पकडौवा - थोपी गयी दुल्हन - उपन्यास
Kishanlal Sharma
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
सूरज ढल रहा था।ढलते सूरज की तिरक्षी किरणें नदी के बहते पानी मे पड़ रही थी।अनुपम नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठा बहते हुए पानी को देख रहा था।जब भी उसका मन करता वह यहां आकर बैठ जाता था।
अचानक उसे नदी के पानी मे उल्टी सीधी आकृतियां नजर आयी थी।उन आकृतियों को देखकर अनुपम को ऐसा लगा मानो कोई उसके पीछे खड़ा हो।मन मे आयी बात की सत्यता जानने के लिए उसने गर्दन घुमाकर देखा।तो वह चोंक पड़ा।उसके पीछे चार नकाबपोश हथियार बन्द लोग खड़े थे।
"कौन हो तुम लोग?"
अनुपम की बात को अनसुना करते हुए उन लोगो ने अनुपम को दबोच लिया।उसके हाथ पैर बांधकर उसके मुंह पर टेप चिपका दिया।अनुपम ने बहुत हाथ पैर मारे पर व्यर्थ।
उन लोगो ने अनुपम को जीप में डाला।
उसकी समझ मे कुछ नही आ रहा था।कौन है ये लोग?उसे क्यो बंधक बनाया है?उसकी तो गांव में किसी से दुश्मनी भी नही है।फिर उसे इस तरह ये लोग जबरदस्ती क्यो उठाकर ले जा रहे है।
और अनुपम को दूर एक अनजान जगह ले जाया गया था।उस जगह पहले से ही काफी लोग मौजूद थे।उसे जीप से उतारकर हथियार बन्द नकाबपोश एक कमरे में ले गए थे।उस कमरे में पहले से ही एक आदमी मौजूद था।वह उनसे बोला,"इसे खोल दो"।
सूरज ढल रहा था।ढलते सूरज की तिरक्षी किरणें नदी के बहते पानी मे पड़ रही थी।अनुपम नदी के किनारे एक पत्थर पर बैठा बहते हुए पानी को देख रहा था।जब भी उसका मन करता वह यहां आकर बैठ जाता ...और पढ़ेउसे नदी के पानी मे उल्टी सीधी आकृतियां नजर आयी थी।उन आकृतियों को देखकर अनुपम को ऐसा लगा मानो कोई उसके पीछे खड़ा हो।मन मे आयी बात की सत्यता जानने के लिए उसने गर्दन घुमाकर देखा।तो वह चोंक पड़ा।उसके पीछे चार नकाबपोश हथियार बन्द लोग खड़े थे।"कौन हो तुम लोग?"अनुपम की बात को अनसुना करते हुए उन लोगो ने अनुपम
उसे जबरदस्ती मंडप के नीचे बैठा दिया गया।उसके बैठते ही वह आदमी बोला,"पंडितजी जल्दी से आप फेरे डलवा दे""जी जजमान।"और पंडित जल्दी जल्दी सब काम करने लगा।अनुपम ने बहुत विरोध किया।बचने की भरपूर कोशिश भी की।पर उन गुंडों के ...और पढ़ेउसकी एक नही चली।न चाहते हुए भी जबरदस्ती एक अनजान युवती से उसकी शादी कर दी गयी।बाहर एक कार सजी हुई खड़ी थी।उस कार में अनुपम और दुल्हन को बैठा दिया गया।फिर वो ही आदमी जो इस गिरोह का सरदार था बोला,"इन्हें इनके घर छोड़ आओ।"और कार चल पड़ी।अनुपम बेहद छुब्ध था।राज की कानून व्यस्था पर।कार अनुपम के घर के
"तुम बहुत शातिर और चालक औरत लगती हो।"उस युवती की बाते सुनकर अनुपम बौखला गया,"शादी का इतना ही शौक था तो तलाश कर लिया होता कोई लड़का।इस तरह जबरदस्ती करने की क्या जरूरत थी।इससे मिला क्या?क्या पति मिल जाएगा?""मैं ...और पढ़ेकरूँ।मेरी क्या गलती है।मेरे माँ बाप है नही।भाई ने ही मुझे पाला है।भाई के भी चार लड़कियां है।उसने मुझे खूब पढ़ाया।यह सोचकर कि मेरी शादी अच्छी जगह कर देगा।मेरे भाई ने मेरे लिए वर तलाशने में कोई कसर नही रखी।लेकिन दहेज इतना मांगा गया कि" वह बोली,'भाई मुझे घर मे कब तक रखता ।उसने बहुत कोशिश की।पर कही बात नही
