गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 18 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 18

वह गगन यानी मेरी पत्नी को बहु के नाम से ही बुलाते थे।उनसे मधुर सम्बन्ध हो गए थे।उन्होंने कभी हमे किरायेदार नही समझा।उनके जितने भी रिश्तेदार आते या हमारे एक दूसरे से घुल जाते थे।
इस मकान में आने पर पत्नी फिर गर्भवती हो गयी थी।पहली डिलीवरी ऑपरेशन से हुई थी।और उस समय बड़े झंझट और तकलीफ झेलनी पड़ी थी।मेने उसी समय नही उससे पहले ही सोच रखा था कि हम दो हमारे दो।
और वह नई मुसीबत या बीमारी से घबरा गई थी।मैं भी लेकिन समस्या गम्भीर नही निकली।
मैने निश्चय किया कि दूसरी डिलीवरी आगरा में नही करूँगा।
मैने पत्नी को मैके भेज दिया।उन दिनों मेरे श्वसुर नरेना स्टेशन पर स्टेशन मास्टर थे।यह निश्चय किया कि अजमेर के रेलवे asptal में डिलीवरी कराएंगे।
औऱ पत्नी को लेने के लिए मेरा छोटा साला अशोक आया था।पत्नी जाते समय नर्वस थी।पहली डिलीवरी के समय काफी परेशानी हुई थी।यू तो मैं पहले ही निश्चय कर चुका था।लेकिन फिर मैंने फिर दोहराया था।चाहे लड़का हो या लड़की डिलीवरी के समय ही पत्नी की नसबंदी करा देनी है।
और पत्नी चली गयी थी।वैसे मेरा मन पत्नी के बिना नही लगता था।बाद में छोटी बहन गांव से आगरा आ गयी थी।मैं पत्नी से मिलने गया ठूस समय डिलीवरी का समय करीब आ गया था।मेरी सास पत्नी को लेकर अजमेर चली गई थी।उस समय मेरे दो साले अशोक और विजय अजमेर में पढ़ रहे थे।वे रामगंज में कमरा लेकर रे रहे थे।वही पर डिलीवरी के समय पत्नी रही थी।
उन दिनों टेलीफोन तो हर जगह होते नही थे।चिट्ठी औऱ तार ही साधन थे।
एक दिन मैं दो बजे से दस बजे की ड्यूटी कर रहा था।करीब शाम को पांच बजे बडे बाबू मेहताजी ने मुझे आवाज दी।मैं उनके पास गया तो बोले,"अजमेर नहीं जा रहे
"क्यो?"
"बेटी हुई है
"नही तो।अभी कोई खबर नही है
"खबर आ गई।"बड़े बाबू तार मुझे देते हुए बोले,"कल चले जाओ
मेरे शवसुरजी ने तार बड़े बाबू के नाम से भेजा था।बड़े बाबू ने तार मुझे दिया था।स्टाफ छुट्टी पर था।छुट्टी की दिक्कत थी।लेकिन बड़े बाबू बोले,"तुम कल चले जाओ।मैं मैनेज कर लूंगा
और अगले दिन मैं सुबह की ट्रेन से चल दिया।7 अप। छोटी लाइन की आगरा से जोधपुर के लिए चलती थीं।इस ट्रेन से मैं बांदीकुई तक गया था।वहाँ से मैने3 अप ट्रेन पकड़ी थीं जो दिल्ली और अहमदाबाद के बीच चलती थीं।पत्नी अस्पताल में भर्ती थी।उन्ही दिनों मेरे दो नम्बर के साले विमल की पत्नी अर्चना कि भी डिलीवरी हुई थी।उसका पलँग भी मेरी पत्नी के पलँग के पास था।अर्चना के लड़का पैदा हुआ था।जो होने के बाद ही मर गया था।वह शुरू से ही लड़ाकू परवर्टई की है।वह अपनी सास से ही लड़ने लगी।
औऱ मेरी सास अपनी बेटी यानी मेरी पत्नी को अस्पताल से छुट्टी दिला लायी थी।अजीब सिथति थी।एक औरत बेटी पर ध्यान दे रही थी।बहु पर नही।इसका कारण था।मेरे साले विमल ने प्रेम विवाह किया था।माता पिता की मर्जी के खिलाफ।यह भी सत्य है।कोर्ट मैरिज करके वह सबसे पहले हमारे पास ही आये थे।
और बाद में पत्नी अजमेर से नरेना आ गयी थी।करीब सवा महीने तक वह वहाँ रही थी।फिर वह आगरा आ गयी थी।
शेष अगले भाग में