Manto ki bekhouf kahaniya book and story is written by Saadat Hasan Manto in Hindi . This story is getting good reader response on Matrubharti app and web since it is published free to read for all readers online. Manto ki bekhouf kahaniya is also popular in लघुकथा in Hindi and it is receiving from online readers very fast. Signup now to get access to this story.
मंटो की बेख़ौफ़ कहानियां - उपन्यास
Saadat Hasan Manto
द्वारा
हिंदी लघुकथा
ये 1919-ई- की बात है भाई जान जब रौलट ऐक्ट के ख़िलाफ़ सारे पंजाब में एजीटेशन होरही थी। मैं अमृतसर की बात कररहा हूँ। सर माईकल ओडवायर ने डीफ़ैंस आफ़ इंडिया रूल्ज़ के मातहत गांधी जी का दाख़िला पंजाब में बंद कर दिया था। वो इधर आरहे थे कि पलवाल के मुक़ाम पर उन को रोक लिया गया और गिरफ़्तार करके वापस बमबई भेज दिया गया। जहां तक में समझता हूँ भाई जान अगर अंग्रेज़ ये ग़लती न करता तो जलीयाँ वाला बाग़ का हादिसा उस की हुक्मरानी की स्याह तारीख़ में ऐसे ख़ूनीं वर्क़ का इज़ाफ़ा कभी न करता। क्या मुस्लमान, किया हिंदू, क्या सिख, सब के दिल में गांधी जी की बेहद इज़्ज़त थी। सब उन्हें महात्मा मानते थे। जब उन की गिरफ़्तारी की ख़बर लाहौर पहुंची तो सारा कारोबार एक दम बंद होगया। यहां से अमृतसर वालों को मालूम हुआ, चुनांचे यूं चुटकियों में मुकम्मल हड़ताल होगई।
ये 1919-ई- की बात है भाई जान जब रौलट ऐक्ट के ख़िलाफ़ सारे पंजाब में एजीटेशन होरही थी। मैं अमृतसर की बात कररहा हूँ। सर माईकल ओडवायर ने डीफ़ैंस आफ़ इंडिया रूल्ज़ के मातहत गांधी जी का दाख़िला पंजाब ...और पढ़ेबंद कर दिया था। वो इधर आरहे थे कि पलवाल के मुक़ाम पर उन को रोक लिया गया और गिरफ़्तार करके वापस बमबई भेज दिया गया। जहां तक में समझता हूँ भाई जान अगर अंग्रेज़ ये ग़लती न करता तो जलीयाँ वाला बाग़ का हादिसा उस की हुक्मरानी की स्याह तारीख़ में ऐसे ख़ूनीं वर्क़ का इज़ाफ़ा कभी न करता।
अंजाम-ए-नजीर (सआदत हसन मंटो)
बटवारे के बाद जब फ़िर्का-वाराना फ़सादात शिद्दत इख़्तियार कर गए और जगह जगह हिंदूओं और मुस्लमानों के ख़ून से ज़मीन रंगी जाने लगी तो नसीम अख़तर जो दिल्ली की नौ-ख़ेज़ तवाइफ़ थी अपनी बूढ़ी माँ से ...और पढ़े“चलो माँ यहां से चलें”
बूढ़ी बाइका ने अपने पोपले मुँह में पानदान से छालिया के बारीक बारीक टुकड़े डालते हुए उस से पूछा “कहाँ जाऐंगे बेटा ”
“पाकिस्तान।” ये कह कर वो अपने उस्ताद ख़ानसाहब अच्छन ख़ान से मुख़ातब हूई।
अक़ल-दाढ़ (सआदत हसन मंटो)
“आप मुँह सुजाये क्यों बैठे हैं ”
“भई दाँत में दर्द हो रहा है तुम तो ख़्वाह-मख़्वाह ”
“ख़्वाह-मख़्वाह क्या आप के दाँत में कभी दर्द हो ही नहीं सकता”
“वो कैसे ”
“आप भूल क्यों ...और पढ़ेहैं कि आप के दाँत मस्नूई हैं जो असली थे वो तो कभी के रुख़स्त हो चुके हैं”
“लेकिन बेगम भूलती तुम हो मेरे बीस दाँतों में सिर्फ़ नौ दाँत मस्नूई हैं बाक़ी असली और मेरे अपने हैं। अगर तुम्हें मेरी बात पर यक़ीन न हो तो मेरा मुँह खोल कर अच्छी तरह मुआइना कर लो।”
अनार कली नाम उस का सलीम था मगर उस के यार दोस्त उसे शहज़ादा सलीम कहते थे। ग़ालिबन इस लिए कि उस के ख़द-ओ-ख़ाल मुग़लई थे ख़ूबसूरत था। चाल ढाल से राऊनत टपकती थी। उस का बाप पीडब्ल्यू डी ...और पढ़ेदफ़्तर में मुलाज़िम था। तनख़्वाह ज़्यादा से ज़्यादा सौ रुपय होगी मगर बड़े ठाट से रहता ज़ाहिर है कि रिश्वत खाता था यही वजह है कि सलीम अच्छे से अच्छा कपड़ा पहनता जेब ख़र्च भी उस को काफ़ी मिलता इस लिए कि वो अपने वालदैन का इकलौता लड़का था। जब कॉलिज में था तो कई लड़कियां उस पर जान छड़कतीं
अब और कहने कि ज़रुरत नहीं ये दुनिया भी अजीब-ओ-ग़रीब है ख़ासकर आज का ज़माना क़ानून को जिस तरह फ़रेब दिया जाता है, इस के मुताल्लिक़ शायद आप को ज़्यादा इलम ना हो। आजकल क़ानून एक बे-मानी चीज़ बन ...और पढ़ेरह गया है । उधर कोई नया क़ानून बनता है, उधर यार लोग उस का तोड़ सोच लेते हैं, इस के इलावा अपने बचाओ की कई सूरतों पैदा कर लेते हैं। किसी अख़बार पर आफ़त आनी हो तो आया करे, उस का मालिक महफ़ूज़-ओ-मामून रहेगा, इस लिए कि प्रिंट लाईन में किसी कसाई या धोबी का नाम बहैसियत प्रिंटर पब्लिशर