शादी कराने वाले युवती की उसके घर छोड़ गए थे।वह युवती अब उसके कमरे में थी।युवती का कद मंझला और रंग गोरा था।वह सुंदर होने के साथ शिक्षित भी थी।अगर यही शादी अगर उस युवती के साथ अनुपम की ...और पढ़ेसे होती तो वह आज उस युवती के साथ सुहाग रात मना रहा होता।युवती इस तरह खाट पर न बैठकर फूलों की सेज पर बैठी होती।और वह उसके रूप यौवन को निहारते हुए उसकी तारीफ कर रहा होता।लेकिन यह शादी अनुपम की रजामंदी से नही हुई थी।इसलिए एक कमरे में एक छत के नीचे होते हुए भी। वे अलग अलग
बस में चढ़कर युवती ने चारों तरफ देखा।और उसकी नजर अनुपम पर पड़ी थी ।वह अनुपम के पास चली आयी।उसके पास की सीट पर बैठते हुए उसने दीर्घ निश्वास ली और बोली,"जरा सी देर हो जाती तो यह बस ...और पढ़ेजाती"अनुपम ने उस युवती की बात को अनसुना कर दिया।जब वह नही बोला तब वह फिर बोली,"मुझे जगाया क्यो नही?मुझे सोता हुआ छोड़कर अकेले क्यो चले आये?"वह युवती बोली,"मैं तुम्हारे दिल की बात को जानती हूँ।तुम मुझ से पीछा छुड़ाने की सोच रहे हो।तुम भूल कर रहे हो।मेरा नाम छाया है।छाया हमेशा शरीर के साथ रहती है।मेरा तुमसे बन्धन हो
और दूसरे दिन अनुपम मद्रास पहुंचा था।स्टेशन से बाहर आते ही उसने टेक्सी की और अपने फारेस्ट बंगले पर पहुंचा था।"साहब दुल्हन ले आये।"अनुपम के साथ युवती को देखकर स्टाफ के लोग बोले और सबकी औरते बच्चे भी आ ...और पढ़ेलाने की खुशी में स्टाफ के लोग बोले,"आज रात को पार्टी करते है।"और आनन फानन में स्टाफ के लोगो ने पार्टी रख ली।अनुपम नही चाहता था पार्टी हो।छाया को लोग उसकी पत्नी समझ रहे थे।उस छाया से अनुपम पीछा छुड़ाने की सोच रहा था।उसे स्टाफ के लोग उसकी पत्नी मान चुके थे।अनुपम उनसे कैसे कहता कि वह उसकी पत्नी नही
शादी एक ऐसा बन्धन है जिसमे बनधने के बाद पति पत्नी को सिर्फ मौत ही जुदा कर सकती है।इसीलिए कहा जाता है।जिस घर मे औरत की डोली जाती है,उस घर से उसकी अर्थी ही निकलती है।छाया की चाहे जैसे ...और पढ़ेहो अनुपम से शादी हुई थी।छाया की जिंदगी में आने वाला अनुपम पहला मर्द था।उसके साथ सात फेरे लेते ही उसने अनुपम को अपने दिल मे बस लिया था।परंतु अनुपम ने साफ शब्दों में छाया को पत्नी मानने से मना कर दिया था।जबरदस्ती बल प्रयोग से की गई शादी को वह मानने के लिए हरगिज तैयार नही था।उसने पहले ही
"झूठ बिल्कुल झूठ,"छाया बोली,'तुम्हारी बात पर कौन यकीन करेगा?सब तुमसे यही पूछेंगे रिश्ता नही है तो साथ क्यो रह रहे हो?"मुझे किसी को विश्वास दिलाने की जरूरत नही है।"अनुपम बोला,"मेरा तुम से कोई रिश्ता नही है।""चली तुम्हारी बात मान ...और पढ़ेहै।हमारा कोई रिश्ता नही है।हम दोनों दोस्त तो बन ही सकते है।""मुझे तुम्हारी दोस्ती भी कबूल नही है।'"दोस्त न सही तो दुश्मन ही सही,"छाया बोली,"कभी दुश्मन की बात भी मान लेनी चाहिए।""कभी नही,"और अनुपम फुर्ती से घर से बाहर निकलकर चला गया।अनुपम सुबह निकलता तो कभी दोपहर में खाना खाने के लिए घर लौट आता।कभी अगर व्यस्त रहता तो अपने
