होता था तब यही सपना देखता।
उन दिनों में लेखक नही बना था।इसलिए ड्यूटी से आने के बाद अपने कमरे में ही रहता।पढ़ने का शौक जरूर था।उपन्यास,पत्रिकाएं पढ़ता या पिक्चर देखने चला जाता।
सन 1971 महीनों तो अब मुझे याद नही लेकिन श्राद्ध से पहले की बात है।बापू का श्राद्ध पड़वा के दिन पड़ता है।मैने दस दिन की छुट्टी ली थी। उन दिनों आगरा से अहमदाबाद के बीच छोटी लाइन थी।आगरा से बांदीकुई के लिए सिर्फ 3 ट्रेनें थी।
आगरा से बांदीकुई पैसेंजर
आगरा से अहमदाबाद एक्सप्रेस
आगरा से बाड़मेर
उन दिनों बांदीकुई पैसेंजर शाम को पांच बजे चलती थी।मैं इस ट्रेन से बांदीकुई गया था।मेरा गांव बसवा था।जो दिल्ली लाइन पर था।यह बांदीकुई से अगला स्टेशन है।रात को गयराह बजे एक ट्रेन जो मेहसाणा से चलती थी।यह पैसेंजर ट्रेन थी और बसवा रुकती थी।पर मै कभी इससे नही जाता था।जब भी शाम वाली ट्रेन से आता,यह ट्रेन बांदीकुई रात 10 बजे आती थी।मैं रात को बांदीकुई रुकता।मेरे बहनोई बांदीकुई में टी सी थे।उन्हें स्टेशन के पास क्वाटर मिला हुआ था।मैं रात को अपनी बहन के घर रुकता।यह मेरे सबसे बड़े ताऊजी की दूसरे नम्बर की बेटी थी।वैसे ताऊजी का घर भी स्टेशन के पास ही था।लेकिन इस सिस्टर से मुझे काफी लगाव था जो आज भी है।सुबह पांच बजे बांदीकुई से रेवाड़ी के लिए पैसेंजर ट्रेन चलती थी।इससे मैं अपने गांव जाता था।उस दिन भी मैं रात को बहन के रुका था।सुबह बहन और बहनोई को भी उसी ट्रेन से बसवा जाना था।बहन की ससुराल बसवा से करीब 5 किलोमीटर दूर राजपुर गांव में है।उन दिनों पैदल ही जाना पड़ता था।
हम लोग सुबह स्टेशन आ गए थे।बहन ट्रेन में बैठ गयी थी।मैं और बहनोई प्लेटफॉर्म पर खड़े बाते करते रहे।बहन के सामने वाली सीट पर पति पत्नी और उनकी बेटी बैठी हुई थी।बहन उनसे बाते करती रही।ट्रेन चलने पर मैं और बहनोई आकर बैठ गए थे।बसवा आने पर मैं अपने घर की तरफ और बहन बहनोई अपने गांव की तरफ चले गए थे।
मेरा बड़ा कजिन(मेरे ताऊजी गणेश प्रशाद का सबसे बड़ा बेटा जो टीचर था और बांदीकुई में रहता था।वह आया हुआ था)उस समय हम सभी संयुक्त पैतृक मकान में रहते थे।ताऊजी और भाई बाहर चबूतरे पर बैठे बाते कर रहे थे।तभी मै जा पहुंचा।ताऊजी मुझसे बोले,"कल जाकर लड़की देख आ।"
पहले लड़की के बारे में बता दु।झर स्टेशन है जो दोसा से आगे है।इस स्टेशन पर स्टेशन मास्टर थे,के एल शर्मा उन दिनों मेरे ताऊजी जो कि टीचर थे।उनकी पोस्टिंग भी झर में प्राइमरी स्कूल में थी।छोटी जगह में लोगो से दोस्ती हो जाती है।मेरे ताऊजी की भी के एल शर्मा से दोस्ती हो गयी थी।जब वह झर में थे तभी उनके लड़की का जन्म हुआ था।इस लड़की को ताऊजी ने गोद मे खिलाया था।यह लड़की अब बड़ी हो चुकी थी।
कुछ समय पहले ताऊजी की किसी शादी में के एल शर्मा से मुलाकात हुई थी।तब रिश्ते की बात चली होगी तब ताऊजी ने मेरा जिक्र किया होगा।उसी लड़की को देखने की बात ताऊजी कह रहे थे।मैं ताऊजी की बात सुनकर बोला,"मुझे कोई लड़की नही देखनी।"
मेरा भाई जगदीश जिसे हम गुरु कहकर बुलाते थे,वह बोला,"देखने चलेंगे।"
"तू कहता है तो चले चलेंगे।"