आमिना
दूर तक धान के सुनहरे खेत फैले हुए थे जुम्मे का नौजवान लड़का बिंदू कटे हुए धान के पोले उठा रहा था और साथ ही साथ गा भी रहा था।
धान के पोले धर धर कांधे
भर भर लाए
खेत सुनहरा धन दौलत रे
बिंदू का बाप जुम्मा गांव में बहुत मक़बूल था। हर शख़्स को मालूम था कि उस को अपनी बीवी से बहुत प्यार है उन दोनों का इश्क़ गांव के हर शख़्स को मालूम था उन के दो बच्चे थे एक बिंदू जिस की उम्र तेराह बरस के क़रीब थी दूसरा चंदू।
सब ख़ुश-ओ-ख़ुर्रम थे मगर एक रोज़ अचानक जुम्मे की बीवी बीमार पड़ गई हालत बहुत नाज़ुक हो गई बहुत इलाज किए टोने टोटके आज़माए मगर उस को कोई इफ़ाक़ा न हुआ। जब मर्ज़ मोहलिक शक्ल इख़्तियार कर गया तो उस ने अपने शौहर से नहीफ़ लहजे में कहा “तुम मुझे कबूतरी कहा करते थे और ख़ुद को कबूतर हम दोनों ने दो बच्चे पैदा किए अब ये तुम्हारी कबूतरी मर रही है कहीं ऐसा न हो कि मेरे मरने के बाद तुम कोई और कबूतरी अपने घर ले आओ”
थोड़ी देर के बाद उस पर हज़यानी कैफ़ियत तारी हो गई जम्मे की आँखों से आँसू रवां थे और उस की बीवी बोले चली जा रही थी। “तुम और कबूतरी ले आओगे वो सोचेगी कि जब तक मेरे बच्चे ज़िंदा हैं तुम उस से मोहब्बत नहीं करोगे चुनांचे वो उन को ज़बह कर के खा जाएगी”
जम्मे ने अपनी बीवी से बड़े प्यार के साथ कहा “सकीना! मैं तुम से वअदा करता हूँ कि ज़िंदगी भर दूसरी शादी नहीं करूंगा मगर तुम्हारे दुश्मन मरें तुम बहुत जल्द ठीक हो जाओगी”
सकीना के होंटों पर मुरदा सी मुस्कुराहट नुमूदार हुई इस के फ़ौरन बाद उस की रूह क़फ़स-ए-उंसुरी से परवाज़ कर गई। जुम्मा बहुत रोया। जब उस ने अपने हाथों से उस को दफ़न किया तो उस को ऐसा महसूस हुआ कि उस ने अपनी ज़िंदगी मनों मिट्टी के नीचे गाड़ दी है।
अब वो हर वक़्त मग़्मूम रहता काम काज में उसे कोई दिलचस्पी न रही एक दिन उस के एक वफ़ादार मज़ारा ने उस से कहा....... “सरकार! बहुत दिनों से में आप की ये हालत देख रहा हूँ और जी ही जी में कुढ़ता रहा हूँ। आज मुझ से नहीं रहा गया तो आप से ये अर्ज़ करने आया हूँ कि आप अपने बच्चों का बहुत ख़याल रखते हैं अपनी ज़मीनों की तरफ़ कोई तवज्जे नहीं देते । आप को इस का इल्म भी नहीं कितना नुक़्सान हो रहा है”
जुम्मे ने बड़ी बे-तवज्जही से कहा : “होने दो मुझे किसी चीज़ का होश नहीं”
“सरकार आप होश में आइए चारों तरफ़ दुश्मन ही दुश्मन हैं ऐसा न हो वो आप की ग़फ़लत से फ़ाएदा उठा कर आप की ज़मीनों पर क़ब्ज़ा कर लें आप से मुक़द्दमा बाज़ी क्या होगी मेरी तो यही मुख़्लिसाना राय है कि आप दूसरी शादी कर लें इस से आप के ग़म का बोझ हल्का हो जाएगा और वो आप के लड़कों से प्यार मोहब्बत भी करेगी।”
जम्मे को बहुत ग़ुस्सा आया “बकवास न करो रमज़ानी तुम समझते नहीं कि सौतेली माँ क्या होती है इस के अलावा तुम ये भी तो सोचो मेरी बीवी की रूह को कितना बड़ा सदमा पहुंचेगा”