यहाँ आने के बाद पहली बार छाया बंगले से बाहर निकल रही थी।अनुपम जंगल का निरीक्षण करते हुए आगे बढ़ने लगा।अनुपम तेज चल रहा था।छाया उस गति से नही चल पा रही थी।इसलिए उसे बीच बीच मे भागना पड़ ...और पढ़ेथा।अनुपम चलते हुए पेड़ो पर नजर डालता जा रहा था।",सुनो"अनुपम ने उसकी आवाज को अनसुना कर दिया तब वह फिर बोली,"सुनो तो।'"क्या है?"अनुपम ने चलते हुए पीछे की तरफ देखा था।",कुछ देर रुक जाओ न""क्यो?'"बैठ लेते है।'"क्यो?"अनुपम रुककर बोला" कुछ देर के लिए बैठ लेते है।''क्यो?""मैं थक गई हूं।""तुम्हे बैठना है बैठो मैं चल रहा हूँ।"",प्लीज रुक जाओ न"छाया एक
"तो क्या तुम सोच रहे थे।मेरी टांग सचमुच टूट गयी"।"जब तुम्हे कुछ हुआ ही नही तो यह बहाना करने की क्या जरूरत थी।""बहाना नही करती तो तुम्हारी गोद मे कैसे आती?""मक्कार लड़की,"अनुपम ने छाया की चोटी पकड ली,"अब बहाना ...और पढ़ेमाँ"छाया चीखी,"मेरी चोटी छोड़ो।"""पहले बताओ अब ऐसी हरकत करोगी।""नही।"अनुपम ने छाया की चोटी छोड़ दी और वापस चला गया।पहले रामदीन खाना बनाता था।पर धीरे धीरे छाया ने रसोई का काम सम्हाल लिया था।शुरू में जब छाया ने ऐसा किया तब अनुपम ने उसके हाथ का बनाया खाना नही खाया था।लेकिन अब वह उसके हाथ का बना खाने लगा था।धीरे धीरे
और अनुपम सोच में पड़ गया।कोई निर्णय ले पाता उससे पहले रानी आ गयी"अरे तुम ने शादी कर ली?"रानी,छाया को देखकर आश्चर्य से बोली,"मुझे खबर नही की।""नही।शादी अभी नही की।""फिर यह कौन?""अभी तुम आयी हो सब पता चल जाएगा"रानी ...और पढ़ेकाम से मद्रास आयी थी।एक दिन वह अनुपम के साथ मद्रास का फारेस्ट देखने निकल गई।तब अनुपम उससे बोला," रानी आई लव यू।""तुमने बताया नही छाया कौन है?""पकडौवा के बारे में सुना है?""यह क्या है?""बिहार में लड़कों को अगवा करके उनकी जबरदस्ती शादी करा दी जाती है।"अनुपम ने रानी को इस बारे में जानकारी दी थी।उसकी बात सुनकर रानी बोली,"मतलब
"मैं नही मानता"""अनुपम यह तुम्हारे मानने का सवाल नही है।यह हमारी संस्कृति है,रीति रिवाज है,परंपराएं है।""रानी तुम जानती हो।मैं तुमसे प्यार करता हूँ।तुम्हे अपनी बनाना चाहता हूँ।""अनुपम तुमने मुझे कब प्रपोज किया?""मैं चाहता था पहले माँ को इस शादी ...और पढ़ेलिए राजी कर लूं।""पहले तुम अपने प्यार का इजहार तो करते।अपनी इच्छा तो जाहिर करते।अगर तुम्हारी माँ तैयार नही होती तो तुम तब तक प्रतीक्षा करते,"रानी अनुपम को समझाते हुए बोली,"अब तुम छाया को अपना लो।""मतलब तुम्हे भूल जांऊ?""नही,"रानी बोली,"मुझे पत्नी बनाने वाले तो बहुत मिल जाएंगे लेकिन बहन नही।""क्या मतलब?""अनुपम तुम्हारे कोई बहन नही है और मेरे भाई नही