गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 10 Kishanlal Sharma द्वारा जीवनी में हिंदी पीडीएफ

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गगन--तुम ही तुम हो मेरे जीवन मे - 10

और जीप गांव के लिए चल दी।
यादगार क्षण
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हर आदमी की जिंदगी में ऐसे क्षण आते है,जिन्हें वह नही भूलता।इन्हें यादगार क्षण कहते है।मै तो अपने जीवन के यादगार क्षणों की ही बात करूंगा।
हमारा मकान गांव में अंदर चलकर है।बाजार के एक मोड़ से आगे जीप नही जा सकती लेकिन उस दिन ड्राइवर अपने कौशल से जीप को घर के दरवाजे तक लेकर आया था।
बहु के घर आने का इनतजार कर रहे थे।
और आखिर मे मै दुल्हन के साथ दरवाजे पर पहुंच गया था।दरवाजे पर बहने व खानदान परिवार की औरते तैयार थी।पोली में औरतों की भीड़ में मुझे माँ नही नजर आयी थी।मैने सुना था कि हमारे यहां मान्यता है कि सुहागन औरते शुभ अवसर पर औरते सामने नही आती।लेकिन मेरी शादी का चाव सबसे ज्यादा तो मेरी माँ को ही था।अपने बेटे की शादी का चाव हर मा को होता है।इसलिए मैंने पूछा था,"माँ कहा है?"
"यह रही।"
और माँ वही थी उसी जगह औरतों के बीच मे
बहु को अंदर ले गए।रीति,रस्मे जो भी थी पूरी की जाने लगी।रिश्तेदार अभी कोई विदा नही हुए थे।हमारे खानदान में प्रथा है कि जिस दिन बहु ब्याह कर आती है।उस दिन सुहागरात नही होती।दूसरे दिन कुल देवता के चबूतरे पर गाजे बाजे के साथ जाना पड़ता है।खानदान और गांव की औरते भी जाती है।जिस दिन बहु ब्याहकर आती है,उस दिन रात को दूल्हा दुल्हन को खाने के बाद देवताओं के सामने बैठना होता है।आस पड़ोस की औरते भी आती है।दूल्हा दुल्हन देवताओं के सामबे बैठते है और औरते गीत गाती है।यह कार्यक्रम देर रात तक चलता है।
जैसा पहले मैने लिखा है,घर छोटा था और उसमें हमारा और गणेश ताऊजी का परिवार रहता था।करीब तीस लोग और शादी में तो नाते रिश्तेदार आये थे।आस पड़ोस में भी लोग रुके हुए थे।खाना खाने के बाद राम अवतार जीजाजी बोले,"ऊपर की छत पर सोते है।
और कई लोग ऊपर चले गए।उनके साथ मैं भी जा बैठा।राम अवतार जीजाजी बोले ,"तुम तो नीचे जाओ।तुम्हारी जरूरत पड़ेगी।"
"अभी तो सब खाना खा रही है।"
घनस्याम जीजाजी बोले,"आवाज दे लेंगी।"
खाने व अन्य काम से निपटी तब मुझे ढूंढा गया कही नही मिला तब कोई बोला,"ऊपर की छत पर होगा।"
उन्हें मालूम था कि मेरी जीजाजी से अच्छी पटती थी।ऊपर सब आवाज आ रही थी।जब पता चल गया,मैं ऊपर हूँ,तो बुलाने के लिए कहा,सब ने मना कर दिया।सब जानते थे,मैं गुस्से बाज हूँ।आखिर मैं सुशीला जीजीबाई बोली,"मैं बुलाती हूँ।"
जैसा मैं पहले ही बता चुका हूँ।जब में आगरा से आता तब सुशीला जीजीबाई के घर ही ठहरता था।उस दिन जब हम ,मतलब मैं जीजाजी और जीजीबाई बांदीकुई से आगरा आये तब हमारे सामने की सीट पर जो लड़की अपने मम्मी पापा के साथ बैठी थी।वह अब मेरी पत्नी बन चुकी थी।उसे पूजा रूम जो पोली के अंदर था।मैं बैठा दिया गया था।और वह अकेली बैठी मेरा ििनतजार कर रही थी।
काफी आवाज देने के बाद मै उतरा और बोला,"मुझे नही बैठना।"
"थोड़ी देर की बात है,शगुन होता है।"
और वह जबरदस्ती मुझे दुल्हन की बगल में बैठाकर आंगन में चली गयी जहाँ पर औरते राती जगे के गीत गा रही थी।
पत्नी घूंघट में से मेरी तरफ देखते हुए बोली,"बैठ क्यो नही रहे।"
"मुझे नही बैठना।"
"बैठ जाओ मैं कह रही हूँ।"
और पहली बार उसकी आवाज सुनी और मुझे बैठना पड़ा।