बहुत दिनों के इसरार के बाद आख़िर रमज़ानी अपने आक़ा को दूसरी शादी पर रज़ामंद करने में कामियाब हो गया। जब शादी हो गई तो उस ने अपने लड़कों को एक अलाहदा मकान में भेज दिया हर रोज़ वहां कई कई घंटे रहता और बिंदू और चंदू की दिल-जूई करता रहता।
नई बीवी को ये बात बहुत ना-गवार गुज़री एक बात और भी थी कि मक्खन दूध का बेश-तर हिस्सा उस के सौतेले बेटों के पास चला जाता था। इस से वो बहुत जलती उस का तो ये मतलब था कि घर बार के मालिक वही हैं।
एक दिन जुम्मा जब खेतों से वापस आया तो उस की नई बीवी ज़ार-ओ-क़तार रोने लगी जम्मे ने इस आह-ओ-ज़ारी की वजह पूछी तो उस ने कहा “तुम मुझे अपना नहीं समझते। इसी लिए बच्चों को दूसरे मकान में भेज दिया। मैं उन की माँ हूँ कोई दुश्मन तो नहीं हूँ मुझे बहुत दुख होता है जब मैं सोचती हूँ कि बे-चारे अकेले रहते हैं”
जुम्मा इन बातों से बहुत मुतअस्सिर हुआ और दूसरे ही दिन बिंदू और चंदू को ले आया और उन को सौतेली माँ के हवाले कर दिया जिस ने उन को इतने प्यार मोहब्बत से रखा कि आस पास के तमाम लोग उस की तारीफ़ में रतब-उल-लिसान हो गए।
नई बीवी ने जब अपने ख़ावंद के दिल को पूरी तरह मोह लिया तो एक दिन एक मज़ारा को बुला कर अकेले में उस से बड़े राज़-दाराना लहजे में कहा “मैं तुम से एक काम लेना चाहती हूँ बोलो करोगे”
उस मज़ारा ने जिस का नाम शबराती था हाथ जोड़ कर कहा: “सरकार! आप माई बाप हैं जान तक हाज़िर है”
नई बीवी ने कहा “देखो कल दरिया के पास बहुत बड़ा मेला लग रहा है मैं अपने सौतेले बच्चों को तुम्हारे साथ भेजूंगी उन को क्षति की सैर कराना और किसी न किसी तरह जब कोई और देखता न हो उन्हें गहरे पानी में डुबो देना”
शबराती की ज़हनियत ग़ुलामाना थी इस के अलावा उस को बहुत बड़े इनाम का लालच दिया गया था। वो दूसरे रोज़ बिंदू और चंदू को अपने साथ ले गया। उन्हें कश्ती में बिठाया उस को ख़ुद खेना शुरू किया दरिया में दूर तक चला गया जहाँ कोई देखने वाला नहीं था उस ने चाहा कि उन्हें धक्का दे कर डुबो दे मगर एक दम उस का ज़मीर जाग उठा उस ने सोचा इन बच्चों का क्या क़ुसूर है सिवाए इस के कि उन की अपनी माँ मर चुकी है और अब ये सौतेली माँ के रहम-ओ-करम पर हैं। बेहतर यही है कि मैं इन्हें किसी शख़्स के हवाले कर दूं और सौतेली माँ से जा कर कह दूँ कि दोनों डूब चुके हैं।
दरिया के दूसरे किनारे उतर कर उस ने बिंदू और चंदू को एक ताजिर के हवाले कर दिया जिस ने उन को मुलाज़िम रख लिया।
बड़ा लड़का बिंदू खेल कूद का आदी मेहनत मशक़्क़त से बहुत घबराता था ताजिर के हाँ से भाग निकला और पैदल चल कर दूसरे शहर में पहुंचा मगर वहाँ उसे एक दौलत-मंद आदमी के हाँ जिस का नाम क़लंदर बेग था पनाह लेना पड़ी। क़लंदर बेग नेक दिल आदमी था उस ने चाहा कि बिंदू को अपने हाँ नौकर रख ले चुनांचे उस ने उस से पूछा: “बरख़ुरदार! क्या तनख़्वाह लोगे”
बिन्दू ने जवाब दिया: “जनाब मैं तनख़्वाह नहीं लूंगा”
क़लंदर बेग को किसी क़दर हैरत हुई लड़का शक्ल-ओ-सूरत का अच्छा था उस में गंवार पन भी नहीं था उस ने पूछा “तुम किस ख़ान-दान के हो किस शहर के बाशिंदे हो?”
