध्वी जी से जो मिल जाती है" डाक्टर साहब बोलें...
"ओह....मुझे नहीं पता था कि साध्वी जी इतनी दयालु हैं", कृष्णराय जी ने साध्वी जी की ओर देखते हुए कहा...
"अच्छा तो मैं अब चलता हूँ,दवाई लेते रहिएगा अगर कोई दिक्कत हो तो खबर भिजवा दीजिएगा",डाक्टर साहब बोलें....
"ठीक है डाक्टर बाबू! आप ताँगा लेकर अस्पताल चले जाइए,मैं बाद में आ जाऊँगी,रामसेवक से कहिएगा कि ताँगा लेकर लक्ष्मीनारायण मंदिर आ जाएगा", साध्वी जी ने डाक्टर साहब से कहा....
"ठीक है साध्वी जी! जैसा आप कहें"
और डाक्टर साहब ये कहकर चले गए ,फिर साध्वी जी कृष्णराय जी के पास पड़ी कुर्सी पर आकर बैठ गई और कृष्णराय जी से बोलीं....
"ऐसे कैसें फिसल गए आप"?
साध्वी जी के सवाल पर कृष्णराय जी कुछ ना बोले तो साध्वी जी बोलीं....
"अरे!आज क्या हुआ,जवाब नहीं दिया आपने मेरे सवाल का ,वैसे तो रोज मेरे पीछे पीछे घूम रहे थे और आज पहचान भी नहीं पा रहे",
"पहचान तो मैनें लिया लेकिन मैं ये सोच रहा था कि क्या पाँव फिसलने के बाद ही आपके दर्शन होने थे",कृष्णराय जी बोले...
"अब मालूम हो गया ना कि मैं कैसी साध्वी भी हूँ,मुझे रामस्वरूप जी ने आपके आने की खबर पहले ही भिजवा दी थी ,इसलिए मैं सोच रही थी कि शान्तिनिकेतन छोड़कर कहीं और चली जाऊँ,कहीं और चली जाती तो इस बखेड़े से दूर तो रहती",साध्वी जी बोलीं....
"तो क्यों नहीं गई आप शान्तिनिकेतन छोड़कर"?,कृष्णराय जी ने पूछा...
"आप वो सब छोड़िए ,पहले ये बताइए ज्यादा दर्द हो रहा है क्या"? साध्वी जी ने पूछा...
"दर्द तो हो रहा है लेकिन दर्द से ज्यादा मुझे चिन्ता हो रही है",कृष्णराय जी बोले....
"भला ! किस चींज की चिन्ता",साध्वी जी ने अचरज से पूछा...
"वो ये कि इस इलाके के लोग आपको देवी मानते हैं और अगर उन्होंने ये देख लिया कि आप मेरा हाल पूछने यहाँ आईं हैं तो वें सब मुझे यहाँ रहने नहीं देगें",कृष्णराय जी बोलें....
"हाँ! तो मैं आज ही बंदोबस्त करती हूँ आपका अस्पताल में,ताकि मुझे आपका हाल पूछने यहाँ ना आना पड़े,अच्छा अब चलती हूँ",
ऐसा कहकर साध्वी जी जाने लगी तो कृष्णराय जी बोलें....
"पैदल जाऐगी,ताँगा तो वापस आने दीजिए",
"कोई बात नहीं,मुझे पैदल चलने की भी आदत है,मैं तब तक लक्ष्मीनारायण मंदिर के दर्शन करती हूँ,ताँगा वहीं आने वाला है",
और ऐसा कहकर साध्वी जी चली गईं और फिर शाम तक शान्तिनिकेतन के अस्पताल से कृष्णराय जी को लेने ताँगा भी आ गया,ये ताँगा साध्वी जी ने ही भेजा था और कृष्णराय जी अब शान्तिनिकेतन के अस्पताल पहुँच चुके थे....
क्रमशः....
सरोज वर्मा....