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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन में - उपन्यास
Kishanlal Sharma
द्वारा
हिंदी जीवनी
Your life partner will be beautiful
But not easy to live with her
ऐसा नही है कि हरेक के साथ इत्तफाक हो।पर किसी के साथ हो भी सकता है।
कहानी तो शुरू से ही कहनी पड़ेगी।
सनातन में या हमारे धर्म मे जीवन को चार भाग में बांटागया है।
ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यास
परन्तु इसके अलावा आदमी के जीवन के दो भाग होते है।एक शादी से पहले,दूसरा शादी के बाद।
जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही हर लड़की ही नही हर लड़का भी अपने भविष्य का सपना देखने लगता है।पहले औरते घर की चारदीवारी में कैद रहती थी।पर अब समय बदल गया है।अब औरतों के कदम घर से बाहर निकल चुके है।वे पुरुषओ के साथ कंधे से कंधा मिलाकर हर क्षेत्र में काम कर रही है।
लेकिन
फिर भी।आज भी।हमारे यहां औरत चाहे कितनी ही शिक्षित हो जाये,वह ग्रहणी बनकर गृहस्थी सम्भालना ही ज्यादा पसंद करती है।इसलिए आज की युवती का सपना होता है-शिक्षित,कमाऊ पति।
Your life partner will be beautifulBut not easy to live with herऐसा नही है कि हरेक के साथ इत्तफाक हो।पर किसी के साथ हो भी सकता है।कहानी तो शुरू से ही कहनी पड़ेगी।सनातन में या हमारे धर्म मे जीवन ...और पढ़ेचार भाग में बांटागया है।ब्रह्मचर्य,गृहस्थ,वानप्रस्थ और सन्यासपरन्तु इसके अलावा आदमी के जीवन के दो भाग होते है।एक शादी से पहले,दूसरा शादी के बाद।जवानी की दहलीज पर कदम रखते ही हर लड़की ही नही हर लड़का भी अपने भविष्य का सपना देखने लगता है।पहले औरते घर की चारदीवारी में कैद रहती थी।पर अब समय बदल गया है।अब औरतों के कदम घर
उस टिकट पर हिंदी और अंग्रेजीमें जो वाक्य लिखे थे,वो ऊपर बता चुका हूँ।क्या ऐसा ही होगा?यह प्रश्न तो मन मे आना लाजमी था।बापू की म्रत्यु के बाद मेरी अनुकम्पा पर रेलवे में नौकरी लग गयी और ट्रेनिग के ...और पढ़ेपहली पोस्टिंग पर मै आगरा आ गया।हमारे यहाँ आज भी लड़का लड़की की शादी करना माँ बाप की जिम्मेदारी माना जाता है।मेरी माँ तो थी पर पितां नही।परिवार पितां की मृत्यु के बाद गांव आ गया था और मै आगरा आ गया।मेरे तीन ताऊजी थे।बीच वाले अनपढ़ होने के साथ कुंवारे भी थे।और बड़े ताऊजी इन सब से दूर।तीसरे ताऊजी
होता था तब यही सपना देखता।उन दिनों में लेखक नही बना था।इसलिए ड्यूटी से आने के बाद अपने कमरे में ही रहता।पढ़ने का शौक जरूर था।उपन्यास,पत्रिकाएं पढ़ता या पिक्चर देखने चला जाता।सन 1971 महीनों तो अब मुझे याद नही ...और पढ़ेश्राद्ध से पहले की बात है।बापू का श्राद्ध पड़वा के दिन पड़ता है।मैने दस दिन की छुट्टी ली थी। उन दिनों आगरा से अहमदाबाद के बीच छोटी लाइन थी।आगरा से बांदीकुई के लिए सिर्फ 3 ट्रेनें थी।आगरा से बांदीकुई पैसेंजरआगरा से अहमदाबाद एक्सप्रेसआगरा से बाड़मेरउन दिनों बांदीकुई पैसेंजर शाम को पांच बजे चलती थी।मैं इस ट्रेन से बांदीकुई गया था।मेरा
और लड़की देखने जाने की बात पक्की हो गयी।भाई बांदीकुई चला गया।मुझसे कह गया,"कल आ जाना।"अगले दिन में जाने के लिए तैयार हो गया।ताऊजी ने एक पत्र मुझे लिखकर दिया।पत्र क्या था?एक कॉपी का पेज जिस पर चार लाइन ...और पढ़ेथी--मैं लड़के को भेज रहा हूँ।मैं चाहता हूँ रिश्ते से पहले लड़का लड़की एक दूसरे को देख ले।आप लड़की दिखा देना।यह खुला पत्र था।किसी लिफाफे में नही रखा था,न बन्द था।मैं बसवा से बांदीकुई गया।उन दिनों रेवाड़ी से बांदीकुई तक 11 बजे पैसेंजर ट्रेन आती थी।इस ट्रेन से मुझे बांदीकुई जाना था।मैं उस दिन उस ट्रेन से ताऊजी की चिट्ठी
और शाम हो गयी थी।वहां से वापस लौटने के लिए रात में ही ट्रेन थी।हम लोग बाते करते रहे।फिर खाना बना था।पूड़ी सब्जी हलवा।खाना स्वादिष्ट था जिसे लड़की ने ही बनाया था।शाम को मतलब रात को एक मालगाड़ी रुकी ...और पढ़ेहम लोग बांदीकुई वापस आ गए।रास्ते मे भाई मुझसे बोला,"लड़की तो सुंदर है।"मैने कोई जवाब नही दिया था।"खाना भी बहुत बढ़िया बनाया था।""यार मुझे शादी नही करनी।""क्या लड़की सुंदर नही है।""यह मैने कब कहा?""तो कोई कमी है?""नही।""तो फिर कैसे मना करेगा?"मैं कुछ नही बोला।"लड़की सुंदर है और खाना भी बहुत अच्छा बनाती है।मुझे तो पसन्द है।मैं हा कर देता हूँ।""तो