बिन्दू ने इस सवाल का कोई जवाब न दिया और ख़ामोश रहा फिर रोने लगा। क़लंदर बेग ने उस से मज़ीद इस्तिफ़सार करना मुनासिब न समझा जब बिंदू को उस के यहाँ रहते हुए काफ़ी अर्सा गुज़र गया तो क़लंदर बेग उस की ख़ुश अतवारी से बहुत मुतअस्सिर हुआ। एक दिन उस ने अपनी बीवी से कहा “बिंदू मुझे बहुत पसंद है। मैं तो सोचता हूँ उस से अपनी एक लड़की ब्याह दूँ ”
बीवी को अपने ख़ावंद की ये बात बुरी लगी लेकिन आख़िर उस ने कहा: “आप से उस के ख़ान-दान के मुतअल्लिक़ तो दरयाफ़्त कीजीए”
क़लंदर बेग ने कहा “मैं ने एक मर्तबा उस से उस के ख़ान-दान के मुत्ल्लिक़ पूछा तो वो ज़ार-ओ-क़तार रोने लगा फिर मैं ने इस मौज़ू पर उस से कभी गुफ़्तुगू नहीं की”
बिंदू कई बरस क़लंदर बेग के हाँ रहा जब बीस बरस का हो गया तो क़लंदर बेग ने अपना सारा कारोबार उस के सपुर्द कर दिया। काफ़ी अर्सा गुज़र गया एक दिन बिंदू ने बड़े अदब से अपने आक़ा से दरख़्वास्त की “दरिया के उस पार दूर जो एक गांव है वहाँ मैं छोटा मकान बनवाना चाहता हूँ । क्या मुझे आप इतना रुपया मर्हमत फ़रमा सकते हैं कि मेरी ये ख़्वाहिश पूरी हो जाये”
“क़लंदर मुस्कुराया तुम जितना रुपया चाहो ले सकते हो बेटा। लेकिन ये बताओ कि तुम दरिया पार उतनी दूर मकान क्यूँ बनवाना चाहते हो।”
बिंदू ने जवाब दिया “ये राज़ आप पर अनक़रीब खुल जाएगा”
बिंदू और चंदू का बाप अपने बेटों के फ़िराक़ में घुल घुल के मर चुका था मज़ारों की बड़ी अबतर हालत थी इस लिए कि ज़मीनों की देख भाल करने वाला कोई भी न था।
बिंदू बहुत सा रुपया लेकर अपने गांव पहुंचा एक पक्का मकान बनवाया और मज़ारों को ख़ुशहाल कर दिया।
बिंदू का भाई चंदू जिस शख़्स के हाँ मुलाज़िम हुआ था उस ने उस को बेटा बना लिया था एक दफ़ा वो ख़तर-नाक तौर पर बीमार पड़ गया तो उस शख़्स की बीवी ने जिस का नाम समद ख़ान था अपनी बेटी आमिना से कहा “कि वो उस की तीमारदारी करे।”
आमिना बड़ी नाज़ुक इंदाम हसीन लड़की थी दिन रात उस ने चंदू की ख़िदमत की ‘आख़िर वो सेहत-मंद हो गया’ तीमारदारी के इस दौर में वो कुछ इस तरह घुल मिल गए कि उन दोनों को एक दूसरे से मोहब्बत हो गई।
मगर चंदू सोचता था कि आमिना एक दौलत-मंद की लड़की है औरा मैं महज़ कंगला। उन का आपस में क्या जोड़ है उस के वालिद भला कब उन की शादी पर राज़ी होंगे लेकिन आमिना को किसी क़दर यक़ीन था कि उस के वालदैन राज़ी हो जाऐंगे इस लिए कि वो चंदू को बड़ी अच्छी निगाहों से देखते थे।
एक दिन चंदू गाय भैंसों के रेवड़ को जोहड़ पर पानी पिला रहा था कि आमिना दौड़ती हुई आई उस की सांस फूली हुई थी नन्हा सा सीना धड़क रहा था उस ने ख़ुश ख़ुश चन्दू से कहा “एक अच्छी ख़बर लाई हूँ आज मेरी माँ और बाप मेरी शादी की बात कर रहे थे। उन्हों ने फ़ैसला किया कि तुम बड़े अच्छे लड़के हो इस लिए तुम्हें मेरे साथ ब्याह देना चाहिए”
