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यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम - उपन्यास
Asha Saraswat
द्वारा
हिंदी सामाजिक कहानियां
छोटे-छोटे बल्बों की झालरों से घर और दरवाज़े झिलमिला रहे थे ।जैसे हर नन्हा बल्ब दुल्हन की ख़ुशी का इज़हार कर रहा हो।मैं उन्हें निहारकर उनमें अपनी मॉं के हंसते मुस्कुराते चेहरे को महसूस कर रही थी,जैसे वह खिलखिला कर आशीर्वाद दे रहीं हो-तुम्हारा जीवन सदा ख़ुशियों से भरा रहे ऐसा मुझे आभास हुआ ।मेरी भाभी और सखियों ने गहने पहनाकर साज -श्रृंगार कर साड़ी पहनाकर मुझे तैयार किया था ।मैं अपने आने वाले समय को लेकर चिंतित थी,तभी भैया आये मेरे सिर पर हाथ फिराकर बोले -तुमने खाना खाया? मैंने नहीं में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया ।दीदी भी
छोटे-छोटे बल्बों की झालरों से घर और दरवाज़े झिलमिला रहे थे ।जैसे हर नन्हा बल्ब दुल्हन की ख़ुशी का इज़हार कर रहा हो।मैं उन्हें निहारकर उनमें अपनी मॉं के हंसते मुस्कुराते चेहरे को महसूस कर रही थी,जैसे वह खिलखिला ...और पढ़ेआशीर्वाद दे रहीं हो-तुम्हारा जीवन सदा ख़ुशियों से भरा रहे ऐसा मुझे आभास हुआ ।मेरी भाभी और सखियों ने गहने पहनाकर साज -श्रृंगार कर साड़ी पहनाकर मुझे तैयार किया था ।मैं अपने आने वाले समय को लेकर चिंतित थी,तभी भैया आये मेरे सिर पर हाथ फिराकर बोले -तुमने खाना खाया? मैंने नहीं में सिर हिलाते हुए उत्तर दिया ।दीदी भी
जैसे ही मैं नहाकर आई तभी मेरे ही मोहल्ले की लड़की मुझे बुलाने के लिए मेरे घर पर आई और कहने लगी बड़ी ताईजी ने तुम्हें बुलाया है दीदी ।मैंने कहा ठीक है मेरे बाल गीले है ,सूख जायें ...और पढ़ेचलेंगे और कपड़े घर के पहने हैं बदल लेती हूँ ।भाईसाहब की जो पेंट छोटी होगई थी वह मैंने पहन रखी थी उसके ऊपर ढीला कुर्ता पहना था ।उसने कहा नहीं दीदी देर हो जाएगी जल्दी चलना है वरना ताईजी डॉंटेंगी।ताईजी मोहल्ले में ही अगली गली में रहतीं थी और श्रृंगार का सामान अपनी दुकान पर बेचा करतीं थीं ।हमारी
यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम (1)और(2)आपके लिए प्रस्तुत है । जीवन में बहुत से लोगों से हम सब का मिलना होता है ।उनमें कुछ लोग नकारात्मक सोच के होते है,कुछ सकारात्मक सोच के साथ हमारे जीवन में ख़ुशियाँ बिखेरने ...और पढ़ेलिए तत्पर रहते है।(यादों के झरोखों से-निश्छल प्रेम में)नायिका की मुलाक़ात जिन लोगों से होती है ,वह आपके लिए प्रस्तुत है ।आपको अच्छा लगे तो अवश्य बतायें ??बात उन दिनों की है जब हम बहुत छोटे ,प्राइमरी स्कूल के विद्यार्थी थे ।प्रतिदिन अपनी तख्ती को सुंदर बनाने की कोशिश किया करते थे,जिस सहपाठी की तख्ती सुंदर नहीं हुआ करती उसको कक्षा में
वर्तमान समय में नारी सशक्तिकरण की बातें चारों ओर सुनाई दे रहीं है।बात बहुत पुरानी है उस समय कोई इस तरह की बातें नहीं करता था।लेकिन हमारे आस-पास बहुत सी नारियाँ ऐसी थीं जिन्होने हमारे बाल मन पर ...और पढ़ेछाप छोड़ी।बात उन दिनों की है जब हम जूनियर कक्षा में थे ।स्कूल से घर आने पर अल्पाहार लेने के बाद अपना गृहकार्य पूरा कर लेते थे, फिर अपने मित्रों के साथ खूब मस्ती करते हुए खेलते थे।हमारे घर के नज़दीक एक परिवार रहता था।उस परिवार की महिला बहुत मृदुभाषी,सरल स्वभाव की थीं ।हमारी माता जी को वह सासू मॉं की
शादी के बाद मुझे ससुराल में रहने का अवसर तो मिला लेकिन जहॉं पैत्रिक घर था , सासू मॉं रहती थीं वहाँ रहने का अवसर मुझे नहीं मिला था।शादी के समय में परीक्षा थी,परीक्षा अच्छी नहीं हुई।नंबर बहुत कम ...और पढ़ेतो ,उसी कक्षा में दोबारा परीक्षा देने का निर्णय लिया गया और फार्म भी गृह जनपद से ही भरा ।अब सासू मॉं के पास रहकर पढ़ाई करनी थी ,मन में बहुत से प्रश्न उठ रहे थे कैसे हो पायेगा ।हमारी मॉं बहुत ही साहसी और कर्मठ महिला थीं लेकिन मेरी दो जेठानी जो मुझसे पहले परिवार में आई थी उनकी