चन्दू इस क़दर ख़ुश हुआ कि उस ने आमिना को उठा कर नाचना शुरू कर दिया।
उन दोनों की शादी हो गई एक साल के बाद उन के हाँ एक लड़का पैदा हुआ जिस का नाम जमील रखा गया।
जब बिंदू अपने गांव में अच्छी तरह जम गया तो उस ने भाई का पता लिया। जा के उस से मिला दोनों बहुत ख़ुश हुए। बिंदू ने उस से कहा “अब अल्लाह का फ़ज़ल है चलो मेरे साथ और दीवानी सँभालो मैं चाहता हूँ तुम्हारी शादी अपनी साली से करा दूँ। बड़ी प्यारी लड़की है।”
चंदू ने उस को बताया कि वो पहले ही शादीशुदा है सारे हालात सुन कर बिंदू ने उस को समझाया। “क़लंदर बेग बेहद दौलत-मंद आदमी है उस की लड़की से शादी कर लो। सारी उम्र ऐश करोगे। आमिना के बाप के पास क्या पड़ा है”
चंदू अपने भाई की ये बातें सुन कर लालच में आ गया और दौलत-मंद आमिना को छोड़ दिया। तलाक़ नामा किसी के हाथ भिजवा दिया और उस से मिले बगै़र चला गया।
चंद रोज़ के बाद ही बिन्दू ने अपने भाई की शादी क़लंदर बेग की छोटी लड़की से करा दी आमिना हैरान-ओ-परेशान थी कि उस का प्यारा चंदू एक दम कहाँ ग़ाएब हो गया लेकिन उस को यक़ीन था कि वो मुझ से मोहब्बत करता है। एक दिन ज़रूर वापस आ जाएगा। बड़ी देर उस ने उस की वापसी का इंतिज़ार किया और उस की याद में आँसू बहाती रही। जब वो न आया तो आमिना के बाप ने जमील को साथ लिया और बिंदू के गांव पहुंचा उस की मुलाक़ात चंदू से हुई। वो दौलत के नशे में सब को भूल चुका था।
आमिना के बाप ने उस की बड़ी मिन्नत समाजत की और उस से कहा “और कुछ नहीं तो अपने इस कमसिन बेटे का ख़याल करो तुम्हारे बगै़र इस बच्चे की ज़िंदगी क्या है?”
चंदू ने ये कोरा जवाब दिया “मैं अपनी दौलत और इज़्ज़त इस बच्चे के लिए छोड़ सकता हूँ?। जाओ इसे ले जाओ और मेरी नज़रों से दूर कर दो”
जब आमिना के बाप ने और ज़्यादा मिन्नत समाजत की तो चंदू ने उस बुड्ढे को धक्के दे कर बाहर निकलवा दिया। साथ ही अपने बच्चे को भी।
बूढ़ा बाप ग़म-ओ-अंदोह से चूर घर पहुंचा और आमिना को सारी दास्तान सुना दी। आमिना को इस क़दर सदमा पहुंचा कि पागल हो गई। चंदू पर पे-दर-पे इतने मसाएब आए कि उस की सारी दौलत उजड़ गई भाई ने भी आँखें फेर लीं। बीवी लड़ झगड़ कर अपने मैके चली गई अब उस को आमिना याद आई वो उस से मिलने के लिए गया उस का बेटा जमील हड्डियों का ढांचा उस से घर के बाहर मिला उस ने उस को प्यार किया और आमिना के मुतअल्लिक़ उस से पूछा।
जमील ने उस से कहा “आओ तुम्हें बताता हूँ मेरी माँ आज-कल कहाँ रहती है”
वो उसे दूर ले गया और एक क़ब्र की तरफ़ इशारा कर के “यहाँ रहती है आमिना अम्मां”
16 मई 1954